लखनऊः सूबे में योगी सरकार की तरफ से महिलाओं की सुरक्षा, सम्मान और स्वाभिमान को लेकर किए गया प्रयास काफी हद तक सफल रहा है. एनसीआरबी (national crime records bureau) की रिपोर्ट के मुताबिक देश के 21 बड़े राज्यों में होने वाले महिला अपराधों के मुकाबले उत्तर प्रदेश में कम हैं. वहीं, राष्ट्रीय औसत के मुकाबले भी उत्तर प्रदेश में महिला अपराध के मामले बहुत कम हैं.
NCRB ने जारी किए आंकड़े
NCRB की तरफ से जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक महिलाओं के प्रति होने वाले अपराध के मामले में 2019 में देश का कुल औसत 62.4 फीसदी दर्ज किया गया. जबकि उत्तर प्रदेश में महिला के प्रति अपराध 55.2 प्रतिशत रहा. वहीं 2019 में मिजोरम में महिलाओं के प्रति अपराध का औसत 88.3, मणिपुर में 58.0, मेघालय में 57.3, राजस्थान में 110.4 और केरल जैसे छोटे राज्य में यह औसत 62.7 रहा. यूपी में महिलाओं के प्रति अपराध का औसत वर्ष 2016 में 52.6, वर्ष 2017 में 66.4 और 2018 में ग्राफ गिरकर 60.3 रहा जो कि अन्य राज्यों के मुकाबले काफी कम है.
सपा सरकार के मुकाबले दुष्कर्म के मामले 32 फीसदी कम
NCRB के आंकड़े के अनुसार महिलाओं के प्रति अपराध पर लगाम लगाने के लिए योगी सरकार ने कड़ी मशक्कत की है. पुलिस और न्याय प्रक्रिया को दुरुस्त करने के साथ ही महिलाओं के गुनाहगारों को जेल भेजने का रास्ता भी तैयार किया. वर्ष 2016 में यूपी में दुष्कर्म के 3289 मामले दर्ज किए गए थे, जबकि 2020 में यह आंकड़ा 2232 पर आ गया. सपा सरकार के 2016 के मुकाबले योगी सरकार 2020 तक दुष्कर्म के मामलों में 32 फीसदी कमी लाने में सफल रही. प्रदेश में 2016 में महिला अपहरण के 11121 मामले थे, वहीं 2020 तक योगी सरकार ने 27 फीसदी अपहरण के मामलों में कमी लाते हुए इसे 11057 पर रोक दिया. आंकड़ों के मुताबिक, अखिलेश सरकार के दौरान 2013 में 2593, 2014 में 2990 और 2015 में 2662 महिलाएं दुष्कर्म का शिकार हुईं.
महिलाओं की सुरक्षा के लिए शुरू की कई योजनाएं
महिलाओं संबंधी मामलों की जानकार व वरिष्ठ पत्रकार रोली खन्ना की मानें तो महिलाओं के अपराध रोकने में सोशल सर्विलांस सिस्टम काफी मजबूत है. निर्भया कांड के बाद योगी सरकार ने महिलाओं की सुरक्षा के लिए लखनऊ पुलिस के साथ वूमन पॉवर लाइन 1090 और अन्य सुरक्षा एजेंसियों को मजबूत और सक्रिय करने का काम किया है. प्रदेश भर में एंटी रोमियो स्क्वाड की तैनाती के साथ सादी वर्दी में जगह-जगह महिला पुलिसकर्मियों की तैनाती, यूपी 112, पेट्रोलिंग, रात्रि सुरक्षा कवक्ष योजना और महिला हेल्प डेस्क के साथ चौराहों पर पिंक बूथ बनाने पर जोर दिया है.
महिला अपराधों में अंकुश लगाने के लिए सुधार की जरूरत
पुलिस बल में लंबे समय से काम कर चुके पूर्व डीजी एके जैन के अनुसार, अगर महिलाओं के खिलाफ अपराधों पर अंकुश लगाना है तो पुलिस सुधारों की तत्काल आवश्यकता है. उन्होंने कहा, यूपी पुलिस में 6,000 - 8,000 से अधिक भर्तियों को प्रशिक्षित करने की क्षमता नहीं है, इसके बावजूद वे 30,000 लोगों को फोर्स में ले रहे हैं. पूर्व डीजी की मानें तो भारतीय पुलिस व्यवस्था अपनी सदियों पुरानी भर्ती प्रक्रिया से ग्रस्त है. प्रशिक्षण प्रक्रिया के दौरान, पूरा ध्यान प्रशिक्षुओं की शारीरिक शक्ति बढ़ाने पर होती है, लेकिन फोरेंसिक, कानून, साइबर-अपराध, वित्तीय धोखाधड़ी को नजरअंदाज किया जाता है. पुलिस से संबंधित कानून भी निराशाजनक रूप से काफी पुराने हैं. वह कहते हैं हम अभी भी 1861 के पुलिस अधिनियम और 1872 के पुलिस विनियमन का पालन करते हैं. हमने तब से पुलिस के कामकाज के तरीके को नहीं बदला है.
JUDICIAL कस्टडी में सबसे ज्यादा मौतें यूपी में
केंद्रीय गृह मंत्रालय (MHA) की बात करें तो जुडिशियल कस्टडी में सबसे ज्यादा मौतें उत्तर प्रदेश में ही होती हैं. 28 फरवरी 2021 तक यूपी में 395 लोगों की मौत जुडिशियल कस्टडी में हुई. जबकि, वेस्ट बंगाल 158, मध्य प्रदेश में 144, बिहार 139 और महाराष्ट्र में 117 मौतें हुई. जबकि, पुलिस कस्टडी में 2020-2021 में सबसे ज्यादा 15 मौतें गुजरात में हुई. महाराष्ट्र में 11, वेस्ट बंगाल 8 और कर्नाटका में 4 मौतें हुई हैं. हालांकि, जुडिशियल या पुलिस कस्टडी में हुई इन मौतों के पीछे केंद्रीय गृह मंत्रालय ने वजह नहीं बताई है. लेकिन उच्च पदस्थ सूत्रों के मुताबिक इन मौतों के पीछे बीमारी, गैंगवॉर, आत्महत्या और पुलिस द्वारा टार्चर ही है.