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रेंगती हुई गाड़ियों का भी ओवरस्पीड में चालान कर रही हैं परिवहन विभाग की इंटरसेप्टर - ओवरस्पीडिंग के फर्जी चालान

परिवहन विभाग की इंटरसेप्टर (Interceptor of Transport Department) से ओवरस्पीडिंग के फर्जी चालान हो रहे हैं. इसकी वजह यह है कि अधिकांश वाहनों के चालान बगैर प्रिंटआउट निकाले ही कर दिए जा रहे हैं. जिन वाहनों के चालान के साथ प्रिंटआउट लगाया भी जा रहा है तो उसमें भी वाहन की रफ्तार व जगह का कोई ब्यौरा दर्ज नहीं है.

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Published : Oct 15, 2022, 5:00 PM IST

लखनऊ. परिवहन विभाग की इंटरसेप्टर (Interceptor of Transport Department) से ओवरस्पीडिंग के फर्जी चालान हो रहे हैं. इसकी वजह यह है कि अधिकांश वाहनों के चालान बगैर प्रिंटआउट निकाले ही कर दिए जा रहे हैं. जिन वाहनों के चालान के साथ प्रिंटआउट लगाया भी जा रहा है तो उसमें भी वाहन की रफ्तार व जगह का कोई ब्यौरा दर्ज नहीं है. इस तरह के चालान में या तो इंटरसेप्टर में लगे कैमरे के स्क्रीन की फोटो अटैच है या फिर वाहन के टैब से ली गई फोटो. ऐसे में वाहन की तेज रफ्तार की प्रामाणिकता भी साबित नहीं हो पा रही है. इसके बावजूद प्रवर्तन अधिकारी धड़ल्ले से ओवरस्पीडिंग के चालान कर रहे हैं. परिवहन विभाग के उच्चाधिकारी भी आंकड़ों की बाजीगरी कर फर्जीवाड़े को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं. ऐसा भी नहीं है कि ओवरस्पीडिंग के चालान का फर्जीवाड़ा सिर्फ लखनऊ जोन में हो रहा है, बल्कि यह परिवहन विभाग के लखनऊ जोन समेत कानपुर, वाराणसी, आगरा, मेरठ और बरेली जोन में भी धड़ल्ले से हो रहा है.



ओवरस्पीड वाहनों की रफ्तार पर नियंत्रण स्थापित करने के लिए परिवहन विभाग ने साल 2015 में इंटरसेप्टर के जरिए चालान की व्यवस्था शुरू की थी. इसके तहत परिवहन विभाग के सभी छह जोन के लिए एक-एक इंटरसेप्टर की खरीद की गई. एक्सप्रेस वे और नेशनल हाईवे पर निर्धारित गति से अधिक रफ्तार में फर्राटा भरने वाले वाहनों के चालान के लिए इंटरसेप्टर में स्पीड रडार गन और कैमरे लगाए गए. दावा किया गया कि इन उपकरणों से 200 किलोमीटर की रफ्तार वाले वाहन की नंबर प्लेट समेत फोटो स्पष्ट तरीके से खींची जा सकेगी. हालांकि इंटरसेप्टर में लगे उपकरणों को लेकर किया गया दावा शुरूआत से ही हवाहवाई साबित हुआ. सूत्रों की मानें तो मौजूदा समय में इंटरसेप्टर में लगे उपकरण वाहनों की तेज रफ्तार को पकड़ पाने में नाकाम साबित हो रहे हैं. इसके बावजूद प्रवर्तन अधिकारी इंटरसेप्टर के माध्यम से वाहनों के ओवरस्पीड का चालान धड़ल्ले से कर रहे हैं.

जानकारी देते संभागीय परिवहन अधिकारी संदीप पंकज

ई-चालान की शुरूआत होने के बाद ओवरस्पीड वाहनों के चालान के दौरान पूरा ब्यौरा भरने की व्यवस्था दी गई थी. वर्तमान में इस व्यवस्था को मोडिफाई कर दिया गया है. पहले ओवरस्पीड का चालान करने के दौरान वाहन की गति, उस स्थान की स्पीड लिमिट और किस स्थान पर चालान किया गया, इसका पूरा ब्यौरा भरने के बाद ही चालान होता था. अब ई-चालान पोर्टल पर सिर्फ ओवरस्पीड का विकल्प आ रहा है. ऐसे में अब ओवरस्पीड लिख कर ही चालान कर दिया जा रहा है. चालान के दौरान वाहन की रफ्तार, उस जगह की स्पीड लिमिट व स्थान का कहीं जिक्र नहीं किया जा रहा है. इंटरसेप्टर के उपकरणों की खराबी के कारण ही पोर्टल पर यह बदलाव किया गया होगा, हालांकि यह वाहन के ओवरस्पीड होने का प्रमाण कहीं नहीं लग रहा है.

उपकरण नहीं नाप पा रहे ओवरस्पीड की गति : ओवरस्पीड वाहनों के चालान के लिए इंटरसेप्टर में लगी सभी मशीनें खराब दशा में हैं. ये टूलकिट ओवरस्पीड की निर्धारित गति के पैरामीटर के आस-पास तक नहीं पहुंच पा रहे हैं. 200 किमी की रफ्तार छू पाना तो दूर की बात है. इंटरसेप्टर में लगी स्पीड रडार गन, कैमरा, वाहन के फोटो निकालने के लिए लगे प्रिंटर के साथ ड्रंकन ड्राइविंग पर अंकुश के लिए लगा ब्रेथ एनालाइजर उपकरण सही से काम नहीं कर रहा है. सूत्र बताते हैं कि स्पीड रडार गन बमुश्किल 60 किमी की रफ्तार को ही पकड़ पा रही है, जबकि यह उपकरण 100 किमी से अधिक के चालान के लिए मंगाए गए थे.


परिवहन विभाग ने ओवरस्पीड के चालान के लिए छह इंटरसेप्टर गाड़ियां और उसमें लगाने के लिए उपकरण भी खरीदे. इन उपकरणों के मेंटीनेंस के लिए एक्सपीरियो टेक प्रा.लि. कंपनी के साथ अनुबंध किया गया. कंपनी को सर्विस देने के लिए विभाग सालाना 4.25 लाख रुपए एनुअल मेंटीनेंस चार्ज (एएमसी) भी दे रहा था. यह पैसा सड़क सुरक्षा के बजट के नाम पर सभी जोन को दिया जा रहा है. शुरूआत से ही यह उपकरण कभी सही तरीके से काम नहीं कर पाए. दिसंबर 2021 में इस कंपनी का अनुबंध भी समाप्त हो गया. अब इंटरसेप्टर में लगे उपकरणों के मेंटीनेंस के लिए कोई कंपनी काम नहीं कर रही है. ऐसे में जब मेंटीनेंस करने वाली कंपनी के रहते उपकरण सही तरीके से काम नहीं कर रहे थे तो अब किसी कंपनी के न रहते ये मशीनें किस प्रकार कार्य कर रही होंगी, इसे समझने में कोई परेशानी नहीं है.


मुख्यालय से होती है मॉनिटरिंग : परिवहन विभाग मुख्यालय से इंटरसेप्टर की मॉनिटरिंग की जाती है. सभी इंटरसेप्टर में जीपीएस सिस्टम लगा हुआ है, साथ ही हर इंटरसेप्टर का पासवर्ड भी अलग-अलग है. इंटरसेप्टर चालू होने के दौरान इसकी लोकेशन स्क्रीन पर ब्लिंक करने लगती है. जीपीएस के जरिए इंटरसेप्टर किस जगह पर खड़ी है, इसे भी देखा जा सकता है. निजी दो या चार पहिया वाहन के ओवरस्पीड का चालान 2000 रुपए और कॉमर्शियल वाहनों के लिए 4000 रुपए है. ऐसे में बगैर प्रिंटआउट के ओवरस्पीड का चालान कर विभाग वाहन स्वामियों से बेवजह वसूली कर रहा है.

यह भी पढ़ें : फरार IPS मणिलाल पाटीदार ने लखनऊ की कोर्ट में सरेंडर किया

क्या कहते हैं अधिकारी : संभागीय परिवहन अधिकारी (प्रवर्तन) संदीप पंकज का कहना है कि इंटरसेप्टर के ओवर स्पीड चालान के मामले में कंफ्यूजन है. जिस दिन जिस जगह पर चालान होता है उसके दूसरे दिन शो करता है. ऐसे में लोग शिकायत लेकर आते हैं कि उस दिन वे दूसरी जगह पर थे. वहां थे ही नहीं तो चालान हो कैसे कट गया. हां प्रिंट निकलने की समस्याएं आ रही हैं साथ ही उपकरणों की दिक्कत है, जिसकी वजह से समस्याएं हैं. हाल ही में एक बैठक हुई है जिसमें यह हुआ है कि अत्याधुनिक उपकरण लगाए जाएं. जिससे इस तरह की समस्याएं आड़े न आएं.

यह भी पढ़ें : बहराइच में PET की परीक्षा देने जा रहे युवक की सड़क हादसे में मौत, एक घायल

लखनऊ. परिवहन विभाग की इंटरसेप्टर (Interceptor of Transport Department) से ओवरस्पीडिंग के फर्जी चालान हो रहे हैं. इसकी वजह यह है कि अधिकांश वाहनों के चालान बगैर प्रिंटआउट निकाले ही कर दिए जा रहे हैं. जिन वाहनों के चालान के साथ प्रिंटआउट लगाया भी जा रहा है तो उसमें भी वाहन की रफ्तार व जगह का कोई ब्यौरा दर्ज नहीं है. इस तरह के चालान में या तो इंटरसेप्टर में लगे कैमरे के स्क्रीन की फोटो अटैच है या फिर वाहन के टैब से ली गई फोटो. ऐसे में वाहन की तेज रफ्तार की प्रामाणिकता भी साबित नहीं हो पा रही है. इसके बावजूद प्रवर्तन अधिकारी धड़ल्ले से ओवरस्पीडिंग के चालान कर रहे हैं. परिवहन विभाग के उच्चाधिकारी भी आंकड़ों की बाजीगरी कर फर्जीवाड़े को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं. ऐसा भी नहीं है कि ओवरस्पीडिंग के चालान का फर्जीवाड़ा सिर्फ लखनऊ जोन में हो रहा है, बल्कि यह परिवहन विभाग के लखनऊ जोन समेत कानपुर, वाराणसी, आगरा, मेरठ और बरेली जोन में भी धड़ल्ले से हो रहा है.



ओवरस्पीड वाहनों की रफ्तार पर नियंत्रण स्थापित करने के लिए परिवहन विभाग ने साल 2015 में इंटरसेप्टर के जरिए चालान की व्यवस्था शुरू की थी. इसके तहत परिवहन विभाग के सभी छह जोन के लिए एक-एक इंटरसेप्टर की खरीद की गई. एक्सप्रेस वे और नेशनल हाईवे पर निर्धारित गति से अधिक रफ्तार में फर्राटा भरने वाले वाहनों के चालान के लिए इंटरसेप्टर में स्पीड रडार गन और कैमरे लगाए गए. दावा किया गया कि इन उपकरणों से 200 किलोमीटर की रफ्तार वाले वाहन की नंबर प्लेट समेत फोटो स्पष्ट तरीके से खींची जा सकेगी. हालांकि इंटरसेप्टर में लगे उपकरणों को लेकर किया गया दावा शुरूआत से ही हवाहवाई साबित हुआ. सूत्रों की मानें तो मौजूदा समय में इंटरसेप्टर में लगे उपकरण वाहनों की तेज रफ्तार को पकड़ पाने में नाकाम साबित हो रहे हैं. इसके बावजूद प्रवर्तन अधिकारी इंटरसेप्टर के माध्यम से वाहनों के ओवरस्पीड का चालान धड़ल्ले से कर रहे हैं.

जानकारी देते संभागीय परिवहन अधिकारी संदीप पंकज

ई-चालान की शुरूआत होने के बाद ओवरस्पीड वाहनों के चालान के दौरान पूरा ब्यौरा भरने की व्यवस्था दी गई थी. वर्तमान में इस व्यवस्था को मोडिफाई कर दिया गया है. पहले ओवरस्पीड का चालान करने के दौरान वाहन की गति, उस स्थान की स्पीड लिमिट और किस स्थान पर चालान किया गया, इसका पूरा ब्यौरा भरने के बाद ही चालान होता था. अब ई-चालान पोर्टल पर सिर्फ ओवरस्पीड का विकल्प आ रहा है. ऐसे में अब ओवरस्पीड लिख कर ही चालान कर दिया जा रहा है. चालान के दौरान वाहन की रफ्तार, उस जगह की स्पीड लिमिट व स्थान का कहीं जिक्र नहीं किया जा रहा है. इंटरसेप्टर के उपकरणों की खराबी के कारण ही पोर्टल पर यह बदलाव किया गया होगा, हालांकि यह वाहन के ओवरस्पीड होने का प्रमाण कहीं नहीं लग रहा है.

उपकरण नहीं नाप पा रहे ओवरस्पीड की गति : ओवरस्पीड वाहनों के चालान के लिए इंटरसेप्टर में लगी सभी मशीनें खराब दशा में हैं. ये टूलकिट ओवरस्पीड की निर्धारित गति के पैरामीटर के आस-पास तक नहीं पहुंच पा रहे हैं. 200 किमी की रफ्तार छू पाना तो दूर की बात है. इंटरसेप्टर में लगी स्पीड रडार गन, कैमरा, वाहन के फोटो निकालने के लिए लगे प्रिंटर के साथ ड्रंकन ड्राइविंग पर अंकुश के लिए लगा ब्रेथ एनालाइजर उपकरण सही से काम नहीं कर रहा है. सूत्र बताते हैं कि स्पीड रडार गन बमुश्किल 60 किमी की रफ्तार को ही पकड़ पा रही है, जबकि यह उपकरण 100 किमी से अधिक के चालान के लिए मंगाए गए थे.


परिवहन विभाग ने ओवरस्पीड के चालान के लिए छह इंटरसेप्टर गाड़ियां और उसमें लगाने के लिए उपकरण भी खरीदे. इन उपकरणों के मेंटीनेंस के लिए एक्सपीरियो टेक प्रा.लि. कंपनी के साथ अनुबंध किया गया. कंपनी को सर्विस देने के लिए विभाग सालाना 4.25 लाख रुपए एनुअल मेंटीनेंस चार्ज (एएमसी) भी दे रहा था. यह पैसा सड़क सुरक्षा के बजट के नाम पर सभी जोन को दिया जा रहा है. शुरूआत से ही यह उपकरण कभी सही तरीके से काम नहीं कर पाए. दिसंबर 2021 में इस कंपनी का अनुबंध भी समाप्त हो गया. अब इंटरसेप्टर में लगे उपकरणों के मेंटीनेंस के लिए कोई कंपनी काम नहीं कर रही है. ऐसे में जब मेंटीनेंस करने वाली कंपनी के रहते उपकरण सही तरीके से काम नहीं कर रहे थे तो अब किसी कंपनी के न रहते ये मशीनें किस प्रकार कार्य कर रही होंगी, इसे समझने में कोई परेशानी नहीं है.


मुख्यालय से होती है मॉनिटरिंग : परिवहन विभाग मुख्यालय से इंटरसेप्टर की मॉनिटरिंग की जाती है. सभी इंटरसेप्टर में जीपीएस सिस्टम लगा हुआ है, साथ ही हर इंटरसेप्टर का पासवर्ड भी अलग-अलग है. इंटरसेप्टर चालू होने के दौरान इसकी लोकेशन स्क्रीन पर ब्लिंक करने लगती है. जीपीएस के जरिए इंटरसेप्टर किस जगह पर खड़ी है, इसे भी देखा जा सकता है. निजी दो या चार पहिया वाहन के ओवरस्पीड का चालान 2000 रुपए और कॉमर्शियल वाहनों के लिए 4000 रुपए है. ऐसे में बगैर प्रिंटआउट के ओवरस्पीड का चालान कर विभाग वाहन स्वामियों से बेवजह वसूली कर रहा है.

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क्या कहते हैं अधिकारी : संभागीय परिवहन अधिकारी (प्रवर्तन) संदीप पंकज का कहना है कि इंटरसेप्टर के ओवर स्पीड चालान के मामले में कंफ्यूजन है. जिस दिन जिस जगह पर चालान होता है उसके दूसरे दिन शो करता है. ऐसे में लोग शिकायत लेकर आते हैं कि उस दिन वे दूसरी जगह पर थे. वहां थे ही नहीं तो चालान हो कैसे कट गया. हां प्रिंट निकलने की समस्याएं आ रही हैं साथ ही उपकरणों की दिक्कत है, जिसकी वजह से समस्याएं हैं. हाल ही में एक बैठक हुई है जिसमें यह हुआ है कि अत्याधुनिक उपकरण लगाए जाएं. जिससे इस तरह की समस्याएं आड़े न आएं.

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