लखनऊः जहां पर एक तरफ गेहूं और धान खाद्यान्न के मुख्य स्रोत हैं उसी तरह मक्का भी कहीं पीछे नहीं है. मक्का की अच्छी उपज के लिए आवश्यक है कि समय से बुवाई करें. उर्वरकों का संतुलित मात्रा में प्रयोग, समय से सिंचाई और कृषि रक्षा साधनों को अपनाकर अधिक उत्पादन और लाभ कमाया जा सकता है. सही प्रबंधन कर शंकर और संकुल प्रजातियों की उपज सरलता से 35 से 40 क्विंटल प्रति हेक्टेयर प्राप्त की जा सकती है.
पिछले साल अच्छी बरसात होने के कारण मक्के का रकबा कुछ बढ़ा था. इस वर्ष अभी से यदि सही तरीके से तैयारी कर ली जाए तो उत्पादन अच्छा हो सकता है. अच्छी फसल के लिए उन्नतशील प्रजातियों का चयन करते हुए शुद्ध बीज की बुवाई करनी चाहिए. बुवाई के समय क्षेत्र अनुकूलता के अनुसार जाति का चयन किसानों को करना चाहिए. प्रमुख रूप से संकर जातियों में गंगा 11, मालवी संकर मक्का दो, प्रकाश, पूसा संकर मक्का 5, विवेक समेत मक्का की 107 अच्छी प्रजातियां हैं.
इतनी मात्रा में करें छिड़काव: चंद्रभानु गुप्त कृषि स्नातकोत्तर महाविद्यालय के कृषि विशेषज्ञ डॉ सत्येंद्र कुमार सिंह ने बताया कि मक्के की बुवाई का उचित समय है, इसी समय खरपतवार प्रबंधन की भी आवश्यकता होती है. इसके लिए 1.5 ग्राम एट्राजीन को 1 लीटर पानी की दर से घोल बनाकर मक्का बुवाई के तुरंत बाद प्रयोग करना चाहिए. प्रमुख रूप से मक्के में 1 वर्षीय खरपतवार और चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों को प्रबंधित करने के लिए एट्राजीन 1 ग्राम तथा पेंड़ीमैथलीन 1 एमएल मात्रा को 1 लीटर पानी की दर से घोल बनाकर बुवाई के 2 दिन के अंदर छिड़काव लाभदायक होता है.
खरीफ की मक्का की खेती में निराई गुड़ाई का अधिक महत्व है. निराई गुड़ाई से खरपतवार नियंत्रण के साथ ही ऑक्सीजन का संचार अच्छा होता है, जिससे जड़े दूर तक फैल कर भोज पदार्थ को एकत्र कर पौधों को देती हैं. पहली सिंचाई जमाव के 15 दिन बाद कर देना चाहिए और दूसरी सिंचाई 35 से 40 दिन बात करनी चाहिए. उर्वरकों का सही प्रबंधन मक्का के उत्पादन को बढ़ाता है.
प्रमुख रूप से मक्का के उत्पादन के लिए 120 किलोग्राम नाइट्रोजन 60 किलोग्राम फासफोरस और 60 किलोग्राम पोटाश की आवश्यकता होती है. सड़ी हुई गोबर की खाद उत्पादन को बढ़ाती है. इसके लिए 1 हेक्टेयर में लगभग 10 टन गोबर की खाद का प्रयोग लाभकारी होता है. बुवाई प्रमुख रूप से लाइनों में करनी चाहिए. लाइन की दूरी अगेती किस्मों के लिए 45 सेंटीमीटर तथा मध्यम और देर से पकने वाली प्रजातियों के लिए 60 सेंटीमीटर रखनी चाहिए. इसी प्रकार अगेती किस्मों में पौधे से पौधे की दूरी 20 सेंटीमीटर तथा मध्यम योग (देर से पकने वाली) प्रजातियों में 25 सेंटीमीटर होनी चाहिए. एक हेक्टेयर बुवाई के लिए संकर मक्का 20 से 22 किलोग्राम तथा संकुल मक्का 18 से 20 को ग्राम की आवश्यकता होती है.
छेदक कीट व प्ररोह मक्खी का अधिक प्रकोप : चंद्रभानु गुप्त कृषि स्नातकोत्तर महाविद्यालय के कृषि विशेषज्ञ डॉ सत्येंद्र कुमार सिंह ने बताया कि प्रमुख रूप से मक्के में तना छेदक कीट एवं प्ररोह मक्खी का अधिक प्रकोप होता है. इन दोनों कीटों के कैटरपिलर बहुत अधिक नुकसान अपने मुखांग से काटकर पहुंचाते हैं. इन दोनों कीटों को प्रबंधित करने के लिए डाईमेथोएट (30%) की 1 एमएल मात्रा को 1 लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव लाभकारी होता है. प्रमुख रूप से मक्के की शुरुआती अवस्था में यदि यह कीट पहचान कर लिए जाएं तो मेटाराईजियम एनाइसोप्ली की 5 ग्राम मात्रा को 1 लीटर पानी की दर से घोल बनाकर छिड़काव कर दिया जाए तो अच्छा प्रबंधन हो जाता है, यह एक अच्छा जैविक उत्पाद है.
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इन बातों का रखें ध्यान
खेत में पड़े हुए पुराने खरपतवार एवं अवशेष को नष्ट कर देना चाहिए.
संतुलित मात्रा में उर्वरकों का प्रयोग करना चाहिए.
प्ररोह मक्खी कीट प्रभावित क्षेत्रों में 20% बीज दर को बढ़ाकर बुवाई करनी चाहिए.
सप्ताह के अंतराल पर फसल का निरीक्षण करते रहना चाहिए.
मृतगोभ कीट दिखाई देते ही प्रकोपित पौधे को भी उखाड़ कर नष्ट कर देना चाहिए.
प्ररोह मक्खी प्रभावित क्षेत्र में 10 से 12 प्रति हेक्टेयर की दर से पॉलिथीन पर मछली का प्रपंच (चूरा) लटकाना चाहिए.
प्रारंभिक अवस्था में कमला कीट की सुड़ियों को सावधानी से पकड़ कर नष्ट कर देना चाहिए.
तना छेदक एवं पत्ती लपेटक कीटों के लिए ट्राईकोग्रामा परजीवी 50000 प्रति हेक्टेयर की दर से अंकुरण के 8 दिन के बाद 5 से 6 दिन के अंतराल पर चार से पांच बार खेत में मुक्त करना चाहिए.
भुट्टों से दाने निकाल कर ही भंडारण करना चाहिए.
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