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गरीब मजदूरों के समर्थन में भूख हड़ताल पर बैठे पूर्व कांग्रेसी, विपक्षियों को दिया न्योता

आशा बहुओं और गरीब मजदूर के हक की लड़ाई में समाजसेवी संजय दीक्षित ने हाथ बढ़ाया है. राजधानी के इको गार्डन मे अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर बैठे संजय दिक्षित का कहना है कि इस लड़ाई में विपक्ष को भी बढ़-चढ़कर हमारा साथ देना चाहिए और जब तक राज्य सरकार कर्मचारियों की समस्याओं का निराकरण नही करेगी वह भूख हड़ताल जारी रखेंगे.

हड़ताल पर बैठे कांग्रेसी
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Published : Feb 2, 2019, 11:55 PM IST

लखनऊ: पूर्व मनरेगा सदस्य एवं प्रसिद्ध समाजसेवी संजय दिक्षित आज से राजधानी के इको गार्डन मे अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर बैठे हैं. संविदा कर्मचारी, मनरेगा मजदूर और आशा बहुओं के हक की लड़ाई लड़ने वाले इस समाज सेवी का कहना है कि जब तक राज्य सरकार कर्मचारियों की समस्याओं का निराकरण नही करेगी वह भूख हड़ताल जारी रखेंगे. समाज सेवी संजय दीक्षित ने सभी राजनीतिक पार्टियों को पत्र लिख कर उनका समर्थन मांगा है.

भूख हड़ताल पर बैठे पूर्व कांग्रेसी

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समान कार्य समान वेतन, सर्विस प्रोवाइडर द्वारा भर्ती बंद करने, मनरेगा मजदूरों की लंबित मजदूरी को ब्याज समेत वापस करने और आशा बहुओं का मानदेय को लेकर लगातार धरना प्रदर्शन किया जा रहा है. इन सभी की मांगों को समर्थन देते हुए आज मनरेगा के पूर्व सदस्य संजय दीक्षित भूख हड़ताल पर बैठ गए हैं. राजधानी लखनऊ के इको गार्डन में भूख हड़ताल पर बैठे समाजसेवी का कहना है कि वह पिछले 6 वर्षों से लगातार आवाज उठा रहे हैं लेकिन इन लोगों की समस्याओं को लेकर आज भी प्रशासन चुप्पी साधे हुए हैं.

चार सूत्रीय मांगों को लेकर धरने पर बैठे समाजसेवी का कहना है कि उन्होंने सत्ता पक्ष को इन समस्याओं से अवगत करा दिया और जब तक सरकार कोई निर्णायक निर्णय नहीं लेती है तब तक उनकी भूख हड़ताल जारी रहेगी. अपनी इस हड़ताल को कामयाब बनाने के लिए और उपरोक्त लोगों को न्याय दिलाने के लिए इन्होंने सभी राजनीतिक पार्टियों को पत्र देकर समर्थन का नियंत्रण भेजा है.

संविदा कर्मचारी-मनरेगा मजदूर और आशा बहुओं के बड़े तबके की मांगों के समर्थन पर समाजसेवी संजय दीक्षित अनिश्चित कालीन भूख हड़ताल पर बैठे चुके हैं. वैसे पूर्व मनरेगा सदस्य के साथ-साथ संजय दीक्षित पूर्व कांग्रेसी भी रहे हैं. यह बात अलग है कि अनुशासनहीनता के चलते उन्हें कुछ समय के लिए पार्टी से बाहर कर दिया गया है, लेकिन वह आज भी कांग्रेसी है. अब ठीक लोकसभा चुनाव से पहले और पूर्वी यूपी की कमान प्रियंका गांधी के हाथों में आ जाने के बाद इन बड़े तबके के लोगों की समस्याओं के समर्थन में भूख हड़ताल पर बैठ जाना और विपक्षी पार्टियों से समर्थन मांगना बीजेपी के लिए मुश्किलों भरा है, क्योंकि यदि इन तबकों की मांगों पर कोई निर्णय नहीं लिया जाता है तो यह तब का वोटर के रूप में बीजेपी की रणनीति को भी प्रभावित कर सकता है.

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लखनऊ: पूर्व मनरेगा सदस्य एवं प्रसिद्ध समाजसेवी संजय दिक्षित आज से राजधानी के इको गार्डन मे अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर बैठे हैं. संविदा कर्मचारी, मनरेगा मजदूर और आशा बहुओं के हक की लड़ाई लड़ने वाले इस समाज सेवी का कहना है कि जब तक राज्य सरकार कर्मचारियों की समस्याओं का निराकरण नही करेगी वह भूख हड़ताल जारी रखेंगे. समाज सेवी संजय दीक्षित ने सभी राजनीतिक पार्टियों को पत्र लिख कर उनका समर्थन मांगा है.

भूख हड़ताल पर बैठे पूर्व कांग्रेसी

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समान कार्य समान वेतन, सर्विस प्रोवाइडर द्वारा भर्ती बंद करने, मनरेगा मजदूरों की लंबित मजदूरी को ब्याज समेत वापस करने और आशा बहुओं का मानदेय को लेकर लगातार धरना प्रदर्शन किया जा रहा है. इन सभी की मांगों को समर्थन देते हुए आज मनरेगा के पूर्व सदस्य संजय दीक्षित भूख हड़ताल पर बैठ गए हैं. राजधानी लखनऊ के इको गार्डन में भूख हड़ताल पर बैठे समाजसेवी का कहना है कि वह पिछले 6 वर्षों से लगातार आवाज उठा रहे हैं लेकिन इन लोगों की समस्याओं को लेकर आज भी प्रशासन चुप्पी साधे हुए हैं.

चार सूत्रीय मांगों को लेकर धरने पर बैठे समाजसेवी का कहना है कि उन्होंने सत्ता पक्ष को इन समस्याओं से अवगत करा दिया और जब तक सरकार कोई निर्णायक निर्णय नहीं लेती है तब तक उनकी भूख हड़ताल जारी रहेगी. अपनी इस हड़ताल को कामयाब बनाने के लिए और उपरोक्त लोगों को न्याय दिलाने के लिए इन्होंने सभी राजनीतिक पार्टियों को पत्र देकर समर्थन का नियंत्रण भेजा है.

संविदा कर्मचारी-मनरेगा मजदूर और आशा बहुओं के बड़े तबके की मांगों के समर्थन पर समाजसेवी संजय दीक्षित अनिश्चित कालीन भूख हड़ताल पर बैठे चुके हैं. वैसे पूर्व मनरेगा सदस्य के साथ-साथ संजय दीक्षित पूर्व कांग्रेसी भी रहे हैं. यह बात अलग है कि अनुशासनहीनता के चलते उन्हें कुछ समय के लिए पार्टी से बाहर कर दिया गया है, लेकिन वह आज भी कांग्रेसी है. अब ठीक लोकसभा चुनाव से पहले और पूर्वी यूपी की कमान प्रियंका गांधी के हाथों में आ जाने के बाद इन बड़े तबके के लोगों की समस्याओं के समर्थन में भूख हड़ताल पर बैठ जाना और विपक्षी पार्टियों से समर्थन मांगना बीजेपी के लिए मुश्किलों भरा है, क्योंकि यदि इन तबकों की मांगों पर कोई निर्णय नहीं लिया जाता है तो यह तब का वोटर के रूप में बीजेपी की रणनीति को भी प्रभावित कर सकता है.

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Intro:पूर्व मनरेगा सदस्य एवं प्रसिद्ध समाजसेवी संजय दिक्षित आज से राजधानी के इको गार्डन मे अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर बैठे हैं । संविदा कर्मचारी-मनरेगा मजदूर और आशा बहुओं के हक की लड़ाई लड़ने वाले इस समाज सेवी का कहना है कि जब तक राज्य सरकार कर्मचारियों की समस्याओं का निराकरण नही करेगी वह भूख हड़ताल जारी रखेंगे। समाज सेवी संजय दीक्षित ने सभी राजनीतिक पार्टियों को पत्र लिख कर उनका समर्थन मांगा है।


Body:समान कार्य समान वेतन, सर्विस प्रोवाइडर द्वारा भर्ती बंद करने, मनरेगा मजदूरों की लंबित मजदूरी को ब्याज समेत वापस करने और आशा बहुओं का मानदेय को लेकर लगातार धरना प्रदर्शन किया जा रहा है। इन सभी की मांगों को समर्थन देते हुए आज मनरेगा के पूर्व सदस्य संजय दीक्षित भूख हड़ताल पर बैठ गए हैं। राजधानी लखनऊ के इको गार्डन में भूख हड़ताल पर बैठे समाजसेवी का कहना है कि वह पिछले 6 वर्षों से लगातार आवाज उठा रहे हैं लेकिन इन लोगों की समस्याओं को लेकर आज भी प्रशासन चुप्पी साधे हुए हैं। चार सूत्रीय मांगों को लेकर धरने पर बैठे समाजसेवी का कहना है कि उन्होंने सत्ता पक्ष को इन समस्याओं से अवगत करा दिया और जब तक सरकार कोई निर्णायक निर्णय नहीं लेती है तब तक उनकी भूख हड़ताल जारी रहेगी। अपनी इस हड़ताल को कामयाब बनाने के लिए और उपरोक्त लोगों को न्याय दिलाने के लिए इन्होंने सभी राजनीतिक पार्टियों को पत्र देकर समर्थन का नियंत्रण भेजा है।


Conclusion:संविदा कर्मचारी-मनरेगा मजदूर और आशा बहुओं के बड़े तबके की मांगों के समर्थन पर समाजसेवी संजय दीक्षित अनिश्चित कालीन भूख हड़ताल पर बैठे चुके हैं। वैसे पूर्व मनरेगा सदस्य के साथ-साथ संजय दीक्षित पूर्व कांग्रेसी भी रहे है। यह बात अलग है कि अनुशासनहीनता के चलते उन्हें कुछ समय के लिए पार्टी से बाहर कर दिया गया है लेकिन वह आज भी कांग्रेसी है। अब ठीक लोकसभा चुनाव से पहले और पूर्वी यूपी की कमान प्रियंका गांधी के हाथों में आ जाने के बाद इन बड़े तबके के लोगों की समस्याओं के समर्थन में भूख हड़ताल पर बैठ जाना और विपक्षी पार्टियों से समर्थन मांगना बीजेपी के लिए मुश्किलों भरा है, क्योंकि यदि इन तबकों की मांगों पर कोई निर्णय नहीं लिया जाता है तो यह तब का वोटर के रूप में बीजेपी की रणनीति को भी प्रभावित कर सकता है।
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