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KGMU की शोध में मिला ऑक्सीजन बचाने का नायाब तरीका, चीन ने माना भारत का लोहा - केजीएमयू की शोध ऑक्सीजन बचत

केजीएमयू की टीम ने इलाज के दौरान ऑक्सीजन बचाने का तरीका खोजा है. इसमें मरीज के शरीर की ज़रूरत के अनुसार ऑक्सीजन दी जाती है. चीन ने भी इस शोध को स्वीकार किया.

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केजीएमयू की शोध ऑक्सीजन बचत
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Published : Jun 2, 2022, 7:49 AM IST

Updated : Jun 2, 2022, 8:08 AM IST

लखनऊ: कोरोना काल में ऑक्सीजन का अचानक अकाल पड़ गया था. दूसरी लहर में आपूर्ति और खपत के बीच ज्यादा अंतर होने के कारण हड़कंप मच गया थी. केजीएमयू प्रबंधन ने मरीज के इलाज में ऑक्सीजन बचाने का तरीका ढूंढ निकाला है. इसमें मरीज के शरीर की ज़रूरत के अनुसार ऑक्सीजन दी जाती है. यह न सिर्फ मरीज की जान बचाने में मददगार बना, बल्कि दूसरों के लिए भी नजीर बन गयी. ऑक्सीजन प्रबंधन पर साइंटफिक बेस्ड स्टडी को चीन ने भी इस शोध को स्वीकार किया. वहां के जरनल में इसका प्रकाशन हुआ है.

तीन विभागों ने मिलकर किया शोध
कोरोना की दूसरी लहर में ऑक्सीजन का जबरदस्त संकट गहराया था. इस दौरान काफी संक्रमितों की ऑक्सीजन के अभाव में मौत हुई थी. कोरोना मरीजों को जिंदगी देने के लिए तीमारदार एक-एक सिलेंडर के लिए भटक रहे थे. सरकारी प्राइवेट अस्पतालों में ऑक्सीजन की आपूर्ति कम हो गई थी. ऐसे में केजीएमयू ने आधुनिक तकनीक से ऑक्सीजन की खपत कम की, बल्कि दूसरे अस्पतालों को ऑक्सीजन भी दी. ऑक्सीजन की बरबादी रोकने व प्रबंधन को लेकर केजीएमयू एनस्थीसिया, प्लास्टिक सर्जरी और ट्रॉमा सर्जरी विभाग ने शोध किया. यह चीन में मेडिकल गैसेस रिसर्च इंटरनेशनल जरनल में प्रकाशित हुई.

पांच गुना तक बचा सकते ऑक्सीजन
केजीएमयू एनस्थीसिया विभाग के डॉ. तन्मय तिवारी के मुताबिक केजीएमयू में 988 बेड पर कोरोना मरीजों की भर्ती की व्यवस्था की गई थी. लिंब सेंटर में अलग लिक्विड ऑक्सीजन सिलेंडर लगाया गया. इसकी क्षमता 20 हजार लीटर है. ऑक्सीजन प्रबंधन के लिए नए प्रयोग का सहारा लिया गया. इससे पांच गुना तक कम ऑक्सीजन को बचा सकते हैं. नई तकनीक से कम ऑक्सीजन की खपत में मरीज को पहले के मुकाबले अधिक फायदा देखने को मिला.

ये भी पढ़ें- BHU ने दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी कपड़ा निर्माता कंपनी के साथ किया समझौता, छात्रों को मिलेगा सीखने का मौका

यह हाईफ्लो नैजल कैनुला से बेहतर रहा. इस ऑक्सीजन खपत कम हुई. वहीं कोविड में ऑक्सीजन की बचत का खाका तैयार किया गया. इसके तहत मरीज के आते ही सबसे पहले पल्स ऑक्सीमीटर से उसकी जांच करने के निर्देश दिए गए. शरीर में ऑक्सीजन का स्तर पता लगाने के बाद इलाज की दिशा तय की जाती है. जरूरत होने पर ही उसे ऑक्सीजन लगाई जाती थी. ऑक्सीजन की मात्रा 94 फीसदी पर तय की गई थी. इससे अनावश्यक ऑक्सीजन की खपत नहीं हुई. इस शोध से भविष्य में ऑक्सीजन प्रबंधन करना आसान होगा.

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लखनऊ: कोरोना काल में ऑक्सीजन का अचानक अकाल पड़ गया था. दूसरी लहर में आपूर्ति और खपत के बीच ज्यादा अंतर होने के कारण हड़कंप मच गया थी. केजीएमयू प्रबंधन ने मरीज के इलाज में ऑक्सीजन बचाने का तरीका ढूंढ निकाला है. इसमें मरीज के शरीर की ज़रूरत के अनुसार ऑक्सीजन दी जाती है. यह न सिर्फ मरीज की जान बचाने में मददगार बना, बल्कि दूसरों के लिए भी नजीर बन गयी. ऑक्सीजन प्रबंधन पर साइंटफिक बेस्ड स्टडी को चीन ने भी इस शोध को स्वीकार किया. वहां के जरनल में इसका प्रकाशन हुआ है.

तीन विभागों ने मिलकर किया शोध
कोरोना की दूसरी लहर में ऑक्सीजन का जबरदस्त संकट गहराया था. इस दौरान काफी संक्रमितों की ऑक्सीजन के अभाव में मौत हुई थी. कोरोना मरीजों को जिंदगी देने के लिए तीमारदार एक-एक सिलेंडर के लिए भटक रहे थे. सरकारी प्राइवेट अस्पतालों में ऑक्सीजन की आपूर्ति कम हो गई थी. ऐसे में केजीएमयू ने आधुनिक तकनीक से ऑक्सीजन की खपत कम की, बल्कि दूसरे अस्पतालों को ऑक्सीजन भी दी. ऑक्सीजन की बरबादी रोकने व प्रबंधन को लेकर केजीएमयू एनस्थीसिया, प्लास्टिक सर्जरी और ट्रॉमा सर्जरी विभाग ने शोध किया. यह चीन में मेडिकल गैसेस रिसर्च इंटरनेशनल जरनल में प्रकाशित हुई.

पांच गुना तक बचा सकते ऑक्सीजन
केजीएमयू एनस्थीसिया विभाग के डॉ. तन्मय तिवारी के मुताबिक केजीएमयू में 988 बेड पर कोरोना मरीजों की भर्ती की व्यवस्था की गई थी. लिंब सेंटर में अलग लिक्विड ऑक्सीजन सिलेंडर लगाया गया. इसकी क्षमता 20 हजार लीटर है. ऑक्सीजन प्रबंधन के लिए नए प्रयोग का सहारा लिया गया. इससे पांच गुना तक कम ऑक्सीजन को बचा सकते हैं. नई तकनीक से कम ऑक्सीजन की खपत में मरीज को पहले के मुकाबले अधिक फायदा देखने को मिला.

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यह हाईफ्लो नैजल कैनुला से बेहतर रहा. इस ऑक्सीजन खपत कम हुई. वहीं कोविड में ऑक्सीजन की बचत का खाका तैयार किया गया. इसके तहत मरीज के आते ही सबसे पहले पल्स ऑक्सीमीटर से उसकी जांच करने के निर्देश दिए गए. शरीर में ऑक्सीजन का स्तर पता लगाने के बाद इलाज की दिशा तय की जाती है. जरूरत होने पर ही उसे ऑक्सीजन लगाई जाती थी. ऑक्सीजन की मात्रा 94 फीसदी पर तय की गई थी. इससे अनावश्यक ऑक्सीजन की खपत नहीं हुई. इस शोध से भविष्य में ऑक्सीजन प्रबंधन करना आसान होगा.

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Last Updated : Jun 2, 2022, 8:08 AM IST
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