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49 लाख से ज्यादा घरों तक नल से पहुंचा शुद्ध पेयजल, हर साल तीन लाख से अधिक शिशुओं की जान बचाने का दावा - American Professor Michael Kramer

वर्ष 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) के नेतृत्व में जल शक्ति मंत्रालय ने ‘जल जीवन मिशन’ योजना की शुरुआत की. इस योजना के तहत मंत्रालय ने 2024 तक ग्रामीण इलाकों में सभी घरों को नल से पर्याप्त और सुरक्षित पेयजल उपलब्ध कराने का लक्ष्य तय किया है.

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Published : Oct 15, 2022, 10:34 PM IST

लखनऊ. शिशुओं की जान बचाने में स्वच्छ भारत अभियान की सफलता के बाद मोदी सरकार की जल जीवन मिशन योजना भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नए आयाम गढ़ रही है. ग्रामीण इलाकों में स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराने की इस योजना को वैश्विक स्तर पर सराहना मिल रही है. दावा है कि स्वच्छ भारत अभियान से हर साल तीन लाख से अधिक शिशुओं की जान बचाई जा रही है. देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में भी इसका असर दिख रहा है. ग्रामीण इलाकों में शिशु मृत्यु दर में बड़ी गिरावट देखी जा रही है. जल जीवन मिशन को लेकर नोबेल पुरस्कार विजेता अमेरिकी प्रोफेसर माइकल क्रेमर (American Professor Michael Kramer) का दावा है कि इससे बाल मृत्यु दर में बड़ी गिरावट देखी गई है. इससे पहले संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) ने जल जीवन मिशन की तारीफ करते हुए कहा था कि इसी तर्ज पर दुनिया के दूसरे पिछड़े देशों में भी योजनाएं लागू की जानी चाहिए.


वर्ष 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) के नेतृत्व में जल शक्ति मंत्रालय ने जल जीवन मिशन योजना की शुरुआत की. इस योजना के तहत मंत्रालय ने 2024 तक ग्रामीण इलाकों में सभी घरों को नल से पर्याप्त और सुरक्षित पेयजल उपलब्ध कराने का लक्ष्य तय किया है. केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत की देखरेख में तेजी से योजनाओं को लागू करते हुए करीब 54 फीसदी घरों को स्वच्छ पेयजल योजना से जोड़ा गया. 2019 में जब इस मिशन की शुरुआत की गई थी तब देश की लगभग आधी ग्रामीण आबादी स्वच्छ पेयजल की उपलब्धता से वंचित थी. बीते 70 सालों में करीब साढ़े तीन करोड़ घरों को इस योजना का लाभ मिला, वहीं महज तीन साल में 7 करोड़ से अधिक घर इस योजना से लाभान्वित हुए हैं. मंत्रालय का कहना है कि हालांकि, इस योजना को अकेले रखकर नहीं देखा जाना चाहिए. स्वच्छ भारत अभियान को भी इसी मिशन की सफलता में शामिल किया जाना चाहिए.


2014 में शुरू हुए स्वच्छ भारत अभियान की सफलता का साक्ष्य सबके सामने हैं. 2014 में नई सरकार के सत्ता में आने से पहले ग्रामीण स्वच्छता की स्थिति बेहद खराब थी. 260 बिलियन डॉलर की खराब स्वच्छता की वार्षिक वैश्विक लागत में से अकेले भारत का हिस्सा 54 बिलियन डॉलर या भारतीय सकल घरेलू उत्पाद का 6% था. गंदगी के कारण हुई बीमारियों से मौत का आंकड़ा 1.5 लाख के करीब था. हालांकि, नई सरकार के स्वच्छ भारत अभियान ने तस्वीर बदलकर रख दी. स्वच्छ भारत मिशन की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार, साल 2014 में देश में शौचालय की उपलब्धता महज 38.70 प्रतिशत थी, जबकि पांच वर्ष बाद अक्टूबर, 2019 तक ये 100 फीसदी हो गई है. एक आंकड़े के मुताबिक, स्वच्छ भारत अभियान की सफलता के कारण देश की 50 प्रतिशत आबादी सालाना 56,000 रुपये स्वास्थ्य मद में बचा रही है.



जर्नल ऑफ फैमिली मेडिसिन एंड प्राइमरी केयर की ओर से 2019 में किये गए अध्ययन में कहा गया है कि ज्यादा से ज्यादा गांवों के ओडीएफ यानी खुले में शौच मुक्त गांव घोषित होने से डायरिया के मामलों में काफी गिरावट आई है. 2013 में 5 साल से कम उम्र के बच्चों की हुई मृत्यु में 11 फीसदी मामले डायरिया के थे. 2019 में इन मामलों में 50 फीसदी तक की कमी आई है. इससे हर साल 3 लाख से अधिक बच्चों की जान बचाई जा रही है. महज आठ साल में करीब 11 करोड़ घरों में शौचालय बनाए गए. वहीं, लगभग 6,03,175 गांवों को ओडीएफ प्रमाणित गांवों के रूप में घोषित किया गया.


उत्तर प्रदेश में जल जीवन मिशन के तहत तेजी से कार्य किए गए हैं. प्रदेश में 15 अगस्त 2019 से पहले महज 5,16,221 (1.94 प्रतिशत) परिवारों के पास फंक्शनल हाउस होल्ड कनेक्शन थे. वहीं, आज 49,75,160 घरों तक नल से शुद्ध पेयजल पहुंचाया जा रहा है. जेजेएम के तहत प्रदेश के 45 हजार से अधिक गांवों में हर घर जल का काम तेज गति से पूरा किया जा रहा है. बच्चों के भविष्य को संवारने और उनके स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए इस योजना से एक लाख से अधिक स्कूलों और करीब डेढ़ लाख आंगनबाड़ी केंद्रों को जोड़ा गया है. पानी की जांच के लिए करीब पांच लाख महिलाओं को प्रशिक्षित किया गया है, जो गांव-गांव जाकर पानी की शुद्धता की जांच कर रही हैं. इससे शिशु मृत्यु दर में भारी गिरावट दर्ज की गई है.


भारतीय अधिकारियों से जुलाई में मुलाकात के दौरान प्रो. क्रेमर ने कहा कि उनके अध्ययन से एक महत्वपूर्ण निष्कर्ष यह निकला है कि अगर परिवारों को पीने के लिए सुरक्षित पानी उपलब्ध करा दिया जाए तो लगभग 30 फीसदी शिशुओं की मृत्यु को कम किया जा सकता है. ऐसे में, 'हर घर जल' कार्यक्रम विशेष रूप से बच्चों में स्वास्थ्य मानकों को बेहतर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है.

यह भी पढ़ें : केशव प्रसाद मौर्य ने किया ट्वीट, लल्लन सिंह पर नीतीश का आशीर्वाद, गोपाल इटालिया पर चढ़ा अरविंद केजरीवाल का रंग

क्यों खास है प्रो. क्रेमर की रिसर्च रिपोर्ट : प्रो माइकल क्रेमर के शोधपत्र को शिकागो विश्वविद्यालय ने प्रकाशित किया है. इसमें कहा गया है कि बाल मृत्यु दर को कम करने के लिए स्वच्छ जल लोगों तक पहुंचाना सबसे किफायती और प्रभावी तरीकों में से एक है. जल जीवन मिशन योजना भी इसी दिशा में आगे बढ़ रही है. क्रेमर की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि सरकार अगर अपने लक्ष्य को हासिल कर लेती है तो हर साल भारत में पांच वर्ष से कम उम्र के करीब 1.36 लाख बच्चों की जान बचाई जा सकती है.

लखनऊ. शिशुओं की जान बचाने में स्वच्छ भारत अभियान की सफलता के बाद मोदी सरकार की जल जीवन मिशन योजना भी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नए आयाम गढ़ रही है. ग्रामीण इलाकों में स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराने की इस योजना को वैश्विक स्तर पर सराहना मिल रही है. दावा है कि स्वच्छ भारत अभियान से हर साल तीन लाख से अधिक शिशुओं की जान बचाई जा रही है. देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में भी इसका असर दिख रहा है. ग्रामीण इलाकों में शिशु मृत्यु दर में बड़ी गिरावट देखी जा रही है. जल जीवन मिशन को लेकर नोबेल पुरस्कार विजेता अमेरिकी प्रोफेसर माइकल क्रेमर (American Professor Michael Kramer) का दावा है कि इससे बाल मृत्यु दर में बड़ी गिरावट देखी गई है. इससे पहले संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) ने जल जीवन मिशन की तारीफ करते हुए कहा था कि इसी तर्ज पर दुनिया के दूसरे पिछड़े देशों में भी योजनाएं लागू की जानी चाहिए.


वर्ष 2019 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) के नेतृत्व में जल शक्ति मंत्रालय ने जल जीवन मिशन योजना की शुरुआत की. इस योजना के तहत मंत्रालय ने 2024 तक ग्रामीण इलाकों में सभी घरों को नल से पर्याप्त और सुरक्षित पेयजल उपलब्ध कराने का लक्ष्य तय किया है. केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत की देखरेख में तेजी से योजनाओं को लागू करते हुए करीब 54 फीसदी घरों को स्वच्छ पेयजल योजना से जोड़ा गया. 2019 में जब इस मिशन की शुरुआत की गई थी तब देश की लगभग आधी ग्रामीण आबादी स्वच्छ पेयजल की उपलब्धता से वंचित थी. बीते 70 सालों में करीब साढ़े तीन करोड़ घरों को इस योजना का लाभ मिला, वहीं महज तीन साल में 7 करोड़ से अधिक घर इस योजना से लाभान्वित हुए हैं. मंत्रालय का कहना है कि हालांकि, इस योजना को अकेले रखकर नहीं देखा जाना चाहिए. स्वच्छ भारत अभियान को भी इसी मिशन की सफलता में शामिल किया जाना चाहिए.


2014 में शुरू हुए स्वच्छ भारत अभियान की सफलता का साक्ष्य सबके सामने हैं. 2014 में नई सरकार के सत्ता में आने से पहले ग्रामीण स्वच्छता की स्थिति बेहद खराब थी. 260 बिलियन डॉलर की खराब स्वच्छता की वार्षिक वैश्विक लागत में से अकेले भारत का हिस्सा 54 बिलियन डॉलर या भारतीय सकल घरेलू उत्पाद का 6% था. गंदगी के कारण हुई बीमारियों से मौत का आंकड़ा 1.5 लाख के करीब था. हालांकि, नई सरकार के स्वच्छ भारत अभियान ने तस्वीर बदलकर रख दी. स्वच्छ भारत मिशन की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार, साल 2014 में देश में शौचालय की उपलब्धता महज 38.70 प्रतिशत थी, जबकि पांच वर्ष बाद अक्टूबर, 2019 तक ये 100 फीसदी हो गई है. एक आंकड़े के मुताबिक, स्वच्छ भारत अभियान की सफलता के कारण देश की 50 प्रतिशत आबादी सालाना 56,000 रुपये स्वास्थ्य मद में बचा रही है.



जर्नल ऑफ फैमिली मेडिसिन एंड प्राइमरी केयर की ओर से 2019 में किये गए अध्ययन में कहा गया है कि ज्यादा से ज्यादा गांवों के ओडीएफ यानी खुले में शौच मुक्त गांव घोषित होने से डायरिया के मामलों में काफी गिरावट आई है. 2013 में 5 साल से कम उम्र के बच्चों की हुई मृत्यु में 11 फीसदी मामले डायरिया के थे. 2019 में इन मामलों में 50 फीसदी तक की कमी आई है. इससे हर साल 3 लाख से अधिक बच्चों की जान बचाई जा रही है. महज आठ साल में करीब 11 करोड़ घरों में शौचालय बनाए गए. वहीं, लगभग 6,03,175 गांवों को ओडीएफ प्रमाणित गांवों के रूप में घोषित किया गया.


उत्तर प्रदेश में जल जीवन मिशन के तहत तेजी से कार्य किए गए हैं. प्रदेश में 15 अगस्त 2019 से पहले महज 5,16,221 (1.94 प्रतिशत) परिवारों के पास फंक्शनल हाउस होल्ड कनेक्शन थे. वहीं, आज 49,75,160 घरों तक नल से शुद्ध पेयजल पहुंचाया जा रहा है. जेजेएम के तहत प्रदेश के 45 हजार से अधिक गांवों में हर घर जल का काम तेज गति से पूरा किया जा रहा है. बच्चों के भविष्य को संवारने और उनके स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए इस योजना से एक लाख से अधिक स्कूलों और करीब डेढ़ लाख आंगनबाड़ी केंद्रों को जोड़ा गया है. पानी की जांच के लिए करीब पांच लाख महिलाओं को प्रशिक्षित किया गया है, जो गांव-गांव जाकर पानी की शुद्धता की जांच कर रही हैं. इससे शिशु मृत्यु दर में भारी गिरावट दर्ज की गई है.


भारतीय अधिकारियों से जुलाई में मुलाकात के दौरान प्रो. क्रेमर ने कहा कि उनके अध्ययन से एक महत्वपूर्ण निष्कर्ष यह निकला है कि अगर परिवारों को पीने के लिए सुरक्षित पानी उपलब्ध करा दिया जाए तो लगभग 30 फीसदी शिशुओं की मृत्यु को कम किया जा सकता है. ऐसे में, 'हर घर जल' कार्यक्रम विशेष रूप से बच्चों में स्वास्थ्य मानकों को बेहतर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है.

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क्यों खास है प्रो. क्रेमर की रिसर्च रिपोर्ट : प्रो माइकल क्रेमर के शोधपत्र को शिकागो विश्वविद्यालय ने प्रकाशित किया है. इसमें कहा गया है कि बाल मृत्यु दर को कम करने के लिए स्वच्छ जल लोगों तक पहुंचाना सबसे किफायती और प्रभावी तरीकों में से एक है. जल जीवन मिशन योजना भी इसी दिशा में आगे बढ़ रही है. क्रेमर की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि सरकार अगर अपने लक्ष्य को हासिल कर लेती है तो हर साल भारत में पांच वर्ष से कम उम्र के करीब 1.36 लाख बच्चों की जान बचाई जा सकती है.

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