कासगंज: अकाल मृत्यु को टालने के लिए महामृत्युञ्जय मंत्र की रचना ऋषि मार्कण्डेय ने कासगंज जिले में स्थित आश्रम में शिवलिंग की स्थापना कर की थी. मान्यता है कि आज भी इस शिवलिंग के सामने महामृत्युञ्जय मंत्र का जाप करने से यमराज वापस लौट जाते हैं. इस शिवलिंग के दर्शन के लिए लोग दूर-दूर से यहां आते हैं.
पद्म पुराण के अनुसार भृगु ऋषि के पुत्र का नाम मृकण्डु था. मृकण्डु और उनकी पत्नी मरुद्धति संतान हीन थे. उन्होंने संतान प्राप्ति के लिए भगवान भोले नाथ की कठोर तपस्या की. जिसके बाद भगवान ने साक्षात प्रकट हो कर मृकण्डु मुनि को दर्शन देकर कहा कि, मुनि श्रेष्ठ यद्यपि आपके भाग्य में संतान प्राप्ति का योग नहीं है. फिर भी मैं तुम्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान देता हूं. लेकिन वह पुत्र अल्प आयु का होगा. जिसकी आयु केवल सोलह वर्ष ही होगी. कुछ समय बाद मृकण्डु और मरुद्धति को तेजस्वी पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई. जिसका नाम मार्कण्डेय रखा गया. बाल्यकाल में मार्कण्डेय को विद्याध्ययन के लिए ऋषि मुनियों के आश्रम में भेज दिया.
इस मंदिर में हुई थी महामृत्युञ्जय मन्त्र की रचना.
कुछ समय पश्चात मार्कण्डेय अपने माता-पिता से मिलने पहुंचे. माता-पिता को चिंतातुर देख मार्कण्डेय ने कारण पूछा तो पता चला कि उनकी मृत्यु 16 वर्ष की आयु में ही हो जाएगी. इसके बाद कासगंज की पटियाली में एक तालाब के किनारे स्थित आश्रम में वापस लौट कर मार्कण्डेय ऋषि ने अपनी अकाल मृत्यु को टालने के लिए शिवलिंग की स्थापना की और उसके सामने बैठकर कठिन साधना में लीन हो गए. यहीं उन्होंने महामृत्युञ्जय मन्त्र की रचना की.
तप साधना करते-करते मार्कण्डेय ऋषि की मृत्यु का समय नज़दीक आ गया था. ऋषि मार्कण्डेय के प्राण लेने यमराज पहुंचे. यमराज को देखते ही मार्कण्डेय ऋषि ने खुद के बनाए हुए शिवलिंग को अपनी दोनों भुजाओं में जकड़ कर महामृत्युञ्जय मंत्र जाप शुरू कर दी. इसी बीच यमराज ने ऋषि मार्कण्डेय की तरफ पास फेंका जिससे मार्कण्डेय के साथ शिवलिंग भी फांस में आ गया. यह देख भगवान शिव प्रकट हुए और यमराज पर क्रोधित होते हुए वहां से चले जाने के लिए कहा. यह देख यमराज भयभीत होकर मार्कण्डेय ऋषि के बिना प्राण लिए ही वापस लौट गए. इस प्रकार मार्कण्डेय ऋषि को अकाल मृत्यु से जीवनदान मिला. मान्यता है कि आज भी इस आश्रम में ऋषि मार्कण्डेय अदृश्य रूप में रहते हैं.