लखनऊ : प्रदेश के अस्पतालों की बिगड़ी हुई स्वास्थ्य व्यवस्था को सुधारने के लिए स्वास्थ्य मंत्री बृजेश पाठक लगातार अस्पतालों का निरीक्षण कर रहे हैं. समस्याओं को दूर करने की कोशिश कर रहे हैं, फिर भी समस्या जस की तस बनी हुई है. अस्पतालों में कहीं स्ट्रेचर टूटे पड़े हैं तो कहीं मरीज को एंबुलेंस नसीब नहीं हो रही. ऐसा ही कुछ हाल है केजीएमयू के ट्राॅमा सेंटर का.
पुराना लखनऊ निवासी मोहम्मद नासिर अपनी मां को दिखाने के लिए केजीएमयू ट्राॅमा सेंटर पहुंचे. मां को बलरामपुर अस्पताल से ट्राॅमा सेंटर रेफर किया गया था. बावजूद इसके यहां पर उन्हें लंबी लाइन का सामना करना पड़ा. उन्होंने बताया कि एक मरीज जब अस्पताल से रेफर होकर आता है तो उसे घंटों बर्बाद करने पड़ते हैं. यह समझने के लिए कि उसे कहां जाना है किस डॉक्टर को दिखाना है. दो दिन पहले मैं केजीएमयू ट्राॅमा सेंटर अपनी मां को लेकर आया था उस समय कहा गया कि बेड खाली नहीं है. इसके बाद मैं उन्हें सिविल अस्पताल लेकर गया, लेकिन वहां पर गैस्ट्रो के डॉक्टर नहीं होने की वजह से फिर से केजीएमयू रेफर किया गया. उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य मंत्री बृजेश पाठक काफी एक्टिव हैं.
इंदिरा नगर निवासी अजय प्रताप सिंह केजीएमयू ट्राॅमा सेंटर में बीते दो दिन से अपने मरीज के साथ हैं. उन्होंने बताया कि पहले दिन जब हमने एंबुलेंस किया तो चालक तमाम बहाने बना रहा था. एक बार बोला कि अभी नहीं आ सकते हैं, फिर दोबारा बोला कि एंबुलेंस का टायर पंचर है. उन्होंने बताया कि अस्पताल में तमाम अव्यवस्थाएं हैं. मरीज यहां पर इलाज के लिए आता है. ऐसे भी यहां आने के बाद एक विभाग से दूसरे विभाग के इतने चक्कर लगाने पड़ते हैं कि मरीज थक हार के बैठ जाता है. यहां कोई जानकारी देने वाला नहीं है. कहने के लिए तो डॉक्टर ड्यूटी पर रहते हैं, लेकिन मरीज की कोई नहीं सुनता.
सिद्धार्थनगर निवासी आलोक तिवारी ने बताया कि यहां पर कोई भी सहयोग करने वाला नहीं है. सभी मरीज इधर से उधर भटकते रहते हैं, लेकिन कोई भी बताने वाला नहीं है कि कौन सा विभाग कहां पर है. यहां पर सबसे अधिक दिक्कत अन्य जिले से रेफर मरीजों को होती है. उनको यहां के बारे में मालूम नहीं होता है.
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केजीएमयू प्रवक्ता डॉ. सुधीर सिंह का कहना है कि अस्पताल में रोजाना तीन से पांच हजार मरीज आते हैं. ऐसे में हो सकता है कुछ मरीजों को दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा होगा. हालांकि हम इसे दिखाएंगे और कोशिश करेंगे कि मरीजों को स्टाफ सहयोग करे. जितने भी मरीज आते हैं उन्हें तुरंत इलाज दिया जाता है. मरीज की जान के साथ अस्पताल प्रशासन किसी तरह का खिलवाड़ नहीं करता है.
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