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अगर नीतीश ने मानी होती इस डॉक्टर की बात, तो चमकी बुखार से बच सकती थी मासूमों की जान

बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में चमकी बुखार के कहर ने देश को हिला कर रख दिया है. कई बच्चों की सांसें थम चुकी हैं और यह सिलसिला अभी भी जारी है. पटना एम्स के पूर्व डायरेक्टर की सालों पुरानी एक रिसर्च से इस जानलेवा बीमारी पर काबू पाया जा सकता था.

पटना एम्स के पूर्व निदेशक डॉ. जीके सिंह.
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Published : Jun 21, 2019, 11:25 PM IST

लखनऊ: पूरे देश को हिला देने वाले चमकी बुखार ने कई परिवारों के आंगन को सूना कर दिया. बच्चों की मौत का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है. स्वास्थय विभाग बिल्कुल लाचार नजर आ रहा है, लेकिन कुछ साल पहले लखनऊ के डॉक्टर जीके सिंह की बात मान ली गई होती तो शायद इन मासूमों की जान को बचाया जा सकता था.

पटना एम्स के पूर्व डायरेक्टर डॉ. जीके सिंह से खास बातचीत.
कौन हैं डॉ. जीके सिंह

डॉ. जीके सिंह ऑर्थोपेडिक विभाग केजीएमयू में तैनात थे. इसके बाद साल 2011 में उन्होंने पटना एम्स के निदेशक के तौर पर कार्यभार संभाला. इस दौरान वहां चमकी बुखार की त्रासदी को उन्होंने देखकर इस पर रिसर्च शुरू की. हर साल हजारों मासूमों को चपेट में लेने वाली इस बीमारी के अध्ययन के बाद डॉ. जीके सिंह ने इस बीमारी से बचने के कुछ सुझाव दिए थे.

चमकी बुखार पर काबू पाने के लिए किया काम
डॉ. जीके सिंह ने इस बीमारी को रोकने की दिशा में बहुत काम किया है. उन्होंने बिहार में चमकी बुखार के प्रकोप से निजात पाने के लिए एक प्लान तैयार किया था. उन्होंने बताया कि प्रति वर्ष 1997 से आज तक चमकी बुखार से ग्रसित 15 वर्ष से कम आयु वाले 1 हजार बच्चों को होने वाले संक्रमण को विफल करने की कोशिशें चल रही है, लेकिन अभी तक सफलता नहीं प्राप्त हो पाई है. इन 20 वर्षों में की गई हर एक कोशिश के बावजूद हर साल 5 हजार बच्चे इस बीमारी से संक्रमित और 3 हजार प्रतिवर्ष विकलांग हो रहे हैं. उनका कहना है कि चमकी बुखार के संक्रमण को पकड़ने के लिए आपदा विज्ञान (एपिडेमियोलॉजी) के मूल सिद्धांत का प्रयोग नहीं किया गया.

पटना एम्स में चमकी बुखार के संक्रमण का किया था आकलन

डॉ. जीके सिंह ने बताया कि एम्स पटना के निदेशक के तौर पर साल 2012 में चमकी बुखार के संक्रमण का आंकलन की कोशिश की गई थी. इस अध्ययन के बाद सामने आया था कि यूपी में सरयू नदी के दक्षिण स्थित जिले चमकी बुखार से बचे हुए हैं. इसका मतलब साफ है कि संक्रमण सरयू पार नहीं कर पा रहा है. इससे इस निष्कर्ष पर पहुंचा गया कि कि सरयू की उत्तरी धारा में तैरता हुआ संक्रमण मझधार पार नहीं कर पा रहा है.

नीतीश कुमार को दी थी सलाह

उन्होंने बताया कि उत्तर के जल का सौंच में प्रयोग से धारा में आया संक्रमण नीचे रहने वालों को संक्रमित करता है. जब इस बारे में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को उन्होंने बताया कि यदि सरयू नदी में हम किसी भी तरह बैरियर उत्पन्न कर दें तो उत्तर दिशा में बहकर आने वाले संक्रमण को हम निष्प्रभावी कर सकते हैं. इससे बिहार के जिलों में आने वाले संक्रमण को रोका जा सकेगा. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस प्लान पर विचार करने की बजाय साल 2015 में स्वच्छ जल और साबुन से हाथ धोने की एक मुहिम शुरू की. यूनिसेफ की मदद से चलाए गए इस अभियान के बाद मुजफ्फरपुर जिले में साल 2015 में संक्रमितों की संख्या 1347 और 2016 में 70 से भी कम रह गई.

लखनऊ: पूरे देश को हिला देने वाले चमकी बुखार ने कई परिवारों के आंगन को सूना कर दिया. बच्चों की मौत का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है. स्वास्थय विभाग बिल्कुल लाचार नजर आ रहा है, लेकिन कुछ साल पहले लखनऊ के डॉक्टर जीके सिंह की बात मान ली गई होती तो शायद इन मासूमों की जान को बचाया जा सकता था.

पटना एम्स के पूर्व डायरेक्टर डॉ. जीके सिंह से खास बातचीत.
कौन हैं डॉ. जीके सिंह

डॉ. जीके सिंह ऑर्थोपेडिक विभाग केजीएमयू में तैनात थे. इसके बाद साल 2011 में उन्होंने पटना एम्स के निदेशक के तौर पर कार्यभार संभाला. इस दौरान वहां चमकी बुखार की त्रासदी को उन्होंने देखकर इस पर रिसर्च शुरू की. हर साल हजारों मासूमों को चपेट में लेने वाली इस बीमारी के अध्ययन के बाद डॉ. जीके सिंह ने इस बीमारी से बचने के कुछ सुझाव दिए थे.

चमकी बुखार पर काबू पाने के लिए किया काम
डॉ. जीके सिंह ने इस बीमारी को रोकने की दिशा में बहुत काम किया है. उन्होंने बिहार में चमकी बुखार के प्रकोप से निजात पाने के लिए एक प्लान तैयार किया था. उन्होंने बताया कि प्रति वर्ष 1997 से आज तक चमकी बुखार से ग्रसित 15 वर्ष से कम आयु वाले 1 हजार बच्चों को होने वाले संक्रमण को विफल करने की कोशिशें चल रही है, लेकिन अभी तक सफलता नहीं प्राप्त हो पाई है. इन 20 वर्षों में की गई हर एक कोशिश के बावजूद हर साल 5 हजार बच्चे इस बीमारी से संक्रमित और 3 हजार प्रतिवर्ष विकलांग हो रहे हैं. उनका कहना है कि चमकी बुखार के संक्रमण को पकड़ने के लिए आपदा विज्ञान (एपिडेमियोलॉजी) के मूल सिद्धांत का प्रयोग नहीं किया गया.

पटना एम्स में चमकी बुखार के संक्रमण का किया था आकलन

डॉ. जीके सिंह ने बताया कि एम्स पटना के निदेशक के तौर पर साल 2012 में चमकी बुखार के संक्रमण का आंकलन की कोशिश की गई थी. इस अध्ययन के बाद सामने आया था कि यूपी में सरयू नदी के दक्षिण स्थित जिले चमकी बुखार से बचे हुए हैं. इसका मतलब साफ है कि संक्रमण सरयू पार नहीं कर पा रहा है. इससे इस निष्कर्ष पर पहुंचा गया कि कि सरयू की उत्तरी धारा में तैरता हुआ संक्रमण मझधार पार नहीं कर पा रहा है.

नीतीश कुमार को दी थी सलाह

उन्होंने बताया कि उत्तर के जल का सौंच में प्रयोग से धारा में आया संक्रमण नीचे रहने वालों को संक्रमित करता है. जब इस बारे में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को उन्होंने बताया कि यदि सरयू नदी में हम किसी भी तरह बैरियर उत्पन्न कर दें तो उत्तर दिशा में बहकर आने वाले संक्रमण को हम निष्प्रभावी कर सकते हैं. इससे बिहार के जिलों में आने वाले संक्रमण को रोका जा सकेगा. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस प्लान पर विचार करने की बजाय साल 2015 में स्वच्छ जल और साबुन से हाथ धोने की एक मुहिम शुरू की. यूनिसेफ की मदद से चलाए गए इस अभियान के बाद मुजफ्फरपुर जिले में साल 2015 में संक्रमितों की संख्या 1347 और 2016 में 70 से भी कम रह गई.

Intro:पूरे देश को हिला देने वाली चमकी बुखार जिसकी काली चमक में सैकड़ों परिवारों के आंगन को सूना कर दिया। सैकड़ों की तादाद में बच्चे आज भी दम तोड़ रहे हैं। सांसों की डोर को थामने में भक्तों की जद्दोजहद अभी भी जारी है। लेकिन लगभग 5 साल पहले अगर इस डॉक्टर की बात मान ली गई होती तो इन मासूमों की जान को बचाया जा सकता था।


Body:बिहार में चमकी बुखार के प्रकोप से निजात पाने के लिए तत्कालीन पटना एम्स के डायरेक्टर डॉ जीके सिंह ने एक सुझाव दिया था। जिससे चमकी बुखार से 10 क्षेत्रों में लागू करने से काफी हद तक सफलता मिल सकती थी। लेकिन हुक्मरानों की संवेदनशीलता ने इस व्यवस्था को फाइलों में ही दम घोट दिया।

जी हां बिहार में चमकी बुखार की प्रकोप को कम करने के लिए तत्कालीन एम्स के निदेशक डॉ जीके सिंह ने सुझाव दिए थे। उन सुझावों में नीतीश सरकार को कुछ अहम कदम उठाने के लिए भी कहा गया था। लेकिन उन पर नितेश कुमार ने ध्यान ही नहीं दिया। इसका नतीजा है। कि आज सैकड़ों मासूमों को अपनी जान गंवानी पड़ी।

दरअसल डॉक्टर जीके सिंह ऑर्थोपेडिक विभाग में केजीएमयू में तैनात थे। उसके बाद सन् 2011 में पटना एम्स के डॉक्टर के तौर पर कार्यभार संभाला वहां पर चमकी बुखार की त्रासदी को उन्होंने देखकर ये अंदाजा लगाया कि लगभग हर साल हजारों मासूम इस बीमारी की चपेट में आने की वजह से दम तोड़ देते हैं। जिस को ध्यान में रखते हुए उन्होंने इस पूरे विषय पर अपना आकलन किया। जिसमें तमाम तरह की बातें सामने आई थी। और उनकी इस रिसर्च में इस जानलेवा बीमारी से बचने के सुझाव भी सामने आए थे।

दरअसल नदी के किनारे सौच के कारण चमकी बुखार तेजी से फैल रहा है। इसको लेकर डॉक्टर जीके सिंह ने बहुत काम किया है। इसके बाद काफी हद तक इस बीमारी को रोकने में बहुत प्रयास किए है। उन्होंने बिहार में चमकी बुखार के प्रकोप से निजात पाने के लिए एक प्लांट दिया। जिसको चमकी बुखार ग्रसित क्षेत्रों में लागू करने से काफी हद तक सफलता मिल सती थी। यह कहना है। एम्स पटना के पूर्व निदेशक और वर्तमान में केजीएमयू से सेवानिवृत्त हो चुके डॉक्टर जीके सिंह का।

उन्होंने बताया कि प्रति वर्ष 1997 से आज तक चमकी बुखार से ग्रसित 15 वर्ष से कम आयु वाले 1000 बच्चों को होने वाला संक्रमण को विफल करने की कोशिशें चल रही हैं। लेकिन अभी तक सफलता नहीं प्राप्त हो पाई है। इन 20 वर्षों में की गई हर एक कोशिश के बाद 5000 बच्चे प्रतिवर्ष इस बीमारी से संक्रमित और 3000 प्रतिवर्ष विकलांग हो रहे हैं। उन्होंने बताया की चमकी बुखार के संक्रमण को पकड़ने के लिए आपदा विज्ञान (एपिडेमियोलॉजी) के मूल सिद्धांत का प्रयोग नहीं किया गया। इसके कारण इसमें सफलता नहीं मिल पाई। अब विज्ञान के जरिए आपदा के समय स्थान एवं व्यक्ति दिखाओ का आकलन किया जाता है। उन्होंने बताया कि एम्स पटना के निदेशक के तौर पर साल 2012 में चमकी बुखार के संक्रमण का आंकलन की कोशिश की गई।

जिसमें यह सामने आया था। कि उत्तर प्रदेश में सरयू नदी से दक्षिण के जिले चमकी बुखार से बचे हुए हैं। यानी संक्रमण सरयू पार नहीं कर पा रहा है। इसका मतलब है। कि सरयू की उत्तरी धारा में तैरता हुआ संक्रमण मझधार पार नहीं कर पा रहा है। उन्होंने बताया कि दरअसल उत्तर के जल के सौच में प्रयोग से धारा में आया संक्रमण नीचे रहने वालों को संक्रमित करता दिखाई देगा। जब इस बारे में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को उन्होंने बताया कि यदि सरयू नदी में हम किसी भी तरह बैरियर उत्पन्न कर दे तो सरयु उद्देश्य आने वाला संक्रमण हम वहीं पर कम प्रभावित कर सकते हैं। जिससे कि बिहार के जिलों में आने वाले संक्रमण को रोका जा सकेगा। असम की बुखार की तस्वीरें हमेशा के लिए चमकी बुखार जड़ से खत्म किया जा सकेगा।

लेकिन बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस पर विचार न करते हुए 2015 में उन्होंने स्वच्छ जल और साबुन से हाथ धोने की एक मुहिम मुजफ्फर पुर में यूनिसेफ पर पटना को छोड़ने के आदेश दिए। इसके परिणाम स्वरूप मुजफ्फरपुर में हुए 1347 संक्रमितो की संख्या 2015 और 2016 में 70 से भी कम रह गई।

लेकिन जड़ से खत्म नहीं हो पाई यदि तत्कालीन सरकार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने डॉक्टर जी के सिंह की बातों को प्रभावी रूप से पालन करवाया होता। तो आज मासूमों की सांसे रूकती नहीं और उनको इस भयावह बीमारी और त्रासदी से बचाया जा सकता था। लेकिन यह सभी सुझाव फाइलों में बंद रहकर तंत्र की भेंट चढ़ गए।ऐसे में तंत्र पर सवाल उठना तो लाजमी है। कि आखिर समय रहते सही कदम क्यों नहीं उठाए गए? जिससे इन मासूमों की जान को बचाया जा सकता।

खास बातचीत डॉक्टर जीके सिंह के साथ


Conclusion:एंड
शुभम पांडेय
705 4605 976
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