अलीगढ़: गोरखपुर में पुलिस कस्टडी में मनीष गुप्ता की मौत का मामला सरकार ने मांगे पूरी करके शांत कर दिया लेकिन अलीगढ़ में पुलिस कस्टडी में हुई श्यामू की हत्या की लड़ाई, उसका भाई रामू पिछले दस साल से लड़ रहा है. उसकी हिम्मत तोड़ने के लिए उस पर कई मुकदमे भी दर्ज कराये गये. पुलिस के बड़े अधिकारियों ने दबाव भी डाला, लेकिन रामू झुका नहीं. न्याय पाने के लिए उन्होंने अपने खेत बेच दिये. वो अब सुप्रीम कोर्ट में दोषियों को सजा दिलाने के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं.
एसओजी कस्टडी में श्यामू की मौत होने के बाद से न्याय पाने के लिए पिछले 10 साल से अदालत में लड़ाई लड़ रहे हैं. एसओजी टीम पर थाना क्वार्सी में हत्या का मुकदमा दर्ज हुआ. इतना ही नहीं मामले में रामू ने मुख्यमंत्री, गृहमंत्री, प्रधानमंत्री, हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस को भी पत्र लिखकर कार्रवाई की मांग की. आरोपियों को कोर्ट में हाजिर कराने के लिए एसएसपी, डीजीपी, सीबी सीआईडी के आदेश भी हुए लेकिन आरोपी लगातार बचते रहे.
रामू के अनुसार उसका भाई श्यामू किसी केस में वांछित नहीं था, न ही कोई गिरफ्तारी का वारंट था. श्यामू रुस्तमपुर में बहन के घर गया हुआ था. वहीं एसओजी टीम श्यामू को पकड़कर ताला नगरी पुलिस चौकी पर ले गयी और जमकर प्रताड़ित किया. इस मामले में एसओजी टीम प्रभारी आनंद प्रकाश, एसआई प्रमोद कुमार, कॉन्स्टेबल रामनाथ, अशोक, वीरेंद्र, दुर्विजय, संजय सिंह को निलंबित किया गया था और उनके खिलाफ एसएसपी पीयूष मोर्डिया ने हत्या का मुकदमा दर्ज कराया था. इतना ही नहीं श्यामू हत्याकांड मामले को भाजपा विधायक दलवीर सिंह, बसपा पार्टी के विपक्ष के नेता रहे स्वामी प्रसाद मौर्य ने विधानसभा में भी जोर-शोर से उठाया था.
रामू के मुताबिक उसका गांव के कुछ लोगों से जमीनी विवाद था और कोर्ट के फैसले के बाद विवाद खत्म भी हो गया था लेकिन पुलिस कुछ और ही चाहती थी. इस मामले में आरोपी पुलिसकर्मी कोर्ट में हाजिर नहीं हुए. 28 अगस्त 2018 को आरोपी पुलिसकर्मी हाईकोर्ट से गिरफ्तारी पर स्टे ले आए थे. हाईकोर्ट ने 13 सितंबर 2021 को स्टे को खारिज कर दिया था. इस दौरान श्यामू की हत्या के आरोपी छह पुलिसकर्मियों को प्रमोशन भी मिल गया.
अलीगढ़ में स्थानीय कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक अपनी पैरवी कराने के लिए रामू ने करीब 12 वकील कर रखे हैं. राज्य बनाम आनंद प्रकाश 2012 का केस देश के चर्चित केसों में शुमार है. इस मामले में चश्मदीद गवाह और मुख्य पैरोकार यानी मृतक का भाई रामू के जज्बे और हौसले को देखते हुए 2017 में बनारस में हुए मानवाधिकार आयोग के राष्ट्रीय सम्मेलन में रामू सिंह को पांच लाख रुपये और जनमित्र सम्मान दिया था. यह सम्मान पाने वाले रामू सिंह देश के दसवें और उत्तर प्रदेश के दूसरे व्यक्ति हैं.
श्यामू के हत्यारों को फांसी की सजा दिलाने की पैरवी कर रहे रामू को बंजारा हत्याकांड में फंसाने की भी कोशिश की गई. रामू के खिलाफ थाना जवां में संगीन धाराओं में मुकदमा दर्ज कर जेल में डाल दिया गया था. रामू ने जमानत पर जेल से बाहर आकर मुख्यमंत्री, प्रमुख सचिव गृह और डीजीपी से मिलकर अपना पक्ष रखा और एसआईटी, सीबीसीआईडी से मामले की जांच कराने की मांग की. रामू के प्रार्थना पत्र का संज्ञान लेकर प्रमुख सचिव गृह के आदेश पर अलीगढ़ में रहे पूर्व एसपी सिटी अभिषेक कुमार ने जांच की. इस मामले में जांच, अब क्राइम ब्रांच कर रही है. रामू कहा कहना है कि कलयुग में अधर्म हावी है लेकिन सत्य पराजित नहीं होता.