लखनऊ: देशभर में आजादी के 75 साल पूरे होने पर अमृत महोत्सव (azadi ka amrit mahotsav) मनाया जा रहा है. प्रत्येक भारतीय आजादी के जश्न में डूबा हुआ है. इस आजादी को दिलाने में न जाने कितने वीरों को देश के लिए न्यौछावर होना पड़ा था. लखनऊ में बनी इमारत सीमेट्री मरियांव में अंग्रेजों की कई ऐसी कब्र हैं, जो क्रांतिकारियों की सहादत की गाथाओं को सुनाती है. उनके जज्बे की याद दिलाती हैं.
राजधानी लखनऊ के अलीगंज स्थित बेलीगारद पार्क जिसे 'सीमेट्री मरियांव' (simetri maryanv in lucknow) के नाम से जाना जाता है. इस पार्क में स्थित अंग्रेजों की 30 कब्रें क्रांतिकारियों के हौसलों की दास्तां बयां कर रही हैं. इन कब्रों से पता चल रहा है कि भारत के शूरवीरों ने उन पर कहर ढहाया था. 30 मई 1857 में सैकड़ों अंग्रेज सैनिक लखनऊ के चिनहट और मडियांव इलाके में खड़े थे और उनका सामना भारत के क्रांतिवीरों ने किया था. मेरठ में हुई क्रांति के बाद से ही लखनऊ में 29 मार्च 1857 को क्रांतिकारी मंगल पांडेय ने पहली गोली चलाई थी. उन्हें 8 अप्रैल 1857 को बंगाल के बैरकपुर में फांसी हुई थी. इसके बाद 10 मई 1857 को मेरठ में विद्रोह शुरू हुआ था.
इतिहासकार रवि भट्ट बताते हैं, कि विद्रोह 3 मई 1857 को लखनऊ की मडियांव छावनी में 71वीं बंगाल रेजीमेंट के सैनिकों ने अंग्रेजी कर्नल विलियम् हेल्फोर्ट को चर्बी लगा कारतूस इस्तेमाल नहीं करने की चेतावनी दी थी. लेकिन विलियम नहीं माना था. इसकी वजह से मडियांव छावनी में भी बगावत की आग फैल गई. मडियांव लखनऊ की पहली (madiaon first cantonment of lucknow) छावनी थी.
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इतिहासकार रवि भट्ट ने बताया कि 30 मई 1857 को शनिवार का दिन था. अंग्रेजी सेना के अधिकारी विलियम हेल्फोर्ट ने सैन्याभ्यास के लिए सैनिकों को इकट्ठा किया था. सेना में शामिल भारतीय सैनिकों ने बंदूक का मुंह अंग्रेजो की तरफ कर दिया था और विद्रोही सैनिकों ने गोलियों की बौछार कर दी थी. इससे कई अंग्रेजी अफसर मारे गए थे. यह पहली बार था, जब अंग्रेजों के खिलाफ लखनऊ में पहली गोली चली थी.
मडियांव छावनी में मारे गए अंग्रेज अफसरों को ही अलीगंज स्थित बेलीगारद सीमेट्री या मरियांव सीमेट्री में दफनाया गया था. यहां 30 कब्रों में अंग्रेजों के अफसर दफन है, जिन्हें विद्रोही सैनिकों ने मार गिराया था. वहीं, एक महीने बाद 30 जून 1857 को लखनऊ में चिनहट की लड़ाई हुई थी. इसमें क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों को धूल चटाते हुए पहली जीत हासिल की थी. यहीं नहीं ब्रिगेडियर हेनरी लॉरेंस को भी रेजिडेंसी के अंदर क्रांतिकारियों ने मार गिराया था.
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