बांदा: 1 मई दुनियाभर में अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस मनाया जा रहा है. लेकिन आप जानकर हैरान रह जाएंगे की बुंदेलखंड के मजदूरों को मजदूर दिवस के बारे में कोई जानकारी नहीं है. जब हमने मजदूरों के हालात का जायजा लिया तो बेहद दयनीय हालात में यहां का मजदूर अपना पसीना बहाता मिला.
- शहर के बीचो-बीच मुख्य बाजार के सड़कों पर यह भीड़ चुनावी या फिर किसी राजनीतिक दल की भीड़ नहीं बल्कि मजदूरों की भीड़ हैं.
- 46 डिग्री में डिजिटल इंडिया का यह तबका रोटी की तलाश में सुबह से ही घर से निकल चुका है.
- दूरदराज गांव से आने वाले यह मजदूर मंडी में अपनी बोली लगवाने के लिए खड़े हो जाते हैं.
- लोग आते हैं इनकी मेहनत का मोल करते हैं और इनको अपने साथ मजदूरी के लिए ले जाते हैं.
दिन भर की जीतोड़ मेहनत के बाद शाम को जो पैसा मिलता है उसी से इनके घर का चूल्हा जलतें हैं. हैरानी वाली बात यह है कि इन्हें काम भी पूरे महीने में बमुश्किल 8-10 दिन ही मिल पाता है. उसी मामूली पैसे में यह अपना घर चलाने पर मजबूर हैं. इन्हें न मजदूर दिवस से मतलब है और न ही मेहनतकशों को नए साल की शुरुआत से कोई फर्क पड़ता है. यह सुबह उठते हैं अपने चूल्हे की ठंडी राख आंखों में लेकर काम की तलाश में निकल पड़ते हैं. शाम को किसी तरह घर का चूल्हा जल जाए इन बेबसों को सिर्फ इतनी ही फिक्र होती है.