लखनऊ: यूपी में गैर मान्यता प्राप्त मदरसों के सर्वे और असम में मदरसे पर चले बुलडोजर के बाद से अलग-अलग प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं. देश में एक बार फिर से मदरसे चर्चा का विषय बने हुए हैं. सभी राजनीतिक पार्टियां अपने-अपने हिसाब से इस मुद्दे पर रोटियां सेंक रही हैं. एक तरफ योगी सरकार इन प्राइवेट मदरसों के सर्वे को जायज ठहराते हुए उनका उत्थान करने की बात कह रही है. वहीं, दूसरी तरफ असदुद्दीन ओवैसी ने इसे मिनी NRC करार दिया है. अब इस मुद्दे पर देश में मुसलमानों के सबसे बड़े संगठन ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड का भी बयान सामने आ गया है.
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने यूपी और असम में मदरसों से जुड़े मामले पर नाराजगी जताई है. ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के महासचिव मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी ने अपने जारी किए हुए प्रेस नोट में कहा कि आरएसएस विचारधारा की प्रतिनिधि पार्टी अभी भी केंद्र और देश के कई राज्यों में सत्ता में है जो अल्पसंख्यकों के लिए खुले तौर पर खासकर मुसलमानों के सम्बंध में नकारात्मक विचार रखती है. हालांकि, किसी भी विचार और विचारधारा से प्रभावित पार्टी सत्ता में आती है, तो उससे यह आशा की जाती है कि वह संविधान और उसकी भावना के अनुसार कार्य करेगी और उसकी दृष्टि में सभी नागरिक समान होंगे.
शुक्रवार को जारी हुए लिखित बयान में बोर्ड कि तरफ से कहा गया कि स्वयं प्रधानमंत्री भी संसद और अन्य मंचों पर संविधान और कानून की बात करते हैं. लेकिन, उनकी सरकार और विभिन्न राज्यों में सत्ताधारी उनकी पार्टी का व्यवहार उनकी कथनी के बिल्कुल विपरीत है. यूपी और असम में जिस प्रकार मदरसों पर शिकंजा कसा जा रहा है और इस संबंध में मामूली उल्लंघन को बहाना बनाकर या तो मदरसों को बंद किया जा रहा है या मदरसों की इमारतों को ध्वस्त किया जा रहा है.
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वह इन मदरसों और मस्जिदें में काम करने वालों पर ही आतंकवाद का आरोप लगा रहा है और बिना सबूत के कार्रवाई कर रहे हैं. इसके साथ ही असम में देश के अन्य भागों से आने वाले विद्वानों (उलेमाओं) पर कानूनी और प्रशासनिक प्रतिबंध लगाए जा रहे हैं. यह संविधान के दिए गए अधिकारों का स्पष्ट उल्लंघन है और अस्वीकार्य है.
बोर्ड के महासचिव ने कहा कि यदि मदरसों को बंद करना और इमारतों को तोड़ना ही कानून के मामूली उल्लंघन के लिए एकमात्र सजा है तो गुरुकुलों, मठों, धर्मशालाओं और अन्य धार्मिक संस्थानों पर यह उपाय क्यों नहीं अपनाया जाता. उन्होंने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि, सरकार संविधान को ताक पर रखकर मनमानी कार्रवाई कर रही है. मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड इस प्रकार के कट्टर और घृणित कृत्यों की कड़ी निंदा करता है. किसी भी नकारात्मक विचारधारा के बजाय संविधान की भावना का पालन करने का आह्वान करता है.
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