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समझौते को नहीं राजी शिवपाल, सपा को मजबूत करेंगे अखिलेश!

लोकसभा चुनाव में मिली करारी शिकस्त के तुरंत बाद जिस तरह से मायावती ने अखिलेश यादव पर वोट ट्रांसफर न कराने की बात कही है, इससे अखिलेश यादव की राजनीतिक समझदारी पर सवालिया निशान खड़े कर दिए. वहीं राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि सपा की हार का कारण शिवपाल सिंह यादव हैं.

समझौते को नहीं राजी शिवपाल, सपा को मजबूत करेंगे अखिलेश
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Published : Jun 7, 2019, 8:12 AM IST

लखनऊ: समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव समेत तमाम सपाइयों की ख्वाहिश पर पानी फिरता दिखाई दे रहा है. सपा प्रमुख अखिलेश यादव और प्रसपा प्रमुख शिवपाल सिंह यादव के बीच समझौता होने पर राजनीतिक फायदे का आंकलन तो सभी कर रहे हैं, लेकिन दोनों नेताओं के बीच मौजूद खाई कम होती दिखाई नहीं दे रही है.

राजनीतिक विश्लेषक योगेश मिश्र ने ईटीवी भारत से की बातचीत.

जानिए क्या है पूरा मामला

  • बीएसपी के साथ लोकसभा चुनाव से पहले जब सपा ने गठबंधन किया तो अखिलेश यादव ने खुद कई मौकों पर मीडिया से कहा कि यह गठबंधन लंबा चलेगा और विधानसभा चुनाव भी हम दोनों ही लोग मिलकर लड़ेंगे.
  • लोकसभा चुनाव में मिली करारी शिकस्त के तुरंत बाद जिस तरह से मायावती ने अखिलेश यादव पर वोट ट्रांसफर न कराने की तोहमत लगाते हुए नाता तोड़ा है, उसने अखिलेश यादव की राजनीतिक समझदारी पर सवालिया निशान खड़े कर दिए हैं.
  • तीन चुनाव में लगातार हार का सामना कर चुके अखिलेश यादव के लिए नेतृत्व का सवाल इतना कठिन हो गया है कि अब उनकी पार्टी के ही ज्यादातर कार्यकर्ता चाहते हैं कि सपा छोड़कर अलग हुए चाचा शिवपाल सिंह यादव वापस आ जाएं और अखिलेश यादव की ताकत को मजबूत करें.
  • इसी तरह की राजनीतिक भावना रखने वाले कार्यकर्ताओं ने पिछले 2 दिन के दौरान इस तरह की चर्चा को बल दिया कि सैफई में अखिलेश यादव और शिवपाल यादव की मुलायम सिंह यादव की मौजूदगी में मुलाकात होने जा रही है.
  • हकीकत इससे अलग रही शिवपाल सैफई में मौजूद रहे, लेकिन अखिलेश ने लखनऊ नहीं छोड़ा. गुरुवार को भी सुबह यह अफवाह तेज हुई कि शिवपाल यादव समाजवादी पार्टी के कार्यालय में पहुंचने वाले हैं.
  • वहां मुलायम सिंह यादव के साथ उनकी अखिलेश यादव के साथ मीटिंग होगी, लेकिन पार्टी कार्यालय के बाहर मौजूद कार्यकर्ताओं को दोपहर में जब यह मालूम हुआ कि शिवपाल यादव मथुरा में हैं, तो उन्हें खासी निराशा हुई.
  • पार्टी कार्यकर्ता बड़ी शिद्दत से चाहते हैं कि दोनों नेताओं में मिलन हो जाए और प्रसपा का समाजवादी पार्टी में विलय हो जाए.

बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने जो समाजवादी पर आरोप लगाया है कि समाजवादी पार्टी के कुछ नेताओं ने यादवों को वोट में तब्दील नहीं होने दिया. इस बयान से मायावती ने शिवपाल को महत्वपूर्ण बना दिया है और ये सही है जिस तरह से वोटों का बिखराव हुआ है, उससे शिवपाल यादव ने वोटों का नुकसान किया है.
योगेश मिश्र, राजनीतिक विश्लेषक

लखनऊ: समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव समेत तमाम सपाइयों की ख्वाहिश पर पानी फिरता दिखाई दे रहा है. सपा प्रमुख अखिलेश यादव और प्रसपा प्रमुख शिवपाल सिंह यादव के बीच समझौता होने पर राजनीतिक फायदे का आंकलन तो सभी कर रहे हैं, लेकिन दोनों नेताओं के बीच मौजूद खाई कम होती दिखाई नहीं दे रही है.

राजनीतिक विश्लेषक योगेश मिश्र ने ईटीवी भारत से की बातचीत.

जानिए क्या है पूरा मामला

  • बीएसपी के साथ लोकसभा चुनाव से पहले जब सपा ने गठबंधन किया तो अखिलेश यादव ने खुद कई मौकों पर मीडिया से कहा कि यह गठबंधन लंबा चलेगा और विधानसभा चुनाव भी हम दोनों ही लोग मिलकर लड़ेंगे.
  • लोकसभा चुनाव में मिली करारी शिकस्त के तुरंत बाद जिस तरह से मायावती ने अखिलेश यादव पर वोट ट्रांसफर न कराने की तोहमत लगाते हुए नाता तोड़ा है, उसने अखिलेश यादव की राजनीतिक समझदारी पर सवालिया निशान खड़े कर दिए हैं.
  • तीन चुनाव में लगातार हार का सामना कर चुके अखिलेश यादव के लिए नेतृत्व का सवाल इतना कठिन हो गया है कि अब उनकी पार्टी के ही ज्यादातर कार्यकर्ता चाहते हैं कि सपा छोड़कर अलग हुए चाचा शिवपाल सिंह यादव वापस आ जाएं और अखिलेश यादव की ताकत को मजबूत करें.
  • इसी तरह की राजनीतिक भावना रखने वाले कार्यकर्ताओं ने पिछले 2 दिन के दौरान इस तरह की चर्चा को बल दिया कि सैफई में अखिलेश यादव और शिवपाल यादव की मुलायम सिंह यादव की मौजूदगी में मुलाकात होने जा रही है.
  • हकीकत इससे अलग रही शिवपाल सैफई में मौजूद रहे, लेकिन अखिलेश ने लखनऊ नहीं छोड़ा. गुरुवार को भी सुबह यह अफवाह तेज हुई कि शिवपाल यादव समाजवादी पार्टी के कार्यालय में पहुंचने वाले हैं.
  • वहां मुलायम सिंह यादव के साथ उनकी अखिलेश यादव के साथ मीटिंग होगी, लेकिन पार्टी कार्यालय के बाहर मौजूद कार्यकर्ताओं को दोपहर में जब यह मालूम हुआ कि शिवपाल यादव मथुरा में हैं, तो उन्हें खासी निराशा हुई.
  • पार्टी कार्यकर्ता बड़ी शिद्दत से चाहते हैं कि दोनों नेताओं में मिलन हो जाए और प्रसपा का समाजवादी पार्टी में विलय हो जाए.

बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने जो समाजवादी पर आरोप लगाया है कि समाजवादी पार्टी के कुछ नेताओं ने यादवों को वोट में तब्दील नहीं होने दिया. इस बयान से मायावती ने शिवपाल को महत्वपूर्ण बना दिया है और ये सही है जिस तरह से वोटों का बिखराव हुआ है, उससे शिवपाल यादव ने वोटों का नुकसान किया है.
योगेश मिश्र, राजनीतिक विश्लेषक

Intro:लखनऊ. समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव समेत तमाम सपाइयों की ख्वाहिश पर पानी फिरता दिखाई दे रहा है . सपा प्रमुख अखिलेश यादव और प्रसपा प्रमुख शिवपाल सिंह यादव के बीच समझौता होने पर राजनीतिक फायदे का आकलन तो सभी कर रहे हैं लेकिन दोनों नेताओं के बीच मौजूद खाई कम होती दिखाई नहीं दे रही है।


Body:बहुजन समाज पार्टी के साथ लोकसभा चुनाव से पहले जब समाजवादी पार्टी ने गठबंधन किया तो अखिलेश यादव ने खुद कई मौकों पर मीडिया से कहा कि यह गठबंधन लंबा चलेगा और विधानसभा चुनाव भी हम दोनों ही लोग मिलकर लड़ेंगे लेकिन लोकसभा चुनाव में मिली करारी शिकस्त के तुरंत बाद जिस तरह से मायावती ने अखिलेश यादव पर वोट ट्रांसफर न कराने की तोहमत लगाते हुए नाता तोड़ा है उसने अखिलेश यादव की राजनीतिक समझदारी पर सवालिया निशान खड़े कर दिए । लगातार तीन चुनाव में हार का सामना कर चुके अखिलेश यादव के लिए नेतृत्व का सवाल इतना कठिन हो गया है कि अब उनकी पार्टी के ही ज्यादातर कार्यकर्ता चाहते हैं कि समाजवादी पार्टी छोड़कर अलग हुए चाचा शिवपाल सिंह यादव वापस आ जाएं और अखिलेश यादव की ताकत को मजबूत करें। इसी तरह की राजनीतिक भावना रखने वाले कार्यकर्ताओं ने पिछले 2 दिन के दौरान इस तरह की चर्चा को बल दिया कि सैफई में अखिलेश यादव और शिवपाल यादव की मुलायम सिंह यादव की मौजूदगी में मुलाकात होने जा रही है जबकि हकीकत इससे अलग रही शिवपाल सैफई में मौजूद रहे लेकिन अखिलेश ने लखनऊ नहीं छोड़ा बृहस्पतिवार को भी सुबह यह अफवाह तेज हुई कि शिवपाल यादव समाजवादी पार्टी के कार्यालय में पहुंचने वाले हैं वहां मुलायम सिंह यादव के साथ उनकी अखिलेश यादव के साथ मीटिंग होगी लेकिन पार्टी कार्यालय के बाहर मौजूद कार्यकर्ताओं को दोपहर में जब यह मालूम हुआ कि शिवपाल यादव मथुरा में हैं तो उन्हें खासी निराशा हुई। पार्टी कार्यकर्ता बड़ी शिद्दत से चाहते हैं कि दोनों नेताओं में मिलन हो जाए और प्रसपा का समाजवादी पार्टी में विलय हो जाए। राजनीतिक विश्लेषकों का भी मानना है कि इससे समाजवादी पार्टी को खासा फायदा हो सकता है।

बाइट/ योगेश मिश्र राजनीतिक विश्लेषक



Conclusion:समाजवादी पार्टी अब ऐसे चौराहे पर आकर खड़ी है जहां उसे अखिलेश यादव के करिश्माई नेतृत्व की दरकार है। लगातार हार से निराश कार्यकर्ता उम्मीद कर रहे हैं कि अखिलेश यादव आने वाले दिनों में मुलायम सिंह यादव की सीख पर अमल करेंगे और पार्टी को फिर से मजबूत कर सकेंगे। देखना यह है कि समाजवादी पार्टी आने वाले दिनों में मुलायम सिंह यादव के तौर-तरीकों को अपनाती है या अखिलेश यादव की विध्वंसकारी आग में जलने का फैसला करती है ।

पीटीसी /अखिलेश तिवारी
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