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एटा : अब टीबी के मरीजों को बंद डिब्बे में दी जाएंगी दवाएं, जानिए क्यों

केंद्र सरकार ने 2025 तक भारत को टीबी मुक्त करने की योजना बनाई है, जिससे समय रहते देश से टीबी नाम की बीमारी का खात्मा हो सके. वहीं इसी साल मार्च महीने के बाद से टीबी के मरीजों के लिए सरकार ने नई व्यवस्था लागू की है. विशेषकर एमडीआर के मरीजों के लिए यह व्यवस्था है. अब टीबी के मरीजों को दो डिब्बों में दवा बंद करके दी जाएगी.

टीबी के मरीजों को डिब्बे में पैक कर दी जा रही दवा
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Published : May 15, 2019, 4:40 PM IST

एटा : केंद्र सरकार ने 2025 तक भारत को टीबी मुक्त करने की योजना बनाई है. इसके लिए कई स्तर पर काम हो रहा है. डॉट्स सेंटर से टीबी के मरीजों को मिलने वाली दवाएं अब डिब्बे में पैक कर दी जाएंगी. इसके पीछे सरकार की मंशा है कि टीबी का संक्रमण झेल रहे मरीजों को दवा खाने और रखने में कोई असुविधा न हो. साथ ही दवाओं की गुणवत्ता लंबे समय तक बरकरार रहे.

जिला क्षय रोग अधिकारी ने मीडिया से की बातचीत.

सरकार ने की नई व्यवस्था

  • इसी साल मार्च महीने के बाद से टीबी के मरीजों के लिए नई व्यवस्था लागू की गई है.
  • विशेषकर एमडीआर के मरीजों के लिए यह व्यवस्था है.
  • इस व्यवस्था के तहत दो प्रकार के डिब्बों में दवाएं पैक कर मरीजों को दी जाएंगी.
  • इन डिब्बों पर मरीजों के नाम के साथ ही दवाओं के नाम भी लिखे रहेंगे.
  • मरीज को दवा खाने के दौरान किसी प्रकार की समस्या न हो, साथ ही वह दवाओं को खाना न भूले.
  • एमडीआर को मल्टी ड्रग रेजिस्टेंस-टीबी कहा जाता है. यह ट्यूबरक्लोसिस के इलाज में लापरवाही के कारण होता है.
  • जब सामान्य टीबी में काम आने वाली दवाएं रोगी पर बेअसर हो जाती हैं, यानी टीबी के कीटाणु इन दवाओं के लिए रेजिस्टेंट हो जाते हैं, तो रोगी एमडीआर टीबी से ग्रसित हो जाता है.

कुछ दिन पहले तक एमडीआर के मरीज का अलीगढ़ नोडल सेंटर से कार्ड बंद कर आता था. उन पर दवा के नाम लिखे होते थे और हमारे पास खुली मात्रा में काफी दवाएं होती थी. इसमें से 7 से 8 तरीके की खुली दवा मरीजों को दी जाती थी. दवा खुली होने के चलते मरीजों को खाने में समस्या आती थी और इन दवाओं का रखरखाव भी काफी कठिन होता था. मरीज दवा खाना अक्सर भूल जाते थे. इससे उनकी डोज गड़बड़ा जाती थी. साथ ही इसमें कुछ ऐसी दवाएं भी होती थी, जो सीलन से खराब हो जाया करती थी. डिब्बे में पैक करने से यह दवाएं सीलन से खराब नहीं होतीं, जिससे इनकी गुणवत्ता बरकरार रहती है.

-डॉ सीएल यादव, जिला क्षय रोग अधिकारी

एटा : केंद्र सरकार ने 2025 तक भारत को टीबी मुक्त करने की योजना बनाई है. इसके लिए कई स्तर पर काम हो रहा है. डॉट्स सेंटर से टीबी के मरीजों को मिलने वाली दवाएं अब डिब्बे में पैक कर दी जाएंगी. इसके पीछे सरकार की मंशा है कि टीबी का संक्रमण झेल रहे मरीजों को दवा खाने और रखने में कोई असुविधा न हो. साथ ही दवाओं की गुणवत्ता लंबे समय तक बरकरार रहे.

जिला क्षय रोग अधिकारी ने मीडिया से की बातचीत.

सरकार ने की नई व्यवस्था

  • इसी साल मार्च महीने के बाद से टीबी के मरीजों के लिए नई व्यवस्था लागू की गई है.
  • विशेषकर एमडीआर के मरीजों के लिए यह व्यवस्था है.
  • इस व्यवस्था के तहत दो प्रकार के डिब्बों में दवाएं पैक कर मरीजों को दी जाएंगी.
  • इन डिब्बों पर मरीजों के नाम के साथ ही दवाओं के नाम भी लिखे रहेंगे.
  • मरीज को दवा खाने के दौरान किसी प्रकार की समस्या न हो, साथ ही वह दवाओं को खाना न भूले.
  • एमडीआर को मल्टी ड्रग रेजिस्टेंस-टीबी कहा जाता है. यह ट्यूबरक्लोसिस के इलाज में लापरवाही के कारण होता है.
  • जब सामान्य टीबी में काम आने वाली दवाएं रोगी पर बेअसर हो जाती हैं, यानी टीबी के कीटाणु इन दवाओं के लिए रेजिस्टेंट हो जाते हैं, तो रोगी एमडीआर टीबी से ग्रसित हो जाता है.

कुछ दिन पहले तक एमडीआर के मरीज का अलीगढ़ नोडल सेंटर से कार्ड बंद कर आता था. उन पर दवा के नाम लिखे होते थे और हमारे पास खुली मात्रा में काफी दवाएं होती थी. इसमें से 7 से 8 तरीके की खुली दवा मरीजों को दी जाती थी. दवा खुली होने के चलते मरीजों को खाने में समस्या आती थी और इन दवाओं का रखरखाव भी काफी कठिन होता था. मरीज दवा खाना अक्सर भूल जाते थे. इससे उनकी डोज गड़बड़ा जाती थी. साथ ही इसमें कुछ ऐसी दवाएं भी होती थी, जो सीलन से खराब हो जाया करती थी. डिब्बे में पैक करने से यह दवाएं सीलन से खराब नहीं होतीं, जिससे इनकी गुणवत्ता बरकरार रहती है.

-डॉ सीएल यादव, जिला क्षय रोग अधिकारी

Intro:एंकर

केंद्र सरकार ने 2025 तक भारत को टीबी मुक्त करने की योजना बनाई है। समय रहते भारत देश से टीबी नाम की बीमारी का खात्मा हो सके । इसके लिए कई स्तर पर काम हो रहा है। डॉट्स सेंटर से टीबी के मरीजों को मिलने वाली दवा अब डिब्बे में पैक कर दी जा रही है । इसके पीछे सरकार की मंशा है की टीबी का संक्रमण झेल रहे मरीजों को दवा खाने व रखने में कोई असुविधा ना हो। साथ ही दवाओं की गुणवत्ता लंबे समय तक बरकरार रहे।


Body:वीओ-इसी साल मार्च महीने के बाद से टीबी के मरीजों के लिए नई व्यवस्था लागू की गई है। विशेषकर एमडीआर के मरीजों के लिए यह व्यवस्था है। इस व्यवस्था के तहत दो प्रकार के डिब्बों में दवाएं पैक कर मरीजों को दी जाएंगी। इन डिब्बों पर मरीजों के नाम के साथ ही दवाओं के नाम भी लिखे रहेंगे। जिससे मरीज को दवा खाने के दौरान किसी प्रकार की समस्या न हो । साथ ही वह दवाओं को खाना न भूले। एमडीआर को मल्टी ड्रग रेजिस्टेंस-टीबी कहा जाता है। यह ट्यूबरक्लोसिस के इलाज में लापरवाही के कारण होता है। बताया जाता है कि जब सामान्य टीबी में काम आने वाली दवाएं रोगी पर बेअसर हो जाती हैं। यानी टीबी के कीटाणु इन दवाओं के लिए रेजिस्टेंट हो जाते हैं। तो रोगी एमडीआर टीबी से ग्रसित हो जाता है। जिला क्षय रोग अधिकारी डॉ सीएल यादव के मुताबिक कुछ दिन पहले तक एमडीआर के मरीज का अलीसगढ़ नोडल सेंटर से कार्ड बंद कर आता था। उन पर दवाके नाम लिखे होते थे और हमारे पास खुली मात्रा में काफी दवाएं होती थी। जिसमें से 7 से 8 तरीके की खुली दवा मरीजों को दी जाती थी। दवा खुली होने के चलते मरीजों को खाने में समस्या आती थी तथा इन दवाओं का रखरखाव भी काफी कठिन होता था। दवा खाने में मरीज अक्सर भूल कर दिया करते थे। जिससे उनका डोज गड़बड़ा जाता था। साथ ही इसमें कुछ ऐसी दवाएं भी होती थी। जो सीलन से ख़राब हो जाया करती थी। लेकिन डिब्बे में पैक करने से यह दवाएं सीलन से ख़राब नहीं होती। जिससे इनकी गुणवत्ता बरकरार रहती है।
बाइट: डॉ सी एल यादव (जिला क्षय रोग अधिकारी,एटा)


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