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लखनऊ: भारतेंदु नाट्य अकादमी में कलाकारों ने पेश किया समाज का आइना - suresh sharma director of nsd

राजधानी के भारतेंदु नाट्य अकादमी में 9 जून से ग्रीष्मकालीन नाट्य समारोह का आयोजन शुरू हुआ है. जिसमें नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा से आए कलाकार अलग-अलग तरह से नाटक का मंचन कर रहे हैं.

लखनऊ- ऊंच-नीच के भेदभाव दिखाकर दर्शकों को लोटपोट करता रहा 'जात ही पूछो साधु की' का मंचन
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Published : Jun 14, 2019, 10:05 AM IST

लखनऊ: भारतेंदु नाट्य अकादमी में 'ताजमहल का टेंडर' और 'जात ही पूछो साधु की' नाटक का मंचन किया गया. दरअसल अकादमी में 9 जून से ग्रीष्मकालीन नाट्य समारोह का आयोजन शुरू हुआ है, जिसमें नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा नई दिल्ली से रंगकर्मी आए हैं और हर रोज अलग-अलग तरह के नाटक का मंचन कर रहे हैं.

भारतेंदु नाट्य अकादमी में रंगकर्मियों ने नाटक का मंचन किया.

जानिए रंगकर्मी कलाकार शुभम पारीक ने क्या कहा

  • महीपत के किरदार निभा रहे शुभम पारीक कहते हैं कि इस नाटक का मंचन करते हुए मुझे ऐसा एहसास हो रहा था कि मैं समाज के बीच के ही एक मुद्दे को उठा रहा हूं.
  • जो कि कहीं न कहीं सच भी है, आज भी ऊंच-नीच और जात-पात का भेदभाव हमारे आस-पास देखने को मिल ही जाता है.
  • इस नाटक में बुंदेलखंडी भाषा का प्रयोग किया गया है.
  • मैंने भोपाल से ही नाटक करना स्टार्ट किया था, इसलिए बुंदेलखंडी भाषा को पकड़ने में मुझे ज्यादा तकलीफ नहीं हुई.
  • समाज के इस आइने को अगर गंभीरता से दिखाया जाए तो शायद लोग पसंद नहीं करते.
  • इस नाटक में पंच और व्यंग भी शामिल किया गया, जिससे लोग लोटपोट भी हुए और साथ ही नाटक के मर्म को भी समझा.

जानिए रंगकर्मी कलाकार शहनवाज ने क्या कहा

  • ताजमहल का टेंडर नाटक में शाहजहां का किरदार निभाने वाले शहनवाज कहते हैं कि यह एक ऐसा नाटक है जिसको प्राचीन काल से लाकर इस जमाने में दिखाया गया है
  • लालफीताशाही को इस नाटक में शामिल कर बेहद सहज तरीके से कहानी के मर्म को समझाने की कोशिश की गई है.
  • शहनवाज कहते हैं कि शहंशाह के किरदार में रहकर इस नाटक के तहत 25 साल तक मेहनत करने के बावजूद मेरा ताजमहल बनाने का सपना पूरा नहीं हो पाता.
  • मुझे 25 साल बाद सिर्फ ताजमहल का टेंडर मिल पाता है.
  • संक्षेप में बात करें तो यह कहानी आज के युग के भ्रष्टाचार को दिखलाती है.
  • जिस तरह से आम लोगों के लिए भ्रष्टाचार एक बेहद कड़ी चुनौती बनता जा रहा है. उसी तरह से व्यंग्य के माध्यम से इस दिखलाने की कोशिश की गई है.
  • शाहजहां को इस जमाने में ताजमहल बनवाना होता तो उसे कितनी जद्दोजहद करनी पड़ सकती थी, जैसे आम लोगों को भी यह जद्दोजहद अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में करनी पड़ती है.

विजय तेंदुलकर ने इस नाटक के साथ कई ऐसे नाटक लिखे हैं. जिसमें उन्होंने सामाजिक मुद्दों को शामिल किया है और जो हमारे आस-पास हम आज भी देखते हैं. इन सामाजिक मुद्दों को शामिल करते हुए उसकी कहानी की रोचकता को बनाए रखना तेंदुलकर को काफी अच्छे से आता है. इस नाटक में मैंने एक ऊंची जाति आदमी का किरदार निभाया है, जो कि किरदार के साथ कहानी के मर्म को भी कहीं न कहीं समझाता हुआ नजर आता है.
सुरेश शर्मा, डायरेक्टर, नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा

लखनऊ: भारतेंदु नाट्य अकादमी में 'ताजमहल का टेंडर' और 'जात ही पूछो साधु की' नाटक का मंचन किया गया. दरअसल अकादमी में 9 जून से ग्रीष्मकालीन नाट्य समारोह का आयोजन शुरू हुआ है, जिसमें नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा नई दिल्ली से रंगकर्मी आए हैं और हर रोज अलग-अलग तरह के नाटक का मंचन कर रहे हैं.

भारतेंदु नाट्य अकादमी में रंगकर्मियों ने नाटक का मंचन किया.

जानिए रंगकर्मी कलाकार शुभम पारीक ने क्या कहा

  • महीपत के किरदार निभा रहे शुभम पारीक कहते हैं कि इस नाटक का मंचन करते हुए मुझे ऐसा एहसास हो रहा था कि मैं समाज के बीच के ही एक मुद्दे को उठा रहा हूं.
  • जो कि कहीं न कहीं सच भी है, आज भी ऊंच-नीच और जात-पात का भेदभाव हमारे आस-पास देखने को मिल ही जाता है.
  • इस नाटक में बुंदेलखंडी भाषा का प्रयोग किया गया है.
  • मैंने भोपाल से ही नाटक करना स्टार्ट किया था, इसलिए बुंदेलखंडी भाषा को पकड़ने में मुझे ज्यादा तकलीफ नहीं हुई.
  • समाज के इस आइने को अगर गंभीरता से दिखाया जाए तो शायद लोग पसंद नहीं करते.
  • इस नाटक में पंच और व्यंग भी शामिल किया गया, जिससे लोग लोटपोट भी हुए और साथ ही नाटक के मर्म को भी समझा.

जानिए रंगकर्मी कलाकार शहनवाज ने क्या कहा

  • ताजमहल का टेंडर नाटक में शाहजहां का किरदार निभाने वाले शहनवाज कहते हैं कि यह एक ऐसा नाटक है जिसको प्राचीन काल से लाकर इस जमाने में दिखाया गया है
  • लालफीताशाही को इस नाटक में शामिल कर बेहद सहज तरीके से कहानी के मर्म को समझाने की कोशिश की गई है.
  • शहनवाज कहते हैं कि शहंशाह के किरदार में रहकर इस नाटक के तहत 25 साल तक मेहनत करने के बावजूद मेरा ताजमहल बनाने का सपना पूरा नहीं हो पाता.
  • मुझे 25 साल बाद सिर्फ ताजमहल का टेंडर मिल पाता है.
  • संक्षेप में बात करें तो यह कहानी आज के युग के भ्रष्टाचार को दिखलाती है.
  • जिस तरह से आम लोगों के लिए भ्रष्टाचार एक बेहद कड़ी चुनौती बनता जा रहा है. उसी तरह से व्यंग्य के माध्यम से इस दिखलाने की कोशिश की गई है.
  • शाहजहां को इस जमाने में ताजमहल बनवाना होता तो उसे कितनी जद्दोजहद करनी पड़ सकती थी, जैसे आम लोगों को भी यह जद्दोजहद अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में करनी पड़ती है.

विजय तेंदुलकर ने इस नाटक के साथ कई ऐसे नाटक लिखे हैं. जिसमें उन्होंने सामाजिक मुद्दों को शामिल किया है और जो हमारे आस-पास हम आज भी देखते हैं. इन सामाजिक मुद्दों को शामिल करते हुए उसकी कहानी की रोचकता को बनाए रखना तेंदुलकर को काफी अच्छे से आता है. इस नाटक में मैंने एक ऊंची जाति आदमी का किरदार निभाया है, जो कि किरदार के साथ कहानी के मर्म को भी कहीं न कहीं समझाता हुआ नजर आता है.
सुरेश शर्मा, डायरेक्टर, नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा

Intro:नोट-- कृपया कमेंट में लिखे गए 'बड़ी खबरों' के तात्पर्य को समझाने का कष्ट करें।

लखनऊ। भारतेंदु नाट्य अकादमी में ग्रीष्मकालीन नाट्य समारोह के तहत नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा से आए रंग कर्मियों द्वारा बुधवार को 'जात ही पूछो साधु की' नामक नाटक का मंचन किया गया। 2 घंटे के इस नाटक ने न केवल दर्शकों को बांधे रखा बल्कि समाज के ही बीच से व्यंग को उठाकर लोगों को हंसी से लोटपोट भी किया।


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नाटक के बारे में बताते हुए नाटक के मुख्य कलाकार महीपत के किरदार में रहे शुभम पारी कहते हैं कि इस नाटक को मंचन करते हुए मुझे ऐसा एहसास हो रहा था कि मैं समाज के बीच के ही एक मुद्दे को उठा रहा हूं जो कि कहीं ना कहीं सच भी है आज भी ऊंच-नीच और जात-पात का भेद-भाव हमारे आसपास देखने को मिल ही जाता है इस नाटक में बुंदेलखंडी भाषा का प्रयोग किया गया है कि मैंने भोपाल से ही नाटक करना स्टार्ट किया था इसलिए बुंदेलखंडी भाषा को पकड़ने में मुझे ज्यादा तकलीफ नहीं हुई क्योंकि समाज के इस आईने को अगर गंभीरता से दिखलाया जाए तो शायद लोग पसंद नहीं करते इसीलिए इस नाटक में पंच और व्यंग भी शामिल किया गया जिससे लोग लोटपोट भी हुए और साथ ही नाटक के मर्म को भी समझा।

नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा दिल्ली के डायरेक्टर सुरेश शर्मा ने भी इस नाटक में एक अहम किरदार निभाया के बारे में वह कहते हैं कि विजय तेंदुलकर ने इस नाटक के साथ कई ऐसे नाटक लिखे हैं जिसमें उन्होंने सामाजिक मुद्दों को शामिल किया है और जो हमारे आसपास हम आज भी देखते हैं। इन सामाजिक मुद्दों को शामिल करते हुए उसकी कहानी की रोचकता को बनाए रखना तेंदुलकर को काफी अच्छे से आता है। इस नाटक में मैंने एक ऊंची जाति आदमी का किरदार निभाया है जो कि किरदार के साथ कहानी के मर्म को भी कहीं न कहीं समझाता हुआ नजर आता है।


Conclusion:बाइट- शुभम पारीक, सुरेश शर्मा

रामांशी मिश्रा
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