आगरा: चमक और धमक के लिए मशहूर ताजनगरी का बूट अब गुम होता जा रहा है. सेना, एयरपोर्स, अर्द्धसैनिक बलों के जवानों के पैरों की शान रहा बूट अब शर्त के फेर में फंस गया है. रक्षा मंत्रालय और सैन्य बलों की बूट खरीद में मशीनरी और टर्न ओवर का मानक लगने से अब आगरा के बूट कारोबारी टेंडर प्रक्रिया में शाामिल नहीं हो पा रहे हैं. इस वजह से बूट का कारोबार सिमटता जा रहा है.
ऑर्डर नहीं मिलने और टेंडर में शामिल नहीं होने से आगरा की 35 बूट फैक्टरियां बंद हो चुकी हैं. जिससे पांच हजार से ज्यादा कारीगर बेरोजगार हो चुके हैं. कानपुर में 22 में से 18 फैक्टरियां बंद हो चुकी हैं और कोलकाता की फैक्टरियां भी इसी दुर्दशा से जूझ रही हैं. इसको लेकर आगरा के बूट कारोबारियों ने रक्षा और एमएसएमई मंत्री से मानकों को एमएसएमई इकाईयों के हिसाब से बनाने की गुहार लगाई है. जिससे बूट कारोबार को संजीवनी मिल सके.
कभी देश का 80 फीसदी बूट आगरा से बनता था. मगर, अब हालात उलट हो गए हैं. आगरा में बूट बनाने की 45 में से 35 इकाइयों पर ताले लटक गए हैं. बूट कारीगर अजीत कुमार ने बताया कि, अब काम ही नहीं मिल रहा है. पहले एक सप्ताह में पांच से छह हजार रुपए का काम कर लेता था. अब 500 रुपए का काम हो पाता है. गुजारा करना मुश्किल हो रहा है. बूट कारोबारियों का कहना है कि, रक्षा विभागों के मानकों में बदलाव से बड़ी और बिचौलिया कंपनियां फायदा उठा रही हैं. इस वजह से आगरा में 2017 तक जिन कंपनियों का टर्नओवर 18 से 20 करोड़ तक था, वह अब 2 करोड़ भी नहीं कर पा रहीं है.
बूट कारोबारी भारती धनवानी का कहना है कि सरकार ने शर्त लगा दी है. इससे हम लोग टेंडर में भाग नहीं ले पा रहे हैं. बडे लोगों को टेंडर दिए जाते हैं. जबकि वे खुद मैन्यूफैक्चर्स नहीं हैं. वे बूट छोटे कारीगरों से तैयार कराते हैं. 200 रुपए का बूट 600 रुपए में बेच रहे हैं. बड़े घोटाले हो रहे हैं. यहां छोटे स्केल की फैक्ट्री बंद हो रही हैं. आगरा में 95 प्रतिशत बूट फैक्ट्री बंद हो चुकी हैं. कानपुर में भी ऐसा ही हाल है. बूट कारोबारी भुखमरी की कगार पर है. ऐसे में समझिए कि 2016-17 में मेरी कारखाने का 15 करोड़ रुपए टर्न ओवर था. 2017-18 में तीन करोड़ रुपए हो गया. आज एक करोड़ रुपए ही टर्न ओवर रह गया है.
बूट मैन्युफैक्चरिंग एसोसिएशन के सचिव अनिल महाजन ने बताया कि सरकारी विभागों ने खरीद की शर्तों में बदलाव करके बड़ी कंपनियों को फायदा पहुंचाया है. आगरा से बूट बीएसएफ, सीआरपीएफ, आईटीबीपी, सीआईएसएफ, सेना, नेवी और एयरफोर्स में जाता है. मगर, अब सरकारी खरीद शर्तें बदलने से कंपनियां डबल और ट्रिपल रेट पर आर्डर ले रही हैं. छोटे कारीगरों से माल बनवाती हैं. जिनका खराब क्वालिटी होती है. मगर भ्रष्ट अधिकारी पैसे के बलबूते पर ऐसा कर रहे हैं. हाल में यूपी में 550 करोड़ रुपए का बच्चों के जूतों का घोटाला हुआ. जिसमें हाई कोर्ट ने संज्ञान लिया. अब वो फाइल दबा दी गयी है. इसलिए अब यूपी सरकार अब बच्चों के माता-पिता के बैंक खाते में जूते का रुपए भेज रही है.
बूट मैन्युफैक्चरिंग एसोसिएशन के अध्यक्ष सुनील गुप्ता ने बताया कि आगरा में बूट कारोबार करीब 400 करोड़ रुपए का था. जो आज आठ या नौ करोड़ रुपए का ही रह गया है. इसकी वजह सरकार की गलत नीतियां हैं. चार साल पहले तक डायरेक्टर जनरल सप्लाइज एंड डिस्पोजल से टेंडर निकलते थे. अब सरकार ने टेंडर में शामिल होने के लिए टर्न ओवर क्राइटेरिया, मशीनरी क्राइटेरिया लगा दिए हैं. इससे ताजनगरी की बूट इकाइयां टेंडर से बाहर होने लगी हैं. जबकि, एफडीडीआई ने उन मानकों से क्वालिटी में कोई अंतर नहीं बताया.
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बूट मैन्युफैक्चरिंग एसोसिएशन के अध्यक्ष सुनील गुप्ता ने बताया कि डायरेक्टर जनरल सप्लाइज एंड डिस्पोजल टेंडर निकालती थी. इसमें जो फर्म सस्ता कोटेशन देती थी. उसको बूट का आर्डर दिया जाता था. इससे सभी को काम मिलता था. अब एनसीसी के जूते जेम पोर्टल पर अब एल वन, एल टू और एल थ्री पर विचार करते हैं. बाकी के सब टेंडर प्रक्रिया से बाहर हो जाते हैं. हम कम रेट पर अच्छा उत्पाद दे सकते हैं क्योंकि आगरा में बूट 550-600 रुपए में बन रहा है. मगर, सरकार इसके बाद भी 650 रुपए में बूट खरीद रही है.