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आगरा में नार्थ इंडिया का सबसे बड़ा बेम्बू रिसर्च और स्टार्टअप सेंटर, जानें खासियत - आगरा समाचार हिंदी में

आगरा में दयालबाग डीम्ड यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के साथ छात्र नेचर फ्रेंडली स्टार्टअप की बारीकियां सीख रहे हैं. यूनीवर्सिटी के आर्किटेक्चर विभाग में बेम्बू और मिट्टी से निर्माण के गुर सिखाए जा रहे हैं.

नार्थ इंडिया का सबसे बड़ा बेम्बू रिसर्च और स्टार्टअप सेंटर
नार्थ इंडिया का सबसे बड़ा बेम्बू रिसर्च और स्टार्टअप सेंटर
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Published : Dec 4, 2021, 8:44 PM IST

आगरा: दयालबाग डीम्ड यूनिवर्सिटी (Dayalbagh Deemed University Agra) स्टूडेंट्स रिसर्च के साथ छात्र यहां की लैब में नए-नए नेचर फ्रेंडली स्टार्टअप भी शुरू कर सकते हैं. बेम्बू हाउस सस्ते ही नहीं टिकाऊ और मजबूत हैं. दयालबाग डीम्ड यूनिवर्सिटी आर्किटेक्चर विभाग के छात्र-छात्रों ने बेम्बू (बांस), मिट्टी और लकड़ी से कॉन्फ्रेंस हॉल बनाया है. इसमें सीमेंट, ईंट और कंक्रीट का उपयोग नहीं किया है. इसलिए इस कॉन्फ्रेंस हॉल में पढ़ाई करने वाले स्टूडेंट्स को गर्मी में ठंडक और सर्दी में गर्माहट महसूस होती है.

नार्थ इंडिया का सबसे बड़ा बेम्बू रिसर्च और स्टार्टअप सेंटर की खासियत बताती छात्राएं

पांच साल पहले आगरा दयालबाग एजुकेशनल इंस्टीट्यूट (Agra Dayalbagh Educational Institute) में आर्किटेक्चर विभाग की शुरुआत हुई. आर्किटेक्चर डिपार्टमेंट में बेम्बू (बांस) कंस्ट्रक्शन का प्रोजेक्ट शुरू किया गया. प्रोजेक्ट के तहत बेम्बू और मड (मिट्टी) का उपयोग करके कॉन्फ्रेंस हॉल (Bambu Conference Hall in Agra) बनाया गया.

अब बेम्बू और मड का उपयोग करके अत्याधुनिक ने बनाई जा रही है. नॉर्थ इंडिया का सबसे बड़ा बेम्बू कंस्ट्रक्शन प्रोजेक्ट आर्किटेक्चर डिपार्टमेंट के असिस्टेंट प्रो. प्रशांत का कहना है कि, हमारा आगरा बेम्बू कंस्ट्रक्शन प्रोजेक्ट नॉर्थ इंडिया का सबसे बड़ा प्रोजेक्ट है. हम इसमें ट्रीटेड बेम्बू उपयोग किए हैं. यह नॉर्थ इंडिया पहला ट्रीटेड बेम्बू प्रोजेक्ट है. हमने कंस्ट्रक्शन में ट्रीटेड बेम्बू का उपयोग किया है. इसलिए यह कंस्ट्रक्शन 40 साल से ज्यादा समय तक मजबूती से खड़ा रहेगा.

वैसे ग्रामीण क्षेत्रों में बेम्बू कंस्ट्रक्शन हो रहे हैं. लेकिन, उनमें सिंपल बेम्बू का ही उपयोग किया जाता है. पहले तकनीक सीखी, फिर बनाया बेम्बू कॉन्फ्रेंस हॉल आर्किटेक्चर डिपार्टमेंट की स्टूडेंट मधु शर्मा ने बताया कि, हमने बेम्बू कंस्ट्रक्शन की तकनीक सीखी. फिर कॉन्फ्रेंस हॉल को बनाया. और अब जब उसमें पढ़ाई करते हैं. तो बहुत अच्छा लगता है. ऐसा लगता है कि, हमने कुछ अपने आप किया है. इस कंस्ट्रक्शन को देखकर ऐसा लगता है कि, हम नेचर से जुड़े हैं. इसे हम बायोफिलिक कांसेप्ट में ले सकते हैं. क्योंकि इसमें हम नेचर से कनेक्ट होते हैं. स्टूडेंट का कहना है कि आज कल पोलूशन और ग्लोबल वार्मिंग की वजह से सस्टेनेबल आर्किटेक्चर की बहुत जरूरत है.

बेम्बू का कंस्ट्रक्शन में उपयोग हो रहा है. इसलिए हमने बेम्बू कंस्ट्रक्शन की तकनीक सीखी. फिर कंस्ट्रक्शन किया और अब उसमें बैठकर पढ़ते हैं. तो हमें बहुत प्राउड फील होता है. स्टूडेंट आयुशी जैन ने बताया कि जब हम ईंट, सीमेंट और कंक्रीट से बने हॉल में पढ़ाई करते हैं. तो उस समय बिजली की बहुत जरूरत होती हैं. लेकिन बेम्बू से बनाए गए हॉल में पढ़ाई करते समय में हमें गर्मी महसूस नहीं होती है और ना ही बिजली की जरूरत पड़ती है.

आर्किटेक्चर डिपार्टमेंट के असिस्टेंट प्रो. राजेश कुमार ने बताया कि कॉन्फ्रेंस हॉल बनाने में हमने बेम्बू, मड (मिट्टी) और वुड का उपयोग किया है. जो नेचुरल मटेरियल हैं. नेचुरल मटेरियल से बने घर में बाहर की अपेक्षा तापमान में तीन से चार डिग्री सेंटीग्रेड का डिफरेंस रहता है. गर्मी में यह ठंडे रहते हैं और सर्दी में गर्माहट देते हैं. क्योंकि इसमें जो मटेरियल उपयोग किया गया है. वो मदर नेचर से कनेक्शन है. इसमें हमने क्लाईमेटली इसमें नॉर्थ लाइट की व्यवस्था की है.

इसके साथ ही बड़ी-बड़ी खिड़कियां बनाई है. जहां से लाइटिंग की अच्छी व्यवस्था है और वेंटिलेशन भी बेहतर है. इसमें उपयोग किए गए मटेरियल को हम रीग्रो भी कर सकते हैं. अगर हम निर्माण में आने वाले खर्चे की बात करें तो ईंट, कंक्रीट और सीमेंट से बनने वाले मकान में खर्चा प्रति वर्ग फुट 2000 रुपए से 2400 रुपए आता है. लेकिन इसमें खर्चा 800 रुपए से 1200 रुपए के बीच में ही आया है.

ये भी पढ़ें- कंगना रनौत ने बांके बिहारी का किया दर्शन, बोलीं-राष्ट्रवादी विचारधारा के लिए करूंगी प्रचार

आर्किटेक्चर डिपार्टमेंट की कोऑर्डिनेटर मौली कैपरिहान ने बताया कि हमारी सस्टेनेबिलिटी लैब यूनिवर्सिटी वाइड लैब है. इसमें किसी भी डिपार्टमेंट के स्टूडेंट आकर सभी तरह के स्ट्रक्चर और विशेष तौर पर मटेरियल पर रिसर्च कर सकते हैं. डिजाइन कर सकते हैं. स्टूडेंट्स लैब की प्रोसेसिंग मशीन का उपयोग करके प्रोडक्ट भी बना सकते हैं.

वेस्ट प्लास्टिक का कैसे उपयोग कर सकते हैं. यह भी समझ सकते हैं और इस पर काम कर सकते हैं. मिट्टी का कैसे उपयोग कर सकते हैं. नेचुरल मटेरियल कैसे इस्तेमाल कर सकते हैं. इस लैब में आकर स्टूडेंट जहां रिसर्च कर सकते हैं. वहीं ये लोग अपने नए स्टार्टअप पर काम भी कर सकते हैं.

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आगरा: दयालबाग डीम्ड यूनिवर्सिटी (Dayalbagh Deemed University Agra) स्टूडेंट्स रिसर्च के साथ छात्र यहां की लैब में नए-नए नेचर फ्रेंडली स्टार्टअप भी शुरू कर सकते हैं. बेम्बू हाउस सस्ते ही नहीं टिकाऊ और मजबूत हैं. दयालबाग डीम्ड यूनिवर्सिटी आर्किटेक्चर विभाग के छात्र-छात्रों ने बेम्बू (बांस), मिट्टी और लकड़ी से कॉन्फ्रेंस हॉल बनाया है. इसमें सीमेंट, ईंट और कंक्रीट का उपयोग नहीं किया है. इसलिए इस कॉन्फ्रेंस हॉल में पढ़ाई करने वाले स्टूडेंट्स को गर्मी में ठंडक और सर्दी में गर्माहट महसूस होती है.

नार्थ इंडिया का सबसे बड़ा बेम्बू रिसर्च और स्टार्टअप सेंटर की खासियत बताती छात्राएं

पांच साल पहले आगरा दयालबाग एजुकेशनल इंस्टीट्यूट (Agra Dayalbagh Educational Institute) में आर्किटेक्चर विभाग की शुरुआत हुई. आर्किटेक्चर डिपार्टमेंट में बेम्बू (बांस) कंस्ट्रक्शन का प्रोजेक्ट शुरू किया गया. प्रोजेक्ट के तहत बेम्बू और मड (मिट्टी) का उपयोग करके कॉन्फ्रेंस हॉल (Bambu Conference Hall in Agra) बनाया गया.

अब बेम्बू और मड का उपयोग करके अत्याधुनिक ने बनाई जा रही है. नॉर्थ इंडिया का सबसे बड़ा बेम्बू कंस्ट्रक्शन प्रोजेक्ट आर्किटेक्चर डिपार्टमेंट के असिस्टेंट प्रो. प्रशांत का कहना है कि, हमारा आगरा बेम्बू कंस्ट्रक्शन प्रोजेक्ट नॉर्थ इंडिया का सबसे बड़ा प्रोजेक्ट है. हम इसमें ट्रीटेड बेम्बू उपयोग किए हैं. यह नॉर्थ इंडिया पहला ट्रीटेड बेम्बू प्रोजेक्ट है. हमने कंस्ट्रक्शन में ट्रीटेड बेम्बू का उपयोग किया है. इसलिए यह कंस्ट्रक्शन 40 साल से ज्यादा समय तक मजबूती से खड़ा रहेगा.

वैसे ग्रामीण क्षेत्रों में बेम्बू कंस्ट्रक्शन हो रहे हैं. लेकिन, उनमें सिंपल बेम्बू का ही उपयोग किया जाता है. पहले तकनीक सीखी, फिर बनाया बेम्बू कॉन्फ्रेंस हॉल आर्किटेक्चर डिपार्टमेंट की स्टूडेंट मधु शर्मा ने बताया कि, हमने बेम्बू कंस्ट्रक्शन की तकनीक सीखी. फिर कॉन्फ्रेंस हॉल को बनाया. और अब जब उसमें पढ़ाई करते हैं. तो बहुत अच्छा लगता है. ऐसा लगता है कि, हमने कुछ अपने आप किया है. इस कंस्ट्रक्शन को देखकर ऐसा लगता है कि, हम नेचर से जुड़े हैं. इसे हम बायोफिलिक कांसेप्ट में ले सकते हैं. क्योंकि इसमें हम नेचर से कनेक्ट होते हैं. स्टूडेंट का कहना है कि आज कल पोलूशन और ग्लोबल वार्मिंग की वजह से सस्टेनेबल आर्किटेक्चर की बहुत जरूरत है.

बेम्बू का कंस्ट्रक्शन में उपयोग हो रहा है. इसलिए हमने बेम्बू कंस्ट्रक्शन की तकनीक सीखी. फिर कंस्ट्रक्शन किया और अब उसमें बैठकर पढ़ते हैं. तो हमें बहुत प्राउड फील होता है. स्टूडेंट आयुशी जैन ने बताया कि जब हम ईंट, सीमेंट और कंक्रीट से बने हॉल में पढ़ाई करते हैं. तो उस समय बिजली की बहुत जरूरत होती हैं. लेकिन बेम्बू से बनाए गए हॉल में पढ़ाई करते समय में हमें गर्मी महसूस नहीं होती है और ना ही बिजली की जरूरत पड़ती है.

आर्किटेक्चर डिपार्टमेंट के असिस्टेंट प्रो. राजेश कुमार ने बताया कि कॉन्फ्रेंस हॉल बनाने में हमने बेम्बू, मड (मिट्टी) और वुड का उपयोग किया है. जो नेचुरल मटेरियल हैं. नेचुरल मटेरियल से बने घर में बाहर की अपेक्षा तापमान में तीन से चार डिग्री सेंटीग्रेड का डिफरेंस रहता है. गर्मी में यह ठंडे रहते हैं और सर्दी में गर्माहट देते हैं. क्योंकि इसमें जो मटेरियल उपयोग किया गया है. वो मदर नेचर से कनेक्शन है. इसमें हमने क्लाईमेटली इसमें नॉर्थ लाइट की व्यवस्था की है.

इसके साथ ही बड़ी-बड़ी खिड़कियां बनाई है. जहां से लाइटिंग की अच्छी व्यवस्था है और वेंटिलेशन भी बेहतर है. इसमें उपयोग किए गए मटेरियल को हम रीग्रो भी कर सकते हैं. अगर हम निर्माण में आने वाले खर्चे की बात करें तो ईंट, कंक्रीट और सीमेंट से बनने वाले मकान में खर्चा प्रति वर्ग फुट 2000 रुपए से 2400 रुपए आता है. लेकिन इसमें खर्चा 800 रुपए से 1200 रुपए के बीच में ही आया है.

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आर्किटेक्चर डिपार्टमेंट की कोऑर्डिनेटर मौली कैपरिहान ने बताया कि हमारी सस्टेनेबिलिटी लैब यूनिवर्सिटी वाइड लैब है. इसमें किसी भी डिपार्टमेंट के स्टूडेंट आकर सभी तरह के स्ट्रक्चर और विशेष तौर पर मटेरियल पर रिसर्च कर सकते हैं. डिजाइन कर सकते हैं. स्टूडेंट्स लैब की प्रोसेसिंग मशीन का उपयोग करके प्रोडक्ट भी बना सकते हैं.

वेस्ट प्लास्टिक का कैसे उपयोग कर सकते हैं. यह भी समझ सकते हैं और इस पर काम कर सकते हैं. मिट्टी का कैसे उपयोग कर सकते हैं. नेचुरल मटेरियल कैसे इस्तेमाल कर सकते हैं. इस लैब में आकर स्टूडेंट जहां रिसर्च कर सकते हैं. वहीं ये लोग अपने नए स्टार्टअप पर काम भी कर सकते हैं.

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