ETV Bharat / city

आरोपी को समन जारी करने के लिए आरोपों का निर्धारण जरूरी नहीं: इलाहाबाद हाईकोर्ट

सोमवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक आदेश में कहा कि आरोपी को समन जारी करने के लिए आरोपों की सत्यता का निर्धारण करना जरूरी नहीं है.

author img

By

Published : Mar 21, 2022, 10:30 PM IST

ईटीवी भारत
allahabad high court order

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि आरोपी को समन जारी करने के लिए आरोपों की सत्यता का निर्धारण करना जरूरी नहीं है. यह आदेश न्यायमूर्ति संजय कुमार सिंह ने मेरठ के पंकज त्यागी की मजिस्ट्रेट के समन आदेश के खिलाफ याचिका को खारिज करते हुए दिया. इस मामले में धारा 156 (3) सीआरपीसी के तहत पीड़ित ने सितंबर 2014 में न्यायिक मजिस्ट्रेट-तृतीय, मेरठ के समक्ष एक आवेदन दाखिल किया. उसमें आरोप लगाया गया कि 27 अगस्त 2014 को जब वह अपने कमरे में सो रही थी, तब आरोपी उसके कमरे में आया और उसके साथ जबरन दुष्कर्म करने का प्रयास किया. पीड़ित के चीखने-चिल्लाने पर उसकी मां जाग गई और आरोपी को पकड़ लिया.

पकड़े जाने पर आरोपी ने गाली-गलौच की और मां से मारपीट करके फरार हो गया. उसने धमकी दी थी कि यदि पीड़ित ने यौन संबंध नहीं बनाया, तो वो उस पर तेजाब फेंक देगा. न्यायिक मजिस्ट्रेट- तृतीय मेरठ ने थाना प्रभारी को एफआईआर दर्ज कर विवेचना करने का निर्देश दिया था. एफआईआर दर्ज कर ली गई और पुलिस की चार्जशीट पर सीजेएम मेरठ ने संज्ञान लिया और आरोपी को समन जारी किया. इसे चुनौती दी गई थी. कोर्ट ने कहा कि समन आदेश को रद्द करने की शक्ति का प्रयोग संयम से और सावधानी के साथ अपवाद स्वरूप किया जाना चाहिए. अदालत आरोपों की विश्वसनीयता या वास्तविकता के बारे में कोई जांच शुरू नहीं कर सकती है. यह विचारण के समय पेश सबूतों पर तय होगा.

ये भी पढ़ें- जेल में बंद बाहुबली अतीक अहमद की होली वाली तस्वीर हुई वायरल

कोर्ट ने कहा कि अपराध का संज्ञान लेना विशेष रूप से मजिस्ट्रेट के अधिकार क्षेत्र में आता है और इस स्तर पर, मजिस्ट्रेट को मामले के गुण-दोष में जाने की आवश्यकता नहीं है. अदालत ने कहा कि आरोपों की वास्तविकता या सत्यता का निर्धारण आरोपी को तलब करने के स्तर पर भी नहीं किया जा सकता है. आवेदक के खिलाफ प्रथम दृष्टया संज्ञेय अपराध बन रहा है.

ऐसी ही जरूरी और विश्वसनीय खबरों के लिए डाउनलोड करें ईटीवी भारत ऐप

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि आरोपी को समन जारी करने के लिए आरोपों की सत्यता का निर्धारण करना जरूरी नहीं है. यह आदेश न्यायमूर्ति संजय कुमार सिंह ने मेरठ के पंकज त्यागी की मजिस्ट्रेट के समन आदेश के खिलाफ याचिका को खारिज करते हुए दिया. इस मामले में धारा 156 (3) सीआरपीसी के तहत पीड़ित ने सितंबर 2014 में न्यायिक मजिस्ट्रेट-तृतीय, मेरठ के समक्ष एक आवेदन दाखिल किया. उसमें आरोप लगाया गया कि 27 अगस्त 2014 को जब वह अपने कमरे में सो रही थी, तब आरोपी उसके कमरे में आया और उसके साथ जबरन दुष्कर्म करने का प्रयास किया. पीड़ित के चीखने-चिल्लाने पर उसकी मां जाग गई और आरोपी को पकड़ लिया.

पकड़े जाने पर आरोपी ने गाली-गलौच की और मां से मारपीट करके फरार हो गया. उसने धमकी दी थी कि यदि पीड़ित ने यौन संबंध नहीं बनाया, तो वो उस पर तेजाब फेंक देगा. न्यायिक मजिस्ट्रेट- तृतीय मेरठ ने थाना प्रभारी को एफआईआर दर्ज कर विवेचना करने का निर्देश दिया था. एफआईआर दर्ज कर ली गई और पुलिस की चार्जशीट पर सीजेएम मेरठ ने संज्ञान लिया और आरोपी को समन जारी किया. इसे चुनौती दी गई थी. कोर्ट ने कहा कि समन आदेश को रद्द करने की शक्ति का प्रयोग संयम से और सावधानी के साथ अपवाद स्वरूप किया जाना चाहिए. अदालत आरोपों की विश्वसनीयता या वास्तविकता के बारे में कोई जांच शुरू नहीं कर सकती है. यह विचारण के समय पेश सबूतों पर तय होगा.

ये भी पढ़ें- जेल में बंद बाहुबली अतीक अहमद की होली वाली तस्वीर हुई वायरल

कोर्ट ने कहा कि अपराध का संज्ञान लेना विशेष रूप से मजिस्ट्रेट के अधिकार क्षेत्र में आता है और इस स्तर पर, मजिस्ट्रेट को मामले के गुण-दोष में जाने की आवश्यकता नहीं है. अदालत ने कहा कि आरोपों की वास्तविकता या सत्यता का निर्धारण आरोपी को तलब करने के स्तर पर भी नहीं किया जा सकता है. आवेदक के खिलाफ प्रथम दृष्टया संज्ञेय अपराध बन रहा है.

ऐसी ही जरूरी और विश्वसनीय खबरों के लिए डाउनलोड करें ईटीवी भारत ऐप

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.