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आजमगढ़ : मौत के साये में रात बिताने को मजबूर पुलिसकर्मी - आजमगढ़

प्रदेश सरकार पुलिसकर्मियों को बेहतर सुविधाएं देने का दावा करती हो, लेकिन इसकी जमीनी हकीकत कुछ और ही है. प्रदेश के कईं शहरों में पुलिसकर्मियों के रहने के बैरक खस्ताहाल स्थिति में पहुंच चुके हैं और कभी भी कोई बड़ी घटना पुलिसकर्मियों के साथ घट सकती है.

मौत के साये में रात बिताने को मजबूर पुलिसकर्मी
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Published : Feb 27, 2019, 5:18 PM IST

आजमगढ़: प्रदेश सरकार पुलिसकर्मियों को भले ही बेहतर सुविधाएं देने का दावा करती हो, लेकिन इसकी जमीनी हकीकत कुछ और ही है. प्रदेश के कईं शहरों में पुलिसकर्मियों के रहने के बैरक खस्ताहाल स्थिति में पहुंच चुके हैं और कभी भी कोई बड़ी घटना घट सकती है. आजमगढ़ जिले के पुलिसकर्मियों के रहने के बैरक बाहर से देखने में तो सही दिखते हैं, लेकिन अंदर से बैरक की स्थिति बेहद ही खस्ता है. पुलिसकर्मियों से जब ईटीवी संवाददाता ने इस मामले पर बात की तो उनका कहना था कि दीवार में दबकर मरने से तो अच्छा है कि बॉर्डर पर मर कर शदीह हो जाएं.

मौत के साये में रात बिताने को मजबूर पुलिसकर्मी

ईटीवी संवाददाता ने पुलिसकर्मियों के बैरक की सच्चाई जानने की कोशिश की तो पता चला कि वास्तव में बैरकों की हालत बेहद की खस्ता है. बैरकों की दीवार जगह-जगह से टूटने के साथ ही गिरने की हालत में पहुंच चुकी है. वहीं छतों का प्लास्टर गिर रहा है. इससे पुलिसकर्मी दहशत में रहने को मजबूर हैं. शौचालय भी बुरी हालत में हैं. यहां गंदगी और खस्ताहाली साफ देखने को मिलती है. वहीं इतना सब होने के बाद भी अधिकारियों को इन पुलिसकर्मियों की कोई परवाह नहीं है.

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आजमगढ़: प्रदेश सरकार पुलिसकर्मियों को भले ही बेहतर सुविधाएं देने का दावा करती हो, लेकिन इसकी जमीनी हकीकत कुछ और ही है. प्रदेश के कईं शहरों में पुलिसकर्मियों के रहने के बैरक खस्ताहाल स्थिति में पहुंच चुके हैं और कभी भी कोई बड़ी घटना घट सकती है. आजमगढ़ जिले के पुलिसकर्मियों के रहने के बैरक बाहर से देखने में तो सही दिखते हैं, लेकिन अंदर से बैरक की स्थिति बेहद ही खस्ता है. पुलिसकर्मियों से जब ईटीवी संवाददाता ने इस मामले पर बात की तो उनका कहना था कि दीवार में दबकर मरने से तो अच्छा है कि बॉर्डर पर मर कर शदीह हो जाएं.

मौत के साये में रात बिताने को मजबूर पुलिसकर्मी

ईटीवी संवाददाता ने पुलिसकर्मियों के बैरक की सच्चाई जानने की कोशिश की तो पता चला कि वास्तव में बैरकों की हालत बेहद की खस्ता है. बैरकों की दीवार जगह-जगह से टूटने के साथ ही गिरने की हालत में पहुंच चुकी है. वहीं छतों का प्लास्टर गिर रहा है. इससे पुलिसकर्मी दहशत में रहने को मजबूर हैं. शौचालय भी बुरी हालत में हैं. यहां गंदगी और खस्ताहाली साफ देखने को मिलती है. वहीं इतना सब होने के बाद भी अधिकारियों को इन पुलिसकर्मियों की कोई परवाह नहीं है.

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Intro:एंकर- पुलिसकर्मियों को लेकर सरकार तमाम दावे करती है लेकिन उसके दावे कागज़ों तक ही सीमित रह जाते है जब कि हकीकत कुछ और ही है पुलिसकर्मियों के रहने के लिए बने बैरक खस्ताहाल हो चुके है यहां किसी भी बड़ी घटना से इंकार नही किया जा सकता है।वही यहा मौजूद पुलिसकर्मियों ने कहा कि यहा दीवाल में दब कर मरने से अच्छा है कि बॉर्डर पर शहीद हो जाये।


Body:वीवो 1- यह आज़मगढ़ के पुलिस लाइन में पुलिसकर्मियों के रहने का बैरक है यह बाहर से देखने मे तो सही हाल में दिखता है वही बैरक के अंदर जाने पर इसकी हकीकत का पता चलता है अंदर से यह पुलिस आवास खस्ताहाल हालत में पहुच चुका है यहां की दीवार जगह-जगह से टूटने के साथ ही गिरने की हालत में पहुच चुकी है । वही दिवालो की छतों पर लगे प्लास्टर गिर रहे है जिससे पुलिस कर्मी दहशत में रहने को मजबूर है वही इनके लिए बने शौचालय भी बुरी हाल में है यहां गंदगी और खस्ताहाली साफ देखने को मिलती है। वही इतना सब होने के बाद भी अधिकारियों को इन पुलिस कर्मियों की कोई परवाह नही है।

वीवो 2- यह मौजूद कुछ पुलिस कर्मियों से जब ईटीवी भारत ने बात करनी चाही तो उन्होंने कैमरे के सामने कोई बयान देने से इनकार कर दिया वही जब बिना कैमरे की बात की गई तो उन लोगो ने कहा कि यहाँ रात में सोने में भी डर लगता है कब कौन सा ईटा कहा से गिर जाए कुछ नही कहा जा सकता है वही प्लास्टर गिरने की वजह से उन्हें दिक्कत का सामना करना पड़ता है । पुलिसकर्मियों ने कहा कि यह का शौचालय भी साफ नही रहता है।


Conclusion:प्रत्युष सिंह
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