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यूपी में अब कम हो रहा है दलितों से भेदभाव, बढ़ रहा है आपसी सद्भाव

पिछली तीन सरकारों के कार्यकाल के आंकड़े बताते हैं कि अब उत्तर प्रदेश में दलितों के साथ अन्याय की शिकायतें कम होने लगी हैं. वहीं जानकारों का कहना है कि मायावती सरकार में दलितों के साथ सबसे ज्यादा अत्याचार हुआ. उनकी सुनवाई भी नहीं हुई.

योगी आदित्यनाथ
योगी आदित्यनाथ
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Published : Jun 11, 2022, 8:28 PM IST

Updated : Jun 12, 2022, 2:40 PM IST

लखनऊः उत्तर प्रदेश के लिए ये अच्छी खबर है. अब तक दलितों को सताने की जो शिकायतें आती थीं, उनमें अब काफी कमी आई है. अब दलितों के साथ भेदभाव नहीं बल्कि सद्भाव बढ़ रहा है. पिछली तीन सरकारों के कार्यकाल के आंकड़े बताते हैं कि अब दलितों के साथ अन्याय की शिकायतें कम होने लगी हैं. जहां 2007 से लेकर 2012 तक पुलिस विभाग की उत्पीड़न संबंधित शिकायतें, राजस्व विभाग (भूमि संबंधी शिकायतें) और सेवा संबंधी प्रकरणों को मिलाकर कुल 65,127 मामले सामने आए थे. जिसके बाद 2013 से लेकर 2017 तक यह आंकड़ा घटकर 23,734 पर आ गया. इसके बाद 2018 से अब तक का आंकड़ा और भी बेहतर है. सभी प्रकरणों को मिलाकर कुल 14,089 शिकायतें सामने आई हैं. वहीं उत्तर प्रदेश अनुसूचित जाति एवं जनजाति आयोग लगातार शिकायतों का निस्तारण कर रहा है.

जानकारी देते संवाददाता अखिल पांडेय
बसपा सरकार में सबसे ज्यादा अत्याचार: वैसे तो बहुजन समाज पार्टी को दलितों की ही राजनीति करने वाली पार्टी माना जाता है. बसपा मुखिया को दलितों की देवी के तौर पर पेश किया जाता है, लेकिन अगर बात तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती के कार्यकाल की करें तो सबसे ज्यादा दलित उत्पीड़न की शिकायतें उन्हीं की सरकार के दौरान सामने आई. आर्थिक मदद की बात की जाए तो सबसे कम आर्थिक मदद बसपा सरकार में ही दलितों को मिली. 2007 में बहुजन समाज पार्टी सरकार के कार्यकाल में अनुसूचित जाति जनजाति आयोग में 3,485 पुलिस विभाग उत्पीड़न संबंधी शिकायतें दर्ज हुईं. राजस्व विभाग (भूमि संबंधी) शिकायतें 1,743 आईं. सेवा संबंधी 1401 प्रकरण आए. कुल 6,629 शिकायतें सामने आईं.

वहीं आर्थिक मदद की बात करें तो सिर्फ ₹10 करोड़ 75 लाख ही सरकार ने उपलब्ध कराए. सिर्फ 1800 मामलों का ही निस्तारण किया गया. इसी तरह 2008 में पुलिस विभाग के 6,401, राजस्व विभाग के 3,370, सेवा संबंधी 2,736 प्रकरण मिलाकर कुल 12,507 शिकायतें दर्ज हुईं. सरकार ने ₹16 करोड़ 92 लाख की आर्थिक सहायता दी और सिर्फ 1,769 शिकायतों का ही निराकरण हुआ. साल 2009 में पुलिस विभाग की 6,817 शिकायतें, राजस्व विभाग की 2,905,।सेवा संबंधी 2,752 मिलाकर 12,474 शिकायतें दर्ज की गईं, जिनमें 16 करोड़ 49 लाख का आर्थिक सहयोग किया गया और 1,248 शिकायतों का ही निस्तारण हुआ. साल 2010 में पुलिस विभाग संबंधी 7,198, भूमि संबंधी 3,540, सेवा संबंधी 3,015 को मिलाकर कुल 13,753 मामले सामने आए और सिर्फ 209 शिकायतें निस्तारित हुईं, जबकि इसके एवज में 17 करोड़ 28 लाख का ही सहयोग किया गया. 2011 में पुलिस विभाग में उत्पीड़न का आंकड़ा बढ़कर 8,007 हो गया. राजस्व विभाग में 4,942, सेवा संबंधी 2,465 शिकायतें मिलाकर आंकड़ा 15,414 पहुंच गया. इस दौरान सिर्फ 155 मामलों का ही निस्तारण हुआ और 14 करोड़ 62 लाख की ही आर्थिक सहायता दी गई. 2012 में पुलिस विभाग के उत्पीड़न संबंधित शिकायतें जरूर कम हुईं, सिर्फ 2275 शिकायतें सामने आईं, राजस्व विभाग संबंधी 1,047 शिकायतें, सेवा संबंधी 1,028 शिकायतें मिलाकर कुल 4,350 प्रकरण सामने आए. सरकार ने ₹13 करोड़ 75 लाख की आर्थिक सहायता दलितों को उपलब्ध कराई. बसपा सरकार के कार्यकाल में कुल मिलाकर अगर देखा जाए तो पुलिस विभाग की 34,183, राजस्व विभाग की 17,547, सेवा संबंधित 13,397 शिकायतें मिलाकर कुल 65,127 शिकायतें दर्ज की गईं और सिर्फ 5,181 मामलों का ही समाधान किया गया.

सपा सरकार में मामले तो घटे पर आर्थिक सहायता ज्यादा नहीं

अब अगर सपा सरकार के कार्यकाल में दलितों पर अत्याचार के मामलों की बात की जाए तो कुल मिलाकर पुलिस विभाग के उत्पीड़न संबंधी 12,833, राजस्व विभाग से संबंधित 6,777, सेवा संबंधी 4,124 शिकायतों को मिलाकर कुल 23,734 प्रकरण सामने आए. जिनमें से कुल 308 मामलों की ही सुनवाई कर उनका निस्तारण किया गया. आर्थिक सहायता की बात की जाए तो बसपा सरकार की तुलना में इस सरकार में दलितों को आर्थिक सहायता ज्यादा दी गई. साल 2013 में 21 करोड़ 71 लाख, 2014 में 23 करोड़ 42 लाख, 2015 में 37 करोड़ 93 लाख, 2016 में 46 करोड़ 17 लाख और 2017 में 151 करोड़ 17 लाख रुपए की आर्थिक सहायता दलितों को उपलब्ध कराई गई.

भाजपा सरकार में गिरावट, आर्थिक सहायता में इजाफा

साल 2017 में उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार आई. योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बने. इसमें पुलिस विभाग उत्पीड़न संबंधी 2160 शिकायतें, राजस्व विभाग भूमि संबंधी 1406, सेवा संबंधी 567 शिकायतों को मिलाकर कुल 4133 शिकायतें दर्ज हुईं. इनमें से 165 शिकायतों का निस्तारण हुआ और 192 करोड़ 28 लाख रुपए की आर्थिक सहायता दी गई. इसी तरह साल 2019 में पुलिस विभाग की 2009, भूमि संबंधी 1087, सेवा संबंधी 441 प्रकरणों को मिलाकर कुल 3,537 प्रकरण सामने आए. इनमें 107 शिकायतों का समाधान किया गया और 222 करोड़ 93 लाख रुपए की सहायता दी गई. साल 2020 में पुलिस विभाग संबंधी 4,109, राजस्व विभाग संबंधी 1,689, सेवा संबंधी 621 प्रकरण कुल मिलाकर 6,419 शिकायतें दर्ज हुईं, जिनमें आर्थिक सहायता के तौर पर सरकार ने 229 करोड़ पांच लाख रुपए उपलब्ध कराए. इन तीन सालों का आंकड़ा देखा जाए तो पुलिस विभाग से संबंधित 8,278, भूमि संबंधी 4,182, सेवा संबंधी 1,629 मामलों को मिलाकर कुल 14,089 शिकायतें दर्ज हुईं. जिनमें 272 का निराकरण किया गया.


साल 2021-2022 में जून माह से लेकर मई माह तक कुल 6,210 प्रकरण सामने आए. इनमें से 4,262 प्रकरणों में उत्तर प्रदेश अनुसूचित जाति एवं जनजाति आयोग की तरफ से संबंधित विभागों को अपने स्तर से निस्तारण के लिए भेजा गया. वहीं 1,918 प्रकरणों में संबंधित विभागों से आख्या मंगाकर आयोग से निस्तारण कराया गया. 31 अगस्त 2021 से पूर्व में विचाराधीन 342 और 328 नए प्रकरणों को मिलाकर कुल 670 प्रकरणों की सुनवाई की गई. सुनवाई के बाद 448 प्रकरणों का निस्तारण किया गया. 222 प्रकरणों पर सुनवाई जारी है. 92 प्रकरणों का निस्तारण करते हुए पीड़ित परिवारों को एक करोड़ 74 लाख 91 हजार 250 रुपए की धनराशि आर्थिक सहायता के रूप में आयोग के हस्तक्षेप के बाद उपलब्ध कराई गई है.

ये भी पढ़ें : ध्यान रखें, निर्दोष का उत्पीड़न न हो, दोषी एक भी न बचे: योगी आदित्यनाथ

क्या कहते हैं एससी-एसटी आयोग के अध्यक्ष : उत्तर प्रदेश अनुसूचित जाति एवं जनजाति आयोग के अध्यक्ष डॉ. रामबाबू हरित का कहना है कि मायावती सरकार में दलितों के साथ सबसे ज्यादा अत्याचार हुआ. उनकी सुनवाई भी नहीं हुई. आर्थिक सहायता की बात की जाए तो सबसे कम दलितों को आर्थिक सहायता बसपा सरकार में ही मिली. समाजवादी पार्टी सरकार के कार्यकाल की बात करें तो दलितों के साथ उत्पीड़न की शिकायतों में कमी जरूर आई, लेकिन उनके मामलों का निस्तारण उस औसत में नहीं हुआ जितना होना चाहिए, जब उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार आई तो दलितों के साथ उत्पीड़न की शिकायतों में लगातार गिरावट आई. सबसे ज्यादा मामले इसी सरकार में निबटाए गए और सबसे ज्यादा आर्थिक सहायता भी उपलब्ध कराई गई.

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लखनऊः उत्तर प्रदेश के लिए ये अच्छी खबर है. अब तक दलितों को सताने की जो शिकायतें आती थीं, उनमें अब काफी कमी आई है. अब दलितों के साथ भेदभाव नहीं बल्कि सद्भाव बढ़ रहा है. पिछली तीन सरकारों के कार्यकाल के आंकड़े बताते हैं कि अब दलितों के साथ अन्याय की शिकायतें कम होने लगी हैं. जहां 2007 से लेकर 2012 तक पुलिस विभाग की उत्पीड़न संबंधित शिकायतें, राजस्व विभाग (भूमि संबंधी शिकायतें) और सेवा संबंधी प्रकरणों को मिलाकर कुल 65,127 मामले सामने आए थे. जिसके बाद 2013 से लेकर 2017 तक यह आंकड़ा घटकर 23,734 पर आ गया. इसके बाद 2018 से अब तक का आंकड़ा और भी बेहतर है. सभी प्रकरणों को मिलाकर कुल 14,089 शिकायतें सामने आई हैं. वहीं उत्तर प्रदेश अनुसूचित जाति एवं जनजाति आयोग लगातार शिकायतों का निस्तारण कर रहा है.

जानकारी देते संवाददाता अखिल पांडेय
बसपा सरकार में सबसे ज्यादा अत्याचार: वैसे तो बहुजन समाज पार्टी को दलितों की ही राजनीति करने वाली पार्टी माना जाता है. बसपा मुखिया को दलितों की देवी के तौर पर पेश किया जाता है, लेकिन अगर बात तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती के कार्यकाल की करें तो सबसे ज्यादा दलित उत्पीड़न की शिकायतें उन्हीं की सरकार के दौरान सामने आई. आर्थिक मदद की बात की जाए तो सबसे कम आर्थिक मदद बसपा सरकार में ही दलितों को मिली. 2007 में बहुजन समाज पार्टी सरकार के कार्यकाल में अनुसूचित जाति जनजाति आयोग में 3,485 पुलिस विभाग उत्पीड़न संबंधी शिकायतें दर्ज हुईं. राजस्व विभाग (भूमि संबंधी) शिकायतें 1,743 आईं. सेवा संबंधी 1401 प्रकरण आए. कुल 6,629 शिकायतें सामने आईं.

वहीं आर्थिक मदद की बात करें तो सिर्फ ₹10 करोड़ 75 लाख ही सरकार ने उपलब्ध कराए. सिर्फ 1800 मामलों का ही निस्तारण किया गया. इसी तरह 2008 में पुलिस विभाग के 6,401, राजस्व विभाग के 3,370, सेवा संबंधी 2,736 प्रकरण मिलाकर कुल 12,507 शिकायतें दर्ज हुईं. सरकार ने ₹16 करोड़ 92 लाख की आर्थिक सहायता दी और सिर्फ 1,769 शिकायतों का ही निराकरण हुआ. साल 2009 में पुलिस विभाग की 6,817 शिकायतें, राजस्व विभाग की 2,905,।सेवा संबंधी 2,752 मिलाकर 12,474 शिकायतें दर्ज की गईं, जिनमें 16 करोड़ 49 लाख का आर्थिक सहयोग किया गया और 1,248 शिकायतों का ही निस्तारण हुआ. साल 2010 में पुलिस विभाग संबंधी 7,198, भूमि संबंधी 3,540, सेवा संबंधी 3,015 को मिलाकर कुल 13,753 मामले सामने आए और सिर्फ 209 शिकायतें निस्तारित हुईं, जबकि इसके एवज में 17 करोड़ 28 लाख का ही सहयोग किया गया. 2011 में पुलिस विभाग में उत्पीड़न का आंकड़ा बढ़कर 8,007 हो गया. राजस्व विभाग में 4,942, सेवा संबंधी 2,465 शिकायतें मिलाकर आंकड़ा 15,414 पहुंच गया. इस दौरान सिर्फ 155 मामलों का ही निस्तारण हुआ और 14 करोड़ 62 लाख की ही आर्थिक सहायता दी गई. 2012 में पुलिस विभाग के उत्पीड़न संबंधित शिकायतें जरूर कम हुईं, सिर्फ 2275 शिकायतें सामने आईं, राजस्व विभाग संबंधी 1,047 शिकायतें, सेवा संबंधी 1,028 शिकायतें मिलाकर कुल 4,350 प्रकरण सामने आए. सरकार ने ₹13 करोड़ 75 लाख की आर्थिक सहायता दलितों को उपलब्ध कराई. बसपा सरकार के कार्यकाल में कुल मिलाकर अगर देखा जाए तो पुलिस विभाग की 34,183, राजस्व विभाग की 17,547, सेवा संबंधित 13,397 शिकायतें मिलाकर कुल 65,127 शिकायतें दर्ज की गईं और सिर्फ 5,181 मामलों का ही समाधान किया गया.

सपा सरकार में मामले तो घटे पर आर्थिक सहायता ज्यादा नहीं

अब अगर सपा सरकार के कार्यकाल में दलितों पर अत्याचार के मामलों की बात की जाए तो कुल मिलाकर पुलिस विभाग के उत्पीड़न संबंधी 12,833, राजस्व विभाग से संबंधित 6,777, सेवा संबंधी 4,124 शिकायतों को मिलाकर कुल 23,734 प्रकरण सामने आए. जिनमें से कुल 308 मामलों की ही सुनवाई कर उनका निस्तारण किया गया. आर्थिक सहायता की बात की जाए तो बसपा सरकार की तुलना में इस सरकार में दलितों को आर्थिक सहायता ज्यादा दी गई. साल 2013 में 21 करोड़ 71 लाख, 2014 में 23 करोड़ 42 लाख, 2015 में 37 करोड़ 93 लाख, 2016 में 46 करोड़ 17 लाख और 2017 में 151 करोड़ 17 लाख रुपए की आर्थिक सहायता दलितों को उपलब्ध कराई गई.

भाजपा सरकार में गिरावट, आर्थिक सहायता में इजाफा

साल 2017 में उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार आई. योगी आदित्यनाथ मुख्यमंत्री बने. इसमें पुलिस विभाग उत्पीड़न संबंधी 2160 शिकायतें, राजस्व विभाग भूमि संबंधी 1406, सेवा संबंधी 567 शिकायतों को मिलाकर कुल 4133 शिकायतें दर्ज हुईं. इनमें से 165 शिकायतों का निस्तारण हुआ और 192 करोड़ 28 लाख रुपए की आर्थिक सहायता दी गई. इसी तरह साल 2019 में पुलिस विभाग की 2009, भूमि संबंधी 1087, सेवा संबंधी 441 प्रकरणों को मिलाकर कुल 3,537 प्रकरण सामने आए. इनमें 107 शिकायतों का समाधान किया गया और 222 करोड़ 93 लाख रुपए की सहायता दी गई. साल 2020 में पुलिस विभाग संबंधी 4,109, राजस्व विभाग संबंधी 1,689, सेवा संबंधी 621 प्रकरण कुल मिलाकर 6,419 शिकायतें दर्ज हुईं, जिनमें आर्थिक सहायता के तौर पर सरकार ने 229 करोड़ पांच लाख रुपए उपलब्ध कराए. इन तीन सालों का आंकड़ा देखा जाए तो पुलिस विभाग से संबंधित 8,278, भूमि संबंधी 4,182, सेवा संबंधी 1,629 मामलों को मिलाकर कुल 14,089 शिकायतें दर्ज हुईं. जिनमें 272 का निराकरण किया गया.


साल 2021-2022 में जून माह से लेकर मई माह तक कुल 6,210 प्रकरण सामने आए. इनमें से 4,262 प्रकरणों में उत्तर प्रदेश अनुसूचित जाति एवं जनजाति आयोग की तरफ से संबंधित विभागों को अपने स्तर से निस्तारण के लिए भेजा गया. वहीं 1,918 प्रकरणों में संबंधित विभागों से आख्या मंगाकर आयोग से निस्तारण कराया गया. 31 अगस्त 2021 से पूर्व में विचाराधीन 342 और 328 नए प्रकरणों को मिलाकर कुल 670 प्रकरणों की सुनवाई की गई. सुनवाई के बाद 448 प्रकरणों का निस्तारण किया गया. 222 प्रकरणों पर सुनवाई जारी है. 92 प्रकरणों का निस्तारण करते हुए पीड़ित परिवारों को एक करोड़ 74 लाख 91 हजार 250 रुपए की धनराशि आर्थिक सहायता के रूप में आयोग के हस्तक्षेप के बाद उपलब्ध कराई गई है.

ये भी पढ़ें : ध्यान रखें, निर्दोष का उत्पीड़न न हो, दोषी एक भी न बचे: योगी आदित्यनाथ

क्या कहते हैं एससी-एसटी आयोग के अध्यक्ष : उत्तर प्रदेश अनुसूचित जाति एवं जनजाति आयोग के अध्यक्ष डॉ. रामबाबू हरित का कहना है कि मायावती सरकार में दलितों के साथ सबसे ज्यादा अत्याचार हुआ. उनकी सुनवाई भी नहीं हुई. आर्थिक सहायता की बात की जाए तो सबसे कम दलितों को आर्थिक सहायता बसपा सरकार में ही मिली. समाजवादी पार्टी सरकार के कार्यकाल की बात करें तो दलितों के साथ उत्पीड़न की शिकायतों में कमी जरूर आई, लेकिन उनके मामलों का निस्तारण उस औसत में नहीं हुआ जितना होना चाहिए, जब उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार आई तो दलितों के साथ उत्पीड़न की शिकायतों में लगातार गिरावट आई. सबसे ज्यादा मामले इसी सरकार में निबटाए गए और सबसे ज्यादा आर्थिक सहायता भी उपलब्ध कराई गई.

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Last Updated : Jun 12, 2022, 2:40 PM IST
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