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बाराबंकी लोकसभा सीट पर कायम है अनोखा मिथक, जानकर रह जाएंगे हैरान - Break myth

बाराबंकी लोकसभा सीट पर एक अनोखा रिकॉर्ड कायम है. दरअसल यहां से आज तक किसी भी दल को लगातार दो बार जीत नसीब नहीं हुई है और यह रिकॉर्ड पहले आम चुनाव से लेकर आज तक कायम है.

जिलाधिकारी कार्यालय बाराबंकी (फाइल फोटो)
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Published : Mar 30, 2019, 1:28 PM IST

बाराबंकी: बाराबंकी लोकसभा सीट का इतिहास रहा है कि यहां से कोई भी दल अपनी जीत लगातार नहीं दोहरा सकी है. इसके पीछे वजह कुछ भी हो, लेकिन पहले आम चुनाव से लेकर आज तक ये मिथक कायम है. हर आम चुनाव में जीती हुई पार्टी ने इस मिथक को तोड़ने की कोशिशें की, लेकिन सफल नहीं हुईं. अब इस बार भी लोगों की निगाहें इस पर हैं, कि पिछला चुनाव जीती भाजपा इस मिथक को तोड़ने में कामयाब होगी या नहीं. जिसको लेकर जिले की जनता 23 मई का इंतजार कर रही है.

बाराबंकी लोकसभा सीट से किसी दल को दोबारा लगातार जीत नसीब नहीं हुई.


इतिहास पर गौर करें तो पहले आम चुनाव 1951 में यहां से कांग्रेस के मोहन सक्सेना ने जीत हांसिल की थी. दूसरे चुनाव 1957 में यहां से बतौर निर्दलीय उम्मीदवार राम सेवक यादव जीते थे.1962 में फिर राम सेवक यादव जीते, लेकिन इस बार वे सोशलिस्ट पार्टी से चुनाव लड़े थे. वर्ष 1967 में उन्होंने फिर पार्टी बदल दी और संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से चुनाव लड़े और जीते.

वर्ष 1971 में यहां से कांग्रेस के रुद्र प्रताप सिंह जीते. वर्ष 1977 में भारतीय लोकदल से रामकिंकर रावत जीते. वर्ष 1980 में इन्होंने पार्टी बदल दी और जनता पार्टी सेकुलर से चुनाव जीतकर सीट पर कब्जा किया. 1984 के चुनाव में बाजी पलटते हुए कांग्रेस के कमला रावत यहां से विजयी हुए. 1989 में जनता दल से रामसागर जीते, 1991 में रामसागर ने जनता पार्टी से चुनाव लड़े और फिर से विजयी हुए. वर्ष 1996 में रामसागर को समाजवादी पार्टी ने उम्मीदवार बनाया और सपा से रामसागर विजयी हुए.

वर्ष 1998 में पहली बार भाजपा ने यहां दस्तक दी और यहां से बैजनाथ रावत को सफलता मिली. वर्ष 1999 में फिर सपा से राम सागर जीते. इसके बाद 2004 में बसपा ने पहली बार यहां से जीत का खाता खोला, जिसमें कमला रावत को सफलता मिली. साल 2009 में कांग्रेस के पीएल पुनिया यहां से चुनाव मैदान में उतरे और उन्होंने जीत का स्वाद चखा.

पिछले लोकसभा चुनाव2014 में भाजपा की प्रियंका रावत ने यहां से बाजी मारी. इन आंकड़ों को देखने से साफ जाहिर होता है कि बाराबंकी की जनता ने किसी भी पार्टी को लगातार नहीं जिताया. इसको लेकर लोगों की राय है कि ये बाराबंकी की जनता की जागरूकता का असर है.

बाराबंकी: बाराबंकी लोकसभा सीट का इतिहास रहा है कि यहां से कोई भी दल अपनी जीत लगातार नहीं दोहरा सकी है. इसके पीछे वजह कुछ भी हो, लेकिन पहले आम चुनाव से लेकर आज तक ये मिथक कायम है. हर आम चुनाव में जीती हुई पार्टी ने इस मिथक को तोड़ने की कोशिशें की, लेकिन सफल नहीं हुईं. अब इस बार भी लोगों की निगाहें इस पर हैं, कि पिछला चुनाव जीती भाजपा इस मिथक को तोड़ने में कामयाब होगी या नहीं. जिसको लेकर जिले की जनता 23 मई का इंतजार कर रही है.

बाराबंकी लोकसभा सीट से किसी दल को दोबारा लगातार जीत नसीब नहीं हुई.


इतिहास पर गौर करें तो पहले आम चुनाव 1951 में यहां से कांग्रेस के मोहन सक्सेना ने जीत हांसिल की थी. दूसरे चुनाव 1957 में यहां से बतौर निर्दलीय उम्मीदवार राम सेवक यादव जीते थे.1962 में फिर राम सेवक यादव जीते, लेकिन इस बार वे सोशलिस्ट पार्टी से चुनाव लड़े थे. वर्ष 1967 में उन्होंने फिर पार्टी बदल दी और संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से चुनाव लड़े और जीते.

वर्ष 1971 में यहां से कांग्रेस के रुद्र प्रताप सिंह जीते. वर्ष 1977 में भारतीय लोकदल से रामकिंकर रावत जीते. वर्ष 1980 में इन्होंने पार्टी बदल दी और जनता पार्टी सेकुलर से चुनाव जीतकर सीट पर कब्जा किया. 1984 के चुनाव में बाजी पलटते हुए कांग्रेस के कमला रावत यहां से विजयी हुए. 1989 में जनता दल से रामसागर जीते, 1991 में रामसागर ने जनता पार्टी से चुनाव लड़े और फिर से विजयी हुए. वर्ष 1996 में रामसागर को समाजवादी पार्टी ने उम्मीदवार बनाया और सपा से रामसागर विजयी हुए.

वर्ष 1998 में पहली बार भाजपा ने यहां दस्तक दी और यहां से बैजनाथ रावत को सफलता मिली. वर्ष 1999 में फिर सपा से राम सागर जीते. इसके बाद 2004 में बसपा ने पहली बार यहां से जीत का खाता खोला, जिसमें कमला रावत को सफलता मिली. साल 2009 में कांग्रेस के पीएल पुनिया यहां से चुनाव मैदान में उतरे और उन्होंने जीत का स्वाद चखा.

पिछले लोकसभा चुनाव2014 में भाजपा की प्रियंका रावत ने यहां से बाजी मारी. इन आंकड़ों को देखने से साफ जाहिर होता है कि बाराबंकी की जनता ने किसी भी पार्टी को लगातार नहीं जिताया. इसको लेकर लोगों की राय है कि ये बाराबंकी की जनता की जागरूकता का असर है.

Intro:बाराबंकी ,30 मार्च । बाराबंकी लोकसभा सीट का इतिहास रहा है कि यहां पर कोई भी पार्टी लगातार दुबारा नही जीती ।इसके पीछे वजह कुछ भी हो लेकिन पहले आम चुनाव से आज तक ये मिथक कायम है । हर आम चुनाव में जीती हुई पार्टी ने इस मिथक को तोड़ने की कोशिशें की लेकिन सफल नही हुई । अब इस बार के चुनाव में भी लोगो की निगाहें इस पर हैं कि पिछला चुनाव जीती भाजपा इस मिथक को तोड़ने में कामयाब होगी या नही । जिले की जनता को 23 मई का बेसब्री से इन्तेजार है ।


Body:वीओ - बाराबंकी जिला अपने आप मे तमाम इतिहास समेटे है । छ विधानसभाओं नवाबगंज,कुर्सी,रामनगर,जैदपुर,हैदरगढ़ और दरियाबाद वाला ये जिला 3895 वर्ग किमी तक फैला है । वर्ष 2011 में यहां की आबादी 3260699 थी । यहां साक्षरता दर 52 फीसदी तो लिंगानुपात 910 है । जो जब है वही राम का संदेश देने वाले महान सूफी संत हाजी वारिस अली शाह और महादेवा स्थित लोधेश्वर धाम ने जहां जिले का नाम देश विदेश तक पहुंचाया तो मशहूर शायर खुमार बाराबंकवी और प्रसिद्ध हॉकी खिलाड़ी केडी सिंह ने इसे विश्व स्तर पर पहचान दिलाई ।चहलारी नरेश ने यहीं अंग्रेजों के दांत खट्टे किये थे।सतनामी संत बाबा जगजीवन दास और मलामत शाह द्वारा यहाँ फैलाई गई आध्यातिमिक रोशनी को कौन भूल सकता है । कभी यहां पैदा होने वाली अफीम और अब यहां की मेंथा की खेती ने भी इसे खासी पहचान कराई । राजनीतिक क्षेत्र में भी जिला धनी रहा है । यहीं के कांग्रेसी नेता रफी अहमद किदवाई रहे हों या प्रख्यात सोशलिस्ट रामसेवक यादव । इन्होंने जिले की राजनीति को बड़े मुकाम तक पहुंचाया ।इसी का नतीजा है कि बाराबंकी के लोग अपने लोकतंत्र को बचाने के लिए कई तरह से प्रयोग करते रहे हैं । शायद यही वजह है कि बाराबंकी लोकसभा सीट का एक इतिहास है । पहले आम चुनाव से आज तक यहां एक मिथक कायम है कि यहां कभी भी कोई पार्टी लगातार दुबारा चुनाव नही जीती । इतिहास पर गौर करें तो पहले आम चुनाव 1951 में यहाँ से कांग्रेस के मोहन सक्सेना ने जीत हासिल की थी । दूसरे चुनाव 1957 में यहाँ से बतौर निर्दल उम्मीदवार राम सेवक यादव जीते । वर्ष 1962 में फिर राम सेवक यादव जीते लेकिन इस बार वे सोशलिस्ट पार्टी से चुनाव लड़े थे । वर्ष 1967 में उन्होंने फिर पार्टी बदल दी और संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से चुनाव लड़े और जीते । वर्ष 1971 में यहाँ से कांग्रेस के रुद्र प्रताप सिंह जीते । वर्ष 1977 में भारतीय लोकदल से रामकिंकर रावत जीते । वर्ष 1980 में इन्होंने पार्टी बदल दी और जनता पार्टी सेकुलर से चुनाव जीते । वर्ष 1984 के चुनाव में कांग्रेस ने पलटी मारी और कमला रावत जीते । वर्ष 1989 में जनता दल से रामसागर जीते । वर्ष 1991 में रामसागर ने जनता पार्टी से चुनाव लड़ा और जीते । वर्ष 1996 में रामसागर को समाजवादी पार्टी ने उम्मीदवार बनाया । सपा से रामसागर विजयी हुए । वर्ष 1998 में पहली बार भाजपा ने दस्तक दी और यहां से बैजनाथ रावत को सफलता मिली । वर्ष 1999 में फिर सपा से राम सागर जीते । वर्ष 2004 में बसपा पहली बार यहाँ से जीती जिसमे कमला रावत को सफलता मिली । वर्ष 2009 में कांग्रेस के पीएलपुनिया जीते । वर्ष 2014 में भाजपा की प्रियंका रावत जीती । इन आंकड़ों को देखने से साफ जाहिर है कि बाराबंकी की जनता ने किसी भी पार्टी को लगातार दोहराया नही । लोगो की राय है कि ये बाराबंकी की जनता की जागरूकता का असर है ।

बाईट - प्रदीप सारंग , समाजसेवी और विश्लेषक
पीटीसी - अलीम शेख


Conclusion:रिपोर्ट- अलीम शेख बाराबंकी
9839421515
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