लखनऊ. योगी-2 सरकार में बृजेश पाठक ने डिप्टी सीएम की कुर्सी हासिल की है. यह भाजपा का ब्राह्मणों को साधने का बड़ा दांव माना जा रहा है. बृजेश पाठक को उत्तर प्रदेश की राजनीति का बड़ा चेहरा माना जाता है. बृजेश पाठक ने राजनीति की शुरुआत छात्र नेता के तौर पर ली. वह लखनऊ विश्वविद्यालय में छात्रसंघ के अध्यक्ष रहे हैं. उनका जन्म 25 जून 1964 को हरदोई जिले के मल्लावा कस्बे के में हुआ था, उनके पिता का नाम सुरेश पाठक था. ब्रजेश पाठक ने कानून की पढ़ाई की है, लेकिन उन्होंने अपने राजनीति जीवन की शुरुआत अपने छात्र जीवन से की है.
1989 में बने छात्रों के अध्यक्ष, 130 वोटों से विधायकी हारी
बृजेश पाठक ने 1989 में लखनऊ विश्वविद्यालय छात्र संघ के उपाध्यक्ष चुने गए. इसके बाद 1990 में वह लखनऊ विश्वविद्यालय छात्रसंघ के अध्यक्ष चुने गए. इसके 12 साल बाद कांग्रेस में शामिल हुए. 2002 के विधानसभा चुनाव में मल्लावां विधानसभा सीट से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े और 130 वोटों के करीबी अंतर से चुनाव हार गये थे.
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हाथी की लंबी सवारी
पाठक 2004 में कांग्रेस छोड़कर बसपा में शामिल हो गए. इसके बाद 2004 के लोकसभा चुनाव में वह बसपा के टिकट पर उन्नाव संसदीय क्षेत्र से सांसद चुने गए. बसपा ने उन्हें सदन में अपना उपनेता बनाया. 2009 में मायावती ने ब्रजेश पाठक को राज्यसभा भेज दिया.
वह सदन में बसपा के मुख्य सचेतक रहे. 2012 के विधानसभा चुनाव में बसपा ने उनकी पत्नी नम्रता पाठक को उन्नाव सदर विधानसभा सीट से टिकट दिया लेकिन वह तीसरे नंबर पर रहीं. मायावती ने उन्हें फिर भी राज्यमंत्री का दर्जा दिया. इसके बाद 2014 के लोकसभा चुनाव में बृजेश पाठक उन्नाव लोकसभा सीट से दूसरी बार मैदान में थे लेकिन मोदी की लहर में वह यह चुनाव हार गए थे.
2017 चुनाव से पहले बीजेपी में हुए शामिल, कानून मंत्री बने
पाठक 2017 के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले 2016 को ब्रजेश पाठक बीजेपी में शामिल हो गए. 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने उन्हें लखनऊ सेंट्रल विधानसभा सीट से मैदान में उतारे. उन्होंने इस चुनाव में समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता और कैबिनेट मंत्री रहे रविदास मेहरोत्रा को हराए. सरकार बनने के बाद वे कानून मंत्री बनाये गए. दूसरी बार कैंट सीट से विधायक बने और डिप्टी सीएम बनाये गए.
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