लखनऊ: उत्तर प्रदेश में छोटे दलों का प्रतिनिधित्व बढ़ने के साथ सत्ता में उनकी भागीदारी भी बढ़ी है. राज्य में कुल 18 मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल हैं. इनके अलावा भी कई छोटे राजनीतिक दल प्रासंगिकता रखते हैं. छोटे दलों के यह नए समीकरण प्रदेश में नई राजनीति के संकेत दे रहे हैं.
प्रदेश में कोई जातीय समीकरण न होने के कारण कांग्रेस का जनाधार सिमटता चला गया. वहीं मंदिर आंदोलन के उभार के कारण कांग्रेस से खिसका वोट बैंक भाजपा को मिला. मायावती ने भाजपा और सपा से अलग-अलग मौकों पर गठबंधन किया और चार बार सूबे की सत्ता पर काबिज हुईं. 90 के दशक के बाद ही छह प्रतिशत से अधिक यादव वोट को साधने वाली समाजवादी पार्टी ने अड़तीस प्रतिशत अन्य पिछड़ी जातियों के मेल से बढ़त हासिल की और मुलायम सिंह यादव भी मुख्यमंत्री बने.
2007 में बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती ने सोशल इंजीनियरिंग की नई बिसात बिछाई. उन्होंने अगड़ी जातियों से दलितों के साथ आने का आह्वान किया. यह प्रयोग सफल भी रहा. उन्होंने पूर्ण बहुमत से सरकार बनाई. नब्बे के दशक के बाद कई छोटे दलों का उदय हुआ. लगभग 44 प्रतिशत पिछड़ी जातियों के कई नेता सामने आए और उन्होंने अपने अलग दल बनाए. 8.5 प्रतिशत कुर्मी वोटों के लिए अपना दल के सोनेलाल पटेल ने दावा ठोंका. इसी तरह अर्कवंशी समाज को साथ लाने के लिए ओम प्रकाश राजभर ने सुहेलदेव समाज पार्टी बनाई. संजय निषाद ने निषाद पार्टी का गठन किया. इसी तरह कई छोटे-छोटे दल सामने आते गए.
इन छोटे दलों के नेताओं के पास अपने समाज के वोट तो थे, लेकिन वह अकेले चुनाव नहीं जीत सकते थे, क्योंकि उनके समाज का वोट बैंक सीमित था. ऐसे में बड़े दलों को लगा कि यदि वो जातीय प्रभाव रखने वाले छोटे दलों से समझौता करते हैं, तो बिखरा हुआ वोट उनकी पार्टी को मिलेगा. यह प्रयोग सफल भी रहा. 2012 के चुनाव में अपना दल के पास सिर्फ एक सीट थी, लेकिन 2017 में जब अपना दल ने भाजपा से गठबंधन किया, तो उसे 11 में से 09 सीटों पर जीत हासिल हुई. वहीं सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के पास 2012 में एक भी सीट नहीं थी, लेकिन 2017 में भाजपा से समझौते के बाद सुभासपा ने चार सीटों पर जीत हासिल की. यह आंकड़े दर्शाते हैं कि बड़े दलों के साथ मिलकर छोटे दलों की ताकत बढ़ जाती है, तो वहीं बड़े दलों के लिए अपने समाज का वोट बैंक सहेजें यह छोटे दल मजबूरी की तरह है.
राजनीतिक विश्लेषक डॉ. दिलीप अग्निहोत्री कहते हैं कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि प्रदेश में छोटे दलों की प्रासंगिकता लगातार बढ़ रही है और इन्हें साथ लेकर चलना बड़े दलों के लिए फायदे का सौदा हो गया है. वह कहते हैं कि छोटे दलों पर अक्सर एक आरोप लगता है कि वह अपने समाज का भला करने के बजाय परिवारवाद में फंस जाते हैं और अपने समाज को अधिक प्रतिनिधित्व नहीं देते. छोटे दलों को इस स्थिति से निकलना होगा.
उत्तर प्रदेश के राजनीतिक दल-
भाजपा व सहयोगी दल
- अपना दल (एस)
- निषाद पार्टी
- सामाजिक न्याय नव लोक पार्टी
- राष्ट्रीय जलवंशी क्रांति दल
- मानव क्रांति पार्टी
- प्रगतिशील समाज पार्टी
समाजवादी पार्टी व सहयोगी दल
- राष्ट्रीय लोक दल
- सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी
- महान दल
- प्रगतिशील समाज पार्टी (लोहिया)- शिवपाल सिंह यादव
- राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी
- जनवादी पार्टी (सोशलिस्ट)
- अपना दल (कमेरावादी)
- तृणमूल कांग्रेस
अन्य दल
- एआईएमआईएम
- जन अधिकार पार्टी
- भारत मुक्ति मोर्चा
- बहुजन समाज पार्टी
- राष्ट्रीय राष्ट्रीय कांग्रेस
- भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी
- भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मा.ले.) (लिबरेशन)
- भारत की कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी)
- भीम आर्मी
- जनता दल (यू)
- समता पार्टी
- शिवसेना
- राष्ट्रीय जनता दल
- लोक जनशक्ति पार्टी
- जनता दल (सेक्युलर)
- ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक
- आम आदमी पार्टी
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