फिरोजाबादः हिन्दू धर्म में धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, अगर पितृपक्ष में कोई अपने पूर्वजों का श्राद्ध करता है तो पितरों को मुक्ति मिलती है. पितृ प्रसन्न होकर अपने संतानों को आशीर्वाद देते हैं. लेकिन, फिरोजाबाद में ऐसी कई परिवार हैं, जिन्होंने अपने पुरखों की अर्थी को कंधा तो दिया. लेकिन, उनकी अस्थियों को गंगा में विसर्जित करना उचित नहीं समझा. हालत यह है कि फिरोजाबाद के स्वर्गाश्रम में 100 अस्थियों को विसर्जन का इंतजार है.
फिरोजाबाद में यमुना नदी के पास बने स्वर्गाश्रम के श्मशान घाट पर प्रतिदिन 15 से 20 शवों का दाह संस्कार होता है. लोग दाह संस्कार कर घर चले जाते हैं और अगले दिन राख ठंडी होने के बाद उनकी अस्थियों स्वर्गाश्रम समिति द्वारा बनवाए गए लॉकरनुमा भंडारगृह में रख जाते हैं. फिर एक निश्चित अवधि के बाद परिजन उन्हें ले जाकर गंगा या फिर किसी पवित्र नदी में विसर्जित कर देते है. कहा जाता है कि ऐसा करने से पूर्वजों को मोक्ष की प्राप्ति होती है.
इन सभी धार्मिक मान्यताओं के विपरित फिरोजाबाद की तस्वीर एकदम अलग है. यहां ऐसे लोगों की संख्या काफी है, जिन्होंने अपने पितरों या घर के अन्य सदस्यों का हिन्दू रीति रिवाज के साथ दाह संस्कार किया. लेकिन, भंडारगृह में रखे उनकी अस्थियों को पिछले दो-तीन सालों से लेने कोई नहीं आया. स्वर्गाश्रम समिति के सदस्य आलिंद अग्रवाल बताते हैं कि इन लोगों को कई बार फोन भी किए गए. बाबजूद इसके परिजनों को पूर्वजों की अस्थियों की सुधि नहीं आई. उन्होंने बताया कि स्वर्गाश्रम समिति खुद ही इनका विसर्जन कराएगी. साल 2016 में भी समिति ने विधि विधान और हिन्दू रीति के तहत ऐसी अस्थियों का विसर्जन कराया था.
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