लखनऊ: उत्तर प्रदेश में बीते दिनों हुए कुत्तों के हमलों की घटना को देखते हुए हर आम खास पालतू कुत्तों से इस कदर दहशतजदा है कि कुत्तों को दूर से ही देखकर लोग अपना रास्ता बदल रहे हैं. लखनऊ में अधेड़ उम्र की महिला को उसी के पिटबुल नस्ल के पालतू कुत्ते ने नोच-नोचकर मार दिया था. वहीं, गाजियाबाद में एक 10 साल के मासूम पर कुत्ते ने इस तरह हमला किया कि उसके चेहरे पर 150 टांके लगाने पड़े. बीते तीन दिनों में ही राजधानी में अलग-अलग जगहों पर पालतू खतरनाक नस्ल के कुत्तों ने दो युवकों को घायल कर दिया. अब सवाल उठ रहा है कि ऐसे खतरनाक कुत्तों को पालने के लिए नगर निगम क्यों इजाजत दे रहा है. कुत्ते आखिर हमलावर क्यों हो रहे हैं? देखिए यह रिपोर्ट.
राजधानी में जुलाई में पालतू पिटबुल नस्ल के कुत्ते ने अपनी मालकिन की हत्या कर दी थी. इस घटना के बाद पशु प्रेमियों और नगर निगम ने डॉग लाइसेंस को लेकर बड़े दावे किए थे. लेकिन, हकीकत यह है कि सिर्फ 10 प्रतिशत लोग ही डॉग लाइसेंस बनवा रहे हैं. यही नहीं विभागीय अधिकारी लाइसेंस न बनवाने वाले मालिकों के खिलाफ कोई कार्रवाई भी नहीं कर रहे हैं. नतीजतन पालतू कुत्तों के लोगों को कांटने की घटनाएं तेजी से बढ़ रही हैं.
लखनऊ के कृष्णानगर में सड़क पर टहलने निकले युवक पर पालतू कुत्ते ने हमला कर दिया. युवक के गुप्तांग में गम्भीर चोटे आई थीं. ठीक उसके दूसरे दिन गोमती नगर में एक युवक अपनी बीमार मां को टहला रहा था, तभी पिट्बुल नस्ल के कुत्ते ने उस पर हमला कर दिया. इसमें युवक गंभीर रूप से घायल हो गया. इन सभी घटनाओं के वक़्त कुत्तों के मालिक साथ में ही मौजूद थे. बावजूद इसके कुत्तों ने हमला कर दिया.
राजधानी में 30 हजार से अधिक घरों में कुत्ते पाले जा रहे हैं. इनमे सिर्फ 10 प्रतिशत लोगों ने ही कुत्ते पालने के लिए नगर निगम से लाइसेंस लिया है. नगर निगम के अधिकारी के मुताबिक, अब तक लखनऊ में 900 कुत्तों के लिए लाइसेंस लिया गया है. उनके मुताबिक, नगर निगम लाइसेंस बनवाने को लेकर जागरूकता कार्यक्रम कर रही है. बावजूद लोग लाइसेंस लेना ही नहीं चाहते हैं. लोगों के घरों में पिटबुल, रॉटविलर, जर्मन शेफर्ड, हस्की, डाबरमैन, बुलमास्टिफ, बॉक्सर जैसे खूंखार नस्ल के डॉग्स पल रहे हैं. हाल में ही पिटबुल ने अपनी ही मालकिन की हत्या कर दी गई थी. इसके बाद नगर निगम ने पिटबुल को अपने कब्जे में ले लिया था. लेकिन, करीब 15 दिन बाद उसे वापस मालिक को ही सौंप दिया गया था. वहीं, कृष्णानगर एरिया में भी खूंखार डॉग ने एक युवक के प्राइवेट पार्ट में काट लिया था. इसके बाद उसे दो दिन तक अस्पताल में एडमिट होना पड़ा था. अस्पताल से आने के बाद उसने डॉग मालिक के खिलाफ FIR दर्ज करा दी. नगर निगम ने उसके डॉग को भी जब्त कर लिया है.
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हारमोनल चेंज होने पर डॉग हो रहे हिंसक
पेट शॉप चलाने वाले नीरज बताते है कि बीते दिनों एक डॉग के हमले से लोग यह सोचने को मजबूर हैं कि आखिरकार एकाएक ऐसा क्या हो गया कि पिटबुल, जर्मन शेफर्ड जैसे कुत्ते हमलावर हो रहे हैं. जो शायद ही पहले कभी हुए होंगे. नीरज कहते हैं कि बड़ी बड़ी बिल्डिंग के छोटे-छोटे अपार्टमेंट में लोग पिटबुल जैसे खूंखार डॉग पाल तो लेते हैं. लेकिन, न ही उन्हें खुले माहौल में ज्यादा देर तक टहलाते हैं और न ही उन्हें घर में खुला छोड़ते हैं. नीरज के मुताबिक, मौजूदा समय में डॉग के हार्मोन्स चेंज हो रहे हैं. ऐसे में अगर उनकी एनर्जी लॉस नहीं होगी तो वह और हिंसक होंगे.
कोई मॉनीटरिंग सिस्टम नहीं
डॉग प्रेमी विनय तिवारी कहते हैं कि राजधानी समेत पूरे राज्य में लोगों के घर में किस नस्ल के कुत्ते पल रहे हैं, इन्हें देखने के लिए कोई भी मॉनिटरिंंग सेल नहीं है. इसी वजह से लोग अपना स्तर बनाए रखने के लिए घरों में पिटबुल, रॉटविलर, जर्मन शेफर्ड, हस्की, डाबरमैन, बुलमास्टिफ, बॉक्सर जैसे खूंखार कुत्तों को छोटे से घर में पाल ले रहे हैं. हालांकि, घरों के बाहर यह जरूर लिख दिया जाता है कि कुत्ते से सावधान रहें. विनय तिवारी कहते हैं कि कुत्तों को पालने के लिए नगर निगम से लिए जाने वाले लाइसेंस की फीस 500 रुपये ही होती है. यदि लोग लाइसेंस लेते हैं तो नगर निगम की जिम्मेदारी बन जाती है कि समय समय पर मॉनिटरिंग की जाए.
डॉग ट्रेनेर गुर्मीत के मुताबिक, बीते दिनों जितनी भी डॉग बाइट की घटनाए हुई हैं, उनमें देखा गया है कि घटना के वक़्त डॉग का मालिक मौके पर ही मौजूद था. बावजूद इसके कुत्ते ने जानलेवा हमला कर दिया. इसकी सबसे बड़ी वजह है कि लोग कुत्ते तो पाल लेते हैं. लेकिन, उनकी ट्रेनिंग नहीं करवाते हैं. घर में कुत्ते पालने वालों को यह समझना होगा कि कुत्तों की ट्रेनिंग बेहद जरूरी है. उनके मुताबिक, ट्रेनिंग के जरिये ही डॉग को कंट्रोल किया जा सकता है. वैसे तो डॉग पालने वाला हर मालिक यह जानता हैं. लेकिन, अमल में नहीं लाते हैं. गुर्मीत के मुताबिक, महज 5 प्रतिशत लोग ही हम जैसे लोगों से डॉग को ट्रेनिंग दिलवाते हैं. अन्य खुद से ही ट्रेनिंग देने की कोशिश करते हैं, जो नाकाफी है.
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