बाराबंकी: बाराबंकी लोकसभा सीट का इतिहास रहा है कि यहां से कोई भी दल अपनी जीत लगातार नहीं दोहरा सकी है. इसके पीछे वजह कुछ भी हो, लेकिन पहले आम चुनाव से लेकर आज तक ये मिथक कायम है. हर आम चुनाव में जीती हुई पार्टी ने इस मिथक को तोड़ने की कोशिशें की, लेकिन सफल नहीं हुईं. अब इस बार भी लोगों की निगाहें इस पर हैं, कि पिछला चुनाव जीती भाजपा इस मिथक को तोड़ने में कामयाब होगी या नहीं. जिसको लेकर जिले की जनता 23 मई का इंतजार कर रही है.
इतिहास पर गौर करें तो पहले आम चुनाव 1951 में यहां से कांग्रेस के मोहन सक्सेना ने जीत हांसिल की थी. दूसरे चुनाव 1957 में यहां से बतौर निर्दलीय उम्मीदवार राम सेवक यादव जीते थे.1962 में फिर राम सेवक यादव जीते, लेकिन इस बार वे सोशलिस्ट पार्टी से चुनाव लड़े थे. वर्ष 1967 में उन्होंने फिर पार्टी बदल दी और संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से चुनाव लड़े और जीते.
वर्ष 1971 में यहां से कांग्रेस के रुद्र प्रताप सिंह जीते. वर्ष 1977 में भारतीय लोकदल से रामकिंकर रावत जीते. वर्ष 1980 में इन्होंने पार्टी बदल दी और जनता पार्टी सेकुलर से चुनाव जीतकर सीट पर कब्जा किया. 1984 के चुनाव में बाजी पलटते हुए कांग्रेस के कमला रावत यहां से विजयी हुए. 1989 में जनता दल से रामसागर जीते, 1991 में रामसागर ने जनता पार्टी से चुनाव लड़े और फिर से विजयी हुए. वर्ष 1996 में रामसागर को समाजवादी पार्टी ने उम्मीदवार बनाया और सपा से रामसागर विजयी हुए.
वर्ष 1998 में पहली बार भाजपा ने यहां दस्तक दी और यहां से बैजनाथ रावत को सफलता मिली. वर्ष 1999 में फिर सपा से राम सागर जीते. इसके बाद 2004 में बसपा ने पहली बार यहां से जीत का खाता खोला, जिसमें कमला रावत को सफलता मिली. साल 2009 में कांग्रेस के पीएल पुनिया यहां से चुनाव मैदान में उतरे और उन्होंने जीत का स्वाद चखा.
पिछले लोकसभा चुनाव2014 में भाजपा की प्रियंका रावत ने यहां से बाजी मारी. इन आंकड़ों को देखने से साफ जाहिर होता है कि बाराबंकी की जनता ने किसी भी पार्टी को लगातार नहीं जिताया. इसको लेकर लोगों की राय है कि ये बाराबंकी की जनता की जागरूकता का असर है.