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Sengol : जानें क्या होता है सेंगोल और इस मौके पर नेहरू का क्यों किया जा रहा जिक्र

संसद के नए भवन का उद्घाटन 28 मई को हो रहा है. इस मौके पर सेंगोल को भी सदन के भीतर स्थापित किया जाएगा. यह सेंगोल क्या होता है और सेंगोल का नेहरू से क्या संबंध था, आइए जानते हैं पूरी स्टोरी.

sangole chola era
सेंगोल परंपरा
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Published : May 24, 2023, 1:01 PM IST

Updated : May 24, 2023, 3:57 PM IST

नई दिल्ली : सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के तहत 28 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संसद के नए भवन का उद्घाटन करेंगे. इसकी तैयारी पूरी कर ली गई है. गृह मंत्री अमित शाह ने आज इसकी जानकारी दी. इस मौके पर एक और पुरानी परंपरा को पुनर्जीवित किया जाएगा. इसे सेंगोल परंपरा कहते हैं. यह चोल काल से ही चली आ रही है. कुछ इतिहासकारों का मानना है कि मौर्य काल में भी यह परंपरा थी.

सेंगोल का मतलब - संपदा से संपन्न होता है. इसे सत्ता का प्रतीक माना जाता है. इसे स्पीकर के ठीक बगल में रखा जाएगा. इसके शीर्ष पर नंदी की मूर्ति है. अंग्रेजों ने 14 अगस्त 1947 को इसी सेंगोल को भारतीयों को ट्रांसफर किया था. देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने इसे रिसिव किया था. इसे आप आजादी के प्रतीक के रूप में भी समझ सकते हैं. लॉर्ड माउंटबेटन ने इसे नेहरू को सौंपा था. इसका मतलब यह हुआ कि औपचारिक रूप से अंग्रेजों ने सत्ता का हस्तांतरण भारतीयों के हाथों कर दिया.

इस परंपरा के बारे में नेहरू को भी जानकारी नहीं थी. तब नेहरू ने सी राजगोपालचारी से बात की. राजगोपालचारी ने इस परंपरा के बारे में विस्तार से नेहरू को बताया. इसके बाद सेंगोल को तमिलनाडु से मंगाया गया था और 14 अगस्त 1947 की रात के पौने ग्यारह बजे इसे नेहरू को सौंपा गया था. सेंगोल सौंपे जाने का मतलब होता है कि सत्ता का हस्तांतरण कर दिया गया है और अब आप न्यायप्रियता और निष्पक्षता से अपना काम करेंगे. हालांकि, बाद के काल में इस परंपरा को भुला दिया गया और इसके बारे में बहुत सारे लोगों को कोई जानकारी नहीं है. इस वीडियो से भी आप सेंगोल को समझ सकते हैं.

कुछ इतिहासकार मानते हैं कि सेंगोल चोल साम्राज्य से जुड़ा है. तभी से इसकी परंपरा कायम है. खबर यह भी है कि जो तमिल विद्वान 1947 में उपस्थित थे, उन्हें ही उद्घाटन कार्यक्रम में आमंत्रित किया गया है, ताकि वे इसे फिर से स्थापित कर सकें. सेंगोल को इलाहाबाद के संग्रहालय में रख दिया गया था.

सेंगोल को कीमती धातु यानी सोने या चांदी से बनाया जाता है. पहले के समय में राजा इसे साथ लेकर चलते थे, जो उनके प्रभुत्व और अधिकार को दर्शाता था. सेंगोल परंपरा का जिक्र मौर्य काल में भी होता था. तब इसे सेंगोल राजदंड के रूप में जाना जाता था. बाद में गुप्त, चोल और विजयनगर साम्राज्य ने भी इस परंपरा का वहन किया. मुगलों और अंग्रेजों के काल में भी इसका उपयोग किया जाता था.

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ये भी पढ़ें : New Parliament Building : वीर सावरकर की जयंती पर नए संसद भवन का उद्घाटन, विपक्ष का हंगामा, भाजपा का पलटवार

नई दिल्ली : सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के तहत 28 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संसद के नए भवन का उद्घाटन करेंगे. इसकी तैयारी पूरी कर ली गई है. गृह मंत्री अमित शाह ने आज इसकी जानकारी दी. इस मौके पर एक और पुरानी परंपरा को पुनर्जीवित किया जाएगा. इसे सेंगोल परंपरा कहते हैं. यह चोल काल से ही चली आ रही है. कुछ इतिहासकारों का मानना है कि मौर्य काल में भी यह परंपरा थी.

सेंगोल का मतलब - संपदा से संपन्न होता है. इसे सत्ता का प्रतीक माना जाता है. इसे स्पीकर के ठीक बगल में रखा जाएगा. इसके शीर्ष पर नंदी की मूर्ति है. अंग्रेजों ने 14 अगस्त 1947 को इसी सेंगोल को भारतीयों को ट्रांसफर किया था. देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने इसे रिसिव किया था. इसे आप आजादी के प्रतीक के रूप में भी समझ सकते हैं. लॉर्ड माउंटबेटन ने इसे नेहरू को सौंपा था. इसका मतलब यह हुआ कि औपचारिक रूप से अंग्रेजों ने सत्ता का हस्तांतरण भारतीयों के हाथों कर दिया.

इस परंपरा के बारे में नेहरू को भी जानकारी नहीं थी. तब नेहरू ने सी राजगोपालचारी से बात की. राजगोपालचारी ने इस परंपरा के बारे में विस्तार से नेहरू को बताया. इसके बाद सेंगोल को तमिलनाडु से मंगाया गया था और 14 अगस्त 1947 की रात के पौने ग्यारह बजे इसे नेहरू को सौंपा गया था. सेंगोल सौंपे जाने का मतलब होता है कि सत्ता का हस्तांतरण कर दिया गया है और अब आप न्यायप्रियता और निष्पक्षता से अपना काम करेंगे. हालांकि, बाद के काल में इस परंपरा को भुला दिया गया और इसके बारे में बहुत सारे लोगों को कोई जानकारी नहीं है. इस वीडियो से भी आप सेंगोल को समझ सकते हैं.

कुछ इतिहासकार मानते हैं कि सेंगोल चोल साम्राज्य से जुड़ा है. तभी से इसकी परंपरा कायम है. खबर यह भी है कि जो तमिल विद्वान 1947 में उपस्थित थे, उन्हें ही उद्घाटन कार्यक्रम में आमंत्रित किया गया है, ताकि वे इसे फिर से स्थापित कर सकें. सेंगोल को इलाहाबाद के संग्रहालय में रख दिया गया था.

सेंगोल को कीमती धातु यानी सोने या चांदी से बनाया जाता है. पहले के समय में राजा इसे साथ लेकर चलते थे, जो उनके प्रभुत्व और अधिकार को दर्शाता था. सेंगोल परंपरा का जिक्र मौर्य काल में भी होता था. तब इसे सेंगोल राजदंड के रूप में जाना जाता था. बाद में गुप्त, चोल और विजयनगर साम्राज्य ने भी इस परंपरा का वहन किया. मुगलों और अंग्रेजों के काल में भी इसका उपयोग किया जाता था.

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Last Updated : May 24, 2023, 3:57 PM IST
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