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जानिये डॉ. सचान हत्याकांड की अनसुनी कहानी, टीम ने कहा था 'इट्स कॉरपोरेट मर्डर'

यूपी में सचान हत्याकांड का जिन्न फिर से बाहर आ गया है. सीबीआई की क्लोजर रिपोर्ट विशेष अदालत में दो बार पटखनी खा चुकी है. इस बार कोर्ट ने सीबीआई को आत्महत्या नहीं बल्कि हत्या के एंगल से जांच करने का निर्देश दिये हैं.

डॉ. योगेंद्र सिंह सचान
डॉ. योगेंद्र सिंह सचान
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Published : Jul 13, 2022, 6:16 PM IST

लखनऊ : यूपी में डॉ. सचान हत्याकांड का जिन्न फिर से बाहर आ गया है. सीबीआई की क्लोजर रिपोर्ट विशेष अदालत में दो बार पटखनी खा चुकी है. इस बार कोर्ट ने सीबीआई को आत्महत्या नहीं बल्कि हत्या के एंगल से जांच करने का निर्देश दिये हैं. कोर्ट ने भले ही 11 साल बाद यह माना है कि सचान की हत्या हुई थी, लेकिन साल 2011 में चार लोग ऐसे थे जो चीख-चीख कर कह रहे थे कि सचान की मौत एक 'कॉरपोरेट मर्डर' है, लेकिन सीबीआई ने अपनी रिपोर्ट में उन दावों को हर बार खारिज किया था.

ADG ने कहा था यह आत्महत्या नहीं हत्या है : 22 जून 2011 को लखनऊ जेल में डॉ. योगेंद्र सिंह सचान का शव शौचालय की सीट पर बैठे हुये मिलता है. मौके पर पुलिस के आलाधिकारी पंहुचते हैं. वर्तमान में राज्यसभा सांसद व तत्कालीन एडीजी कानून व्यवस्था बृजलाल बताते हैं कि एनआरएचएम घोटाले में उन्होंने ही जांचकर डॉ. सचान को जेल भेजा था. इस दौरान तत्कालीन सीएमओ डॉ. आर्या की हत्या के मामले में गिरफ्तार हुए दो शूटर व सचान के करीबी ठेकेदार आरके वर्मा से भी पूछताछ की जा रही थी. इसमें सचान का भी नाम आया था. शूटर व डॉ. सचान की कोर्ट में 23 जून 2011 को गवाही होनी थी.

जानकारी देते पत्रकार ज्ञानेंद्र शुक्ला

दोनों हाथ व जांघों की कटी थी नस : बृजलाल कहते हैं कि इस पूछताछ में कई बड़े खुलासे हो सकते थे, लेकिन एक दिन पहले ही रात को डॉ. सचान की मौत की सूचना मिल गयी. वो कहते हैं कि जब मैं जेल पहुंचा तो डाॅ. सचान शौचालय में कमोड सीट पर बैठे हुए थे. उनके दोनों हाथ व जांघों की नस कटी हुई थी. शौचालय की खिड़की उनके गले से काफी ऊंची थी और बेल्ट जिस स्थिति में गर्दन में बंधी हुई थी, उससे किसी की मौत होना सम्भव नहीं था. बृजलाल कहते हैं कि उन्होंने उसी वक्त अपने मातहतों से यह कह दिया था कि यह आत्महत्या नहीं बल्कि हत्या है. बृजलाल कहते हैं कि तत्कालीन जेलर बीएस मुकुंद की तैनाती लखनऊ में सचान की मौत से कुछ दिन पहले ही हुई थी. इससे पहले वो जौनपुर जेल में तैनात थे, लेकिन एक खास राजनीतिक चेहरे ने मुकुंद का ट्रांसफर जौनपुर से लखनऊ करवा दिया था. बृजलाल के मुताबिक यदि इस वक्त सचान की मौत का केस सीबीआई को न दिया गया होता तो सच्चाई यूपी पुलिस सभी के सामने रख देती. डॉ. सचान का पोस्टमार्टम करने वाले एक डॉक्टर बताते हैं कि पांच डॉक्टरों के पैनल ने सचान का पोस्टमार्टम किया था. इस पैनल को लीड एक महिला डॉक्टर कर रही थीं. पूरे पोस्टमार्टम की वीडियोग्राफी हुई थी.

सभी के सामने रखा था सच : पोस्टमार्टम की रिपोर्ट में सामने आया था कि डॉ. सचान की मौत जांघों की आर्टरी (धमनी) कटने के कारण खून के रिसाव से हुई थी. सामने आया था कि कुछ ऐसे भी ब्लेड से कट के मार्क थे जो मौत होने के बाद बनाये गए थे. डॉक्टर ने बताया कि पोस्टमार्टम से पहले ही पैनल पर दबाव आने लगा था. इसके लिए लीड करने वाले डॉक्टर ने ये फैसला किया था कि विभागीय वीडियोग्राफी के साथ-साथ डॉक्टर भी अपने-अपने मोबाइल से पोस्टमार्टम के वीडियो बनाएंगे. उन्होंने बताया कि पोस्टमार्टम से ही साफ हो गया था कि ये हत्या है न कि आत्महत्या, लेकिन सीबीआई को ऐसा क्यों लगा ये कहना मुश्किल है. यूपी मेडिकोलीगल विभाग की योगेंद्र सिंह सचान की मौत में एक अहम भूमिका रही थी. इस विभाग ने सचान की मौत का सच सभी के सामने रखा था. तत्कालीन मेडिकोलीगल विभाग के ज्वाइंट डायरेक्टर वाईके पाठक ने उस वक्त एक निजी चैनल में यह खुलासा कर दिया था कि सचान ने आत्महत्या नहीं की थी बल्कि उनकी हत्या की गई थी.

टीम ने कहा था 'इट्स कॉरपोरेट मर्डर' : रिटायर हो चुके तत्कालीन ज्वाइंट डायरेक्टर को 11 साल पहले हुई इस घटना के विषय में हर एक तथ्य याद है. वह बताते हैं कि पोस्टमार्टम होने के तीन दिन बाद रिपोर्ट मेडिकोलीगल के पास पहुंची. इसके लिए तीन डॉक्टरों की टीम गठित की गयी थी. जिसमें गुरमीत सिंह अरोड़ा व सुरेश चंद्र मित्तल शामिल थे. उन्होंने बताया कि सचान के शरीर में 9 चोटें थीं, वो भी इस तरह की जैसे उन्हें टॉर्चर किया गया हो. उनकी जांघ में गहरे घाव थे, जो कोई भी व्यक्ति खुद से नहीं बना सकता है. जेल की बैरक से शौचालय की ओर जाने वाले रास्ते में सचान के फुट प्रिंट नहीं दिखे थे. साथ ही सीन ऑफ क्राइम में कई चीजें ऐसी थीं जो हत्या की ओर इशारा कर रही थीं. वे बताते हैं कि उन्होंने यह सभी बिंदु अपनी रिपोर्ट में लिखे थे, लेकिन बीच में ही उन्हें इस टीम से हटाकर दो अन्य सीनियर डॉक्टरों को जिम्मेदारी दे दी गई थी. जिन्होंने एक हफ्ते में रिपोर्ट तैयार की थी. तत्कालीन ज्वाइंट डायरेक्टर बताते हैं कि उनकी टीम को मॉल एवेन्यू स्थित सीबीआई ने पूछताछ के लिए बुलाया था. सीबीआई ने हत्या बताने का आधार पूछा था तो मेडिकोलीगल टीम ने सभी बिंदु बताते हुए कहा था कि 'इट्स कॉरपोरेट मर्डर'.


क्या थे सीबीआई के तर्क? : सीबीआई ने सचान केस में कोर्ट में चार्जशीट दाखिल करते हुए अदालत को बताया था कि फोरेंसिक जांच में डॉ. सचान की मौत आत्महत्या साबित हुई है, हत्या के सबूत नहीं मिले हैं. सीबीआई ने कहा था कि उसके पास इस बात के सुबूत हैं, जिनसे पता चलता है कि पूर्व में दो मेडिकल अधिकारियों की मौत में उनकी भूमिका के खुलासे के बाद डॉ. सचान इतने दबाव में थे कि उन्होंने खाना लेना भी बंद कर दिया था. सीबीआई ने कहा था कि पहले डॉ. सचान ने आधे ब्लेड से खुद पर घाव किए, लेकिन उन्हें आशंका थी कि अगर किसी ने उन्हें ऐसी हालत में देख लिया तो उन्हें अस्पताल ले जाया जाएगा. जिसके चलते जल्दी मरने के लिए डॉ. सचान ने फांसी लगा ली. सीबीआई को डॉ. सचान की मौत के बाद एक नोट की फोटो कॉपी मिली थी. जिसमें लिखा था कि, “मीडिया को मैं ये बताना चाहता हूं कि मैं निर्दोष हूं. मुझे जेल प्रशासन के अधिकारियों, बंदियों तथा मेरे समस्त परिवार से कोई शिकायत नहीं है.” सीबीआई के मुताबिक नोट पर लिखावट डॉ. सचान की ही थी. हालांकि तत्कालीन एडीजी कानून व्यवस्था बृजलाल बताते हैं कि जिस कागज (तथाकथित सुसाइड लेटर) की बात सीबीआई ने कोर्ट में कही थी वह आज तक किसी के सामने आया ही नहीं और गायब हो गया था.


उस वक्त सचान की मौत के केस को करीब से देखने वाले पत्रकार ज्ञानेंद्र शुक्ला बताते हैं कि उत्तर प्रदेश में 5 हजार करोड़ से भी ज्यादा का एनआरएचएम घोटाला था. इसी घोटाले के चलते तत्कालीन सीएमओ डाॅ. आर्या व डॉ. बीपी सिंह की हत्या होती है. इस बीच खबर आती है कि डॉ. सचान ने जेल में खुदकुशी कर ली है. वह लखनऊ जेल पहुंचते हैं. जहां का माहौल साफतौर पर गवाही दे रहा था कि वहां कुछ न कुछ छिपाया जा रहा है. जेल में एडीजी जेल वीके गुप्ता, एडीजी कानून-व्यवस्था बृजलाल भी पहुंचते हैं. जेल के सूत्र बताते हैं कि कोई भी यकीन नहीं कर सकता कि डाॅक्टर सचान ने खुदकुशी की है.
ये भी पढ़ें : लखनऊ में जिम ट्रेनर की मां को उनके पालतू कुत्ते ने नोंचकर मार डाला

ज्ञानेंद्र बताते हैं कि सीबीआई ने बाद में इस मामले को आत्महत्या करार दिया था. यही नहीं उस समय की सरकार व बड़े अधिकारी भी इसे खुदकुशी बताने में जुट गए थे. ज्ञानेंद्र बताते हैं कि उनके सूत्रों ने उस वक्त ही बताया था कि डॉ. सचान को जेल से कहीं बाहर एक फॉर्म हाउस में ले जाया गया था. जहां सचान को पीटा गया था. वहीं उनकी मौत हो गई थी. खास बात यह है कि जिस दिन उनकी मौत की सूचना आई उसके एक दिन बाद ही उनकी गवाही होनी थी. ऐसा माना जा रहा है कि उनकी जुबान खुलने से कई रसूखदार लोगों के चेहरे बेनकाब हो सकते थे. ज्ञानेंद्र शुक्ला के मुताबिक, सीबीआई के पास पहले से ही कोई केस देरी से जाता है. ऐसे में गवाहों व सबूतों से छेड़छाड़ हो जाती है. वो मानते हैं कि सीबीआई के लिए बड़ी चुनौती होगी कि 11 साल का समय बीत चुका है. तमाम वह चेहरे जो रसूखदार माने जाते थे आज दुनिया में नहीं हैं ऐसे में सच्चाई से कैसे पर्दाफाश हो सकेगा यह सीबीआई के सामने बड़ी चुनौती रहेगी.

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लखनऊ : यूपी में डॉ. सचान हत्याकांड का जिन्न फिर से बाहर आ गया है. सीबीआई की क्लोजर रिपोर्ट विशेष अदालत में दो बार पटखनी खा चुकी है. इस बार कोर्ट ने सीबीआई को आत्महत्या नहीं बल्कि हत्या के एंगल से जांच करने का निर्देश दिये हैं. कोर्ट ने भले ही 11 साल बाद यह माना है कि सचान की हत्या हुई थी, लेकिन साल 2011 में चार लोग ऐसे थे जो चीख-चीख कर कह रहे थे कि सचान की मौत एक 'कॉरपोरेट मर्डर' है, लेकिन सीबीआई ने अपनी रिपोर्ट में उन दावों को हर बार खारिज किया था.

ADG ने कहा था यह आत्महत्या नहीं हत्या है : 22 जून 2011 को लखनऊ जेल में डॉ. योगेंद्र सिंह सचान का शव शौचालय की सीट पर बैठे हुये मिलता है. मौके पर पुलिस के आलाधिकारी पंहुचते हैं. वर्तमान में राज्यसभा सांसद व तत्कालीन एडीजी कानून व्यवस्था बृजलाल बताते हैं कि एनआरएचएम घोटाले में उन्होंने ही जांचकर डॉ. सचान को जेल भेजा था. इस दौरान तत्कालीन सीएमओ डॉ. आर्या की हत्या के मामले में गिरफ्तार हुए दो शूटर व सचान के करीबी ठेकेदार आरके वर्मा से भी पूछताछ की जा रही थी. इसमें सचान का भी नाम आया था. शूटर व डॉ. सचान की कोर्ट में 23 जून 2011 को गवाही होनी थी.

जानकारी देते पत्रकार ज्ञानेंद्र शुक्ला

दोनों हाथ व जांघों की कटी थी नस : बृजलाल कहते हैं कि इस पूछताछ में कई बड़े खुलासे हो सकते थे, लेकिन एक दिन पहले ही रात को डॉ. सचान की मौत की सूचना मिल गयी. वो कहते हैं कि जब मैं जेल पहुंचा तो डाॅ. सचान शौचालय में कमोड सीट पर बैठे हुए थे. उनके दोनों हाथ व जांघों की नस कटी हुई थी. शौचालय की खिड़की उनके गले से काफी ऊंची थी और बेल्ट जिस स्थिति में गर्दन में बंधी हुई थी, उससे किसी की मौत होना सम्भव नहीं था. बृजलाल कहते हैं कि उन्होंने उसी वक्त अपने मातहतों से यह कह दिया था कि यह आत्महत्या नहीं बल्कि हत्या है. बृजलाल कहते हैं कि तत्कालीन जेलर बीएस मुकुंद की तैनाती लखनऊ में सचान की मौत से कुछ दिन पहले ही हुई थी. इससे पहले वो जौनपुर जेल में तैनात थे, लेकिन एक खास राजनीतिक चेहरे ने मुकुंद का ट्रांसफर जौनपुर से लखनऊ करवा दिया था. बृजलाल के मुताबिक यदि इस वक्त सचान की मौत का केस सीबीआई को न दिया गया होता तो सच्चाई यूपी पुलिस सभी के सामने रख देती. डॉ. सचान का पोस्टमार्टम करने वाले एक डॉक्टर बताते हैं कि पांच डॉक्टरों के पैनल ने सचान का पोस्टमार्टम किया था. इस पैनल को लीड एक महिला डॉक्टर कर रही थीं. पूरे पोस्टमार्टम की वीडियोग्राफी हुई थी.

सभी के सामने रखा था सच : पोस्टमार्टम की रिपोर्ट में सामने आया था कि डॉ. सचान की मौत जांघों की आर्टरी (धमनी) कटने के कारण खून के रिसाव से हुई थी. सामने आया था कि कुछ ऐसे भी ब्लेड से कट के मार्क थे जो मौत होने के बाद बनाये गए थे. डॉक्टर ने बताया कि पोस्टमार्टम से पहले ही पैनल पर दबाव आने लगा था. इसके लिए लीड करने वाले डॉक्टर ने ये फैसला किया था कि विभागीय वीडियोग्राफी के साथ-साथ डॉक्टर भी अपने-अपने मोबाइल से पोस्टमार्टम के वीडियो बनाएंगे. उन्होंने बताया कि पोस्टमार्टम से ही साफ हो गया था कि ये हत्या है न कि आत्महत्या, लेकिन सीबीआई को ऐसा क्यों लगा ये कहना मुश्किल है. यूपी मेडिकोलीगल विभाग की योगेंद्र सिंह सचान की मौत में एक अहम भूमिका रही थी. इस विभाग ने सचान की मौत का सच सभी के सामने रखा था. तत्कालीन मेडिकोलीगल विभाग के ज्वाइंट डायरेक्टर वाईके पाठक ने उस वक्त एक निजी चैनल में यह खुलासा कर दिया था कि सचान ने आत्महत्या नहीं की थी बल्कि उनकी हत्या की गई थी.

टीम ने कहा था 'इट्स कॉरपोरेट मर्डर' : रिटायर हो चुके तत्कालीन ज्वाइंट डायरेक्टर को 11 साल पहले हुई इस घटना के विषय में हर एक तथ्य याद है. वह बताते हैं कि पोस्टमार्टम होने के तीन दिन बाद रिपोर्ट मेडिकोलीगल के पास पहुंची. इसके लिए तीन डॉक्टरों की टीम गठित की गयी थी. जिसमें गुरमीत सिंह अरोड़ा व सुरेश चंद्र मित्तल शामिल थे. उन्होंने बताया कि सचान के शरीर में 9 चोटें थीं, वो भी इस तरह की जैसे उन्हें टॉर्चर किया गया हो. उनकी जांघ में गहरे घाव थे, जो कोई भी व्यक्ति खुद से नहीं बना सकता है. जेल की बैरक से शौचालय की ओर जाने वाले रास्ते में सचान के फुट प्रिंट नहीं दिखे थे. साथ ही सीन ऑफ क्राइम में कई चीजें ऐसी थीं जो हत्या की ओर इशारा कर रही थीं. वे बताते हैं कि उन्होंने यह सभी बिंदु अपनी रिपोर्ट में लिखे थे, लेकिन बीच में ही उन्हें इस टीम से हटाकर दो अन्य सीनियर डॉक्टरों को जिम्मेदारी दे दी गई थी. जिन्होंने एक हफ्ते में रिपोर्ट तैयार की थी. तत्कालीन ज्वाइंट डायरेक्टर बताते हैं कि उनकी टीम को मॉल एवेन्यू स्थित सीबीआई ने पूछताछ के लिए बुलाया था. सीबीआई ने हत्या बताने का आधार पूछा था तो मेडिकोलीगल टीम ने सभी बिंदु बताते हुए कहा था कि 'इट्स कॉरपोरेट मर्डर'.


क्या थे सीबीआई के तर्क? : सीबीआई ने सचान केस में कोर्ट में चार्जशीट दाखिल करते हुए अदालत को बताया था कि फोरेंसिक जांच में डॉ. सचान की मौत आत्महत्या साबित हुई है, हत्या के सबूत नहीं मिले हैं. सीबीआई ने कहा था कि उसके पास इस बात के सुबूत हैं, जिनसे पता चलता है कि पूर्व में दो मेडिकल अधिकारियों की मौत में उनकी भूमिका के खुलासे के बाद डॉ. सचान इतने दबाव में थे कि उन्होंने खाना लेना भी बंद कर दिया था. सीबीआई ने कहा था कि पहले डॉ. सचान ने आधे ब्लेड से खुद पर घाव किए, लेकिन उन्हें आशंका थी कि अगर किसी ने उन्हें ऐसी हालत में देख लिया तो उन्हें अस्पताल ले जाया जाएगा. जिसके चलते जल्दी मरने के लिए डॉ. सचान ने फांसी लगा ली. सीबीआई को डॉ. सचान की मौत के बाद एक नोट की फोटो कॉपी मिली थी. जिसमें लिखा था कि, “मीडिया को मैं ये बताना चाहता हूं कि मैं निर्दोष हूं. मुझे जेल प्रशासन के अधिकारियों, बंदियों तथा मेरे समस्त परिवार से कोई शिकायत नहीं है.” सीबीआई के मुताबिक नोट पर लिखावट डॉ. सचान की ही थी. हालांकि तत्कालीन एडीजी कानून व्यवस्था बृजलाल बताते हैं कि जिस कागज (तथाकथित सुसाइड लेटर) की बात सीबीआई ने कोर्ट में कही थी वह आज तक किसी के सामने आया ही नहीं और गायब हो गया था.


उस वक्त सचान की मौत के केस को करीब से देखने वाले पत्रकार ज्ञानेंद्र शुक्ला बताते हैं कि उत्तर प्रदेश में 5 हजार करोड़ से भी ज्यादा का एनआरएचएम घोटाला था. इसी घोटाले के चलते तत्कालीन सीएमओ डाॅ. आर्या व डॉ. बीपी सिंह की हत्या होती है. इस बीच खबर आती है कि डॉ. सचान ने जेल में खुदकुशी कर ली है. वह लखनऊ जेल पहुंचते हैं. जहां का माहौल साफतौर पर गवाही दे रहा था कि वहां कुछ न कुछ छिपाया जा रहा है. जेल में एडीजी जेल वीके गुप्ता, एडीजी कानून-व्यवस्था बृजलाल भी पहुंचते हैं. जेल के सूत्र बताते हैं कि कोई भी यकीन नहीं कर सकता कि डाॅक्टर सचान ने खुदकुशी की है.
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ज्ञानेंद्र बताते हैं कि सीबीआई ने बाद में इस मामले को आत्महत्या करार दिया था. यही नहीं उस समय की सरकार व बड़े अधिकारी भी इसे खुदकुशी बताने में जुट गए थे. ज्ञानेंद्र बताते हैं कि उनके सूत्रों ने उस वक्त ही बताया था कि डॉ. सचान को जेल से कहीं बाहर एक फॉर्म हाउस में ले जाया गया था. जहां सचान को पीटा गया था. वहीं उनकी मौत हो गई थी. खास बात यह है कि जिस दिन उनकी मौत की सूचना आई उसके एक दिन बाद ही उनकी गवाही होनी थी. ऐसा माना जा रहा है कि उनकी जुबान खुलने से कई रसूखदार लोगों के चेहरे बेनकाब हो सकते थे. ज्ञानेंद्र शुक्ला के मुताबिक, सीबीआई के पास पहले से ही कोई केस देरी से जाता है. ऐसे में गवाहों व सबूतों से छेड़छाड़ हो जाती है. वो मानते हैं कि सीबीआई के लिए बड़ी चुनौती होगी कि 11 साल का समय बीत चुका है. तमाम वह चेहरे जो रसूखदार माने जाते थे आज दुनिया में नहीं हैं ऐसे में सच्चाई से कैसे पर्दाफाश हो सकेगा यह सीबीआई के सामने बड़ी चुनौती रहेगी.

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