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कैसे मिलेगी ग्रामीण विकास को रफ्तार, जब ग्राम सचिवालय ही खड़े हैं लाचार - dm balrampur

बलरामपुर जिले के 801 ग्राम सभाओं में स्थित तकरीबन 700 ग्राम पंचायतों में से अधिकतर बदहाली की हालत में हैं. ग्राम सचिवालय के जर्जर भवन अब ग्रामीणों के गाय-भैंसों को बांधने का अड्डा बन चुका है.

बदहाल पड़ा है ग्राम पंचायत.
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Published : Mar 14, 2019, 11:42 AM IST

बलरामपुर : योगी सरकार ने अपने शुरुआती दिनों में एक आदेश दिया था कि ग्राम सचिवालयों के जरिए ही लोकवाणी केंद्रों का संचालन किया जाएगा. यहां पर आय, जाति, निवास जैसे प्रमाण पत्रों का वितरण किया जाएगा. इसके साथ ही ग्राम सचिवालय में ही ग्रामीण स्तर के अधिकारी बैठेंगे और लोगों की समस्याओं का निदान करेंगे, लेकिन बलरामपुर जिले में यह योजना परवान नहीं चढ़ सकी.

बदहाल पड़ा है ग्राम पंचायत.

ग्राम पंचायत विभाग द्वारा जिले के लगभग सभी ग्राम सभाओं में ग्रामीण विकास पर चर्चा और मंथन करने के साथ-साथ तमाम छोटी-बड़ी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए ग्राम सचिवालयों या पंचायत भवनों का निर्माण करवाया गया था. इसके जरिए लक्ष्य साधा गया था कि गांव में रहने वाले लोगों के साथ उनके गांव के बारे में चर्चा करके विकास के खाके को तैयार किया जाएगा. स्थानीय लोगों के अनुरूप ही ग्रामीण विकास को करवाया जाएगा.

बदहाली की शिकार 700 ग्राम पंचायत
बलरामपुर जिले के 801 ग्राम सभाओं में स्थित तकरीबन 700 ग्राम पंचायतों में से अधिकतर बदहाली की हालत में हैं. किसी ग्राम सचिवालय में इस तरह की न तो कोई व्यवस्था है और न ही वहां पर ग्रामीण विकास से जुड़ी किसी समस्या का निदान होता है. ग्राम सचिवालय के जर्जर भवन अब ग्रामीणों के लिए जानवरों को बांधने का अड्डा बन चुके हैं. इसके साथ ही ग्राम सचिवालय परिसर में ग्रामीणों द्वारा लहसुन, धनिया की खेती की जा रही है.

विकास की राह ताकता पचपेड़वा ब्लाक
बलरामपुर जिले के सबसे पिछड़े इलाकों में पचपेड़वा ब्लाक का नाम आता है, यहां पर तकरीबन 15-20 गांव में थारू जनजाति रहती है. इस कारण यहां पर प्रदेश सरकार के द्वारा भी विकास कार्यों पर नजर बनाए रखी जाती है, लेकिन जिले के अधिकारियों का सुस्त रवैया यहां पर भी विकास कार्यों को बल नहीं दे पा रहा है. पचपेड़वा ब्लाक के लक्ष्मीनगर ग्राम सभा में तकरीबन 5 हजार की आबादी निवास करती है. इस आबादी के विकास कार्यों के लिए ग्राम सभा में पंचायत भवन का निर्माण भी करवाया गया है, लेकिन अब पंचायत भवन पूरी तरह से जर्जर हो चुका है.

ग्राम पंचायत भवन बना जानवरों को बांधने का अड्डा
ग्रामीणों ने बताया कि पिछले सात-आठ साल से ग्राम पंचायत भवन की यही स्थिति देख रहे हैं. हर बार जब कोई आता है तो ग्रामीण जानवरों को हटा लेते हैं, लेकिन उसके बाद फिर इसी तरह से गाय भैंस लगातार यहां पर बांधी जाने लगती हैं. प्रधान ने गांव में कोई काम नहीं करवाया है. गांव में न तो नालियां हैं और न ही सड़कें. जब पंचायत भवन ही जर्जर है तो ग्रामीण विकास का खाका कैसे बनाया जाता होगा.

क्या कहते हैं जिम्मेदार
जिलाधिकारी कृष्णा करुणेश का दावा है कि ग्राम पंचायतों में स्थित पंचायत भवनों के कायाकल्प की रूपरेखा 'ऑपरेशन कायाकल्प' के जरिए की गई है, लेकिन जमीन पर इस योजना का भी नामोनिशान नहीं दिखता है. जिलाधिकारी कृष्णा करुणेश ने बताया कि जिले की कई ग्रामसभाओं के पंचायत भवन जर्जर हैं. हम इनके विकास के लिए काम कर रहे हैं. इसके लिए 'ऑपरेशन कायाकल्प' के जरिए पैसे देने की व्यवस्था है, लेकिन पहले फेज़ में हम प्राथमिक विद्यालय और उच्च प्राथमिक विद्यालयों का कायाकल्प कर रहे हैं. जैसे ही विद्यालयों में चल रहे काम पूरे हो जाते हैं, हम इन पर भी काम शुरू कर देंगे.

बलरामपुर : योगी सरकार ने अपने शुरुआती दिनों में एक आदेश दिया था कि ग्राम सचिवालयों के जरिए ही लोकवाणी केंद्रों का संचालन किया जाएगा. यहां पर आय, जाति, निवास जैसे प्रमाण पत्रों का वितरण किया जाएगा. इसके साथ ही ग्राम सचिवालय में ही ग्रामीण स्तर के अधिकारी बैठेंगे और लोगों की समस्याओं का निदान करेंगे, लेकिन बलरामपुर जिले में यह योजना परवान नहीं चढ़ सकी.

बदहाल पड़ा है ग्राम पंचायत.

ग्राम पंचायत विभाग द्वारा जिले के लगभग सभी ग्राम सभाओं में ग्रामीण विकास पर चर्चा और मंथन करने के साथ-साथ तमाम छोटी-बड़ी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए ग्राम सचिवालयों या पंचायत भवनों का निर्माण करवाया गया था. इसके जरिए लक्ष्य साधा गया था कि गांव में रहने वाले लोगों के साथ उनके गांव के बारे में चर्चा करके विकास के खाके को तैयार किया जाएगा. स्थानीय लोगों के अनुरूप ही ग्रामीण विकास को करवाया जाएगा.

बदहाली की शिकार 700 ग्राम पंचायत
बलरामपुर जिले के 801 ग्राम सभाओं में स्थित तकरीबन 700 ग्राम पंचायतों में से अधिकतर बदहाली की हालत में हैं. किसी ग्राम सचिवालय में इस तरह की न तो कोई व्यवस्था है और न ही वहां पर ग्रामीण विकास से जुड़ी किसी समस्या का निदान होता है. ग्राम सचिवालय के जर्जर भवन अब ग्रामीणों के लिए जानवरों को बांधने का अड्डा बन चुके हैं. इसके साथ ही ग्राम सचिवालय परिसर में ग्रामीणों द्वारा लहसुन, धनिया की खेती की जा रही है.

विकास की राह ताकता पचपेड़वा ब्लाक
बलरामपुर जिले के सबसे पिछड़े इलाकों में पचपेड़वा ब्लाक का नाम आता है, यहां पर तकरीबन 15-20 गांव में थारू जनजाति रहती है. इस कारण यहां पर प्रदेश सरकार के द्वारा भी विकास कार्यों पर नजर बनाए रखी जाती है, लेकिन जिले के अधिकारियों का सुस्त रवैया यहां पर भी विकास कार्यों को बल नहीं दे पा रहा है. पचपेड़वा ब्लाक के लक्ष्मीनगर ग्राम सभा में तकरीबन 5 हजार की आबादी निवास करती है. इस आबादी के विकास कार्यों के लिए ग्राम सभा में पंचायत भवन का निर्माण भी करवाया गया है, लेकिन अब पंचायत भवन पूरी तरह से जर्जर हो चुका है.

ग्राम पंचायत भवन बना जानवरों को बांधने का अड्डा
ग्रामीणों ने बताया कि पिछले सात-आठ साल से ग्राम पंचायत भवन की यही स्थिति देख रहे हैं. हर बार जब कोई आता है तो ग्रामीण जानवरों को हटा लेते हैं, लेकिन उसके बाद फिर इसी तरह से गाय भैंस लगातार यहां पर बांधी जाने लगती हैं. प्रधान ने गांव में कोई काम नहीं करवाया है. गांव में न तो नालियां हैं और न ही सड़कें. जब पंचायत भवन ही जर्जर है तो ग्रामीण विकास का खाका कैसे बनाया जाता होगा.

क्या कहते हैं जिम्मेदार
जिलाधिकारी कृष्णा करुणेश का दावा है कि ग्राम पंचायतों में स्थित पंचायत भवनों के कायाकल्प की रूपरेखा 'ऑपरेशन कायाकल्प' के जरिए की गई है, लेकिन जमीन पर इस योजना का भी नामोनिशान नहीं दिखता है. जिलाधिकारी कृष्णा करुणेश ने बताया कि जिले की कई ग्रामसभाओं के पंचायत भवन जर्जर हैं. हम इनके विकास के लिए काम कर रहे हैं. इसके लिए 'ऑपरेशन कायाकल्प' के जरिए पैसे देने की व्यवस्था है, लेकिन पहले फेज़ में हम प्राथमिक विद्यालय और उच्च प्राथमिक विद्यालयों का कायाकल्प कर रहे हैं. जैसे ही विद्यालयों में चल रहे काम पूरे हो जाते हैं, हम इन पर भी काम शुरू कर देंगे.

Intro:(नोट - वीडियो पैकेज मोजो डिसचार्ज होने के कारण पर्सनल मोबाइल से बनाया गया था। इस कारण वीडियो फीड यथावत स्लग नाम के साथ एफ़टीपी के माध्यम से प्रेषित की जा रही है। इसके साथ ही डीएम कृष्णा करुणेश की बाईट मोजो के माध्यम से प्रेषित हैं। आदरणीय महोदय कृपया संज्ञान लें।)

बलरामपुर जिले में विकास को लेकर तमाम दावे किए जा रहे हैं। इन दावों को बल देने के लिए केंद्र सरकार के अधीन काम करने वाला नीति आयोग तथा उत्तर प्रदेश सरकार भी भरसक प्रयास कर रहे हैं। लेकिन दावे हकीकत में कैसे बदलेंगे? इसकी तस्वीर साफ नजर नहीं आती।
जिले में 101 न्याय पंचायतें हैं और 801 ग्राम सभाएं। जिले के ग्रामीण इलाकों में तकरीबन 20 लाख की आबादी निवास करती है। जिसके जीवन स्तर को आगे बढ़ाने का जिम्मा ग्राम पंचायत विभाग के कंधों पर है। ग्राम पंचायत विभागीय उसके अधीन तमाम उपविभागों के जरिए विकास कार्यों को बल देता है।
ग्राम पंचायत विभाग द्वारा जिले के लगभग सभी ग्रामसभाओं में ग्रामीण विकास पर चर्चा और मंथन करने के साथ-साथ तमाम छोटी-बड़ी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए ग्राम सचिवालयों या पंचायत भवनों का निर्माण करवाया गया था। इसके जरिए लक्ष्य साधा गया था कि गांव में रहने वाले लोगों के साथ उनके गांव के बारे में चर्चा करके विकास के खाके को तैयार किया जाएगा और स्थानीय लोगों के अनुरूप ही ग्रामीण विकास को करवाया जाएगा। इसके साथ ही योगी सरकार ने अपने शुरुआती दिनों में एक आदेश दिया था कि ग्राम सचिवालयों के जरिए ही लोकवाणी केंद्रों का संचालन किया जाएगा और यहां पर आय, जाति, निवास जैसे प्रमाण पत्रों का वितरण किया जाएगा। इसके साथ ही ग्राम सचिवालय में ही ग्रामीण स्तर के अधिकारी बैठेंगे और लोगों की समस्याओं का निदान किया करेंगे। लेकिन बलरामपुर जिले में यह योजना परवान चढ़ नहीं सकी।


Body:बलरामपुर जिले के 801 ग्राम सभाओं में स्थित तकरीबन 700 ग्राम सचिवालयों में से अधिकतर बदहाली की हालत में हैं। किसी ग्राम सचिवालय में इस तरह की ना तो कोई व्यवस्था है और ना ही वहां पर ग्रामीण विकास से जुड़ी किसी समस्या का निदान होता है। न ही एसएमसी यानी ग्राम संसद द्वारा कोई बैठक की जाती है। ग्राम सचिवालय के जर्जर भवनों अब ग्रामीणों के गाय-भैंसों को को बांधने का अड्डा बन चुका है। इसके साथ ही ग्राम सचिवालय परिसर में ग्रामीणों द्वारा लहसुन धनिया की खेती की जा रही है। ग्राम विकास के खाके को तैयार करने का जिम्मा जिन ग्राम सचिवालय ऊपर था। वह अपना ही खाका बिगाड़े बैठे हुए हैं। ऐसे में ग्रामीण विकास को लेकर किए जा रहे दावे जिले में कितने जमीनी है। इस बात का अंदाजा खुद-ब-खुद लगाया जा सकता है।
बलरामपुर जिले के सबसे पिछड़े इलाकों में पचपेड़वा ब्लॉक का नाम आता है यहां पर तकरीबन 15-20 गांव में थारू जनजाति निवास करती है। इस कारण यहां पर प्रदेश सरकार के द्वारा भी विकास कार्यों पर नजर बनाए रखी जाती है। लेकिन जिले के अधिकारियों का सुस्त रवैया यहां पर भी विकास कार्यों को बल नहीं दे पा रहा है। पचपेड़वा ब्लॉक के लक्ष्मीनगर ग्राम सभा में तकरीबन 5000 की आबादी निवास करती है। इस आबादी के विकास कार्यों के लिए ग्राम सभा में पंचायत भवन का निर्माण भी करवाया गया है। लेकिन अब पंचायत भवन पूरी तरह से जर्जर हो चुका है। यहां पर लोग अपने गाय-भैंसों को मानते हैं तथा परिसर के अंदर खेती करते हैं। पंचायत भवन के बाउंड्री वाल पूरी तरह से जर्जर होकर गायब हो चुके हैं। भवन के दरवाजे टूट रहे हैं। लेकिन ना तो ग्राम प्रधान इसको देखने वाले हैं और ना ही जिले का कोई अधिकारी।
ग्रामीणों ने हमसे बात करते हुए कहा कि हम पिछले सात-आठ साल से ग्राम पंचायत भवन की यही स्थिति देख रहे हैं। हर बार जब कोई आता है तो ग्रामीणों द्वारा अपनी गायों भैंसों को हटा लिया जाता है। लेकिन उसके बाद फिर इसी तरह से गाय भैंस लगातार यहां पर बांधी जाने लगती हैं। प्रधान ने गांव में कोई काम नहीं करवाया है। गांव में न तो नालियां है और न ही सड़कें। जब पंचायत भवन ही जर्जर है तो ग्रामीण विकास का खाका कैसे बनाया जाता होगा। आप खुद इसका अंदाजा लगा सकते हैं।


Conclusion:जिलाधिकारी कृष्णा करुणेश का दावा है कि ग्राम पंचायतों में स्थित पंचायत भवनों के कायाकल्प की रूपरेखा 'ऑपरेशन कायाकल्प' के जरिए की गई है। लेकिन जमीन पर इस योजना का भी नामोनिशान नहीं दिखता है।
हमसे बात करते हुए जिलाधिकारी कृष्णा करुणेश ने बताया कि जिले के तमाम ग्रामसभाओं के पंचायत भवन जर्जर हैं। हम इनके विकास के लिए काम कर रहे हैं। इसके लिए 'ऑपरेशन कायाकल्प' के जरिए पैसे देने की व्यवस्था है। लेकिन पहले फेज़ में हम प्राथमिक विद्यालय और उच्च प्राथमिक विद्यालयों का कायाकल्प कर रहे हैं। जैसे ही विद्यालयों में चल रहे काम पूरे हो जाते हैं। हम इनपर भी काम शुरू कर देंगे। उन्होंने यह भी कहा कि जहां जहां विद्यालय के कायाकल्प का काम पूरा हो गया है। वहां-वहां पर प्रधानों द्वारा पंचायत भवनों और समुदायिक केंद्रों के कायाकल्प का काम करवाया जा रहा है। इन ग्राम पंचायत भवनों की सूरत ऑपरेशन कायाकल्प के जरिए जल्द से जल्द बदली नज़र आएगी।
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