लखनऊ: अनुसूचित जाति के फर्जी सर्टिफिकेट के सहारे लोगों ने खूब नौकरियां पाईं हैं. विधायक भी बने और कोर्ट में जज बनकर भी कुर्सी की शोभा बढ़ाई है. अब एससी/एसटी के फर्जी सर्टिफिकेट पर नौकरी पाए लोगों की जांच उत्तर प्रदेश अनुसूचित जाति एवं जनजाति आयोग की तरफ से शुरू कराई गई है. बिहार से यूपी आकर समाजवादी पार्टी सरकार में अनुसूचित जाति के सर्टिफिकेट के सहारे रूबी प्रसाद विधायक तक बन गईं. इसके अलावा एक जिला जज का प्रकरण भी आयोग के संज्ञान में है जिसकी जांच जारी है. उत्तर प्रदेश अनुसूचित जाति जनजाति आयोग के अध्यक्ष रामबाबू हरित कई प्रकरणों की जांच करा रहे हैं.
रामबाबू हरित का कहना है कि सपा सरकार में विजय सिंह गोंड एक मंत्री थे. उन्होंने 2007 में बिहार की सामान्य वर्ग से आने वाली राजपूत महिला को अपना नजदीकी बनाया और दुद्धी विधानसभा से 2007 में दलित जाति का सर्टिफिकेट बनवाया. अपनी नजदीकी रूबी प्रसाद को उन्होंने चुनाव लड़वाया और विधायक बनवाया. जब पता चला कि वह अनुसूचित जाति की नहीं हैं तो सर्टिफिकेट निकलवाने के साथ-साथ पता लगाया कि बिहार में कहां की रहने वाली हैं, उसके पिता कौन हैं और भाई कौन हैं. जिसके बाद पता चला कि वह सुबोध सिंह की बेटी हैं और राजपूत जाति की हैं.
उन्होंने बताया कि सेटिंग करके रूबी प्रसाद अधिकारियों पर दबाव डलवाती रहीं. जब जांच शुरू कराई तो यह बड़ा खुलासा हुआ. जहां से जाति प्रमाण पत्र बना था वहां के तहसीलदार और लखनऊ से विजिलेंस टीम भेजकर जांच कराई गई. जिसमें पता चला कि रूबी प्रसाद के पिता सुबोध सिंह व बाबा रघु सिंह हैं. उन्होंने बताया कि मामला 10 साल पुराना है, लेकिन कभी किसी ने जांच करने की जहमत ही नहीं उठाई. यह देश का पहला केस होगा जिसने डीएम और कमिश्नर के स्तर से 10 साल तक इसे लटकाए रखा गया है.
रामबाबू हरित ने बताया कि इस मामले में प्रमुख सचिव समाज कल्याण के यहां से सीधे जांच कराके फर्जी सर्टिफिकेट निरस्त कराया गया है. उत्तर प्रदेश में जब योगी आदित्यनाथ की सरकार बनी तब विभिन्न विभागों में फर्जी सर्टिफिकेट को लेकर जांच शुरू हुई थी. फर्जी सर्टिफिकेट से कई विभागों में लोग नौकरी पाये हैं. अब हमने नियम बहुत कड़े कर दिए हैं. अब कोई जाति प्रमाण पत्र फर्जी बनाएगा तो दंडित किया जाएगा.
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एससी-एसटी आयोग के अध्यक्ष रामबाबू हरित बताते हैं कि फर्जी सर्टिफिकेट से सिर्फ रूबी प्रसाद विधायक नहीं बनीं. ऐसे कई मामले हैं. एक जिले में तो जज तक फर्जी सर्टिफिकेट के आधार पर बनी हुई हैं. हालांकि जज का नाम डिस्क्लोज नहीं किया जा सकता है. इसके लिए भी संबंधित जिले के अधिकारियों के साथ ही उच्च स्तर पर सरकार को जानकारी दी गई है. जांच भी जारी है, जल्द ही इसका भी खुलासा किया जाएगा.
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