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हाय रे मजबूरी! ये एथलीट पेट भरने और किट के लिए दूसरे के खेतों में कर रहे मजदूरी - खेल बचाओ एसोसिएशन

बरेली में प्रदेश स्तरीय प्रतियोगिताओं के एथलीट पैसों की कमी के कारण अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए खेतों में मजदूरी पर गेहूं काट रहे हैं.

खेतों में कर रहे मजदूरी
खेतों में कर रहे मजदूरीखेतों में कर रहे मजदूरी
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Published : Apr 28, 2022, 7:49 PM IST

Updated : Apr 28, 2022, 10:32 PM IST

बरेली: प्रदेश स्तरीय प्रतियोगिताओं में कई मेडल जीत चुके एथलीट आर्थिक तंगी की ऐसी मार झेल रहे हैं कि उन्हें अपनी डाइट और किट खरीदने के लिए खेतों में मजदूरी तक करनी पड़ रही है. घर की स्थिति खराब होने से पैसों की जरूरत को पूरा करने के लिए खेतों में मजदूरी पर गेहूं तक काटने को मजबूर हैं. अधिकतर खिलाड़ियों की आर्थिक स्थिति ठीक न होने से मां-बाप इनको सही डाइट और महंगे किट खरीद कर देने में असमर्थ है.

बरेली में डाइट और किट खरीदने के लिए मजदूर बने एथलीटस

शहर से लगभग 20 किलोमीटर दूर रिठौरा कस्बा है. यहां लगभग 24 एथलीट आम के बगीचे में प्रैक्टिस कर पसीना बहाते हैं. इनमें से अधिकतर खिलाड़ियों के पिता मजदूरी करते हैं. इसके चलते उनकी आर्थिक स्थिति खराब है. इन एथलीट के समूह में लड़के और लड़कियां दोनों हैं. खेतों में मजदूरी करने वाली एथलीट काजल चक्रवर्ती ने अभी कुछ दिन पहले ही एथलेटिक प्रतियोगिता लखनऊ में 5000 मीटर दौड़ में कांस्य पदक जीता था. वहीं, लखनऊ विश्वविद्यालय की क्रॉस एंटी प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक प्राप्त किया.

काजल चक्रवर्ती जिले से लेकर उत्तर प्रदेश लेवल तक की प्रतियोगिताओं में भाग लेकर दर्जनों मेडल जीत चुकीं हैं. उनके अंदर कुछ कर गुजरने का जुनून है. काजल के पिता मजदूर हैं. मजदूरी से इतना पैसा नहीं पैदा कर पाते कि बेटी और परिवार के अन्य सदस्यों की जरूरतों को पूरा कर सकें. इसलिए काजल ने अपने समूह के साथियों के साथ खेतों में मजदूरी करने का मन बनाया. पिछले दिनों गन्ने की बुवाई का काम किया और अभी हाल में मजदूरी पर गेहूं की कटाई की. इसके पैसों से अपने खाने का सामान खरीदा.

एथलेटिक समूह के कोच साहिबे आलम ने बताया कि उनके पास प्रैक्टिस करने वाले अधिकतर खिलाड़ी गरीब परिवार से आते हैं. खिलाड़ी के अच्छे प्रदर्शन के लिए सही डाइट और किट का होना जरूरी है. इन्हीं जरूरतों को पूरा करने के लिए खिलाड़ियों के समूह ने ठेके पर गेहूं काटकर मजदूरी की. साहिबे आलम ने बताया कि खेल एसोसिएशन खिलाड़ियों की किसी भी तरह की कोई मदद नहीं करती है. जब कोई खिलाड़ी ऊंचे स्तर की प्रतियोगिता में मेडल जीतकर आता है. तब उसको बस सम्मानित किया जाता है. उससे पहले सब कुछ खिलाड़ी को ही अपनी जेब से करना होता है. इन खिलाड़ियों के पास हौसला है, जज्बा है. पर आर्थिक स्थिति खराब है. इसके चलते इनको मजदूरी करने पर मजबूर होना पड़ा है. अगर इनका सहयोग किया जाए तो यह अच्छे एथलीट बनकर देश का नाम रोशन कर सकते हैं.

यह भी पढ़ें-बुंदेलखंड की इस बेटी ने खड़ा किया साक्षरता का 'साम्राज्य', मुश्किलों से लड़ यूं पाया मुकाम

वहीं, जितेंद्र यादव क्षेत्रीय क्रीड़ा अधिकारी बरेली ने बताया कि विभाग की तरफ से ऐसा कोई नियम नहीं है जिससे इनकी कोई मदद की जा सके. यह जनपद के होनहार खिलाड़ी हैं. स्वयंसेवी संस्थाएं आगे आकर इनकी मदद कर सकती हैं. जो लोग इनकी मदद कर सकें, उनको आगे आना चाहिए. उन्होंने कहा कि जो मेडलिस्ट आते हैं, उनको विभाग के नियमों के अनुसार सुविधाएं दी जातीं हैं.

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बरेली: प्रदेश स्तरीय प्रतियोगिताओं में कई मेडल जीत चुके एथलीट आर्थिक तंगी की ऐसी मार झेल रहे हैं कि उन्हें अपनी डाइट और किट खरीदने के लिए खेतों में मजदूरी तक करनी पड़ रही है. घर की स्थिति खराब होने से पैसों की जरूरत को पूरा करने के लिए खेतों में मजदूरी पर गेहूं तक काटने को मजबूर हैं. अधिकतर खिलाड़ियों की आर्थिक स्थिति ठीक न होने से मां-बाप इनको सही डाइट और महंगे किट खरीद कर देने में असमर्थ है.

बरेली में डाइट और किट खरीदने के लिए मजदूर बने एथलीटस

शहर से लगभग 20 किलोमीटर दूर रिठौरा कस्बा है. यहां लगभग 24 एथलीट आम के बगीचे में प्रैक्टिस कर पसीना बहाते हैं. इनमें से अधिकतर खिलाड़ियों के पिता मजदूरी करते हैं. इसके चलते उनकी आर्थिक स्थिति खराब है. इन एथलीट के समूह में लड़के और लड़कियां दोनों हैं. खेतों में मजदूरी करने वाली एथलीट काजल चक्रवर्ती ने अभी कुछ दिन पहले ही एथलेटिक प्रतियोगिता लखनऊ में 5000 मीटर दौड़ में कांस्य पदक जीता था. वहीं, लखनऊ विश्वविद्यालय की क्रॉस एंटी प्रतियोगिता में स्वर्ण पदक प्राप्त किया.

काजल चक्रवर्ती जिले से लेकर उत्तर प्रदेश लेवल तक की प्रतियोगिताओं में भाग लेकर दर्जनों मेडल जीत चुकीं हैं. उनके अंदर कुछ कर गुजरने का जुनून है. काजल के पिता मजदूर हैं. मजदूरी से इतना पैसा नहीं पैदा कर पाते कि बेटी और परिवार के अन्य सदस्यों की जरूरतों को पूरा कर सकें. इसलिए काजल ने अपने समूह के साथियों के साथ खेतों में मजदूरी करने का मन बनाया. पिछले दिनों गन्ने की बुवाई का काम किया और अभी हाल में मजदूरी पर गेहूं की कटाई की. इसके पैसों से अपने खाने का सामान खरीदा.

एथलेटिक समूह के कोच साहिबे आलम ने बताया कि उनके पास प्रैक्टिस करने वाले अधिकतर खिलाड़ी गरीब परिवार से आते हैं. खिलाड़ी के अच्छे प्रदर्शन के लिए सही डाइट और किट का होना जरूरी है. इन्हीं जरूरतों को पूरा करने के लिए खिलाड़ियों के समूह ने ठेके पर गेहूं काटकर मजदूरी की. साहिबे आलम ने बताया कि खेल एसोसिएशन खिलाड़ियों की किसी भी तरह की कोई मदद नहीं करती है. जब कोई खिलाड़ी ऊंचे स्तर की प्रतियोगिता में मेडल जीतकर आता है. तब उसको बस सम्मानित किया जाता है. उससे पहले सब कुछ खिलाड़ी को ही अपनी जेब से करना होता है. इन खिलाड़ियों के पास हौसला है, जज्बा है. पर आर्थिक स्थिति खराब है. इसके चलते इनको मजदूरी करने पर मजबूर होना पड़ा है. अगर इनका सहयोग किया जाए तो यह अच्छे एथलीट बनकर देश का नाम रोशन कर सकते हैं.

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वहीं, जितेंद्र यादव क्षेत्रीय क्रीड़ा अधिकारी बरेली ने बताया कि विभाग की तरफ से ऐसा कोई नियम नहीं है जिससे इनकी कोई मदद की जा सके. यह जनपद के होनहार खिलाड़ी हैं. स्वयंसेवी संस्थाएं आगे आकर इनकी मदद कर सकती हैं. जो लोग इनकी मदद कर सकें, उनको आगे आना चाहिए. उन्होंने कहा कि जो मेडलिस्ट आते हैं, उनको विभाग के नियमों के अनुसार सुविधाएं दी जातीं हैं.

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Last Updated : Apr 28, 2022, 10:32 PM IST
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