एटा : केंद्र सरकार ने 2025 तक भारत को टीबी मुक्त करने की योजना बनाई है. इसके लिए कई स्तर पर काम हो रहा है. डॉट्स सेंटर से टीबी के मरीजों को मिलने वाली दवाएं अब डिब्बे में पैक कर दी जाएंगी. इसके पीछे सरकार की मंशा है कि टीबी का संक्रमण झेल रहे मरीजों को दवा खाने और रखने में कोई असुविधा न हो. साथ ही दवाओं की गुणवत्ता लंबे समय तक बरकरार रहे.
सरकार ने की नई व्यवस्था
- इसी साल मार्च महीने के बाद से टीबी के मरीजों के लिए नई व्यवस्था लागू की गई है.
- विशेषकर एमडीआर के मरीजों के लिए यह व्यवस्था है.
- इस व्यवस्था के तहत दो प्रकार के डिब्बों में दवाएं पैक कर मरीजों को दी जाएंगी.
- इन डिब्बों पर मरीजों के नाम के साथ ही दवाओं के नाम भी लिखे रहेंगे.
- मरीज को दवा खाने के दौरान किसी प्रकार की समस्या न हो, साथ ही वह दवाओं को खाना न भूले.
- एमडीआर को मल्टी ड्रग रेजिस्टेंस-टीबी कहा जाता है. यह ट्यूबरक्लोसिस के इलाज में लापरवाही के कारण होता है.
- जब सामान्य टीबी में काम आने वाली दवाएं रोगी पर बेअसर हो जाती हैं, यानी टीबी के कीटाणु इन दवाओं के लिए रेजिस्टेंट हो जाते हैं, तो रोगी एमडीआर टीबी से ग्रसित हो जाता है.
कुछ दिन पहले तक एमडीआर के मरीज का अलीगढ़ नोडल सेंटर से कार्ड बंद कर आता था. उन पर दवा के नाम लिखे होते थे और हमारे पास खुली मात्रा में काफी दवाएं होती थी. इसमें से 7 से 8 तरीके की खुली दवा मरीजों को दी जाती थी. दवा खुली होने के चलते मरीजों को खाने में समस्या आती थी और इन दवाओं का रखरखाव भी काफी कठिन होता था. मरीज दवा खाना अक्सर भूल जाते थे. इससे उनकी डोज गड़बड़ा जाती थी. साथ ही इसमें कुछ ऐसी दवाएं भी होती थी, जो सीलन से खराब हो जाया करती थी. डिब्बे में पैक करने से यह दवाएं सीलन से खराब नहीं होतीं, जिससे इनकी गुणवत्ता बरकरार रहती है.
-डॉ सीएल यादव, जिला क्षय रोग अधिकारी