प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि आपराधिक केस में जमानत देने का उद्देश्य दंडात्मक या प्रतिरोधात्मक नहीं है, बल्कि यह उद्देश्य है कि अभियुक्त केस के ट्रायल प्रक्रिया में हाजिर हो सके. कोर्ट ने कहा विधि सिद्धांत है कि जब तक कोई अपराध का दोषी करार नहीं होता, तब तक वह निर्दोष है.
कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के हवाले से कहा कि किसी को भी ट्रायल पूरा होने तक अनिश्चित काल तक जेल में नहीं रखा जा सकता. यह अनुच्छेद 21के वैयक्तिक स्वतंत्रता के अधिकार के खिलाफ है. यदि जमानत पर रिहा होने का हकदार है, तो तमाम अपराधों में लिप्तता के आधार पर जमानत देने से इंकार करना सही नहीं है.
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अल्प्राजोलम पाउडर की बरामदगी के आरोप में 19 दिसंबर, 2020 से जेल में बंद मुजफ्फरनगर के गौरव उर्फ गौरा को जमानत दे दी. यह आदेश न्यायमूर्ति कृष्ण पहल ने दिया. याची का कहना था कि 100 ग्राम अल्प्राजोलम तक व्यावसायिक अनुमति है. उसके पास से कोई बरामदगी नहीं की गई थी. उसके पिता ने पुलिस के खिलाफ शिकायत की थी. इस वजह से उसे फंसाया गया है. एनडीपीएस एक्ट की धारा-50 की प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया.
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कोर्ट ने SSP से याची के आपराधिक इतिहास और शिकायत पर रिपोर्ट मांगी थी. उन्होंने हलफनामा दाखिल कर बताया कि याची के खिलाफ 49 आपराधिक मामले दर्ज हैं. सभी खतौली थाने में ही दर्ज हैं. इसके जवाब में याची की तरफ से कहा गया कि 5 केस में वह बरी हो चुका है. कोर्ट ने सशर्त जमानत मंजूर कर ली. साथ ही कहा कि शर्त न मानने पर जमानत निरस्त करने की कार्रवाई की जा सकती है.
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