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यूपी विधानसभा चुनाव 2022: लखनऊ की सियासत है अटल बिहारी वाजपेयी की विरासत - lucknow news in hindi

यूपी विधानसभा चुनाव 2022 के लेकर सभी राजनीतिक दलों ने लखनऊ में जोर आजमाइश शुरू कर दी है. लखनऊ में सियासत की विरासत हमेशा पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के नाम पर रही है.

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अटल बिहारी वाजपेई
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Published : Jan 27, 2022, 5:28 PM IST

लखनऊ: भारतीय जनता पार्टी जानती है कि यहां चुनाव कोई भी हो, पर अटल का नाम जरूरी है. भारतीय जनता पार्टी लोकसभा व विधानसभा चुनावों कहीं ना कहीं पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई के नाम का सहारा लेकर अपनी नैया पार करती रही है. आजादी के बाद वे कई बार लखनऊ से हारे थे. जबकि 1991 से अटल बिहारी वाजपेई 2004 तक लगातार लखनऊ से सांसद चुने गए थे. अटल बिहारी वाजपेई के नाम पर ही लालजी टंडन और अनेक भाजपा नेताओं की राजनीति चलती रही. इसी राजनीति के इतिहास में लखनऊ और अटल बिहारी वाजपेई को एक-दूसरे का पूरक बना दिया.

जानकारी देते भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता हीरो बाजपेई
अटल बिहारी वाजपेई और लखनऊ की सियासत
  • 1952 में अटल बिहारी वाजपेई पहली बार लखनऊ में भारतीय जनसंघ से चुनाव लड़े. उन्होंने 33,986 वोट पाए और तीसरे स्थान पर रहे हैं.
  • अटल बिहारी वाजपेई 1957 में दोबारा लखनऊ से चुनाव लड़े. इस बार उनको 57,034 वोट मिले और पुलिन बिहारी बनर्जी से 12,000 वोट से हारकर उपविजेता रहे.
  • 1962 में एक बार फिर अटल बिहारी वाजपेई ने भारतीय जनसंघ से लखनऊ से चुनाव लड़ा. उनको 86,620 वोट मिले और कांग्रेस के बीके धवन ने उन उन को करीब 30 हजार वोटों से हराया था.
  • करीब 31 साल बाद अटल बिहारी वाजपेई ने 1991 में लखनऊ से तो फिर चुनाव लड़ा. इस बार उनको 1,94,886 वोट मिले और उन्होंने कांग्रेस के रंजीत सिंह को एकतरफा मुकाबले में करीब सवा लाख वोटों से हराया.
  • 1996 में अटल बिहारी वाजपेई फिर चुनाव लड़े. उन्होंने समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी फिल्म अभिनेता राज बब्बर को करीब 1,20,000 वोटों से हराकर फिर जीत प्राप्त की.
  • 1998 में अटल बिहारी वाजपेई ने समाजवादी पार्टी के मुजफ्फर अली को करीब 2,15,000 वोटों से हराया था.
  • 1999 के मध्यावधि चुनाव में अटल बिहारी वाजपेई ने कांग्रेस के करण सिंह को करीब 1,30,000 वोटों से हराया.
  • 2004 में अटल बिहारी वाजपेई ने समाजवादी पार्टी की मधु गुप्ता को करीब 2,20,000 वोटों से हराया.

2004 के बाद अटल बिहारी वाजपेई ने चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया. तब पूर्व राज्यपाल और दिवंगत नेता लालजी टंडन ने उनके उत्तराधिकारी के तौर पर लखनऊ से चुनाव लड़ा और वो जीते. इसी बीच अटल बिहारी वाजपेई के नामांकन में प्रस्तावक रहे पूर्व महापौर डॉक्टर एस सी राय ने भी अटल बिहारी वाजपेई के आशीर्वाद से चुनाव लड़ा. वह भी कई बार लखनऊ के महापौर रहे. 2014 में वर्तमान रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी खुद को अटल बिहारी वाजपेई का उत्तराधिकारी बताते हुए चुनाव लड़ा. वो भी लगातार दो बार लखनऊ से सांसद हुए हैं. उन्होंने रिकॉर्ड तोड़ जीत दर्ज की थी.

ये भी पढ़ें- सीएम योगी का अखिलेश पर निशाना, बोले- प्रदेश की पहचान दिव्य और भव्य कुंभ से, सैफई महोत्सव वाले तो अब...


भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता और अटल बिहारी वाजपेई के प्रधानमंत्री कार्यकाल में उनके पसंदीदा भाजपा कार्यकर्ताओं में से एक रहे हीरो बाजपेई बताते हैं कि लखनऊ और अटल बिहारी वाजपेई एक दूसरे के पूरक रहे. उनके नाम पर लड़ा जाता रहा है. पहले लखनऊ से चुनाव हारे थे. बलरामपुर जाकर सांसद बनते थे. मगर बाद में उन्होंने लखनऊ को ही अपनी कर्मस्थली बना दिया था. जब वो प्रधानमंत्री थे, तब भी लखनऊ से हर साल बीजेपी कार्यकर्ता दिल्ली में प्रधानमंत्री आवास जाते थे. उनसे मुलाकात करते थे और उनके भोजन तक का प्रबंध प्रधानमंत्री आवास में होता था. प्रधानमंत्री होने के बावजूद भी समय-समय पर वो लखनऊ में रहते थे और यहां के विकास की सुध लेते रहते थे.

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लखनऊ: भारतीय जनता पार्टी जानती है कि यहां चुनाव कोई भी हो, पर अटल का नाम जरूरी है. भारतीय जनता पार्टी लोकसभा व विधानसभा चुनावों कहीं ना कहीं पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई के नाम का सहारा लेकर अपनी नैया पार करती रही है. आजादी के बाद वे कई बार लखनऊ से हारे थे. जबकि 1991 से अटल बिहारी वाजपेई 2004 तक लगातार लखनऊ से सांसद चुने गए थे. अटल बिहारी वाजपेई के नाम पर ही लालजी टंडन और अनेक भाजपा नेताओं की राजनीति चलती रही. इसी राजनीति के इतिहास में लखनऊ और अटल बिहारी वाजपेई को एक-दूसरे का पूरक बना दिया.

जानकारी देते भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता हीरो बाजपेई
अटल बिहारी वाजपेई और लखनऊ की सियासत
  • 1952 में अटल बिहारी वाजपेई पहली बार लखनऊ में भारतीय जनसंघ से चुनाव लड़े. उन्होंने 33,986 वोट पाए और तीसरे स्थान पर रहे हैं.
  • अटल बिहारी वाजपेई 1957 में दोबारा लखनऊ से चुनाव लड़े. इस बार उनको 57,034 वोट मिले और पुलिन बिहारी बनर्जी से 12,000 वोट से हारकर उपविजेता रहे.
  • 1962 में एक बार फिर अटल बिहारी वाजपेई ने भारतीय जनसंघ से लखनऊ से चुनाव लड़ा. उनको 86,620 वोट मिले और कांग्रेस के बीके धवन ने उन उन को करीब 30 हजार वोटों से हराया था.
  • करीब 31 साल बाद अटल बिहारी वाजपेई ने 1991 में लखनऊ से तो फिर चुनाव लड़ा. इस बार उनको 1,94,886 वोट मिले और उन्होंने कांग्रेस के रंजीत सिंह को एकतरफा मुकाबले में करीब सवा लाख वोटों से हराया.
  • 1996 में अटल बिहारी वाजपेई फिर चुनाव लड़े. उन्होंने समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी फिल्म अभिनेता राज बब्बर को करीब 1,20,000 वोटों से हराकर फिर जीत प्राप्त की.
  • 1998 में अटल बिहारी वाजपेई ने समाजवादी पार्टी के मुजफ्फर अली को करीब 2,15,000 वोटों से हराया था.
  • 1999 के मध्यावधि चुनाव में अटल बिहारी वाजपेई ने कांग्रेस के करण सिंह को करीब 1,30,000 वोटों से हराया.
  • 2004 में अटल बिहारी वाजपेई ने समाजवादी पार्टी की मधु गुप्ता को करीब 2,20,000 वोटों से हराया.

2004 के बाद अटल बिहारी वाजपेई ने चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया. तब पूर्व राज्यपाल और दिवंगत नेता लालजी टंडन ने उनके उत्तराधिकारी के तौर पर लखनऊ से चुनाव लड़ा और वो जीते. इसी बीच अटल बिहारी वाजपेई के नामांकन में प्रस्तावक रहे पूर्व महापौर डॉक्टर एस सी राय ने भी अटल बिहारी वाजपेई के आशीर्वाद से चुनाव लड़ा. वह भी कई बार लखनऊ के महापौर रहे. 2014 में वर्तमान रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी खुद को अटल बिहारी वाजपेई का उत्तराधिकारी बताते हुए चुनाव लड़ा. वो भी लगातार दो बार लखनऊ से सांसद हुए हैं. उन्होंने रिकॉर्ड तोड़ जीत दर्ज की थी.

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भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता और अटल बिहारी वाजपेई के प्रधानमंत्री कार्यकाल में उनके पसंदीदा भाजपा कार्यकर्ताओं में से एक रहे हीरो बाजपेई बताते हैं कि लखनऊ और अटल बिहारी वाजपेई एक दूसरे के पूरक रहे. उनके नाम पर लड़ा जाता रहा है. पहले लखनऊ से चुनाव हारे थे. बलरामपुर जाकर सांसद बनते थे. मगर बाद में उन्होंने लखनऊ को ही अपनी कर्मस्थली बना दिया था. जब वो प्रधानमंत्री थे, तब भी लखनऊ से हर साल बीजेपी कार्यकर्ता दिल्ली में प्रधानमंत्री आवास जाते थे. उनसे मुलाकात करते थे और उनके भोजन तक का प्रबंध प्रधानमंत्री आवास में होता था. प्रधानमंत्री होने के बावजूद भी समय-समय पर वो लखनऊ में रहते थे और यहां के विकास की सुध लेते रहते थे.

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