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जानिए उप्र कांग्रेस के अध्यक्ष बृजलाल खाबरी को किस तरह की चुनौतियों का करना होगा सामना

अब तक की अपनी सबसे खराब स्थिति से गुजर रही उत्तर प्रदेश कांग्रेस को छह माह बाद ही सही, लेकिन नया प्रदेश अध्यक्ष मिल गया है. नवनियुक्त प्रदेश अध्यक्ष बृजलाल खाबरी (UP Congress President Brijlal Khabri) के साथ छह प्रांतीय अध्यक्षों ने भी कार्यभार संभाल लिया है. कांग्रेस नेतृत्व ने प्रदेश अध्यक्ष दलित समुदाय से चुना तो क्षेत्रीय अध्यक्षों के चयन में भी जातीय समीकरण साधने की कोशिश की. पढ़ें ब्यूरो चीफ आलोक त्रिपाठी का राजनीतिक विश्लेषण....

अध्यक्ष बृजलाल खाबरी
अध्यक्ष बृजलाल खाबरी
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Published : Oct 13, 2022, 6:05 PM IST

Updated : Nov 4, 2022, 7:34 PM IST

लखनऊ : अब तक की अपनी सबसे खराब स्थिति से गुजर रही उत्तर प्रदेश कांग्रेस को छह माह बाद ही सही, लेकिन नया प्रदेश अध्यक्ष मिल गया है. नवनियुक्त प्रदेश अध्यक्ष बृजलाल खाबरी (UP Congress President Brijlal Khabri) के साथ छह प्रांतीय अध्यक्षों ने भी कार्यभार संभाल लिया है. कांग्रेस नेतृत्व ने प्रदेश अध्यक्ष दलित समुदाय से चुना तो क्षेत्रीय अध्यक्षों के चयन में भी जातीय समीकरण साधने की कोशिश की. यह बात और है कि नए प्रदेश अध्यक्ष बृजलाल खाबरी के सामने स्थितियां चुनौती पूर्ण हैं और इससे निपट पाने में वह कितने कामयाब होंगे यह कहना कठिन होगा.


2022 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस पार्टी महज दो सीटें जीतने में कामयाब हुई है और यह दोनों ही सीटें प्रत्याशियों के व्यक्तिगत प्रभाव वाली मानी जाती हैं. इनमें से एक प्रतापगढ़ की रामपुर खास विधान सभा सीट से कांग्रेस के दिग्गज नेता और राज्य सभा सांसद प्रमोद तिवारी की पुत्री आराधना मिश्रा 'मोना' ने जीती है. 2017 के विधान सभा चुनावों में भी वह जीत कर आई थीं. इससे पहले उनके पिता प्रमोद तिवारी तीन दशक से भी ज्यादा समय से इस सीट से लगातार जीतते रहे हैं. यह सीट कांग्रेस या यूं कहें कि तिवारी परिवार के लिए अजेय बनी हुई है. वहीं विधान सभा चुनाव जीतकर आए दूसरे सदस्य हैं वीरेंद्र चौधरी. इन्होंने महाराजगंज की फरेंदा विधान सभा सीट से भाजपा प्रत्याशी बजरंग बहादुर सिंह को पराजित किया. इस सीट पर वीरेंद्र चौधरी का काफी प्रभाव माना जाता है.


पिछले एक दशक में कांग्रेस के प्रदर्शन की बात करें तो 2017 के विधान सभा चुनावों में महज सात सीटें जीती थीं. 2012 में पार्टी के पास 28 विधान सभा सीटें थीं. यानी एक दशक में पार्टी का प्रदर्शन सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया है. यह तब है जब कांग्रेस की महासचिव और उत्तर प्रदेश की प्रभारी प्रियंका गांधी ने इस चुनाव में जी तोड़ मेहनत की. राहुल गांधी की टीम भी चुनावों में लगी रही, लेकिन निचले स्तर पर संगठन न होने के कारण पार्टी अपने सबसे बुरे दौर में पहुंच गई. कांग्रेस का केंद्रीय संगठन भी नेतृत्व संकट से जूझ रहा है. बहुत जल्द इसके लिए चुनाव होने जा रहे हैं. ऐसे में शीर्ष स्तर पर किसी का ध्यान राज्य संगठन पर है भी नहीं. वैसे भी राज्य संगठन के सामने अपनी चुनौतियां हैं, जिनका समाधान निकाले बिना पार्टी को आगे बढ़ाना कठिन है.


प्रदेश कांग्रेस में ऐसे कई नेता हैं, जो राज्य नेतृत्व के साथ ही गांधी परिवार के भी करीबी माने जाते हैं. दोनों स्थानों पर रिपोर्टिंग होने के कारण कई बार राज्य नेतृत्व को असहज स्थिति का सामना करना पड़ता है, क्योंकि केंद्रीय नेतृत्व राज्य संगठन के फैसलों में गाहे-बगाहे हस्तक्षेप भी करता है. दूसरी समस्या है कि पार्टी के नव नियुक्त अध्यक्ष खुद बसपा काडर के कार्यकर्ता रहे हैं. क्षेत्रीय अध्यक्षों में भी ज्यादातर नेता अन्य दलों से ही पार्टी में आए हैं. ऐसे में कांग्रेस के मूल कार्यकर्ता का हताश और निराश होना लाजिमी है. कार्यकर्ताओं को लगता है कि पार्टी को दशकों देने के बावजूद यदि कुछ नहीं मिल रहा, तो क्यों न अन्य विकल्पों की ओर विचार किया जाए.

यह भी पढ़ें : मुलायम सिंह यादव अपने पूरे जीवन काल में छात्र नेताओं के अभिभावक रहे, लविवि से रहा खास जुड़ाव

नव नियुक्त प्रदेश अध्यक्ष बृजलाल खबरी के साथ अच्छी बात यह है कि उन्हें बसपा में रहते हुए संगठन बनाने का तजुर्बा हो गया है. यदि पुराना अनुभव वह काम ला सके और सभी क्षेत्रीय अध्यक्षों ने साथ दिया, तो संभव है कि 2014 के लोक सभा चुनावों में पार्टी ठीक से खड़ी होने में कामयाब हो सके. हालांकि यह काम बहुत ही दुश्वारियों भरा है. जिस पार्टी को नया प्रदेश अध्यक्ष चुनने में छह माह का समय लग गया, वह समयबद्धता और अनुशासन का पालन कैसे करा सकेगी? सवाल यह भी है कि प्रियंका गांधी और राहुल गांधी के करीबी जेएनयू के छात्र यदि राजनीतिक दिग्गजों को बारीकियां सिखाएंगे, तो बात कहां तक बनेगी. आगामी माह में निकाय चुनावों की घोषणा होनी है. इन चुनावों में पार्टी कैसे लड़ती है, इसी से 2024 की तस्वीर साफ हो जाएगी.

लखनऊ : अब तक की अपनी सबसे खराब स्थिति से गुजर रही उत्तर प्रदेश कांग्रेस को छह माह बाद ही सही, लेकिन नया प्रदेश अध्यक्ष मिल गया है. नवनियुक्त प्रदेश अध्यक्ष बृजलाल खाबरी (UP Congress President Brijlal Khabri) के साथ छह प्रांतीय अध्यक्षों ने भी कार्यभार संभाल लिया है. कांग्रेस नेतृत्व ने प्रदेश अध्यक्ष दलित समुदाय से चुना तो क्षेत्रीय अध्यक्षों के चयन में भी जातीय समीकरण साधने की कोशिश की. यह बात और है कि नए प्रदेश अध्यक्ष बृजलाल खाबरी के सामने स्थितियां चुनौती पूर्ण हैं और इससे निपट पाने में वह कितने कामयाब होंगे यह कहना कठिन होगा.


2022 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस पार्टी महज दो सीटें जीतने में कामयाब हुई है और यह दोनों ही सीटें प्रत्याशियों के व्यक्तिगत प्रभाव वाली मानी जाती हैं. इनमें से एक प्रतापगढ़ की रामपुर खास विधान सभा सीट से कांग्रेस के दिग्गज नेता और राज्य सभा सांसद प्रमोद तिवारी की पुत्री आराधना मिश्रा 'मोना' ने जीती है. 2017 के विधान सभा चुनावों में भी वह जीत कर आई थीं. इससे पहले उनके पिता प्रमोद तिवारी तीन दशक से भी ज्यादा समय से इस सीट से लगातार जीतते रहे हैं. यह सीट कांग्रेस या यूं कहें कि तिवारी परिवार के लिए अजेय बनी हुई है. वहीं विधान सभा चुनाव जीतकर आए दूसरे सदस्य हैं वीरेंद्र चौधरी. इन्होंने महाराजगंज की फरेंदा विधान सभा सीट से भाजपा प्रत्याशी बजरंग बहादुर सिंह को पराजित किया. इस सीट पर वीरेंद्र चौधरी का काफी प्रभाव माना जाता है.


पिछले एक दशक में कांग्रेस के प्रदर्शन की बात करें तो 2017 के विधान सभा चुनावों में महज सात सीटें जीती थीं. 2012 में पार्टी के पास 28 विधान सभा सीटें थीं. यानी एक दशक में पार्टी का प्रदर्शन सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया है. यह तब है जब कांग्रेस की महासचिव और उत्तर प्रदेश की प्रभारी प्रियंका गांधी ने इस चुनाव में जी तोड़ मेहनत की. राहुल गांधी की टीम भी चुनावों में लगी रही, लेकिन निचले स्तर पर संगठन न होने के कारण पार्टी अपने सबसे बुरे दौर में पहुंच गई. कांग्रेस का केंद्रीय संगठन भी नेतृत्व संकट से जूझ रहा है. बहुत जल्द इसके लिए चुनाव होने जा रहे हैं. ऐसे में शीर्ष स्तर पर किसी का ध्यान राज्य संगठन पर है भी नहीं. वैसे भी राज्य संगठन के सामने अपनी चुनौतियां हैं, जिनका समाधान निकाले बिना पार्टी को आगे बढ़ाना कठिन है.


प्रदेश कांग्रेस में ऐसे कई नेता हैं, जो राज्य नेतृत्व के साथ ही गांधी परिवार के भी करीबी माने जाते हैं. दोनों स्थानों पर रिपोर्टिंग होने के कारण कई बार राज्य नेतृत्व को असहज स्थिति का सामना करना पड़ता है, क्योंकि केंद्रीय नेतृत्व राज्य संगठन के फैसलों में गाहे-बगाहे हस्तक्षेप भी करता है. दूसरी समस्या है कि पार्टी के नव नियुक्त अध्यक्ष खुद बसपा काडर के कार्यकर्ता रहे हैं. क्षेत्रीय अध्यक्षों में भी ज्यादातर नेता अन्य दलों से ही पार्टी में आए हैं. ऐसे में कांग्रेस के मूल कार्यकर्ता का हताश और निराश होना लाजिमी है. कार्यकर्ताओं को लगता है कि पार्टी को दशकों देने के बावजूद यदि कुछ नहीं मिल रहा, तो क्यों न अन्य विकल्पों की ओर विचार किया जाए.

यह भी पढ़ें : मुलायम सिंह यादव अपने पूरे जीवन काल में छात्र नेताओं के अभिभावक रहे, लविवि से रहा खास जुड़ाव

नव नियुक्त प्रदेश अध्यक्ष बृजलाल खबरी के साथ अच्छी बात यह है कि उन्हें बसपा में रहते हुए संगठन बनाने का तजुर्बा हो गया है. यदि पुराना अनुभव वह काम ला सके और सभी क्षेत्रीय अध्यक्षों ने साथ दिया, तो संभव है कि 2014 के लोक सभा चुनावों में पार्टी ठीक से खड़ी होने में कामयाब हो सके. हालांकि यह काम बहुत ही दुश्वारियों भरा है. जिस पार्टी को नया प्रदेश अध्यक्ष चुनने में छह माह का समय लग गया, वह समयबद्धता और अनुशासन का पालन कैसे करा सकेगी? सवाल यह भी है कि प्रियंका गांधी और राहुल गांधी के करीबी जेएनयू के छात्र यदि राजनीतिक दिग्गजों को बारीकियां सिखाएंगे, तो बात कहां तक बनेगी. आगामी माह में निकाय चुनावों की घोषणा होनी है. इन चुनावों में पार्टी कैसे लड़ती है, इसी से 2024 की तस्वीर साफ हो जाएगी.

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Last Updated : Nov 4, 2022, 7:34 PM IST
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