लखनऊ : प्रधानमंत्री आवास (prime minister house) को लेकर शहरों में जबरदस्त मांग है. प्रदेश में करीब 25 लाख आवेदन सूडा के माध्यम से किये जा चुके हैं. मगर आवास केवल पांच लाख ही मिल पाए हैं, ऐसे में यह परेशानी बढ़ती ही जा रही है. लोगों को जमीन की कमी की वजह से आवास नहीं मिल पा रहे हैं. विशेषज्ञ मानते हैं कि शहरों के मुकाबले गांवों में जमीन की उपलब्धता अधिक है. इसलिए वहां आवास आवंटित करना आसान हो जाता है, जबकि शहर के भीतर जमीन की भारी कमी के चलते फ्लैट बनाना मुश्किल है. इस वजह से दिक्कतें अधिक हैं.
उत्तर प्रदेश में शहरों के मुकाबले गांवों में प्रधानमंत्री आवास (prime minister house) पांच गुना अधिक मिला है. जहां गांवों को पांच साल में 40 लाख आवास मिले हैं वहीं, शहरों में मांग के विपरीत अब तक केवल पांच लाख आवास ही आवंटित किए गए हैं. इससे शहरों की आवासीय जरूरतें नहीं पूरी हो पा रही हैं.
आवास विकास परिषद के आयुक्त अजय कुमार चौहान का कहना है कि हम लखनऊ में 10 हजार आवासों का निर्माण कर चुके हैं, जबकि पूरे प्रदेश में करीब 50 हजार आवास बना रहे हैं. मगर जमीन की कमी शहरों में अधिक है. इस वजह से हमको आवास बनाने में दिक्कतें आ रही हैं.
बात केवल लखनऊ की कि जाए तो यहां डेढ़ लाख के करीब आवेदनों के सापेक्ष 20 हजार आवास ही आवास विकास परिषद और एलडीए मिलकर दे सके हैं, जबकि लखनऊ के गांवों में लगभग 80 हजार आवास आवंटित किए गए हैं. जिससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि शहर में जहां अधिक आवासीय आवश्यकता है, वहां सरकार आवास देने में सक्षम नहीं हो रही है.
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उत्तर प्रदेश के शहरों में जमीन की भारी कमी है. इस वजह से प्रधानमंत्री आवास के निर्माण में अड़चनें आ रही हैं. सरकार निर्माण का खर्च उठाने के लिए तो तैयार है, लेकिन जमीन पर आ रहे भारी खर्च को उठाना संभव नहीं है. इसलिए अधिकांश शहरों में प्रधानमंत्री आवास योजना उस तरह से परवान नहीं चढ़ पा रही जैसी जरूरत है.
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