लखनऊ: रेलवे प्रशासन ने कुछ साल पहले रेलवे ट्रैक के किनारे हरे-भरे पौधे लगाने का निर्णय लिया था, जिसके बाद रेलवे अधिकारियों की तरफ से तमाम रेलवे ट्रैक पर पौधे भी लगवाए गए. जब ये पौधे बड़े हुए तो रेलवे के लिए ही सिरदर्द बन गए. दरअसल, रूटों का इलेक्ट्रिफिकेशन हो चुका है. ऐसे में यह पेड़ तारों में छू रहे हैं, जिससे ट्रेन के संचालन में बाधा पैदा हो रही है. अब रेलवे प्रशासन ने फैसला लिया है कि ट्रैक के किनारे किसी तरह के कोई भी पौधे नहीं लगाए जाएंगे.
ट्रैक के किनारे अक्सर लोग गंदगी फैलाते हैं. कूड़ा फेंक देते हैं, जिससे सफर के दौरान ट्रेन से बाहर झांकते ही यात्रियों को दुर्गंध आती थी. इसके बाद रेलवे प्रशासन ने फैसला लिया था कि ट्रैक के किनारे हरियाली रहे और खुशबू वाले पौधे लगा दिये जाएं, जिससे साफ-सफाई होने पर लोग कूड़ा भी नहीं फेंकेंगे और ट्रेन से सफर के दौरान झांकने पर यात्रियों को इन फूल वाले पौधों से खुशबू भी आएगी.
बकायदा रेलवे प्रशासन ने तमाम रेलवे लाइनों पर पेड़ भी लगाए, लेकिन यही पेड़ जब बड़े हुए तो रेल प्रशासन के लिए ही सिरदर्द बन गए. कई बार जब तेज आंधी और हवा का झोंका आया तो यही पेड़ सीधे ट्रैक पर आ गिरे, जिससे काफी देर तक ट्रेनों का संचालन बाधित रहता था. इसके बाद रेलवे ने ट्रैक के किनारे पेड़ लगाने का फैसला टाल दिया. अब ट्रैक के किनारे फिलहाल पौधे लगाने का रेलवे का कोई कार्यक्रम नहीं है.
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मंडल का इलेक्ट्रिफिकेशन होना भी बड़ी वजह
उत्तर रेलवे मंडल का अब सौ फीसदी इलेक्ट्रिफिकेशन हो चुका है. पूरे मंडल में ट्रेनों का संचालन अब इलेक्ट्रिसिटी से ही होता है. ऐसे में ट्रक के ऊपर बिजली की लाइनें खिंच गई हैं. जब यह पेड़ बड़े हो जाते हैं तो तारों को भी छू जाते हैं, जिससे लाइन ट्रिप हो जाती है. तूफान के दौरान रेलवे ट्रैक पर तो पेड़ गिरते ही हैं, तारों पर भी गिर जाते हैं जिससे और बड़ी समस्या खड़ी होती है. यही वजह है कि इलेक्ट्रिफिकेशन हो जाने के चलते भी रेलवे प्रशासन ट्रैक के किनारे पौधे लगाने पर कोई विचार नहीं करेगा. रेलवे के अधिकारी बताते हैं कि ट्रैक से दूर जहां पर भी रेलवे की जमीन खाली होगी, वहां पर अब वृक्ष लगाए जाएंगे.
क्या कहते हैं डीआरएम
उत्तर रेलवे लखनऊ मंडल के डीआरएम एके सपरा (DRM AK Sapra of Northern Railway Lucknow Division) ने बताया कि रेलवे में पेड़ लगाने का दो तरह का स्कोप है. पहला तो हम रेलवे ट्रैक के किनारे किनारे पेड़ लगाएं, लेकिन ट्रैक के किनारे हमने जो पेड़ लगाए थे, वह एक समय के बाद असुरक्षित हो जाते हैं. जब कभी भी आंधी-तूफान आता है, तो वह पेड़ ट्रैक पर गिर जाते हैं, जिसकी वजह से अनसेफ कंडीशन भी होती है.
उन्होंने कहा कि सबसे बड़ी बात है कि पूरे मंडल का इलेक्ट्रिफिकेशन हो चुका है, तो पेड़ सबसे पहले उस तार पर गिरता है और ट्रेन रुक जाती है. घंटो ट्रेन सेवा प्रभावित रहती है. ट्रैक के किनारे जहां पर हमारे पास कम भूमि उपलब्ध है, वहां पर पेड़ लगाने से 15 साल के बाद नुकसान होता है, क्योंकि वह कभी भी गिर सकता है. जैसे ही उसकी लाइफ पूरी होती है तो असुरक्षित हो जाता है. रेलवे के पास कुछ जमीनें ऐसी हैं, जो ट्रैक से दूर हैं. ऐसी जमीनों को चिन्हित कर उन पर अपने स्तर पर या राज्य सरकार की मदद से समय-समय पर पौधे लगाते भी हैं और लगवाए भी जाएंगे.
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