लखीमपुर : वट सावित्री व्रत सुहागिन स्त्रियों के लिए खास माना जाता है. इस बार इस व्रत के दिन ही सोमवती अमावस्या और शनि जयंती एक साथ पड़ रही है. ज्योतिष के जानकार इसे एक शुभ मान रहे हैं. ज्येष्ठ मास की अमावस्या को मनाया जाने वाला वट सावित्री व्रत उत्तर भारत की स्त्रियों में खासकर प्रचलित है. इस बार अमावस को पड़ने वाले वट सावित्री व्रत को खास माना जा रहा है.
इस बार खास है वट सावित्री व्रत
ज्योतिष के जानकार बताते हैं कि इस बार का वट सावित्री व्रत सुहागिन स्त्रियों के लिए कुछ खास है. खास इसलिए है कि इस तिथि को एक साथ तीन-तीन शुभ संयोग बन रहे हैं. पहला वट सावित्री व्रत जो अखण्ड सुहाग के लिए स्त्रियां रखती हैं, वहीं दूसरा सोमवती अमावस का पर्व इसको भी सुहागिन स्त्रियां अपने अक्षय सौभाग्य के लिए रखती हैं और अपने पति और परिवार के लिए मंगलकामनाएं करतीं हैं. लखीमपुर खीरी में स्थित चन्द्रभाल मन्दिर के पंडित करुणा शंकर शुक्ल कहते हैं कि शनि जयंती भी इसी दिन पड़ रही है. ज्येष्ठ मास की अमावस को भगवान शनि का जन्मदिन मनाया जाता है. इस बार यह अद्भुत संयोग बन रहा है, जो कि काफी शुभ है.
सोमवती अमावस्या पर ये मन्त्र है कल्याणकारी
ज्येष्ठ मास की अमावस को मनाया जाने वाला पर्व सोमवती अमावस्या इस बार वट सावित्री के साथ ही पड़ रहा है. सोमवती अमावस्या पर सुहागिन स्त्रियां पीपल के वृक्ष की जड़ में भगवान विष्णु को प्रतिष्ठित मानते हुए 'अश्वस्थ मूले' मंत्र का जप करते हुए 108 बार पीपल वृक्ष की परिक्रमा करती हैं. सुहागिन स्त्रियां इस व्रत के माध्यम से पति की दीर्घायु और अच्छे सौभाग्य की मंगलकामनाएं करती हैं.
11 चने और वटवृक्ष की कली को निकलने का है प्रावधान
वट सावित्री का व्रत काफी कठिन होता है. इस व्रत को पूरा करने के लिए सुहागिन स्त्रियों को एक कठिन परीक्षा भी देनी होती है. सुहागिन स्त्रियों को 11 खड़े भीगे चने और वटवृक्ष की लाल रंग की कली को पानी के साथ निगलना होता है. स्त्रियों को निर्जला रहना पड़ता है. महिलाएं भोर में उठकर स्नान कर नए वस्त्र धारण करती हैं. अपने पति की दीर्घायु के लिए सोलह सिंगार करती हैं. स्त्रियां पूरे विधि विधान से वट वृक्ष की पूजा करतीं हैं.
कुंवारी कन्याओं और विधवाओं के लिए नहीं है यह व्रत
इस व्रत को रखने के लिए कुंवारी कन्याओं और विधवाओं के लिए मनाही है. हालांकि आधुनिक काल में अब कुंवारी कन्याएं भी व्रत रख लेती हैं. ज्योतिष के जानकार बताते हैं कि वट सावित्री पूजन क्योंकि सुहाग की रक्षा के लिए मनाया जाता है इसलिए कुंवारी और विधवा स्त्रियों के लिए इस व्रत को रखने की मनाही है.
यमराज से सावित्री ने बचाये थे सत्यवान के प्राण
वट सावित्री व्रत दरअसल सुहागिन महिलाएं इसलिए रखती हैं क्योंकि इसी दिन सावित्री ने अपने पति सत्यवान के प्राण यमराज से बचा लिए थे. कहा जाता है कि सत्यवान राजपाट छिनने के बाद अपनी पतिव्रता पत्नी सावित्री के साथ साधारण जीवन यापन कर रहे थे. एक दिन जंगल में लकड़ी काटते समय यमराज आए और सत्यवान के प्राण हर लिए और अपने साथ लेकर जाने लगे. इस पर सावित्री भी यमराज के पीछे पीछे चल दी. सावित्री का अपने अक्षय और अखण्ड सुहाग के लिए यह तप देखकर यमराज प्रसन्न हो गए.
उन्होंने कहा तुम क्या मांगना चाहती हो तो सावित्री पहले अपने अंधे माता-पिता के नेत्र ठीक करने का वरदान मांगा. इसके बाद अपना खोया हुआ राजपाट मांगा और फिर पुत्रवती होने का वरदान मांगा. यमराज ने सावित्री को यह वरदान तथास्तु कह कर दे दिये. थोड़ी दूर आगे चलने के बाद यमराज ने जब फिर पीछे मुड़कर देखा तो सावित्री अभी भी पीछे चली आ रही थीं इस पर यमराज ने पूछा कि अब क्या बात है, तो सावित्री बोलीं कि आप मेरे पति के प्राण तो हर कर ले जा रहे हैं अब मैं पुत्रवती कैसे होउंगी. इस पर यमराज असमंजस में पड़ गए. हारकर यमराज को सत्यवान के प्राण छोड़ने पड़े. जिस जगह ये वाकया हुआ वहां वट वृक्ष था, तभी से वट सावित्री पूजन अक्षय सुहाग के लिए किया जाने लगा.