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यहां  हुई थी महामृत्युञ्जय मन्त्र की रचना, दर्शन को दूर-दूर से आते हैं लोग

ऋषि मार्कण्डेय ने कासगंज जिले में स्थित आश्रम में शिवलिंग की स्थापना कर महामृत्युञ्जय मंत्र की रचना की थी. मान्यता है कि इस शिवलिंग के सामने महामृत्युञ्जय मंत्र जाप करने से अकाल मृत्यु नहीं होती. इस कड़ी में दूर-दूर से लोग यहां शिवलिंग के दर्शन को आते हैं.

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Published : Feb 23, 2019, 9:04 AM IST

Updated : Feb 23, 2019, 12:50 PM IST

कासगंज: अकाल मृत्यु को टालने के लिए महामृत्युञ्जय मंत्र की रचना ऋषि मार्कण्डेय ने कासगंज जिले में स्थित आश्रम में शिवलिंग की स्थापना कर की थी. मान्यता है कि आज भी इस शिवलिंग के सामने महामृत्युञ्जय मंत्र का जाप करने से यमराज वापस लौट जाते हैं. इस शिवलिंग के दर्शन के लिए लोग दूर-दूर से यहां आते हैं.


पद्म पुराण के अनुसार भृगु ऋषि के पुत्र का नाम मृकण्डु था. मृकण्डु और उनकी पत्नी मरुद्धति संतान हीन थे. उन्होंने संतान प्राप्ति के लिए भगवान भोले नाथ की कठोर तपस्या की. जिसके बाद भगवान ने साक्षात प्रकट हो कर मृकण्डु मुनि को दर्शन देकर कहा कि, मुनि श्रेष्ठ यद्यपि आपके भाग्य में संतान प्राप्ति का योग नहीं है. फिर भी मैं तुम्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान देता हूं. लेकिन वह पुत्र अल्प आयु का होगा. जिसकी आयु केवल सोलह वर्ष ही होगी. कुछ समय बाद मृकण्डु और मरुद्धति को तेजस्वी पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई. जिसका नाम मार्कण्डेय रखा गया. बाल्यकाल में मार्कण्डेय को विद्याध्ययन के लिए ऋषि मुनियों के आश्रम में भेज दिया.

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इस मंदिर में हुई थी महामृत्युञ्जय मन्त्र की रचना.

इस मंदिर में हुई थी महामृत्युञ्जय मन्त्र की रचना.


कुछ समय पश्चात मार्कण्डेय अपने माता-पिता से मिलने पहुंचे. माता-पिता को चिंतातुर देख मार्कण्डेय ने कारण पूछा तो पता चला कि उनकी मृत्यु 16 वर्ष की आयु में ही हो जाएगी. इसके बाद कासगंज की पटियाली में एक तालाब के किनारे स्थित आश्रम में वापस लौट कर मार्कण्डेय ऋषि ने अपनी अकाल मृत्यु को टालने के लिए शिवलिंग की स्थापना की और उसके सामने बैठकर कठिन साधना में लीन हो गए. यहीं उन्होंने महामृत्युञ्जय मन्त्र की रचना की.


तप साधना करते-करते मार्कण्डेय ऋषि की मृत्यु का समय नज़दीक आ गया था. ऋषि मार्कण्डेय के प्राण लेने यमराज पहुंचे. यमराज को देखते ही मार्कण्डेय ऋषि ने खुद के बनाए हुए शिवलिंग को अपनी दोनों भुजाओं में जकड़ कर महामृत्युञ्जय मंत्र जाप शुरू कर दी. इसी बीच यमराज ने ऋषि मार्कण्डेय की तरफ पास फेंका जिससे मार्कण्डेय के साथ शिवलिंग भी फांस में आ गया. यह देख भगवान शिव प्रकट हुए और यमराज पर क्रोधित होते हुए वहां से चले जाने के लिए कहा. यह देख यमराज भयभीत होकर मार्कण्डेय ऋषि के बिना प्राण लिए ही वापस लौट गए. इस प्रकार मार्कण्डेय ऋषि को अकाल मृत्यु से जीवनदान मिला. मान्यता है कि आज भी इस आश्रम में ऋषि मार्कण्डेय अदृश्य रूप में रहते हैं.

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कासगंज: अकाल मृत्यु को टालने के लिए महामृत्युञ्जय मंत्र की रचना ऋषि मार्कण्डेय ने कासगंज जिले में स्थित आश्रम में शिवलिंग की स्थापना कर की थी. मान्यता है कि आज भी इस शिवलिंग के सामने महामृत्युञ्जय मंत्र का जाप करने से यमराज वापस लौट जाते हैं. इस शिवलिंग के दर्शन के लिए लोग दूर-दूर से यहां आते हैं.


पद्म पुराण के अनुसार भृगु ऋषि के पुत्र का नाम मृकण्डु था. मृकण्डु और उनकी पत्नी मरुद्धति संतान हीन थे. उन्होंने संतान प्राप्ति के लिए भगवान भोले नाथ की कठोर तपस्या की. जिसके बाद भगवान ने साक्षात प्रकट हो कर मृकण्डु मुनि को दर्शन देकर कहा कि, मुनि श्रेष्ठ यद्यपि आपके भाग्य में संतान प्राप्ति का योग नहीं है. फिर भी मैं तुम्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान देता हूं. लेकिन वह पुत्र अल्प आयु का होगा. जिसकी आयु केवल सोलह वर्ष ही होगी. कुछ समय बाद मृकण्डु और मरुद्धति को तेजस्वी पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई. जिसका नाम मार्कण्डेय रखा गया. बाल्यकाल में मार्कण्डेय को विद्याध्ययन के लिए ऋषि मुनियों के आश्रम में भेज दिया.

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इस मंदिर में हुई थी महामृत्युञ्जय मन्त्र की रचना.

इस मंदिर में हुई थी महामृत्युञ्जय मन्त्र की रचना.


कुछ समय पश्चात मार्कण्डेय अपने माता-पिता से मिलने पहुंचे. माता-पिता को चिंतातुर देख मार्कण्डेय ने कारण पूछा तो पता चला कि उनकी मृत्यु 16 वर्ष की आयु में ही हो जाएगी. इसके बाद कासगंज की पटियाली में एक तालाब के किनारे स्थित आश्रम में वापस लौट कर मार्कण्डेय ऋषि ने अपनी अकाल मृत्यु को टालने के लिए शिवलिंग की स्थापना की और उसके सामने बैठकर कठिन साधना में लीन हो गए. यहीं उन्होंने महामृत्युञ्जय मन्त्र की रचना की.


तप साधना करते-करते मार्कण्डेय ऋषि की मृत्यु का समय नज़दीक आ गया था. ऋषि मार्कण्डेय के प्राण लेने यमराज पहुंचे. यमराज को देखते ही मार्कण्डेय ऋषि ने खुद के बनाए हुए शिवलिंग को अपनी दोनों भुजाओं में जकड़ कर महामृत्युञ्जय मंत्र जाप शुरू कर दी. इसी बीच यमराज ने ऋषि मार्कण्डेय की तरफ पास फेंका जिससे मार्कण्डेय के साथ शिवलिंग भी फांस में आ गया. यह देख भगवान शिव प्रकट हुए और यमराज पर क्रोधित होते हुए वहां से चले जाने के लिए कहा. यह देख यमराज भयभीत होकर मार्कण्डेय ऋषि के बिना प्राण लिए ही वापस लौट गए. इस प्रकार मार्कण्डेय ऋषि को अकाल मृत्यु से जीवनदान मिला. मान्यता है कि आज भी इस आश्रम में ऋषि मार्कण्डेय अदृश्य रूप में रहते हैं.

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Intro:स्लग-इस स्थान पर हुई थी महामृत्युञ्जय मन्त्र की रचना


एंकर- अकाल मृत्यु से मनुष्य की रक्षा करने वाले भगवान भोलेनाथ के प्रिय मन्त्र "त्र्यम्बकं यजामहे सुगंधिम पुष्टिवर्धनम।
उर्वारुकमिव बन्धनान मृत्योर्मुक्षीय मामृतात।। की रचना अकाल मृत्यु को टालने के लिए मृकण्डु और मरुद्धति के पुत्र ऋषि मार्कण्डेय ने उत्तर प्रदेश के कासगंज जनपद में स्थित आश्रम में शिवलिंग की स्थापना कर की थी।कहते हैं आज भी यहां प्रतिष्ठित शिवलिंग के सामने महामृत्युञ्जय मंत्र का जाप करने से यमराज वापस लौट जाते हैं।बड़ी दूर दूर से लोग यहां इस शिवलिंग के दर्शन करने आते हैं।


Body:वीओ-1- पद्म पुराण के अनुसार भृगु ऋषि के पुत्र का नाम मृकण्डु था मृकण्डु और उनकी पत्नी मरुद्धति संतान हीन थे अतः उन्होंने संतान प्राप्ति हेतु भगवान भोले नाथ की कठोर तपस्या की भगवान ने साक्षात प्रकट हो कर मृकण्डु मुनि को दर्शन देकर कहा कि मुनि श्रेष्ठ यद्यपि आपके भाग्य में संतान प्राप्ति का योग नहीं है फिर भी मैं तुम्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान देता हूँ किंतु वह पुत्र अल्प आयु का होगा जिसकी आयु मात्र सोलह वर्ष ही होगी।कुछ समय पश्चात मृकण्डु और मरुद्धति को तेजस्वी पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई।जिसका नाम मार्कण्डेय रखा गया।बाल्यकाल में मार्कण्डेय को विद्याध्ययन के लिए ऋषि मुनियों के आश्रम में भेज दिया।

वीओ-2- पद्म पुराण के अनुसार कुछ समय पश्चात मार्कण्डेय अपने माता पिता से मिलने पहुंचे माता पिता को चिंतातुर देख मार्कण्डेय ने कारण पूछा तो पता चला कि उनकी मृत्यु 16 वर्ष की आयु में ही हो जाएगी।अपने कासगंज की पटियाली में एक सरोवर के किनारे स्थित आश्रम में वापस लौट कर मार्कण्डेय ऋषि ने अपनी अकाल मृत्यु को टालने के लिए एक शिवलिंग की स्थापना की शिवलिंग के समक्ष बैठ कर मार्कण्डेय ऋषि कठिन साधना में लीन हो गए और उसके बाद श्रष्टि के सबसे चमत्कारी महामृत्युञ्जय मन्त्र की रचना की ।तप साधना करते करते मार्कण्डेय ऋषि की मृत्यु का समय नज़दीक आ गया था ऋषि मार्कण्डेय के प्राण लेने यमराज पहुंचे यमराज को देखते ही मार्कण्डेय ऋषि ने अपने द्वारा स्थापित शिवलिंग को अपनी दोनों भुजाओं में जकड़ कर अपने ही द्वारा रचित महामृत्युञ्जय मंत्र का जाप करना प्रारंभ कर दिया इसी बीच यमराज ने ऋषि मार्कण्डेय की तरफ पास फेंका जिससे मार्कण्डेय जी के साथ शिवलिंग भी फांस में आ गयी यह देख भगवान शिव प्रकट हुए और यमराज पर क्रोधित होते हुए वहां से चले जाने के लिए कहा यह देख यमराज भयभीत हो कर मार्कण्डेय ऋषि के बिना प्राण लिए ही वापस लौट गए इस प्रकार मार्कण्डेय ऋषि को अकाल मृत्यु से जीवन दान मिला।मान्यता है कि आज भी इस आश्रम में ऋषि मार्कण्डेय अदृश्य रूप में रहते हैं।आज भी मार्कण्डेय ऋषि के इस आश्रम में शिवलिंग के दर्शनों के लिए दूर दूर से लोगों का आना जाना लगा रहता है।

वीओ-3- यहां की पुजारिन माता कमला ने बताया कि एक बार वह बीमार पड़ीं तो उनके प्राणों की रक्षा बाबा की कृपा से ही हुई।वहीं इतिहासकार और पेशे से इंजीनियर अमित तिवारी ने भी मार्कण्डेय ऋषि के आश्रम के विषय मे जानकारी दी।

वन टू वन- कमला माता (पुजारिन)
बाइट- अमित तिवारी (इतिहासकार)


Conclusion:
Last Updated : Feb 23, 2019, 12:50 PM IST
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