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आगरा: अशोक के हाथों का हुनर देख, जुदाई पर पछता रहीं होंगी अंगुलियां - ashok made waste to best in agra

उत्तर प्रदेश के आगरा के निवासी अशोक के हाथों की कलाकारी का हर कोई कायल है. अशोक जब लड़की और पत्थर को कोई स्वरूप देते हैं तो वह जीवंत सा लगता है. बता दें कि अशोक एक हादसे में अपने दोनों हाथों की अंगुलियां गवां चुके हैं.

अशोक लकड़ी और पत्थर को आकर्षक स्वरुप देते हैं.
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Published : Jun 15, 2019, 7:04 PM IST

आगरा: 'मन के हारे हार है और मन के जीते जीत' ये लाइन बिजली विभाग से रिटायर्ड इंजीनियर अशोक फौजदार पर एकदम सटीक बैठती है. अशोक के हाथों की अंगुलियां नहीं हैं, लेकिन इसके बावजूद उनके हाथों की कलाकारी देखकर आप दंग रह जाएंगे. एक हादसे में अपने दोनों हाथों की अंगुलियां गवां चुके अशोक ने हिम्मत नहीं हारी और विल पावर से हाथों को हुनरमंद बनाया. बेकार लकड़ी हो या खुरदरा पत्थर, अशोक के हाथ जब छेनी, हथौड़ी और आरी से उन्हें मनमोहक स्वरूप देते हैं, तो देखने वाले दांतों तले अंगुलियां दबाने को मजबूर हो जाते हैं.

अशोक फौजदार से ईटीवी संवाददाता की बातचीत.

लकड़ी और पत्थर को देते हैं स्वरूप
अशोक की जिंदगी का शौक बस एक ही है, वह लकड़ी और पत्थर को ऐसा स्वरूप देते हैं कि वह उपहार बन जाता है. वह कभी पेड़ की टहनी और जड़ों से सांप बनाते हैं तो कभी भगवान का स्वरूप देते हैं. इतना ही नहीं सड़क किनारे पड़े पत्थरों को भी मूर्तियां और किसी अन्य प्रकार के आकार में डालकर उसे बहुत ही आकर्षक बना देते हैं.

नहीं मरने दिया जुनून
हादसे के बाद जब अशोक फौजदार अस्पताल से घर लौटे तो उन्होंने अपने जुनून को मरने नहीं दिया. उन्होंने कुछ नया करने की अपनी जिद को जिंदा रखा. लगातार अभ्यास और लगन से उनके हाथों को वह हुनर मिला, जिसका आज हर कोई कायल है. शुरुआत में अशोक को लकड़ी या पत्थर को हाथ से थामने में दिक्कत होती थी. लकड़ी और पत्थरों को तराशने में कभी छैनी हाथ से छूट जाती तो कभी आरी अटक जाती थी, मगर उन्होंने हार नहीं मानी. हालात बदले और फिर हाथों के इशारों पर छैनी, हथौड़ी, आरी और अन्य औजार ने नाचना शुरू कर दिया. अशोक का कहना है कि अब जब मैं लकड़ी और पत्थर पर कारीगरी करता हूं तो मुझे अहसास ही नहीं होता कि मेरे हाथों में अंगुलियां नहीं हैं.

कई बार मिल चुका है ऑफर
अशोक का कहना है कि उनके बनाए हुए सामान को लोग खरीदने की बात कहते हैं तो वह इनकार कर देते हैं. उनका कहना है कि कई प्रोफेशनल लोग भी उन्हें अपने साथ जोड़ने के लिए मिल चुके हैं, लेकिन उन्होंने उन ऑफरों को भी स्वीकार नहीं किया है.

परिवार का मिला सहयोग
अशोक फौजदार का कहना है कि अपनी प्रैक्टिस और परिवार के सपोर्ट से ही वो यहां तक पहुंचे हैं. अशोक का कहना है कि पत्नी, बेटा, बहू और बेटी उन्हें प्रोत्साहित करते हैं और मदद भी करते हैं.

ऐसे खोईं थी हाथों की अंगुलियां
आगरा के हरीश नगर पश्चिम पुरी निवासी अशोक फौजदार (73) बिजली विभाग से रिटायर हैं. 2001 में पानी से भरे हुए खेत में बिजली के तार टूटे थे, जिन्हें वह हटा रहे थे. इसी बीच अचानक तारों में करंट आ गया और उनके दोनों हाथ की अंगुलियां कट गईं. हादसे के बाद अशोक को दो दिन बाद होश आया था.

आगरा: 'मन के हारे हार है और मन के जीते जीत' ये लाइन बिजली विभाग से रिटायर्ड इंजीनियर अशोक फौजदार पर एकदम सटीक बैठती है. अशोक के हाथों की अंगुलियां नहीं हैं, लेकिन इसके बावजूद उनके हाथों की कलाकारी देखकर आप दंग रह जाएंगे. एक हादसे में अपने दोनों हाथों की अंगुलियां गवां चुके अशोक ने हिम्मत नहीं हारी और विल पावर से हाथों को हुनरमंद बनाया. बेकार लकड़ी हो या खुरदरा पत्थर, अशोक के हाथ जब छेनी, हथौड़ी और आरी से उन्हें मनमोहक स्वरूप देते हैं, तो देखने वाले दांतों तले अंगुलियां दबाने को मजबूर हो जाते हैं.

अशोक फौजदार से ईटीवी संवाददाता की बातचीत.

लकड़ी और पत्थर को देते हैं स्वरूप
अशोक की जिंदगी का शौक बस एक ही है, वह लकड़ी और पत्थर को ऐसा स्वरूप देते हैं कि वह उपहार बन जाता है. वह कभी पेड़ की टहनी और जड़ों से सांप बनाते हैं तो कभी भगवान का स्वरूप देते हैं. इतना ही नहीं सड़क किनारे पड़े पत्थरों को भी मूर्तियां और किसी अन्य प्रकार के आकार में डालकर उसे बहुत ही आकर्षक बना देते हैं.

नहीं मरने दिया जुनून
हादसे के बाद जब अशोक फौजदार अस्पताल से घर लौटे तो उन्होंने अपने जुनून को मरने नहीं दिया. उन्होंने कुछ नया करने की अपनी जिद को जिंदा रखा. लगातार अभ्यास और लगन से उनके हाथों को वह हुनर मिला, जिसका आज हर कोई कायल है. शुरुआत में अशोक को लकड़ी या पत्थर को हाथ से थामने में दिक्कत होती थी. लकड़ी और पत्थरों को तराशने में कभी छैनी हाथ से छूट जाती तो कभी आरी अटक जाती थी, मगर उन्होंने हार नहीं मानी. हालात बदले और फिर हाथों के इशारों पर छैनी, हथौड़ी, आरी और अन्य औजार ने नाचना शुरू कर दिया. अशोक का कहना है कि अब जब मैं लकड़ी और पत्थर पर कारीगरी करता हूं तो मुझे अहसास ही नहीं होता कि मेरे हाथों में अंगुलियां नहीं हैं.

कई बार मिल चुका है ऑफर
अशोक का कहना है कि उनके बनाए हुए सामान को लोग खरीदने की बात कहते हैं तो वह इनकार कर देते हैं. उनका कहना है कि कई प्रोफेशनल लोग भी उन्हें अपने साथ जोड़ने के लिए मिल चुके हैं, लेकिन उन्होंने उन ऑफरों को भी स्वीकार नहीं किया है.

परिवार का मिला सहयोग
अशोक फौजदार का कहना है कि अपनी प्रैक्टिस और परिवार के सपोर्ट से ही वो यहां तक पहुंचे हैं. अशोक का कहना है कि पत्नी, बेटा, बहू और बेटी उन्हें प्रोत्साहित करते हैं और मदद भी करते हैं.

ऐसे खोईं थी हाथों की अंगुलियां
आगरा के हरीश नगर पश्चिम पुरी निवासी अशोक फौजदार (73) बिजली विभाग से रिटायर हैं. 2001 में पानी से भरे हुए खेत में बिजली के तार टूटे थे, जिन्हें वह हटा रहे थे. इसी बीच अचानक तारों में करंट आ गया और उनके दोनों हाथ की अंगुलियां कट गईं. हादसे के बाद अशोक को दो दिन बाद होश आया था.

Intro:आगरा.
'जिनके हाथ नहीं होते हैं, किस्मत की लकीर उनकी भी होती हैं'. यह बात आगरा में बिजली विभाग से रिटायर्ड इंजीनियर अशोक फौजदार पर सटीक बैठती है. उनके दोनों हाथ और अंगुलियों का ताल्लुक कुछ ऐसा ही है. एक हादसे में हाथों से अंगुलियां जुदा हो गईं. अशोक फौजदार ने हिम्मत नहीं हारी और विल पावर से हाथों को हुनरमंद बनाया. बेकार लकड़ी हो या खुरदरा पत्थर हो. अशोक के हाथ जब छेनी, हथौड़ी और आरी से सभी को मनमोहक स्वरूप देते हैं, तो देखने वाले दांतों तले अंगुलियां दबाने को मजबूर हो जाते हैं. तब शायद अशोक के हाथों की अंगुलियों को हाथों से जुदाई पर सताता होगा. ईटीवी भारत में अशोक फौजदार से उनके साथ हुए हादसे और हाथों के हुनर के बारे में विशेष बातचीत की तो उन्होंने कहा कि यह सब विल पावर की वजह से हो पाया है और परिवार का मुझे पूरा प्रोत्साहन मिलता है.


Body:आगरा के हरीश नगर पश्चिम पुरी निवासी अशोक फौजदार (73) बिजली विभाग से रिटायर हैं. अशोक फौजदार ने बताया कि 2001 में रक्षाबंधन के अगले दिन उन्होंने देखा कि पानी से भरे हुए खेत में बिजली के तार टूटे पड़े हैं. उस समय उन तारों में करंट नहीं आ रहा था.उन्होंने ग्रामीणों की मदद से उन तारों को इकठ्ठा कराया और तार को तोड़ने लगे. तभी करंट आ गया और उनके हाथ दोनों हाथ की उंगलियां कट गई. हालांकि एक हाथ में दो उंगलियां बच्ची भी मगर वह भी बेजान हैं. दो दिन तो होश नहीं आया. हाथों का यह हाल देखकर अशोक फौजदार और उनका परिवार बहुत मायूस हुआ. एक बार को डॉक्टर ने हाथ खड़े कर दिए. छह माह तक उपचार चला. विल पावर से अशोक ने धीरे- धीरे हाथों से अलग हुई अंगुलियों की लाचारी से बाहर आना शुरू किया.
नहीं मरने दिया जुनून
जब अशोक फौजदार हास्पिटल से घर लौटे तो उन्होंने अपने जुनून को मरने नहीं दिया.फिर एक कुछ नया करने की जिद को जिंदा रखा. लगातार अभ्यास और लगन से उनके हाथों को वह हुनर मिला, जो जिसका आज हर कोई कायल है. अशोक फौजदार को लकड़ी या पत्थर और अन्य को हाथ से थामने में दिक्कत होती थी. हाथों की हथेलियों से बमुश्किल मदद मिलती थी. लकड़ी और पत्थरों को तराशने में कभी छैनी हाथ से छूट जाती तो पल पल हाथों में आरी अटक जाती थी. मगर हालत बदले और फिर हाथों के इशारों पर छैनी, हथौड़ी, आरी और अन्य औजार ने नचना शुरू कर दिया. अब तो अशोक फौजदार अपने आत्मविश्वास से लबरेज हो गए हैं. अशोक का कहना है कि जब मैं लकड़ी और पत्थर पर कारीगरी करता हूं. तो मुझे अहसास ही नहीं होता कि मेरे हाथों में अंगुलियां नहीं है.

कचरा को देते हैं स्वरूप
अशोक की जिंदगी का शौक बस एक ही है. वह कचरा को ऐसा स्वरूप देते हैं, कि वह उपहार बन जाता है.किसी पेड़ की टहनी और जड़ों से सांप बनाते हैं. पेड़ की जड़ों को किसी भगवान का स्वरूप देते हैं. उन्हें जीवंत कर देते हैं. सड़क किनारे पड़े पत्थरों को भी मूर्तियां किसी अन्य प्रकार के आकार में डाल कर के बहुत ही आकर्षक बना देते हैं. अशोक फौजदार का कहना है कि लोग उनसे बनाए हुए आइटम खरीदने की कहते हैं तो वह इंकार कर देते हैं. कई प्रोफेशनल लोग भी उन्हें अपने साथ जोड़ने के लिए मिल चुके हैं, लेकिन उनके ऑफर को भी उन्होंने ठुकरा दिया है.

परिवार का मिला सहयोग
अशोक फौजदार का कहना है कि अपनी प्रैक्टिस और परिवार के सपोर्ट से ही वो यहां तक पहुंचे हैं. 6 महीने बाद उन्होंने एक बार फिर लिखना शुरू किया. इसका नतीजा ये है कि रिटायर होने के बाद उन्हें कभी भी अभी तक बैंक के चक्कर नहीं लगाने पड़े. क्योंकि हाथों की उंगलियां चले जाने के बाद भी अंगूठे से ही पहले जैसे ही हस्ताक्षर कर लेते हैं. जिससे उन्हें कभी भी रुपए के लेन-देन में कोई परेशानी नहीं हुई.अशोक का कहना है कि पत्नी बेटा, बहू और बेटी भी उन्हें प्रोत्साहित करते हैं. और अपने आइटम को लोगों को गिफ्ट देने में इस्तेमाल करते हैं. घर को सजाते हैं.



Conclusion:हाथों की अंगुलियों को हादसे में खोने के बाद अशोक फौजदार ने हिम्मत नहीं हारी.उन्होंने अपनी विल पावर से वह कर दिखाया जो कोई सोच भी नहीं सकता है. हिम्मत से कुछ भी किया जा सकता है.


अशोक फौजदार का वन टू वन।

श्यामवीर सिंह
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