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प्रमुख सचिव परिवहन के एक आदेश ने बजा दी निजीकरण की खतरे की घंटी, जानिए पूरा मामला - प्रमुख सचिव एम बेंकटेश्वर लू

परिवहन विभाग (transport Department) के प्रमुख सचिव एम बेंकटेश्वर लू (Principal Secretary M Benkteshwar Lu) के एक आदेश ने परिवहन निगम के लिए निजीकरण की खतरे की घंटी बजा दी है. प्रमुख सचिव ने आदेश दिया है कि रोडवेज की 75 फीसद बस सेवाएं अनुबंध पर संचालित बसों की हों और सिर्फ 25 फीसद ही नई बसें रोडवेज की हों.

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Published : Oct 18, 2022, 10:08 PM IST

लखनऊ. परिवहन विभाग (transport Department) के प्रमुख सचिव एम बेंकटेश्वर लू (Principal Secretary M Benkteshwar Lu) के एक आदेश ने परिवहन निगम के लिए निजीकरण की खतरे की घंटी बजा दी है. प्रमुख सचिव ने आदेश दिया है कि रोडवेज की 75 फीसद बस सेवाएं अनुबंध पर संचालित बसों की हों और सिर्फ 25 फीसद ही नई बसें रोडवेज की हों. अब इस आदेश का खुले तौर पर परिवहन निगम की यूनियनों ने विरोध करना शुरू कर दिया है. प्रमुख सचिव ने कहा है कि निष्प्रोज्य होने वाली बसों को बस बेड़े से हटाते हुए अनुबंध सेवा की अच्छी स्थिति वाली ज्यादा मात्रा में बसों को गांव और दुर्गम क्षेत्रों के लिए चलाकर यात्रियों को सुविधा दी जाए. सप्ताह में चार दिन लाभदायक मार्गों पर और दो दिन दूरदराज क्षेत्रों में इन बसों को भेजा जाए.

हाल ही में प्रमुख सचिव परिवहन का एक आदेश हुआ है जिसने उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम के अधिकारियों और कर्मचारियों में खलबली मचा दी है. प्रमुख सचिव ने कहा है कि वर्तमान में उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम के बस बेड़े में लगभग 75% अपनी बसें और 25% अनुबंधित बसें हैं, इसे शीघ्र परिवर्तित करते हुए 25% परिवहन निगम की अपनी और अच्छी स्थिति वाली 75% बसें अनुबंध के आधार पर संचालित कराई जाएं. आदेश में यह भी कहा गया है कि परिवहन निगम की छवि को सुधारने के लिए भविष्य की कार्ययोजना जल्द से जल्द मुख्यमंत्री के समक्ष प्रस्तुत की जाए. यह आदेश परिवहन निगम के लिए काफी चिंता का सबब बना हुआ है. इसका बड़े स्तर पर विरोध शुरू किए जाने की तैयारी है.

जानकारी देते संवाददाता अखिल पांडेय



बता दें कि उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम देश का एकमात्र ऐसा निगम है जिसके बस बेड़े में तकरीबन 12000 बसें शामिल हैं, जिसमें 8000 से ज्यादा बसें रोडवेज की अपनी हैं. इतनी बसें किसी भी निगम के पास नहीं हैं. अभी बस बेड़े में 75 फीसद बसें रोडवेज की हैं और 25 फीसद बसें अनुबंध पर संचालित होती हैं, वहीं अब इस आदेश के बाद ठीक विपरीत हो जाएगा. परिवहन निगम की 25 फीसदी बसें बचेंगी और 75 फीसद बसें प्राइवेट होंगी. गौरतलब है कि मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड और बिहार जैसे राज्यों ने अपने यहां इस तरह की योजना लागू की थी, जिसका हश्र यह हुआ कि रोडवेज पूरी तरह से खत्म हो गया और प्राइवेट बसों से यात्रियों को सुविधा भी न मिल पाई.



कुछ दिन पहले ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ प्रमुख सचिव परिवहन एल. वेंकटेश्वर लू ने परिवहन निगम को लेकर चर्चा की थी. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस बात पर नाराजगी जताई थी कि वर्तमान में उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम की बसों की स्थिति बहुत खराब है. इसमें सुधार लाने के लिए प्रभावी निर्देश दिए थे. जिसके बाद प्रमुख सचिव ने इस तरह का आदेश जारी किया है.

जारी आदेश
जारी आदेश
जारी आदेश
जारी आदेश

क्या कहते हैं यूनियन नेता : सेंट्रल रीजनल वर्कशाॅप कर्मचारी संघ के प्रांतीय महामंत्री जसवंत सिंह प्रमुख सचिव परिवहन के इस तरह के आदेश से काफी खफा हैं. उनका कहना है कि यह आदेश परिवहन निगम के 50,000 से ज्यादा कर्मचारियों और अधिकारियों के हित में बिल्कुल नहीं हो सकता है. उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम को सरकार सहायता भी नहीं देती है, अपने दम पर ही परिवहन निगम चलता है, लेकिन अब 75% फ्लीट प्राइवेट बसों की परिवहन निगम में शामिल करने का आदेश तानाशाही वाला है. इसका रोडवेज की सभी यूनियन खुलकर विरोध करेंगी. किसी भी कीमत पर रोडवेज को बचाने के लिए इस आदेश को लागू नहीं होने दिया जाएगा. पूर्व में भी कई राज्य इस तरह का प्रयोग कर चुके हैं, लेकिन इसका कोई फायदा यात्रियों को नहीं मिला, उल्टा वहां के निगम ही खत्म हो गए. हम सात परसेंट रूट पर चलकर 200 से ज्यादा बस स्टेशन जनता की सुविधा के लिए बना चुके हैं, लेकिन 90 परसेंट से ज्यादा रूट पर चलने वाले प्राइवेट बस ऑपरेटर आज तक एक भी बस स्टेशन बना पाए हैं. सरकार को इस ओर भी पहले ध्यान देना चाहिए.



प्रदेश मीडिया प्रभारी रजनीश मिश्रा ने कहा कि उत्तर प्रदेश रोडवेज कर्मचारी संघ के प्रवक्ता परिवहन निगम को बंद करने की साजिश के खिलाफ उत्तर प्रदेश रोडवेज कर्मचारी संघ सड़कों पर उतरेगा. सरकार की तरफ से जो व्यवस्था लागू करने के प्रयास किए जा रहे हैं वह सरासर निगम के हित में नहीं हैं. पहले स्वयं परिवहन मंत्री द्वारा घोषित 1110 बसें सड़कों पर उतारी जाएं उसके बाद जो हमारा लक्ष्य है 4000 नई बसों के खरीदने का उसे तत्काल पूरा किया जाए, न कि अनुबंधित बसों को चंद अधिकारियों के निजी फायदे के लिए उनका अनुबंध कर लिया जाए. परिवहन निगम की बसें उसकी शान हैं. परिवहन निगम के शौर्य का प्रतीक है. अनुबंधित बसें कभी भी गरीब, शोषित, पीड़ित समाज का भला नहीं कर सकतीं. जब जब सरकार पर और देश पर कोई आपदा या संकट आया है, उत्तर प्रदेश परिवहन निगम की बसें और उनके कर्मचारी हमेशा सरकार के साथ खड़े रहे.

यह भी पढ़ें : अपराधियों का चेहरा व गाड़ी दिखते ही तीसरी आंख करेगी अलर्ट, पुलिस की यह है तैयारी

उन्होंने कहा कि कोरोना काल के समय, नेपाल की आपदा में, उत्तराखंड की आपदा में, परिवहन निगम हमेशा सरकार के साथ कंधे से कंधा मिला कर खड़ा रहा. हम सरकार से कोई भीख नहीं मांग रहे. हम केवल अनुमति मांग रहे हैं कि हमें बसें खरीदने की अनुमति दी जाए. हम पहले भी बसें खरीद चुके हैं. अनेक बैंक हमें लोन देने को तैयार खड़े रहते हैं. केवल सरकार की अनुमति की जरूरत है. अगर सरकार जबरदस्ती निजीकरण को थोपने का प्रयास करेगी और परिवहन निगम को बंद करने की साजिश के तहत निजी बसों को लगाने का प्रयास करेगी तो उत्तर प्रदेश रोडवेज कर्मचारी संघ सड़कों पर उतरेगा.

यह भी पढ़ें : फर्जी राशन कार्डों के खिलाफ बड़ी कार्रवाई की तैयारी, अपात्र होंगे निरस्त, पात्रों के बनेंगे कार्ड

लखनऊ. परिवहन विभाग (transport Department) के प्रमुख सचिव एम बेंकटेश्वर लू (Principal Secretary M Benkteshwar Lu) के एक आदेश ने परिवहन निगम के लिए निजीकरण की खतरे की घंटी बजा दी है. प्रमुख सचिव ने आदेश दिया है कि रोडवेज की 75 फीसद बस सेवाएं अनुबंध पर संचालित बसों की हों और सिर्फ 25 फीसद ही नई बसें रोडवेज की हों. अब इस आदेश का खुले तौर पर परिवहन निगम की यूनियनों ने विरोध करना शुरू कर दिया है. प्रमुख सचिव ने कहा है कि निष्प्रोज्य होने वाली बसों को बस बेड़े से हटाते हुए अनुबंध सेवा की अच्छी स्थिति वाली ज्यादा मात्रा में बसों को गांव और दुर्गम क्षेत्रों के लिए चलाकर यात्रियों को सुविधा दी जाए. सप्ताह में चार दिन लाभदायक मार्गों पर और दो दिन दूरदराज क्षेत्रों में इन बसों को भेजा जाए.

हाल ही में प्रमुख सचिव परिवहन का एक आदेश हुआ है जिसने उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम के अधिकारियों और कर्मचारियों में खलबली मचा दी है. प्रमुख सचिव ने कहा है कि वर्तमान में उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम के बस बेड़े में लगभग 75% अपनी बसें और 25% अनुबंधित बसें हैं, इसे शीघ्र परिवर्तित करते हुए 25% परिवहन निगम की अपनी और अच्छी स्थिति वाली 75% बसें अनुबंध के आधार पर संचालित कराई जाएं. आदेश में यह भी कहा गया है कि परिवहन निगम की छवि को सुधारने के लिए भविष्य की कार्ययोजना जल्द से जल्द मुख्यमंत्री के समक्ष प्रस्तुत की जाए. यह आदेश परिवहन निगम के लिए काफी चिंता का सबब बना हुआ है. इसका बड़े स्तर पर विरोध शुरू किए जाने की तैयारी है.

जानकारी देते संवाददाता अखिल पांडेय



बता दें कि उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम देश का एकमात्र ऐसा निगम है जिसके बस बेड़े में तकरीबन 12000 बसें शामिल हैं, जिसमें 8000 से ज्यादा बसें रोडवेज की अपनी हैं. इतनी बसें किसी भी निगम के पास नहीं हैं. अभी बस बेड़े में 75 फीसद बसें रोडवेज की हैं और 25 फीसद बसें अनुबंध पर संचालित होती हैं, वहीं अब इस आदेश के बाद ठीक विपरीत हो जाएगा. परिवहन निगम की 25 फीसदी बसें बचेंगी और 75 फीसद बसें प्राइवेट होंगी. गौरतलब है कि मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड और बिहार जैसे राज्यों ने अपने यहां इस तरह की योजना लागू की थी, जिसका हश्र यह हुआ कि रोडवेज पूरी तरह से खत्म हो गया और प्राइवेट बसों से यात्रियों को सुविधा भी न मिल पाई.



कुछ दिन पहले ही मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ प्रमुख सचिव परिवहन एल. वेंकटेश्वर लू ने परिवहन निगम को लेकर चर्चा की थी. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस बात पर नाराजगी जताई थी कि वर्तमान में उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम की बसों की स्थिति बहुत खराब है. इसमें सुधार लाने के लिए प्रभावी निर्देश दिए थे. जिसके बाद प्रमुख सचिव ने इस तरह का आदेश जारी किया है.

जारी आदेश
जारी आदेश
जारी आदेश
जारी आदेश

क्या कहते हैं यूनियन नेता : सेंट्रल रीजनल वर्कशाॅप कर्मचारी संघ के प्रांतीय महामंत्री जसवंत सिंह प्रमुख सचिव परिवहन के इस तरह के आदेश से काफी खफा हैं. उनका कहना है कि यह आदेश परिवहन निगम के 50,000 से ज्यादा कर्मचारियों और अधिकारियों के हित में बिल्कुल नहीं हो सकता है. उत्तर प्रदेश राज्य सड़क परिवहन निगम को सरकार सहायता भी नहीं देती है, अपने दम पर ही परिवहन निगम चलता है, लेकिन अब 75% फ्लीट प्राइवेट बसों की परिवहन निगम में शामिल करने का आदेश तानाशाही वाला है. इसका रोडवेज की सभी यूनियन खुलकर विरोध करेंगी. किसी भी कीमत पर रोडवेज को बचाने के लिए इस आदेश को लागू नहीं होने दिया जाएगा. पूर्व में भी कई राज्य इस तरह का प्रयोग कर चुके हैं, लेकिन इसका कोई फायदा यात्रियों को नहीं मिला, उल्टा वहां के निगम ही खत्म हो गए. हम सात परसेंट रूट पर चलकर 200 से ज्यादा बस स्टेशन जनता की सुविधा के लिए बना चुके हैं, लेकिन 90 परसेंट से ज्यादा रूट पर चलने वाले प्राइवेट बस ऑपरेटर आज तक एक भी बस स्टेशन बना पाए हैं. सरकार को इस ओर भी पहले ध्यान देना चाहिए.



प्रदेश मीडिया प्रभारी रजनीश मिश्रा ने कहा कि उत्तर प्रदेश रोडवेज कर्मचारी संघ के प्रवक्ता परिवहन निगम को बंद करने की साजिश के खिलाफ उत्तर प्रदेश रोडवेज कर्मचारी संघ सड़कों पर उतरेगा. सरकार की तरफ से जो व्यवस्था लागू करने के प्रयास किए जा रहे हैं वह सरासर निगम के हित में नहीं हैं. पहले स्वयं परिवहन मंत्री द्वारा घोषित 1110 बसें सड़कों पर उतारी जाएं उसके बाद जो हमारा लक्ष्य है 4000 नई बसों के खरीदने का उसे तत्काल पूरा किया जाए, न कि अनुबंधित बसों को चंद अधिकारियों के निजी फायदे के लिए उनका अनुबंध कर लिया जाए. परिवहन निगम की बसें उसकी शान हैं. परिवहन निगम के शौर्य का प्रतीक है. अनुबंधित बसें कभी भी गरीब, शोषित, पीड़ित समाज का भला नहीं कर सकतीं. जब जब सरकार पर और देश पर कोई आपदा या संकट आया है, उत्तर प्रदेश परिवहन निगम की बसें और उनके कर्मचारी हमेशा सरकार के साथ खड़े रहे.

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उन्होंने कहा कि कोरोना काल के समय, नेपाल की आपदा में, उत्तराखंड की आपदा में, परिवहन निगम हमेशा सरकार के साथ कंधे से कंधा मिला कर खड़ा रहा. हम सरकार से कोई भीख नहीं मांग रहे. हम केवल अनुमति मांग रहे हैं कि हमें बसें खरीदने की अनुमति दी जाए. हम पहले भी बसें खरीद चुके हैं. अनेक बैंक हमें लोन देने को तैयार खड़े रहते हैं. केवल सरकार की अनुमति की जरूरत है. अगर सरकार जबरदस्ती निजीकरण को थोपने का प्रयास करेगी और परिवहन निगम को बंद करने की साजिश के तहत निजी बसों को लगाने का प्रयास करेगी तो उत्तर प्रदेश रोडवेज कर्मचारी संघ सड़कों पर उतरेगा.

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