प्रयागराज: प्रत्येक साल में चैत्र, आषाढ़, आश्विन और माघ महीनों में चार बार नवरात्र आते हैं ,लेकिन चैत्र और आश्विन माह की शुक्ल प्रतिपदा से नवमी तक चलने वाले नवरात्र ही ज्यादा लोकप्रिय हैं जिन्हें पूरे देश में व्यापक स्तर पर मां भगवती की आराधना के लिये श्रेष्ठ माना जाता है. धर्म ग्रंथों, पुराणों के अनुसार चैत्र नवरात्रों का समय बहुत ही भाग्यशाली बताया गया है. इसका एक कारण यह भी है कि प्रकृति में इस समय हर और नये जीवन का, एक नई उम्मीद का बीज अंकुरित होने लगता है. जनमानस में भी एक नई उर्जा का संचार हो रहा होता है. लहलहाती फसलों से उम्मीदें जुड़ी होती हैं. सूर्य अपने उत्तरायण की गति में होते है. ऐसे समय में मां भगवती की पूजा कर उनसे सुख-समृद्धि की कामना करना बहुत शुभ माना गया है. क्योंकि बसंत ऋतु अपने चरम पर होती है इसलिये इन्हें वासंती नवरात्र भी कहा जाता है.
पहले दिन शैलपुत्री के रूप में पूरे देश में सिद्ध पीठ और देवी मंदिरों में देवी मां की पूजा की जा रही है. आज सुबह से ही देवी मंदिरों में भक्तों की लंबी कतारें देखने को मिल रही हैं. प्रयागराज स्थित अलोपी बाग में अलोपी देवी मंदिर में सुबह से ही भक्तों के जयकारे लगने शुरू हो गए हैं. दूर-दूर से भक्त यहां पर माता के अदृश्य रूप के रूप में दर्शन करते हैं.
यह एक ऐसा खास मंदिर है, जहां कोई मूर्ति नहीं रखी गई है. इसका नाम देवी अलोप शंकरी के नाम पर रखा गया है. मंदिर प्रांगण के बीच के स्थान में एक चबूतरा है जहां एक कुंड बना हुआ है. इसके ऊपर एक खास झूला या पालना है, जिसे लाल कपड़े से ढंक कर रखा जाता है. किंवदन्ती के अनुसार मां सती की कलाई इसी स्थान पर गिरी थी. यह प्रसिद्ध शक्ति पीठ है और इस कुंड के जल को चमत्कारिक शक्तियों वाला माना जाता है.
आस्था के इस अनूठे मन्दिर में भक्त प्रतिमा की नहीं, बल्कि झूले या पालने की ही पूजा करते हैं. अलोपी नामकरण के पीछे भी एक मान्यता है. माना जाता है कि यहां शिवप्रिया सती के दाहिने हाथ का पंजा गिरकर अदृश्य या अलोप हो गया था. इसी वजह से इस शक्ति पीठ को अलोप शंकरी नाम दिया गया.
मान्यता है की यहां कलाई पर रक्षा सूत्र बांधकर मन्नत मांगने वाले भक्तों की हर कामना पूरी होती है और हाथ मे धागा बंधे रहने तक अलोपी देवी उनकी रक्षा करती हैं प्रयागराज में तीन मंदिरों को मतांतर से शाक्तिपीठ माना जाता है और तीनों ही मंदिर प्रयाग शक्तिपीठ की शक्ति 'ललिता' के हैं. पहला मंदिर अक्षयवट है, जो किले के अन्दर स्थित है. दूसरा मंदिर ललिता देवी का मीरापुर के निकट स्थित है और तीसरा मंदिर अलोपी माता का है.