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हमीरपुर: कभी गुलजार हुआ करता था बदहाल पड़ा सिटी फारेस्ट पार्क

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Published : Jun 6, 2019, 12:59 PM IST

सरकारी बजट का लाखों रुपया खर्च होने के बाद अब धनाभाव के चलते पर्यावरण संरक्षण के उद्देश्य से बनाया गया सिटी फारेस्ट बर्बादी की कगार पर पहुंच चुका है. धीरे-धीरे इसका अस्तित्व समाप्त होता जा रहा है, लेकिन विभाग इस ओर कोई ध्यान नहीं दे रहा है.

सिटी फारेस्ट बर्बादी की कगार पर

हमीरपुर: वन विभाग द्वारा शुद्ध वातावरण के साथ-साथ जिले के आमजन को मनोरंजन उपलब्ध कराने के उद्देश्य से सिटी फॉरेस्ट पार्क की स्थापना की गई थी, लेकिन प्रशासनिक उदासीनता के चलते जिले की जनता के लिए अब यह पार्क एक बदनुमा दाग बनकर रह गया है. देख-रेख न होने के चलते यह मनोरंजन पार्क अब जंगल में तब्दील हो गया है, जिसकी वजह से यहां लोग जाने से भी कतराते हैं.

कभी गुलजार हुआ करता था बदहाल पड़ा सिटी फारेस्ट पार्क

पार्क में लगे ज्यादातर झूले टूट गए हैं और जगह-जगह जंगली घास उग आई है. पहले यहां पर सुबह ताजी हवा में लोग टहलने आते थे, लेकिन अव्यवस्थाओं के चलते अब यह पार्क महज अराजकता का अड्डा बनकर रह गया है. यहां सुरक्षा के लिए कोई चौकीदार तक तैनात नहीं है, जिससे ये पार्क अराजक तत्वों के लिए आरामगाह बनकर रह गया है. क्षेत्रीय निवासी पार्क की इस बदहाली के लिए प्रशासनिक मशीनरी के साथ-साथ जनप्रतिनिधियों को भी जिम्मेदार मानते है.

मोती लाल वोरा ने किया था उद्घाटन, शिलापट तक उखाड़ ले गए लोग
10 जून 1993 को उत्तर प्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल मोती लाल वोरा ने सिटी फॉरेस्ट का उद्घाटन कर हमीरपुर की जनता को एक अनमोल तोहफा दिया था. आलम यह है कि पार्क में जगह-जगह लगी लोहे की जालियां गायब हैं. वहीं टिकटघर और कैंटीन में ब्रह्मा का डेरा के गांव निवासी अपने मवेशी बांधते हैं. 74 लाख की लागत से बने इस पार्क में जगह-जगह फैन्सी लाइटें लगाई गई थी लेकिन ये लाइटें भी खंभा सहित उखड़ चुकी हैं.


जिले के विख्यात समाजसेवी एवं रेडक्रॉस संस्था के सचिव जलीस खान सिटी फॉरेस्ट की बदहाली के लिए जनप्रतिनिधियों को जिम्मेदार ठहराते हुए कहते है कि हमीरपुर टाउन एरिया का हार्ट सिटी फॉरेस्ट जनप्रतिनिधियों की उदासीनता के चलते इस दयनीय अवस्था में पहुंच गया है. वे बताते हैं कि ये पार्क जिलाधिकारी डॉक्टर बीपी नीलरत्न का बेहतरीन प्रोजेक्ट था.

सिटी फॉरेस्ट के लिए बजट न होने वजह से विभाग देख-रेख नहीं कर पा रहा है. हमारी कोशिश होगी कि जल्द से जल्द सिटी फॉरेस्ट को पुराने स्वरूप में वापस लाया जा सके. इसके लिए शासन के अधिकारियों से बात की जाएगी और जल्द से जल्द फंड मुहैया कराकर पार्क को दोबारा जिले के एक दर्शनीय स्थल के रूप में विकसित करेंगे.
- संजीव कुमार, प्रभागीय वनाधिकारी

हमीरपुर: वन विभाग द्वारा शुद्ध वातावरण के साथ-साथ जिले के आमजन को मनोरंजन उपलब्ध कराने के उद्देश्य से सिटी फॉरेस्ट पार्क की स्थापना की गई थी, लेकिन प्रशासनिक उदासीनता के चलते जिले की जनता के लिए अब यह पार्क एक बदनुमा दाग बनकर रह गया है. देख-रेख न होने के चलते यह मनोरंजन पार्क अब जंगल में तब्दील हो गया है, जिसकी वजह से यहां लोग जाने से भी कतराते हैं.

कभी गुलजार हुआ करता था बदहाल पड़ा सिटी फारेस्ट पार्क

पार्क में लगे ज्यादातर झूले टूट गए हैं और जगह-जगह जंगली घास उग आई है. पहले यहां पर सुबह ताजी हवा में लोग टहलने आते थे, लेकिन अव्यवस्थाओं के चलते अब यह पार्क महज अराजकता का अड्डा बनकर रह गया है. यहां सुरक्षा के लिए कोई चौकीदार तक तैनात नहीं है, जिससे ये पार्क अराजक तत्वों के लिए आरामगाह बनकर रह गया है. क्षेत्रीय निवासी पार्क की इस बदहाली के लिए प्रशासनिक मशीनरी के साथ-साथ जनप्रतिनिधियों को भी जिम्मेदार मानते है.

मोती लाल वोरा ने किया था उद्घाटन, शिलापट तक उखाड़ ले गए लोग
10 जून 1993 को उत्तर प्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल मोती लाल वोरा ने सिटी फॉरेस्ट का उद्घाटन कर हमीरपुर की जनता को एक अनमोल तोहफा दिया था. आलम यह है कि पार्क में जगह-जगह लगी लोहे की जालियां गायब हैं. वहीं टिकटघर और कैंटीन में ब्रह्मा का डेरा के गांव निवासी अपने मवेशी बांधते हैं. 74 लाख की लागत से बने इस पार्क में जगह-जगह फैन्सी लाइटें लगाई गई थी लेकिन ये लाइटें भी खंभा सहित उखड़ चुकी हैं.


जिले के विख्यात समाजसेवी एवं रेडक्रॉस संस्था के सचिव जलीस खान सिटी फॉरेस्ट की बदहाली के लिए जनप्रतिनिधियों को जिम्मेदार ठहराते हुए कहते है कि हमीरपुर टाउन एरिया का हार्ट सिटी फॉरेस्ट जनप्रतिनिधियों की उदासीनता के चलते इस दयनीय अवस्था में पहुंच गया है. वे बताते हैं कि ये पार्क जिलाधिकारी डॉक्टर बीपी नीलरत्न का बेहतरीन प्रोजेक्ट था.

सिटी फॉरेस्ट के लिए बजट न होने वजह से विभाग देख-रेख नहीं कर पा रहा है. हमारी कोशिश होगी कि जल्द से जल्द सिटी फॉरेस्ट को पुराने स्वरूप में वापस लाया जा सके. इसके लिए शासन के अधिकारियों से बात की जाएगी और जल्द से जल्द फंड मुहैया कराकर पार्क को दोबारा जिले के एक दर्शनीय स्थल के रूप में विकसित करेंगे.
- संजीव कुमार, प्रभागीय वनाधिकारी

Intro:जल्द बहुरेंगे सिटी फॉरेस्ट के दिन, लौटेगी पुरानी रंगत

हमीरपुर। वन विभाग द्वारा शुद्ध वतावरण के साथ-साथ जिले के आमजन को मनोरंजन उपलब्ध कराने के उद्देश्य से सिटी फॉरेस्ट पार्क की स्थापना की गई थी। लेकिन प्रशासनिक उदासीनता के चलते जिले की जनता के लिए अब ये पार्क एक बद्मुना दाग बनकर रहा गया है। देख-रेख न होने के चलते ये मनोरंजन पार्क अब जंगल में तब्दील हो गया है जिसकी वजह से यहां लोग जाने से कतराते हैं। पार्क में लगे ज्यादातर झूले टूट गए हैं तथा जगह-जगह जंगली घास उग आई है। पहले यहां पर सुबह ताजी हवा में लोग टहलने आते थे लेकिन अव्यवस्थाओं के चलते अब ये पार्क महज अराजकता का अड्डïा बनकर रह गया है। यहां सुरक्षा के लिए कोई चौकीदार तक तैनात नहीं है जिससे ये पार्क अराजक तत्वों के लिए आरामगाह बनकर रह गया है। क्षेत्रीय निवासी पार्क की इस बदहाली के लिए प्रशासनिक मशीनरी के साथ-साथ जनप्रतिनिधियों को भी जिम्मेदार मानते हैं।  लेकिन जल्द ही इस पार्क के अब दिन बहुरने वाले हैं।

मोती लाल वोरा ने किया था उद्घाटन, शिलापट तक उखाड़ ले गए लोग

10 जून 1993 को उत्तर प्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल मोती लाल वोरा ने सिटी फॉरेस्ट का उद्घाटन कर हमीरपुर की जनता को एक अनमोल तोहफा दिया था। वन विभाग की ओर से आयोजित भव्य समारोह के बाद राज्यपाल ने शिलापट से पर्दा हटाकर जिले की आम जनता को सौंपा था, लेकिन अब ये शिलापट भी यहां मौजूद नहीं है। अराजक तत्व इस शिलापट तक को उखाड़ ले गए हैं। जगह-जगह लगी लोहे की जालियां अब गायब हैं। वहीं टिकटघर और कैंटीन में ब्रह्मïा का डेरा के गांव निवासी अपने मवेशी बांधते हैं। 74 लाख की लागत से बने इस पार्क में जगह-जगह फैन्सी लाइटें लगाई गई थी लेकिन ये लाइटें भी खंभा सहित उखड़ चुकी हैं। 




Body:अब पार्क में बच्चे तक जाने से हैं डरते

सिटी फॉरेस्ट की बदहाली का अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि जिस सिटी फॉरेस्ट पार्क में जाने के लिए कभी बच्चे मम्मी-पापा से जिद किया करते थे आज उस पार्क में जाने से डरते हैं। रखरखाव ने होने से इस पार्क में बड़ी-बड़ी झाडिय़ां एवं जंगली पेड़ उग आए हैं। पार्क में लगे सभी झूले टूट चुके हैं तथा वाटर बोटिंग के लिए बनाया गया सरोवर बबूल के पेड़ों से पट गया है। वहीं टिकटघर मवेशियों की आरामगाह बनकर रह गया है। बच्चों का मन लुभाने के लिए पार्क में बने सीमेंट के हाथी और कछुओं को भी अराजक लोगों ने क्षति पहुंचाई है। 





Conclusion:जिले के विख्यात समाजसेवी एवं रेडक्रॉस संस्था के सचिव जलीस खान सिटी फॉरेस्ट की बदहाली के लिए जनप्रतिनिधियों को जिम्मेदार ठहराते हुए कहते है कि हमीरपुर टाउन एरिया का हार्ट सिटी फॉरेस्ट जनप्रतिनिधियों की उदासीनता के चलते इस दयनीय अवस्था में पहुंच गया है। वे बताते हैं कि ये पार्क जिलाधिकारी डॉक्टर बीपी नीलरत्न का बेहतरीन प्रोजेक्ट था। जिसे बाद में कई अधिकारियों ने बढ़ाया जिनमें डीएफओ केके सिंह भी शामिल हंै जिन्होंने वहां पर वन्य जीवन से संबंधित कई कलाकृतियां बनवाई थी ताकि मनोरजंन के लिए लोग ज्यादा से ज्यादा आकर्षित हों। वहीं सिटी फॉरेस्ट की बदहाली के बारे में सवाल करने पर प्रभागीय वनाधिकारी संजीव कुमार कहते हैं कि सिटी फॉरेस्ट के लिए बजट न होने वजह से विभाग उसकी देख-रेख नहीं कर पा रहा है। वे बताते हैं कि सिटी फॉरेस्ट के लिए शासन से सिर्फ 1998 तक बजट आया और उसके बाद बंद हो गया। जिससे धनाभाव के चलते सिटी फॉरेस्ट बदहाली का शिकार हो गया। वे कहते हैं कि उनकी कोशिश होगी कि वे जल्द से जल्द सिटी फॉरेस्ट को पुराने स्वरूप में वापस ला सकें। इसके लिए वे शासन के अधिकारियों से इस बारे में वार्ता करेंगे और जल्द से जल्द फंड का इंतजाम कर सिटी फॉरेस्ट को पुन: जिले के एक दर्शनीय स्थल के रूप में विकसित करेंगे। 

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पहली बाइट : जलीस खना, समाजसेवी

दूसरी बाइट -  संजीव कुमार, प्रभागीय वनाधिकारी, हमीरपुर
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