अलीगढ़: मंदिर हो, मस्जिद हो, गिरजाघर हो या फिर गुरुद्वारा हो इन जगहों पर लोग क्यों जाते हैं? इस सवाल का बस एक जवाब है कि अपने-अपने भगवान से कुछ न कुछ मांगने के लिए. लेकिन, क्या आपने कभी सोचा है कि हर दिन जब लाखों लोग इन जगहों पर जाकर कुछ मांगते हैं तो इनमें से केवल कुछ लोगों की ही मनोकामना क्यों पूरी होती है? दुनियाभर में लाखों लोग हर दिन इन जगहों पर जाकर अपनी-अपनी मनोकामनाएं पूरी करने के लिए भगवान के सामने प्रार्थना करते हैं.
इस मंदिर को पीपल वाला या 'लंगोट बाबा' के मंदिर के नाम से जाना जाता है. इसकी आधारशिला पंडित शिव शंकर शर्मा ने रखी थी. स्व. शिव शंकर शर्मा की मृत्यु के बाद वेद प्रकाश शर्मा यहां देख-रेख करते हैं. यहां लोगों का मानना है कि मन्नत मांगने वाले लोग कभी खाली हाथ नहीं लौटते. किसी बीमारी की चिंता हो या किसी लड़की की शादी की चिंता हो हर किसी की मनोकामना यहां पूरी होती है. मनोकामना पूरी करने के लिए लोग सोमवार को यहां पहुंचते हैं. जब मन्नत पूरी होती है तो लोग यहां पीपल के पेड़ पर भगवा रंग की लंगोट बांधते हैं.
यहां से गुजरने वालों की नजर पीपल पर बांधे गए लंगोट पर जरूर पड़ती है. दो बड़े पीपल के पेड़ और उनके बीच में भगवान शंकर जिनकी पूजा की जाती है. 'लंगोट बाबा का मंदिर' के नाम से यह मंदिर प्रसिद्ध है. हालांकि यहां कोई तड़क-भड़क नहीं है और न ही कोई आडंबर.
यहां के बाबा वेद प्रकाश ने बताया कि यह ब्रह्मदेव का स्थान है. कोई भी मनोकामना पूरी होने पर लंगोट बांधा जाता है. कुछ लोग पहले भी लंगोट को यहां बांध देते हैं. यहां लंगोट के साथ बीड़ी या सिगरेट भी लोग चढ़ाते हैं. ऐसी मान्यता है कि इसकी स्थापना करने वाले बाबा चिलम पीते थे और उनको बीड़ी, सिगरेट चढ़ाने पर वह प्रसन्न होते हैं.
यहां सोमवार को लोगों की भीड़ होती है लेकिन शनिवार को कड़वे तेल का चिराग भी जलाया जाता है. अब तक यहां हजारों लोग लंगोट बांध चुके हैं. यहां बीमारी से परेशानी के चलते लोग आते हैं. 'लंगोट बाबा के मंदिर' में उनकी इच्छाएं पूरी होती है. यहां शिवरात्रि को बड़े मेले का आयोजन किया जाता है. यहां दूर-दूर से लोग दर्शन के लिए आते हैं और लंगोट बांधते है.