लखनऊ : उत्तर प्रदेश की राजनीति में किसी एक दल के कभी भी भरोसेमंद न रहने वाले सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (Suheldev Bharatiya Samaj Party) के अध्यक्ष ओम प्रकाश राजभर का कुनबा आधा हो चुका है. भाजपा व समाजवादी पार्टी के संगठन पर बयान देने वाले राजभर खुद की पार्टी के लोगों को नहीं समझा पा रहे हैं. ये तब हो रहा है जब राजभर यूपी से बिहार तक सावधान रैली की तैयारियों में जुटे हैं. बीते दिनों 50 से अधिक पार्टी के पदाधिकारियों ने इस्तीफा दे दिया है.
ओम प्रकाश राजभर (Om Prakash Rajbhar) पर दो परिवारों का प्रेम अब भारी पड़ रहा है. इसमें एक है मुख्तार अंसारी एंड फैमली और दूसरी उनकी खुद का फैमली. राजभर का साथ छोड़ने वाले नेताओं का कहना है कि ओम प्रकाश सिर्फ इन्हीं दोनों परिवार पर ध्यान दे रहे हैं, इसके अलावा उन्हें किसी भी पदाधिकारी से कोई भी मोह नहीं है. इसी के चलते बीते दिनों भारतीय समाज पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष सहित 30 लोगों ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया. इस्तीफा देने वाले नेताओं ने आरोप लगाया कि ओम प्रकाश राजभर केवल मुख्तार अंसारी की बात सुनते हैं. वो मुख्तार को अपना बड़ा भाई मानते हैं. हम लोगों से वो कोई राय नहीं लेते हैं. जो मुख्तार अंसारी कहते हैं, राजभर वही करते हैं.
सुभासपा छोड़ने वाले नेताओं ने ओम प्रकाश राजभर पर आरोप लगाया कि मुख्तार अंसारी के परिवार के अलावा वो एक और परिवार को ही पार्टी में तवज्जो देते हैं जो उनका खुद का परिवार है. उनका कहना है कि सुभासपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष खुद ओम प्रकाश राजभर हैं. उनकी पत्नी पार्टी की महिला विंग की राष्ट्रीय सलाहकार हैं. राजभर के छोटे भाई वीरेंद्र पार्टी के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष हैं. बड़े बेटे अरविंद प्रमुख राष्ट्रीय महासचिव और छोटे बेटे अरुण राजभर पार्टी के प्रमुख राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं. ऐसे में उनके जैसे अन्य पदाधिकारी सिर्फ ओपी राजभर की हां में हां मिलाने भर के ही हैं.
ओपी राजभर का साथ छोड़ने वालों में पहले नम्बर पर आते हैं शशि प्रकाश सिंह. वह पार्टी के गठन के समय से ओम प्रकाश राजभर के साथ थे. साल 2022 के विधानसभा चुनाव के बाद हुए पार्टी के पुनर्गठन में राजभर ने मुख्य प्रवक्ता का पद अपने बेटे अरुण राजभर को दे दिया. जिससे आहत होकर शशि प्रकाश ने जुलाई 2022 में राष्ट्रीय समता पार्टी का गठन कर लिया. उसके बाद महेंद्र राजभर, जो पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हुआ करते थे. साल 2017 के विधान सभा चुनाव में बीजेपी ओपी राजभर को मऊ से मुख्तार अंसारी के खिलाफ चुनाव लड़ाना चाहती थी, लेकिन उन्होंने महेंद्र राजभर को वहां से उम्मीदवार बना दिया. 2022 में ओम प्रकाश ने महेंद्र राजभर का टिकट काट कर मुख्तार के बेटे अब्बास अंसारी को उम्मीदवार बना दिया. नाराज महेंद्र ने बीते दिनों अपने साथियों के साथ पार्टी छोड़ दी. महेंद्र ओम प्रकाश राजभर के समधी भी हैं. महेंद्र राजभर की बगावत को देखकर बीते बुधवार को प्रदेश उपाध्यक्ष भी 45 पदाधिकारियों के साथ पार्टी छोड़ गए.
राजनीतिक विश्लेषक विजय उपाध्याय कहते हैं कि एक जाति और परिवार की पॉलिटिक्स में इस तरह की दिक्कतें सामने आती हैं. जब पार्टी का लीडर सभी (समाज) के बजाय सिर्फ अपने एक जाति उसमें भी अपने परिवार की ही बात करे, संगठन में जगह देने से लेकर टिकट देने तक परिवार ही दिखे, तब ऐसी स्थिति में ऐसी पार्टी बहुत दिन तक नहीं टिक पाती है. विजय उपाध्याय कहते हैं कि पार्टी चलाने में खर्चे बहुत आते हैं. अब पैसों के जुगाड़ के तो तरीके होते हैं, एक सही तरीका है जिसमें कम खर्च करके पार्टी चला सकते. दूसरा गलत तरीका है कि टिकट के बदले पैसे लीजिए और पार्टी चलाइये. अब राजभर पर ऐसे आरोप लग रहे हैं तो आग लगी है धुआं जरूर होगा.
वहीं वरिष्ठ पत्रकार योगेश मिश्रा कहते हैं कि पैसा कमाना और परिवार के लोगों को स्टेबलिश करना ये हर दल का लीडर अपने जीवन काल में करना चाहता है. एक आदमी जो अपना दल बना रहा है उसकी उम्र 35 साल के ऊपर ही होती है और काम करने की एवरेज उम्र 30 साल और होती है. ऐसे में अब उसे 30 साल में सरकार में भी जाना है अपने बच्चों को स्थापित भी करना है और पार्टी को भी बढ़ाना है. जो जातिगत पार्टियां होती हैं वो यही सब काम करती हैं.
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राजभर दलों का साथ छोड़ने में हैं माहिर : ऐसा नहीं है कि सिर्फ राजभर के लोग ही पार्टी छोड़ रहे हैं. दल का साथ छोड़ने में ओम प्रकाश राजभर को भी महारथ हासिल है. उन्होंने अपनी राजनीति की शुरुआत बहुजन समाज पार्टी से की थी, पार्टी के जिलाध्यक्ष बने, लेकिन बाद में वह बसपा छोड़कर अपना दल में चले गए. वहां भी ज्यादा दिन तक ठिकाना नहीं बना सके और उन्होंने 2002 में खुद की पार्टी बनाई और 2017 के विधानसभा चुनावों में भाजपा से गठबंधन किया. सरकार बनने पर कैबिनेट मंत्री व बेटा दर्जा प्राप्त मंत्री बना, लेकिन इस बार भी अधिक दिन तक साथ नहीं चला और भाजपा से किनारा कर कई दलों को साथ मिलाकर भागीदारी संकल्प मोर्चा बनाया. 2022 विधानसभा चुनाव से ठीक पहले मोर्चे के दलों को बीच में छोड़कर राजभर खुद सपा के गठबंधन में शामिल हो गए. चुनाव के बाद सपा से भी नहीं बनी और अलग हो गए अब एक बार फिर नया ठिकाना ढूंढ रहे हैं.
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