लखनऊ: 'पिता 'कहें या 'फादर' यह शब्द अपने आप में परिपूर्ण है. भारताीय समाज में पिता को जीवन का आधार माना जाता है. पाश्चात्य संस्कृति में हर साल जून के तीसरे रविवार को फादर्स डे मनाया जाता है. इस बार यह स्पेशल डे 16 जून को आया है.
फादर्स डे की शुरुआत 1910 में सोनोरा लुईस स्मार्ट डॉड नाम की 16 वर्षीय लड़की ने की थी. सोनोरा का लालन-पालन उनके पिता ने किया था. सोनोरा ने जब मदर्स डे के बारे में सुना तो उसने फादर्स डे मनाने के बारे में सोचा. इस तह सोनोरा के प्रयासों से ही फादर्स डे की शुरुआत हुई. इस साल फादर्स डे 16 जून को है. फादर्स डे के मौके पर अब कई तरह के आयोजन होते हैं और गिफ्ट्स की भी भरमार है.
हमारे पुराणों मे भी माता -पिता से जुड़े कई किस्से और कहानियां है. गणेश भगवान की कहानी तो सबको याद ही होगी अगर नहीं याद है तो आज फादर्स डे पर हम आपको याद दिलाते हैं...
माता-पिता के चरणों में ब्रह्मांड
"भगवान भोलेनाथ और माता पार्वती ने अपने दोनों पुत्रों कार्तिकेय जी और गणेशजी के सामने ब्रह्मांड का चक्कर लगाने की प्रतियोगिता रखी. दोनों में से कौन पहले ब्रह्मांड का चक्कर लगाता है. साथ रवाना हुए कार्तिकेय जी का वाहन था मोर जबकि गणेश जी का मूषक. कार्तिकेय जी क्षण भर में मोर पर बैठकर आंखों से ओझल हो गए जबकि गणेशजी अपनी सवारी पर धीरे-धीरे चलने लगे.
थोड़ी देर में गणेशजी फिर लौट आए और माता-पिता से क्षमा मांगी और उनकी 3 बार परिक्रमा कर कहा- लीजिए मैंने आपका काम कर दिया. दोनों काफी खुश हो गए और पुत्र गणेश की बात से सहमत भी हुए. गणेश जी का कहना था कि माता-पिता के चरणों में ही संपूर्ण ब्रह्मांड होता है."
गणेश जी के भक्तों को उनकी इसी सीख को आत्मसात करते हुए अपने माता-पिता की सेवा करनी चाहिए. हर हाल में माता-पिता को अपने साथ रख उनका ध्यान रखना चाहिए.
हमें अपने आसपास देखने में आता है कि धीरे-धीरे हम पाश्चात्य संस्कृति के रंग में रंगते जा रहे हैं. माता-पिता वृद्ध हुए कि उन्हें उनका घर (वृद्धाश्रम) दिखा देते हैं.
किस्मत वालों हैं जिनके माता-पिता हैं
शादी के पहले तक माता-पिता ही सब दिखाई देते हैं. शादी के बाद वही स्थान पत्नी और फिर बच्चों का हो जाता है तो फिर वृद्ध मां-बाप किसके भरोसे रहेंगे. आपके इस व्यवहार का लाभ आपको भी आगे जाकर मिलेगा. जिन माता-पिता ने हमें अनेक कष्ट सहकर पाला-पोसा और बड़ा किया है, हमें उनका तिरस्कार कभी नहीं करना चाहिए. माता-पिता का साया किस्मत वालों के सिर पर ही होता है. एक बार अपने मित्रों,परिचितों से मिलकर देखिए जिनके माता-पिता नहीं हैं, तो शायद इस बात का एहसास बखूबी हो जाएगा.
पिता के संघर्षमयी जीवन की बुनियाद पर हमारी कामयाबी की इमारत खड़ी होती है. तो आज अपने पिता के सम्मान में अपने पिता के साथ इस दिन को जी भर के सेलिब्रेट करें. देश के मशहूर शायर मुनव्वर राना ने पिता पर क्या खूब कहा है-
ये सोच के मैं बाप की खिदमत में लगा हूं..
इस पेड़ का साया मेरे बच्चों को मिलेगा..
तो कुमार विश्वास पिता को याद करते हुए लिखते हैं कि-
"फिर पुराने नीम के नीचे खडा हूँ
फिर पिता की याद आई है मुझे
नीम सी यादें ह्रदय में चुप समेटे
चारपाई डाल आँगन बीच लेटे
सोचते हैं हित सदा उनके घरों का"...