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मच्छर जनित बीमारी है फाइलेरिया, जानिए इससे बचने के उपाय

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Published : May 16, 2019, 11:42 AM IST

आपने हाथी पांव वाली बीमारी के बारे में सुना होगा. यह एक मच्छर जानित बीमारी है जिसे फाइलेरिया कहते है. आइए जानते है इस बीमारी के कारण और बचने के उपाय के बारे में.

जानिए फाइलेरिया से बचने के उपाय.

कन्नौज: फाइलेरिया जैसी घातक बीमारी को लेकर जनपद में स्वास्थ्य विभाग कार्यक्रम चलाने जा है. जिसके तहत ब्लीचिंग और डीटीडी पाउडर का छिड़काव कराया जाएगा और साथ ही लोगों को जागरूक किया जाएगा. आइए जानते हैं फाइलेरिया के बारे में...

जानिए फाइलेरिया से बचने के उपाय.
  • फाइलेरिया की बीमारी फाइलेरिया संक्रमण मच्छरों के काटने से फैलती है. यह मच्छर फ्यूलेक्स एवं मैनसोनाइडिस प्रजाति के होते हैं
  • मच्छर से मरीज में फाइलेरिया के माइक्रो फाइलेरिया वर्म प्रवेश कर जाते हैं . जो वयस्क होने पर मनुष्य को प्रभावित करता है. माइक्रो वर्म को वयस्क होने में एक वर्ष लगता है.
  • इसके अंदर यदि मरीज फाइलेरिया की एक खुराक डाईइथाइल कार्बाजिन ले ले तो, माइक्रो फाइलेरिया वर्म नष्ट हो जाते हैं और मरीज फाइलेरिया जैसी खतरनाक बीमारी का शिकार होने से बच जाता है.

कैसे करें इसकी पहचान

  • समान्यत: यह संक्रमण शुरुआती बचपन में ही हो जाता है यद्यपि यह बीमारी वर्षों बाद स्पष्टता प्रकट होती है.
  • इस प्रकार सामान्य एवं स्वस्थ दिखने वाले व्यक्ति को कुछ सालों बाद टांगों, हाथों एवं शरीर के अन्य अंगो में अत्यधिक सूजन उत्पन्न होने लगती है.
  • इसके प्रभावित अस्वस्थ शरीर के इस भाग पर विभिन्न प्रकार के जीवाणु तेजी से पनपने लगते हैं, साथ ही प्रभावित अंगों की लसिका ग्रंथियां इन अधिकाधिक संख्या में पनपे हुए जीवाणुओं को छान नहीं पाते हैं.
  • प्रभावित अंगों में दर्द, लालपन, एवं रोगी को बुखार हो जाता है. हाथ-पैर में, अंडकोष व शरीर के अन्य अंगों में सूजन के लक्षण होते हैं.
  • प्रारंभ में यह सूजन अस्थाई होती है, किंतु बाद में यह स्थाई और लाइलाज हो जाती है.

कैसे पहचाने फाइलेरिया के मच्छर को

  • मल, नालियों और गड्ढों का गंदा पानी में यह क्युलैक्स नामक मच्छर आसानी से देखे जा सकते हैं.
  • इस मच्छर की पहचान है इसकी पीठ का कूबड़ और उसकी गूँज. इस मच्छर के लार्वे पानी मे टेढ़े होकर तैरते रहते है.

रोकने का उपाय

  • फाइलेरिया का इलाज शुरुआती दिनों में ही शुरू हो जाना चाहिए.
  • हाथों या पैरों की सूजन ठीक करने के लिए कोई भी दवाई नहीं है. ऐसे में रात में खून की जांच अवश्य करवाएं तभी तो सब फाइलेरिया से मुक्ति पा सकते हैं
  • क्योंकि रात को ही फाइलेरिया कीटाणु रक्त परिधि में दिखाई पड़ते हैं.
  • जिस व्यक्ति में यह कीटाणु पाए जाते हैं उनमें साधारणतः रोग के लक्षण व चिन्ह प्रकट रूप में दिखाई नहीं देते हैं.

कन्नौज के मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. के. स्वरूप ने बताया कि अपने आसपास पानी एकत्र न होने दे, कूलर आदि का पानी भी 2-3 दिन में बदल दे और जहां पर भी जलभराव है वहां पर मिट्टी डालकर उसको समतल कर दें ,और अगर ऐसा नहीं कर सकते हैं तो उसके अंदर जला हुआ मोबिआयल या मिट्टी का तेल डाल दे और पूरे कपड़े रात में पहने साथ ही मच्छरदानी का प्रयोग करें , जिससे कि मच्छरों से बचाव हो सके .

कन्नौज: फाइलेरिया जैसी घातक बीमारी को लेकर जनपद में स्वास्थ्य विभाग कार्यक्रम चलाने जा है. जिसके तहत ब्लीचिंग और डीटीडी पाउडर का छिड़काव कराया जाएगा और साथ ही लोगों को जागरूक किया जाएगा. आइए जानते हैं फाइलेरिया के बारे में...

जानिए फाइलेरिया से बचने के उपाय.
  • फाइलेरिया की बीमारी फाइलेरिया संक्रमण मच्छरों के काटने से फैलती है. यह मच्छर फ्यूलेक्स एवं मैनसोनाइडिस प्रजाति के होते हैं
  • मच्छर से मरीज में फाइलेरिया के माइक्रो फाइलेरिया वर्म प्रवेश कर जाते हैं . जो वयस्क होने पर मनुष्य को प्रभावित करता है. माइक्रो वर्म को वयस्क होने में एक वर्ष लगता है.
  • इसके अंदर यदि मरीज फाइलेरिया की एक खुराक डाईइथाइल कार्बाजिन ले ले तो, माइक्रो फाइलेरिया वर्म नष्ट हो जाते हैं और मरीज फाइलेरिया जैसी खतरनाक बीमारी का शिकार होने से बच जाता है.

कैसे करें इसकी पहचान

  • समान्यत: यह संक्रमण शुरुआती बचपन में ही हो जाता है यद्यपि यह बीमारी वर्षों बाद स्पष्टता प्रकट होती है.
  • इस प्रकार सामान्य एवं स्वस्थ दिखने वाले व्यक्ति को कुछ सालों बाद टांगों, हाथों एवं शरीर के अन्य अंगो में अत्यधिक सूजन उत्पन्न होने लगती है.
  • इसके प्रभावित अस्वस्थ शरीर के इस भाग पर विभिन्न प्रकार के जीवाणु तेजी से पनपने लगते हैं, साथ ही प्रभावित अंगों की लसिका ग्रंथियां इन अधिकाधिक संख्या में पनपे हुए जीवाणुओं को छान नहीं पाते हैं.
  • प्रभावित अंगों में दर्द, लालपन, एवं रोगी को बुखार हो जाता है. हाथ-पैर में, अंडकोष व शरीर के अन्य अंगों में सूजन के लक्षण होते हैं.
  • प्रारंभ में यह सूजन अस्थाई होती है, किंतु बाद में यह स्थाई और लाइलाज हो जाती है.

कैसे पहचाने फाइलेरिया के मच्छर को

  • मल, नालियों और गड्ढों का गंदा पानी में यह क्युलैक्स नामक मच्छर आसानी से देखे जा सकते हैं.
  • इस मच्छर की पहचान है इसकी पीठ का कूबड़ और उसकी गूँज. इस मच्छर के लार्वे पानी मे टेढ़े होकर तैरते रहते है.

रोकने का उपाय

  • फाइलेरिया का इलाज शुरुआती दिनों में ही शुरू हो जाना चाहिए.
  • हाथों या पैरों की सूजन ठीक करने के लिए कोई भी दवाई नहीं है. ऐसे में रात में खून की जांच अवश्य करवाएं तभी तो सब फाइलेरिया से मुक्ति पा सकते हैं
  • क्योंकि रात को ही फाइलेरिया कीटाणु रक्त परिधि में दिखाई पड़ते हैं.
  • जिस व्यक्ति में यह कीटाणु पाए जाते हैं उनमें साधारणतः रोग के लक्षण व चिन्ह प्रकट रूप में दिखाई नहीं देते हैं.

कन्नौज के मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. के. स्वरूप ने बताया कि अपने आसपास पानी एकत्र न होने दे, कूलर आदि का पानी भी 2-3 दिन में बदल दे और जहां पर भी जलभराव है वहां पर मिट्टी डालकर उसको समतल कर दें ,और अगर ऐसा नहीं कर सकते हैं तो उसके अंदर जला हुआ मोबिआयल या मिट्टी का तेल डाल दे और पूरे कपड़े रात में पहने साथ ही मच्छरदानी का प्रयोग करें , जिससे कि मच्छरों से बचाव हो सके .

Intro:फायलेरिया है एक घातक बीमारी, इससे बचने के क्या है उपाय

फाइलेरिया की बीमारी फाइलेरिया संक्रमण मच्छरों के काटने से फैलती है । यह मच्छर फ्यूलेक्स एवं मैनसोनाइडिस प्रजाति के होते हैं , जिसमें मच्छर एक धागे समान परजीवी को छोड़ता है । यह परजीवी हमारे शरीर में प्रवेश कर जाता है। प्रत्येक मादा वयस्क फाइलेरिया परजीवीन विनर नर कृमि से जुड़ने के बाद लाखों सूक्ष्म फाइलेरिया नामक भ्रूणों की पीढ़ियों को जन्म देती है। जो वाह्यरक्त में विशेषकर रात्रि में बड़ी संख्या में प्रभावित होते
रहते हैं । गर्मी आते ही मच्छरों का प्रकोप चालू हो गया है । जिसके रोकथाम के लिए चिकित्सा विभाग ने भी इस ओर ध्यान देते हुए इसके बचाव की जानकारी के लिए कदम उठाए हैं आइए देखते हैं कन्नौज से यह स्पेशल रिपोर्ट।





Body:फाइलेरिया मच्छर जनित बीमारी है मच्छर से मरीज में फाइलेरिया के माइक्रो फाइलेरिया वर्म प्रवेश कर जाते हैं । जो वयस्क होने पर मनुष्य को प्रभावित करता है। माइक्रो वर्म को वयस्क होने में एक वर्ष लगता है । इसके अंदर यदि मरीज फाइलेरिया की एक खुराक डाईइथाइल कार्बाजिन ले ले तो, माइक्रो फाइलेरिया वर्म नष्ट हो जाते हैं और मरीज फाइलेरिया जैसी खतरनाक बीमारी का शिकार होने से बच जाता है।

कैसे करें इस बीमारी की पहचान

समानता यह संक्रमण शुरुआती बचपन में ही जाता है यद्यपि यह बीमारी वर्षों बाद स्पष्टता प्रकट होती है । इस प्रकार सामान्य एवं स्वस्थ दिखने वाले व्यक्ति को कुछ सालों बाद टांगों, हाथों एवं शरीर के अन्य अंगो में अत्यधिक सूजन उत्पन्न होने लगती है । इसके प्रभावित अस्वस्थ शरीर के इस भाग पर विभिन्न प्रकार के जीवाणु तेजी से पनपने लगते हैं, साथ ही प्रभावित अंगों की लसिका ग्रंथियां इन अधिकाधिक संख्या में पनपे हुए जीवाणुओं को छान नहीं पाते हैं और इसके कारण प्रभावित अंगों में दर्द, लालपन, एवं रोगी को बुखार हो जाता है । हाथ-पैर में, अंडकोष व शरीर के अन्य अंगों में सूजन के लक्षण होते हैं। प्रारंभ में यह सूजन अस्थाई होती है, किंतु बाद में यह स्थाई और लाइलाज हो जाती है । हाथीपांव कोई खानदानी रोग नहीं होता है। अन्य रोगों की तरह हाथी पांव (फाइलेरिया) की रोकथाम की जा सकती है। इसका उपचार संभव है। फाइलेरिया रोग में अक्सर हाथ या पैर बहुत ही ज्यादा सूज जाते हैं , इसलिए इस रोग को हाथी पांव भी कहते हैं। यह कृमि वाली बीमारी है। यह कृमि लसिका तंत्र की नलियों में होते है और उन्हें बंद कर देते हैं । क्युलैक्स मच्छर के काटने से बहुत छोटे आकार के कृमि शरीर में प्रवेश करते हैं। मलेरिया के कीड़ों की तरह ही यह कीड़े रोगी और मच्छरों दोनों में छूत पैदा करते हैं । पर इससे केवल रोगी (मनुष्य) को ही परेशानी भुगतनी पड़ती है ।

कैसे पहचाने फाइलेरिया के इस मच्छर को

मल, नालियों और गड्ढों का गंदा पानी में यह क्युलैक्स नामक मच्छर आसानी से देखे जा सकते है। इस मच्छर की पहचान है इसकी पीठ का कूबड़ और उसकी गूँज। इस मच्छर के लार्वे पानी मे टेढ़े होकर तैरते रहते है। क्युलैक्स मच्छर जब किसी व्यक्ति को काटता है तो उस व्यक्ति में फाइलेरिया के छोटे कृमि के लार्वे उसके अंदर पहुंचा देता है। यह छोटे कृमि मनुष्य के लसिका तंत्र में बड़े होकर पुरुष और मादा जीवो में बदल जाते हैं। इस कारण से लसिका नलियों में प्रज्वलन हो जाता है , जो हाथों और पैरों पर लाल धारियों के रूप में दिखाई देता है। यह वयस्क कृमि लसिका वाहिकाओं में समागम करके खूब सारे सूक्ष्म फाइलेरिया बनाते हैं। सूक्ष्म फाइलेरिया 2 से 3 साल तक जीवित रहते हैं और वयस्क कृमि करीब 12 सालों तक हमारे शरीर में रहते हैं । यह सूक्ष्म फाइलेरिया कृमि खून में घूमते रहते हैं । ऐसा खासकर रात को होता है । क्युलैक्स मच्छर जब खून चूसता है, तो वो इन सूक्ष्म फाइलेरिया को अपने अंदर ले लेता है और संक्रमण पैदा करने वाले लार्वा के रूप में इनका विकास 10 से 15 दिनों के अंदर होता है । इस अवस्था में यह मच्छर बीमारी पैदा करने वाला होता है । इस तरह यह चक्र चलता रहता है ।

इस बीमारी को रोकने का उपाय

फाइलेरिया का इलाज बीमारी की शुरुआती अवस्था में ही शुरू हो जाना चाहिए । याद रखना चाहिए कि हाथों या पैरों की सूजन ठीक करने के लिए हमारे पास कोई भी दवाई नहीं है ऐसे में रात में खून की जांच अवश्य करवाएं तभी तो सब फाइलेरिया से मुक्ति पा सकते है क्योंकि रात के समय रक्त की बूंद लेकर उसका परीक्षण ही एकमात्र ऐसा निश्चित उपाय है , जिससे इस बात का पता चल सकता है कि किसी व्यक्ति में हाथी पांव रोग के कीटाणु है अथवा नहीं। यह इसलिए क्योंकि रात को ही फाइलेरिया कीटाणु रक्त परिधि में दिखाई पड़ते हैं , जिस व्यक्ति में यह कीटाणु पाए जाते हैं उनमें साधारणतः रोग के लक्षण व चिन्ह प्रकट रूप में दिखाई नहीं देते है। उन्हें अपने रोग का एहसास नहीं होता है । ऐसे व्यक्ति इस रोग को अन्य लोगों में फैलाने का स्रोत बनते हैं, यदि इन व्यक्तियों का समय पर उपचार कर दिया जाता है तो इसे न केवल इस रोग की रोकथाम होगी, बल्कि हाथी पांव रोग को फैलने से भी रोका जा सकता है।

क्या है इस रोग का इलाज

भारत सरकार ने बीमारी के उन्मूलन के लिए फाइलेरिया उन्मूलन नाम का कार्यक्रम चलाया है । इसके तहत सार्वजनिक दवा सेवन(एम डी ए) किया जाता है जिसमें डी0ई0सी0 दवा की एक खुराक साल में एक बार खिलाई जाती है । इसलिए फाइलेरिया रोग वाले सभी क्षेत्रों में सब लोग डीईसी की सालाना खुराक लेना अति आवश्यक है , क्योंकि फाइलेरिया की औसतन आयु 4 से 6 वर्ष की होती है । इसलिए 4 से 6 साल तक डीईसी एक एकल सालाना खुराक यानी सार्वजनिक दवा सेवक (MDA) का सेवन कराकर इस संक्रमण के प्रसार को प्रभावी तौर पर समाप्त किया जा सकता है।


Conclusion:
कन्नौज के मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ0 के0 स्वरूप ने फाइलेरिया की जानकारी देते हुए इसके बचाव के बारे में बताया है कि फाइलेरिया के लिए जो यह कार्यक्रम चलता है , जिसमें कि नाइट ब्लड स्पेयर स्लाइड बनाई जाती है , रात में सोने के आधे घंटे के बाद एक सैंपल के तौर पर सर्वे किया जाता है , और जिन स्लाइड में फाइलेरिया के कण पाए जाते हैं , उन एरिया में अल्बेंडाजोल का वितरण किया जाता है । मच्छरों के लिए हर तरह से लार्विसाइडर का स्प्रे लगातार चल रहा है और फॉविंग भी कराई जा रही है। अगले सप्ताह 15 दिनों के बाद हमारा एक कार्यक्रम चलेगा, जिसमें छिड़काव वगैरह बहुत तेजी से कराया जाएगा और ब्लीचिंग व डीटीडी पाउडर का भी छिड़काव कराया जाएगा । अपने आसपास पानी एकत्र न होने दे, कूलर आदि का पानी भी 2-3 दिन में बदल दे और जहां पर भी जलभराव है वहां पर मिट्टी डालकर उसको समतल कर दें ,और अगर ऐसा नहीं कर सकते हैं तो उसके अंदर जला हुआ मोबिआयल या मिट्टी का तेल डाल दे और पूरे कपड़े रात में पहने साथ ही मच्छरदानी का प्रयोग करें , जिससे कि मच्छरों से बचाव हो सके ।

बाइट - डॉ0 के0 स्वरूप - मुख्य चिकित्सा अधिकारी, कन्नौज कन्नौज
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कन्नौज से पंकज श्रीवास्तव
09415168969
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