ETV Bharat / briefs

यहां के मजदूरों को ही नहीं पता कब मनाते हैं 'मजदूर दिवस' - यूपी न्यूज

उत्तर प्रदेश का बुंदेलखंड पिछले कई दशक से अपनी बदहाली के लिए चर्चाओं में रहता है. पलायन, बेकारी, बदहाली और बेबसों की आत्महत्याओं के लिए पहचाना जाने वाला बुंदेलखंड मजदूरों की मंडी बनकर रह गया है.

मजदूर
author img

By

Published : May 2, 2019, 9:00 AM IST

बांदा: 1 मई दुनियाभर में अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस मनाया जा रहा है. लेकिन आप जानकर हैरान रह जाएंगे की बुंदेलखंड के मजदूरों को मजदूर दिवस के बारे में कोई जानकारी नहीं है. जब हमने मजदूरों के हालात का जायजा लिया तो बेहद दयनीय हालात में यहां का मजदूर अपना पसीना बहाता मिला.

समस्याएं बताते मजदूर.
  • शहर के बीचो-बीच मुख्य बाजार के सड़कों पर यह भीड़ चुनावी या फिर किसी राजनीतिक दल की भीड़ नहीं बल्कि मजदूरों की भीड़ हैं.
  • 46 डिग्री में डिजिटल इंडिया का यह तबका रोटी की तलाश में सुबह से ही घर से निकल चुका है.
  • दूरदराज गांव से आने वाले यह मजदूर मंडी में अपनी बोली लगवाने के लिए खड़े हो जाते हैं.
  • लोग आते हैं इनकी मेहनत का मोल करते हैं और इनको अपने साथ मजदूरी के लिए ले जाते हैं.

दिन भर की जीतोड़ मेहनत के बाद शाम को जो पैसा मिलता है उसी से इनके घर का चूल्हा जलतें हैं. हैरानी वाली बात यह है कि इन्हें काम भी पूरे महीने में बमुश्किल 8-10 दिन ही मिल पाता है. उसी मामूली पैसे में यह अपना घर चलाने पर मजबूर हैं. इन्हें न मजदूर दिवस से मतलब है और न ही मेहनतकशों को नए साल की शुरुआत से कोई फर्क पड़ता है. यह सुबह उठते हैं अपने चूल्हे की ठंडी राख आंखों में लेकर काम की तलाश में निकल पड़ते हैं. शाम को किसी तरह घर का चूल्हा जल जाए इन बेबसों को सिर्फ इतनी ही फिक्र होती है.

बांदा: 1 मई दुनियाभर में अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस मनाया जा रहा है. लेकिन आप जानकर हैरान रह जाएंगे की बुंदेलखंड के मजदूरों को मजदूर दिवस के बारे में कोई जानकारी नहीं है. जब हमने मजदूरों के हालात का जायजा लिया तो बेहद दयनीय हालात में यहां का मजदूर अपना पसीना बहाता मिला.

समस्याएं बताते मजदूर.
  • शहर के बीचो-बीच मुख्य बाजार के सड़कों पर यह भीड़ चुनावी या फिर किसी राजनीतिक दल की भीड़ नहीं बल्कि मजदूरों की भीड़ हैं.
  • 46 डिग्री में डिजिटल इंडिया का यह तबका रोटी की तलाश में सुबह से ही घर से निकल चुका है.
  • दूरदराज गांव से आने वाले यह मजदूर मंडी में अपनी बोली लगवाने के लिए खड़े हो जाते हैं.
  • लोग आते हैं इनकी मेहनत का मोल करते हैं और इनको अपने साथ मजदूरी के लिए ले जाते हैं.

दिन भर की जीतोड़ मेहनत के बाद शाम को जो पैसा मिलता है उसी से इनके घर का चूल्हा जलतें हैं. हैरानी वाली बात यह है कि इन्हें काम भी पूरे महीने में बमुश्किल 8-10 दिन ही मिल पाता है. उसी मामूली पैसे में यह अपना घर चलाने पर मजबूर हैं. इन्हें न मजदूर दिवस से मतलब है और न ही मेहनतकशों को नए साल की शुरुआत से कोई फर्क पड़ता है. यह सुबह उठते हैं अपने चूल्हे की ठंडी राख आंखों में लेकर काम की तलाश में निकल पड़ते हैं. शाम को किसी तरह घर का चूल्हा जल जाए इन बेबसों को सिर्फ इतनी ही फिक्र होती है.

Intro:Slug- मजदूर दिवस और मजदूरों के हालात
Place- Banda
Report- Anand tiwari 
Date- 01-05-2019
एंकर- उत्तर प्रदेश का बुंदेलखंड पिछले कई दशक से अपनी बदहाली के लिए चर्चा में रहता है। पलायन, बेकारी, बदहाली और बेबसों की आत्महत्याओं के लिए पहचाना जाने वाला बुंदेलखंड मजदूरों की मंडी बनकर रह गया है। एक ऐसी मंडी जहां बेहद सस्ता मजदूर कुछ वक्त के लिए खरीदा जा सकता है। आज 1 मई है। मजदूर दिवस के तौर पर विश्व में इस दिन का खास महत्व है। आज के दिन जब बुंदेलखंड के बांदा में जब हमने मजदूरों के हालात का जायजा लिया तो बेहद दयनीय हालात में यहां का मजदूर अपना पसीना बहाता मिला। बांदा का मजदूर रोजी के किस तरह अपना खून जलाकर अपने परिवार को 2 जून की रोटी खिला रहा है और इस मजदूर वर्ग को कितनी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है इन मजदूरों की जुबानी सुनिए।




Body:वीओ- बांदा शहर के बीचोबीच मुख्य बाजार के सड़कों पर यह जो आप भीड़ देख रहे हैं, चुनावी माहौल में यह किसी राजनीतिक दल की भीड़ नहीं है यह मजदूर हैं। 46 डिग्री के टेंपरेचर में डिजिटल इंडिया का यह तबका रोटी की तलाश में सुबह से निकल चुका है। दूरदराज गांव से आने वाले यह मजदूर सुबह से ही इस मजदूरों की मंडी में अपनी बोली लगवाने के लिए खड़े हो जाते हैं। अपने घरों के खाली बर्तनों को आंखों में संजोए यह मेहनत कश हर सुबह इसी मंडी पर खड़े मिलते हैं। लोग आते हैं इनकी मेहनत का मोल करते हैं और इन को अपने साथ मजदूरी के लिए ले जाते हैं। दिन भर की जीतोड़ मेहनत के बाद शाम को  जो पैसा मिलता है उसी से इनके घर का चूल्हा जलता है। लेकिन इन्हें काम भी पूरे महीने में बमुश्किल 8- 10 दिन ही मिल पाता है और उसी मामूली पैसे में यह अपना घर चलाने पर मजबूर हैं। ऐसा नहीं है कि यह कामचोर हैं यह तो बेचारे सुबह से ही आकर रोजाना इस मंडी में बैठ जाते हैं लेकिन इन्हें जब काम नहीं मिलता तो ये बोझिल मन से यह वापस अपने घरों को लौटते हैं।




Conclusion:वीओ- इन्हें नहीं मालूम कि 1 मई को मजदूर दिवस भी होता है। इन्हें न मजदूर दिवस से मतलब है, न ही इन मेहनतकशों को नए साल की शुरुआत से कोई फर्क पड़ता है। यह तो सुबह उठते हैं अपने चूल्हे की ठंडी राख आंखों में लेकर काम की तलाश में निकल पड़ते हैं और शाम को किसी तरह घर का चूल्हा जल जाए इन बेबसो को सिर्फ़ इतनी ही फिक्र होती है। देखिए साहब,आप भी सुनिये.. सियासी लोगों के तथाकथित डिजिटल इंडिया का यह कड़वा सच।

बाईट- जफर खान, स्थानीय
बाईट- रानी- महिला मजदूर
बाईट- अशोक- मजदूर
बाईट- राकेश, मजदूर

ANAND TIWARI
BANDA
9795000076

ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.