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सुहागिन स्त्रियों के लिए खास है, इस बार का वट सावित्री व्रत

इस बार वट सावित्री व्रत, सोमवती अमावस्या और शनि जयंती एक साथ पड़ रही है. ज्योतिष के जानकार इसे एक शुभ मान रहे हैं.

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Published : Jun 1, 2019, 1:41 PM IST

सुहागिन स्त्रियों के लिए खास है, इस बार का वट सावित्री व्रत.

लखीमपुर : वट सावित्री व्रत सुहागिन स्त्रियों के लिए खास माना जाता है. इस बार इस व्रत के दिन ही सोमवती अमावस्या और शनि जयंती एक साथ पड़ रही है. ज्योतिष के जानकार इसे एक शुभ मान रहे हैं. ज्येष्ठ मास की अमावस्या को मनाया जाने वाला वट सावित्री व्रत उत्तर भारत की स्त्रियों में खासकर प्रचलित है. इस बार अमावस को पड़ने वाले वट सावित्री व्रत को खास माना जा रहा है.

सुहागिन स्त्रियों के लिए खास है, इस बार का वट सावित्री व्रत.

इस बार खास है वट सावित्री व्रत
ज्योतिष के जानकार बताते हैं कि इस बार का वट सावित्री व्रत सुहागिन स्त्रियों के लिए कुछ खास है. खास इसलिए है कि इस तिथि को एक साथ तीन-तीन शुभ संयोग बन रहे हैं. पहला वट सावित्री व्रत जो अखण्ड सुहाग के लिए स्त्रियां रखती हैं, वहीं दूसरा सोमवती अमावस का पर्व इसको भी सुहागिन स्त्रियां अपने अक्षय सौभाग्य के लिए रखती हैं और अपने पति और परिवार के लिए मंगलकामनाएं करतीं हैं. लखीमपुर खीरी में स्थित चन्द्रभाल मन्दिर के पंडित करुणा शंकर शुक्ल कहते हैं कि शनि जयंती भी इसी दिन पड़ रही है. ज्येष्ठ मास की अमावस को भगवान शनि का जन्मदिन मनाया जाता है. इस बार यह अद्भुत संयोग बन रहा है, जो कि काफी शुभ है.

सोमवती अमावस्या पर ये मन्त्र है कल्याणकारी
ज्येष्ठ मास की अमावस को मनाया जाने वाला पर्व सोमवती अमावस्या इस बार वट सावित्री के साथ ही पड़ रहा है. सोमवती अमावस्या पर सुहागिन स्त्रियां पीपल के वृक्ष की जड़ में भगवान विष्णु को प्रतिष्ठित मानते हुए 'अश्वस्थ मूले' मंत्र का जप करते हुए 108 बार पीपल वृक्ष की परिक्रमा करती हैं. सुहागिन स्त्रियां इस व्रत के माध्यम से पति की दीर्घायु और अच्छे सौभाग्य की मंगलकामनाएं करती हैं.

11 चने और वटवृक्ष की कली को निकलने का है प्रावधान
वट सावित्री का व्रत काफी कठिन होता है. इस व्रत को पूरा करने के लिए सुहागिन स्त्रियों को एक कठिन परीक्षा भी देनी होती है. सुहागिन स्त्रियों को 11 खड़े भीगे चने और वटवृक्ष की लाल रंग की कली को पानी के साथ निगलना होता है. स्त्रियों को निर्जला रहना पड़ता है. महिलाएं भोर में उठकर स्नान कर नए वस्त्र धारण करती हैं. अपने पति की दीर्घायु के लिए सोलह सिंगार करती हैं. स्त्रियां पूरे विधि विधान से वट वृक्ष की पूजा करतीं हैं.

कुंवारी कन्याओं और विधवाओं के लिए नहीं है यह व्रत
इस व्रत को रखने के लिए कुंवारी कन्याओं और विधवाओं के लिए मनाही है. हालांकि आधुनिक काल में अब कुंवारी कन्याएं भी व्रत रख लेती हैं. ज्योतिष के जानकार बताते हैं कि वट सावित्री पूजन क्योंकि सुहाग की रक्षा के लिए मनाया जाता है इसलिए कुंवारी और विधवा स्त्रियों के लिए इस व्रत को रखने की मनाही है.

यमराज से सावित्री ने बचाये थे सत्यवान के प्राण
वट सावित्री व्रत दरअसल सुहागिन महिलाएं इसलिए रखती हैं क्योंकि इसी दिन सावित्री ने अपने पति सत्यवान के प्राण यमराज से बचा लिए थे. कहा जाता है कि सत्यवान राजपाट छिनने के बाद अपनी पतिव्रता पत्नी सावित्री के साथ साधारण जीवन यापन कर रहे थे. एक दिन जंगल में लकड़ी काटते समय यमराज आए और सत्यवान के प्राण हर लिए और अपने साथ लेकर जाने लगे. इस पर सावित्री भी यमराज के पीछे पीछे चल दी. सावित्री का अपने अक्षय और अखण्ड सुहाग के लिए यह तप देखकर यमराज प्रसन्न हो गए.

उन्होंने कहा तुम क्या मांगना चाहती हो तो सावित्री पहले अपने अंधे माता-पिता के नेत्र ठीक करने का वरदान मांगा. इसके बाद अपना खोया हुआ राजपाट मांगा और फिर पुत्रवती होने का वरदान मांगा. यमराज ने सावित्री को यह वरदान तथास्तु कह कर दे दिये. थोड़ी दूर आगे चलने के बाद यमराज ने जब फिर पीछे मुड़कर देखा तो सावित्री अभी भी पीछे चली आ रही थीं इस पर यमराज ने पूछा कि अब क्या बात है, तो सावित्री बोलीं कि आप मेरे पति के प्राण तो हर कर ले जा रहे हैं अब मैं पुत्रवती कैसे होउंगी. इस पर यमराज असमंजस में पड़ गए. हारकर यमराज को सत्यवान के प्राण छोड़ने पड़े. जिस जगह ये वाकया हुआ वहां वट वृक्ष था, तभी से वट सावित्री पूजन अक्षय सुहाग के लिए किया जाने लगा.

लखीमपुर : वट सावित्री व्रत सुहागिन स्त्रियों के लिए खास माना जाता है. इस बार इस व्रत के दिन ही सोमवती अमावस्या और शनि जयंती एक साथ पड़ रही है. ज्योतिष के जानकार इसे एक शुभ मान रहे हैं. ज्येष्ठ मास की अमावस्या को मनाया जाने वाला वट सावित्री व्रत उत्तर भारत की स्त्रियों में खासकर प्रचलित है. इस बार अमावस को पड़ने वाले वट सावित्री व्रत को खास माना जा रहा है.

सुहागिन स्त्रियों के लिए खास है, इस बार का वट सावित्री व्रत.

इस बार खास है वट सावित्री व्रत
ज्योतिष के जानकार बताते हैं कि इस बार का वट सावित्री व्रत सुहागिन स्त्रियों के लिए कुछ खास है. खास इसलिए है कि इस तिथि को एक साथ तीन-तीन शुभ संयोग बन रहे हैं. पहला वट सावित्री व्रत जो अखण्ड सुहाग के लिए स्त्रियां रखती हैं, वहीं दूसरा सोमवती अमावस का पर्व इसको भी सुहागिन स्त्रियां अपने अक्षय सौभाग्य के लिए रखती हैं और अपने पति और परिवार के लिए मंगलकामनाएं करतीं हैं. लखीमपुर खीरी में स्थित चन्द्रभाल मन्दिर के पंडित करुणा शंकर शुक्ल कहते हैं कि शनि जयंती भी इसी दिन पड़ रही है. ज्येष्ठ मास की अमावस को भगवान शनि का जन्मदिन मनाया जाता है. इस बार यह अद्भुत संयोग बन रहा है, जो कि काफी शुभ है.

सोमवती अमावस्या पर ये मन्त्र है कल्याणकारी
ज्येष्ठ मास की अमावस को मनाया जाने वाला पर्व सोमवती अमावस्या इस बार वट सावित्री के साथ ही पड़ रहा है. सोमवती अमावस्या पर सुहागिन स्त्रियां पीपल के वृक्ष की जड़ में भगवान विष्णु को प्रतिष्ठित मानते हुए 'अश्वस्थ मूले' मंत्र का जप करते हुए 108 बार पीपल वृक्ष की परिक्रमा करती हैं. सुहागिन स्त्रियां इस व्रत के माध्यम से पति की दीर्घायु और अच्छे सौभाग्य की मंगलकामनाएं करती हैं.

11 चने और वटवृक्ष की कली को निकलने का है प्रावधान
वट सावित्री का व्रत काफी कठिन होता है. इस व्रत को पूरा करने के लिए सुहागिन स्त्रियों को एक कठिन परीक्षा भी देनी होती है. सुहागिन स्त्रियों को 11 खड़े भीगे चने और वटवृक्ष की लाल रंग की कली को पानी के साथ निगलना होता है. स्त्रियों को निर्जला रहना पड़ता है. महिलाएं भोर में उठकर स्नान कर नए वस्त्र धारण करती हैं. अपने पति की दीर्घायु के लिए सोलह सिंगार करती हैं. स्त्रियां पूरे विधि विधान से वट वृक्ष की पूजा करतीं हैं.

कुंवारी कन्याओं और विधवाओं के लिए नहीं है यह व्रत
इस व्रत को रखने के लिए कुंवारी कन्याओं और विधवाओं के लिए मनाही है. हालांकि आधुनिक काल में अब कुंवारी कन्याएं भी व्रत रख लेती हैं. ज्योतिष के जानकार बताते हैं कि वट सावित्री पूजन क्योंकि सुहाग की रक्षा के लिए मनाया जाता है इसलिए कुंवारी और विधवा स्त्रियों के लिए इस व्रत को रखने की मनाही है.

यमराज से सावित्री ने बचाये थे सत्यवान के प्राण
वट सावित्री व्रत दरअसल सुहागिन महिलाएं इसलिए रखती हैं क्योंकि इसी दिन सावित्री ने अपने पति सत्यवान के प्राण यमराज से बचा लिए थे. कहा जाता है कि सत्यवान राजपाट छिनने के बाद अपनी पतिव्रता पत्नी सावित्री के साथ साधारण जीवन यापन कर रहे थे. एक दिन जंगल में लकड़ी काटते समय यमराज आए और सत्यवान के प्राण हर लिए और अपने साथ लेकर जाने लगे. इस पर सावित्री भी यमराज के पीछे पीछे चल दी. सावित्री का अपने अक्षय और अखण्ड सुहाग के लिए यह तप देखकर यमराज प्रसन्न हो गए.

उन्होंने कहा तुम क्या मांगना चाहती हो तो सावित्री पहले अपने अंधे माता-पिता के नेत्र ठीक करने का वरदान मांगा. इसके बाद अपना खोया हुआ राजपाट मांगा और फिर पुत्रवती होने का वरदान मांगा. यमराज ने सावित्री को यह वरदान तथास्तु कह कर दे दिये. थोड़ी दूर आगे चलने के बाद यमराज ने जब फिर पीछे मुड़कर देखा तो सावित्री अभी भी पीछे चली आ रही थीं इस पर यमराज ने पूछा कि अब क्या बात है, तो सावित्री बोलीं कि आप मेरे पति के प्राण तो हर कर ले जा रहे हैं अब मैं पुत्रवती कैसे होउंगी. इस पर यमराज असमंजस में पड़ गए. हारकर यमराज को सत्यवान के प्राण छोड़ने पड़े. जिस जगह ये वाकया हुआ वहां वट वृक्ष था, तभी से वट सावित्री पूजन अक्षय सुहाग के लिए किया जाने लगा.

Intro:लखीमपुर- वट सावित्री व्रत एक बार सौभाग्यशाली स्त्रियों के लिए कुछ खास है। इस बार इस व्रत के दिन ही सोमवती अमावस्या शनि जयंती एक साथ पढ़ रही हैं ज्योतिष के जानकार इसे अच्छे सुहाग के लिए एक शुभ संकेत मान रहे हैं।
जेष्ठ मास की अमावस्या को मनाया जाने वाला वट सावित्री व्रत उत्तर भारत की स्त्रियों में खासकर के प्रचलित है। पर इस बार अमावस को पढ़ने वाले वट सावित्री व्रत को खास माना जा रहा है। ज्योतिष के जानकार और लखीम यूपी के लखीमपुर खीरी जिले के चंद्रभाल पंडित के मंदिर के पंडित शुक्ला बताते हैं कि इस बार का वट सावित्री व्रत सौभाग्यशाली स्त्रियों के लिए कुछ खास है। खास इसलिए है कि इस तिथि को एक साथ तीन-तीन शुभ संयोग बन रहे हैं। पहला वट सावित्री व्रत पर्व। जो अखण्ड सुहाग के लिए स्त्रियाँ रखती हैं। दूसरा सोमवती अमावस का पर्व। इसको भी सौभाग्यशाली स्त्रियाँ अपने अक्षय सौभाग्य के लिए रखती हैं और अपने अपने पति और परिवार के लिए मंगलकामनाएं रखती हैं। लखीमपुर खीरी में स्थित चन्द्रभाल मन्दिर के पण्डित करुणा शंकर शुक्ल कहते हैं शनि जयंती भी इसी दिन पड़ रही है ज्येष्ठ मास की अमावस को भगवान शनि का जन्मदिन मनाया जाता है। और इसी लैस बार ये अक्षय सुहाग और सौभाग्यशाली स्त्रियों के लिए ये अदभुद संयोग बन रहा है।


Body:यमराज से सावित्री ने बचाये थे सत्यवान के प्राण
वट सावित्री व्रत दरअसल अच्छे सौभाग्य के लिए सौभाग्य शाली सुहागिन महिलाएं इसलिए रखती हैं किसी दिन सावित्री ने अपने पति सत्यवान के प्राण यमराज से बचा लिए थे। कहा जाता है कि सत्यवान राजपाट छिनने के बाद साधारण जीवन अपनी पतिव्रता पत्नी सावित्री के साथ जी रहे थे। एक दिन जब जंगल में लकड़ी काटने जा रहे थे पता चला था कि यह उनका उनकी जिंदगी का अंतिम दिन है। इसको लेकर सावित्री भी सत्यवान के साथ जंगल चल दी। क्योंकि सत्यवान का यह आखिरी दिन था तो अचानक यमराज आ गये और सत्यवान के प्राण हर लिए। पर सावित्री हार मानने वाली नहीं थी। वह भी यमराज के पीछे पीछे चल दी। सावित्री का अपने अक्षय और अखण्ड सुहाग के लिए यह सब तप देखकर यमराज प्रसन्न हो गए। उन्होंने कहा तुम क्या मांगना चाहती हो। तो सावित्री पहले अपने अंधे माता पिता के नेत्र ठीक करने का वरदान मांगा। यमराज ने तथास्तु कर दिया। इसके बाद सावित्री ने अपना खोया हुआ राजपाट मांगा। इस पर भी यमराज ने तथास्तु कर दिया। पर सावित्री तब भी यमराज का पीछा छोड़ने को राजी नहीं थी अपने पति के प्राण हर कर ले जा रहे हैं यमराज के पीछे पीछे चलती रही। यमराज सावित्री के हठ को देखकर एक बार फिर पूँछा कि अब क्या चाहिए। तो सावित्री ने अपने को पुत्रवती करने का वरदान माँगा। यमराज ने सावित्री को यह वरदान की तथास्तु कह कर दे दिया। पर थोड़ी देर आगे चलने के बाद यमराज ने जब फिर पीछे मुड़कर देखा तो सावित्री अभी भी पीछे चली आ रही थी यमराज ने पूछा कि अब क्या बात है तो मैं सारे वरदान दे दिए तो बोली कि आप मेरे पति के प्राण तो हर कर ले जा रहे हैं अब मैं पुत्रवती होउंगी कैसे? इस पर यमराज असमंजस में पड़ गए। हारकर यमराज को आखिर सत्यवान के प्राण छोड़ने पड़े। जिस जगह ये वाकया हुआ। वो वट वृक्ष के नीचे हुआ। तभी से वट सावित्री पूजन अक्षय सुहाग के लिए होने लगा।


Conclusion:*कुँवारी कन्याओं और विधवाओं के लिए नहीं है व्रत
वट सावित्री का व्रत क्यों की सौभाग्यशाली सुहागिन स्त्रियों के लिए है। इसलिए इस व्रत को करने के लिए कुंवारी कन्याओं और विधवाओं के लिए मनादी है। हालाँकि आधुनिक काल मे अब कुँवारी कन्याएं भी व्रत रख लेती हैं। पर पण्डित शुक्ल बताते हैं। कि वट सावित्री पूजन क्योंकि सुहाग की रक्षा के लिए मनाया जाता है इसलिए कुँवारी व विधवा स्त्रियों के लिए इस व्रत को रखने को निषेधित किया गया है।
*सोमवती अमावस्या पर ये मन्त्र है कल्याणकारी
जेष्ठ मास की अमावस को मनाया जाने वाला पर्व सोमवती अमावस्या इस बार वट सावित्री के साथ ही पड़ रहा है। सोमवती अमावस्या पर सुहागिन स्त्रियां पीपल के वृक्ष की जड़ में भगवान विष्णु को प्रतिष्ठित मानते हुए 'अश्वस्थ मूले' मंत्र का जप करते हुए 108 बार पीपल वृक्ष की परिक्रमा करती हैं। सुहागिन स्त्रियां इस व्रत के माध्यम से भी पति की दीर्घायु और अच्छे सौभाग्य की मंगलकामनाएं करती है।
* 11 चने और वटवृक्ष की कली को निकलने का है प्रावधान
वट सावित्री का व्रत काफी कठिन होता है। इस व्रत को पूरा करने के लिए सुहागिन स्त्रियों को एक कठिन परीक्षा भी देनी होती है। और यह कठिन परीक्षा सुहागिन स्त्रियों को पास करने के लिए 11 खड़े भीगे चने और वटवृक्ष की लाल रंग की कली को पानी के साथ निगलना होता है। महिलाएं भोर में उठकर स्नान कर नए वस्त्र धारण करती हैं अपने पति की दीर्घायु के लिए सोलह सिंगार करती हैं। वट सावित्री व्रत के लिए सुबह से ना पानी पीती हैं यानी कि महिलाओं को निर्जला रहना पड़ता है और पड़ोस या मंदिर पर स्थित वट वृक्ष की पूजा करनी पड़ती है। महिलाओं को 24 बरगद के फल और 24 पूर्णिया अपने आंचल में रखकर वृक्ष वृक्ष की पूजा करनी होती है। इसमें से 12 पुड़िया और 12 बरगद के फल वटवृक्ष पर चढ़ा दिया जाते हैं। महिलाएं पूड़ी और बरगद फल चढ़ाने के बाद वटवृक्ष पर एक लोटा जल चढ़ाते हैं फिर वटवृक्ष को हल्दी रोली और अक्षत लगाकर उसकी विधिवत पूजा करती हैं। इसके बाद दीपक और धूप बत्ती जलाकर फल और मिठाइयों का वटवृक्ष को अर्पण करती हैं। वट सावित्री व्रत पर कच्चे धागे का अपना ही महत्व है। कच्चे धागे को लेकर महिलाएं वट वृक्ष को लपेटे हुए 12 बार परिक्रमा कर अपने अक्षय सुहाग की मनौती मांगती हैं। अरे परिक्रमा पर महिलाओं को एक भीगा हुआ चना चढ़ाते हुए चलना होता है परिक्रमा पूरी होने के बाद सत्यवान और सावित्री की कथा सुहागिन स्त्रियां सुनती हैं। इसके बाद 12 कच्चे धागे वाली एक माला वटवृक्ष पर चढ़ आती हैं और दूसरी खुद पहन लेती हैं। कहा जाता है कि सुहागिन स्त्रियाँ इस व्रत पर पूजन के बाद अपने पति पर पंखा झल कर पति को पानी पिलाती है। इसके बाद 11 चने और वट वृक्ष की लाल कली को पानी से निगलकर व्रत तोड़ती हैं और खुद भी फलाहार करती हैं।
पंडित श्री करुणा शंकर शुक्ल कहते हैं कि 11 भीगे खड़े चले और बरगद की कली को निकलने के प्रावधान इसीलिए रखा गया है कि यह परीक्षा होती है और माना जाता है कि सुहाग के लिए जो तप व्रत आपने किया उस परीक्षा में आप सफल रहीं।
बाइट-जानकारी देते पण्डित करुणाशंकर शुक्ल(ज्योतिष और पांडित्य के ज्ञाता)
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प्रशान्त पाण्डेय
9984152598

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