लखनऊ : उत्तर प्रदेश से एशियाई राज गिद्ध खत्म होने लगे हैं. लखनऊ विश्वविद्यालय के एक शोधार्थी द्वारा किए गए अध्ययन में सिर्फ नौ एशियाई राज गिद्ध ही मिले हैं. इनमें, चित्रकूट में पांच, झांसी एक व ललितपुर में तीन शामिल हैं. सबसे गंभीर बात यह है कि इनके न होने से दूसरे सभी गिद्ध भूखे मर सकते हैं. असल में इन गिद्धों के बिना कोई खाना नहीं खा सकता है.
लखनऊ विश्वविद्यालय के जंतु विज्ञान विभाग की प्रो. अमिता कनौजिया के निर्देशन में शोध छात्र अंकित सिन्हा ने तीन साल तक बुंदेलखण्ड में एशियाई राज गिद्ध की स्थिति को लेकर एक अध्ययन किया है. इंटरनेशनल जर्नल ऑफ जूलॉजिकल इन्वेस्टिगेशन में इसका शोध पत्र प्रकाशित हो चुका है. इस अध्ययन में उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश के जिलों को शामिल किया गया.
इनके बिना नहीं होती है खाने की शुरुआत : अंकित ने बताया कि गिद्ध मृत जानवर ही खाते हैं. राज गिद्ध एक विशेष प्रजाति है. इनके पंजे और चोंच अन्य गिद्धों के मुकाबले बहुत मजबूत होते हैं. यह सबसे पहले किसी भी मृत जानवर की ऊपरी परत को हटाने का काम करते हैं. सबसे पहले खुद फिर दूसरे गिद्ध उसे खा सकते हैं. बता दें, भारत में करीब नौ प्रकार के गिद्ध पाए जाते हैं. इनमें राज गिद्ध के साथ देसी, सफेद, चमर, काला, हिमालयी, यूरेशियाई, पतल चोंच गिद्ध सहित एक अन्य नाम शामिल है.
अध्ययन में यह सच आया सामने : अध्ययन के लिए 2018 से डेटा इकट्ठा करने के साथ ही कुल 13 जिलों को चुना गया. इनमें से सिर्फ आठ जिलों में ही राज गिद्ध देखने को मिले. मध्य प्रदेश के छतरपुर 17, दमोह 48, पन्ना 45, सागर 48, टीकमगढ़ में सात राज गिद्ध मिले. उत्तर प्रदेश के चित्रकूट में पांच, झांसी एक व ललितपुर में तीन राज गिद्ध पाए गए. अंकित ने बताया कि अध्ययन में सिर्फ 174 लाल गिद्धों का बसेरा देखने को मिला है. इनमें पांच साल के ऊपर की उम्र के 132 व्यस्क और एक से सवा साल की उम्र के 42 गिद्ध के बच्चे शामिल हैं.
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एक किलोमीटर तक दूसरा नहीं बनाता है घोंसला : शोधार्थी अंकित ने बताया कि जहां भी राज गिद्ध घोंसला बनाता है, वहां से एक किलोमीटर के दायरे में दूसरा राज गिद्ध घोसला नहीं बना सकता. लाल सिर और काले पंख वाले नर राज गिद्ध की आंखें सफेद या हल्के पीले रंग में तथा मादा गिद्ध की आंखें भूरे रंग की होती हैं.
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