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मंदिरों में चढ़ने वाले श्रद्धा के फूल महकाएंगे आपका घर - युवा उद्यमी प्रतीक कुमार

कानपुर के युवा उद्यमी ने मंदिर व घाटों के किनारे फेंके जाने वाले फूलों का सदुपयोग करते हुए एक नई पहल की शुरुआत की है. इसके तहत फूलों को फैक्ट्री में रिसाइकलिंग कर इससे इको फ्रेंडली धूपबत्ती व अगरबत्ती बनाई जा रही है.

स्पेशल रिपोर्ट.
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Published : Sep 21, 2020, 10:13 PM IST

Updated : Sep 24, 2020, 3:28 PM IST

कानपुर: जिले के युवा उद्यमी ने गंगा नदी का प्रदूषण कम करने के लिए एक नई पहल की शुरुआत की है. दरअसल, मंदिरों व घाटों पर पूजा के बाद निकलने वाले फूलों से ऑर्गेनिक धूपबत्ती और अगरबत्ती का निर्माण किया जा रहा है. इसके लिए युवा इंजीनियर प्रतीक कुमार ने अपने दोस्त अंकित अग्रवाल के साथ मिलकर एक स्टार्टअप की शुरुआत की है, जिसमें उनकी टीम द्वारा मंदिर व घाटों के किनारे फेंके जाने वाले फूलों को इकट्ठा किया जाता है, जिसके बाद इनकी रिसाइकलिंग की जाती है. वहीं भगवान की पूजा के दौरान प्रयोग में लाई जाने वाली इको फ्रेंडली धूपबत्ती व अगरबत्ती बनाने में इसका उपयोग किया जाता है.

स्पेशल रिपोर्ट.

कैसे तैयार होती है फ्रेंडली धूपबत्ती व अगरबत्ती ?
इसके लिए बकायदा सबसे पहले सभी फूलों और उनकी पत्तियों को अलग किया जाता है. इसके बाद उसका कंपाउंड बना कर हाथों से अगरबत्ती और मशीनों की मदद से धूपबत्ती बनाई जाती है. वहीं जब प्रोडक्ट ड्राई फॉर्म में तैयार हो जाता है तो परफ्यूम रूम में इनमें मनमोहक सुगंध भरी जाती है और ऑनलाइन माध्यम से ग्राहकों के घरों तक इन्हें पहुंचाया जाता है.

नदियों के प्रदूषण को कम करने की योजना
मंदिरों में भगवान को श्रद्धा भाव से अर्पित किए गए फूल और मालाओं को आमतौर पर नदी में डाल दिया जाता है. इससे एक ओर जहां नदियों का प्रदूषण बढ़ता है तो वहीं दूसरी ओर जलीय जीव-जंतुओं पर भी बुरा असर पड़ता है. इंजीनियर प्रतीक कुमार ने स्टार्टअप के जरिए मंदिर और घाटों किनारे फेंके जाने वाले फूलों को बटोरना शुरू किया. इन फूलों को प्रतीक कुमार अपने पनकी स्थित फैक्ट्री में रीसाइक्लिंग के जरिए भगवान की पूजा के दौरान इस्तेमाल की जाने वाली इको फ्रेंडली धूपबत्ती व अगरबत्ती बनाने में प्रयोग करने लगे.

गंगा नदी के घाट पर आया था आइडिया
फूलों से धूपबत्ती और अगरबत्ती बनाने के आइडिया के बारे में युवा उद्यमी प्रतीक कुमार बताते हैं कि 2017 में एक दोस्त से मुलाकात हुई. इस दौरान वे दोस्त के साथ गंगा घाट के किनारे बैठे हुए थे तो वहीं नदी में फेंके जा रहे फूलों को देखकर दोस्त ने इस पहल के बारे में जानकारी दी, जिसके बाद नदी से फूलों को निकालकर अगरबत्ती और धूपबत्ती बनाने के सफर की शुरुआत हुई .

विदेशों में भी है फूलों से बनी अगरबत्ती की मांग
सालाना 12 टन नदियों से फूल इकट्ठा करने के बाद फैक्ट्री में लाकर इसका इस्तेमाल धूपबत्ती बनाने में किया जाता है. एक प्रक्रिया के तहत फूलों को इको फ्रेंडली धूपबत्ती व अगरबत्ती बनाने में प्रयोग किया जाता है. वहीं इसे बिना किसी रिटेल काउंटर के ऑनलाइन माध्यम से ही ग्राहकों के घर तक पहुंचाया जाता है. इतना ही नहीं पूरे देश के साथ-साथ विदेशों में भी फूलों से बनने वाली धूपबत्ती की खासा मांग है.

इसे भी पढे़ं- कानपुर: दंपति की सरेआम पिटाई, तमाशबीन बनी रही पुलिस

कानपुर: जिले के युवा उद्यमी ने गंगा नदी का प्रदूषण कम करने के लिए एक नई पहल की शुरुआत की है. दरअसल, मंदिरों व घाटों पर पूजा के बाद निकलने वाले फूलों से ऑर्गेनिक धूपबत्ती और अगरबत्ती का निर्माण किया जा रहा है. इसके लिए युवा इंजीनियर प्रतीक कुमार ने अपने दोस्त अंकित अग्रवाल के साथ मिलकर एक स्टार्टअप की शुरुआत की है, जिसमें उनकी टीम द्वारा मंदिर व घाटों के किनारे फेंके जाने वाले फूलों को इकट्ठा किया जाता है, जिसके बाद इनकी रिसाइकलिंग की जाती है. वहीं भगवान की पूजा के दौरान प्रयोग में लाई जाने वाली इको फ्रेंडली धूपबत्ती व अगरबत्ती बनाने में इसका उपयोग किया जाता है.

स्पेशल रिपोर्ट.

कैसे तैयार होती है फ्रेंडली धूपबत्ती व अगरबत्ती ?
इसके लिए बकायदा सबसे पहले सभी फूलों और उनकी पत्तियों को अलग किया जाता है. इसके बाद उसका कंपाउंड बना कर हाथों से अगरबत्ती और मशीनों की मदद से धूपबत्ती बनाई जाती है. वहीं जब प्रोडक्ट ड्राई फॉर्म में तैयार हो जाता है तो परफ्यूम रूम में इनमें मनमोहक सुगंध भरी जाती है और ऑनलाइन माध्यम से ग्राहकों के घरों तक इन्हें पहुंचाया जाता है.

नदियों के प्रदूषण को कम करने की योजना
मंदिरों में भगवान को श्रद्धा भाव से अर्पित किए गए फूल और मालाओं को आमतौर पर नदी में डाल दिया जाता है. इससे एक ओर जहां नदियों का प्रदूषण बढ़ता है तो वहीं दूसरी ओर जलीय जीव-जंतुओं पर भी बुरा असर पड़ता है. इंजीनियर प्रतीक कुमार ने स्टार्टअप के जरिए मंदिर और घाटों किनारे फेंके जाने वाले फूलों को बटोरना शुरू किया. इन फूलों को प्रतीक कुमार अपने पनकी स्थित फैक्ट्री में रीसाइक्लिंग के जरिए भगवान की पूजा के दौरान इस्तेमाल की जाने वाली इको फ्रेंडली धूपबत्ती व अगरबत्ती बनाने में प्रयोग करने लगे.

गंगा नदी के घाट पर आया था आइडिया
फूलों से धूपबत्ती और अगरबत्ती बनाने के आइडिया के बारे में युवा उद्यमी प्रतीक कुमार बताते हैं कि 2017 में एक दोस्त से मुलाकात हुई. इस दौरान वे दोस्त के साथ गंगा घाट के किनारे बैठे हुए थे तो वहीं नदी में फेंके जा रहे फूलों को देखकर दोस्त ने इस पहल के बारे में जानकारी दी, जिसके बाद नदी से फूलों को निकालकर अगरबत्ती और धूपबत्ती बनाने के सफर की शुरुआत हुई .

विदेशों में भी है फूलों से बनी अगरबत्ती की मांग
सालाना 12 टन नदियों से फूल इकट्ठा करने के बाद फैक्ट्री में लाकर इसका इस्तेमाल धूपबत्ती बनाने में किया जाता है. एक प्रक्रिया के तहत फूलों को इको फ्रेंडली धूपबत्ती व अगरबत्ती बनाने में प्रयोग किया जाता है. वहीं इसे बिना किसी रिटेल काउंटर के ऑनलाइन माध्यम से ही ग्राहकों के घर तक पहुंचाया जाता है. इतना ही नहीं पूरे देश के साथ-साथ विदेशों में भी फूलों से बनने वाली धूपबत्ती की खासा मांग है.

इसे भी पढे़ं- कानपुर: दंपति की सरेआम पिटाई, तमाशबीन बनी रही पुलिस

Last Updated : Sep 24, 2020, 3:28 PM IST
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