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निजी बीमा कंपनियों के आगे नतमस्तक पुलिस प्रशासन - यूपी में निजी बीमा कंपनियां

उत्तर प्रदेश ही नहीं, देश के कई राज्यों में वाहन चोरी के सुनियोजित गोरखधंधे से जुड़े कई खुलासे हो चुके हैं. देश में हजारों चोरी की लग्जरी गाड़ियां बरामद हुईं हैं. कुछ प्यादे सलाखों के पीछे भी पहुंचे, लेकिन किसी भी मामले में पुलिस के हाथ उन लोगों तक नहीं पहुंचे, जो इस गोरखधंधे के लिए जिम्मेदार हैं.

निजी बीमा कंपनियों के आगे नतमस्तक पुलिस प्रशासन
निजी बीमा कंपनियों के आगे नतमस्तक पुलिस प्रशासन
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Published : Jan 12, 2021, 6:19 PM IST

Updated : Jan 12, 2021, 6:39 PM IST

लखनऊ: राजधानी लखनऊ में 22 जुलाई 2020 को बीएमडब्लू जैसी 62 लग्जरी गाड़ियों सहित 112 चोरी की कारें बरामद की गईं, लेकिन इस मामले में भी पुलिस की जांच मुकाम तक नहीं पहुंची. नतीजतन यह कारोबार एक बार फिर पुराने ढर्रे पर चल पड़ा है.

कैसे चलता है फर्जीवाड़े का यह गोरखधंधा
कई निजी बीमा कंपनियां 'टोटल लॉस' (दुर्घटना में 75% से ज्यादा नुकसान) हो चुकी गाड़ी (कबाड़) का रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट निरस्त नहीं कराती. वह ग्राहक को बीमा राशि देने से पहले सर्वेयर पर दबाव बनाकर या खुद ऑनलाइन नीलामी के माध्यम से कबाड़ की कीमत लगवाती हैं. बाद में कबाड़ी के हाथों गाड़ी की वास्तविक कीमत से कई गुना ज्यादा कीमत पर बेच देती हैं. इस दौरान वाहन मालिक को कुछ भी बताया नहीं जाता. उसे यह भी मालूम नहीं होता कि उसकी गाड़ी कौन खरीद रहा है. चूंकि वाहन स्वामी को अपनी गाड़ी का क्लेम लेना होता है, तो उसे कंपनियों की बात माननी ही पड़ती है.

निजी बीमा कंपनियों के आगे नतमस्तक पुलिस प्रशासन

बीमा कंपनियां और कंपनियों के दबाव में सर्वेयर सादे सेल लेटर पर वाहन स्वामी के हस्ताक्षर ले लेते हैं. गाड़ी उठाने के बाद कबाड़ी दुर्घटनाग्रस्त वाहन के रंग और मॉडल की नई गाड़ी चोरी कराता है और कबाड़ हो चुकी गाड़ी से चेचिस नंबर काटकर चोरी की गाड़ी में बहुत ही सफाई से टेंपर कर देता है. इसके साथ ही चोरी की गई गाड़ी पर कबाड़ हो चुकी गाड़ी की नंबर प्लेट लगाकर, उसी रजिस्ट्रेशन सार्टिफेकट पर बाजार में बेंच दी जाती है. लखनऊ में बरामद 112 गाड़ियों में ज्यादातर ऐसी गाड़ियां शामिल हैं.

पढ़ें : बेंगलुरु : ड्रग्स के धंधे में 'भगवान गणेश', तस्करी का फंडाफोड़

क्या कहते हैं पुलिस अधिकारी
इस संबंध में जब लखनऊ जोन के अपर पुलिस महानिदेशक एसएन साबत से बातचीत की गई तो उन्होंने कहा कि ऐसे कई गिरोहों का पर्दाफाश हो चुका है. ऐसे मामलों में जांच अधिकारियों को तह तक पहुंचने के लिए कहा गया है. उन्होंने कहा कि वाहन चोरी में कई तरह के गिरोह पकड़े गए हैं, जिनमें चेचिस नंबर में हेरफेर के तमाम मामले भी हैं. गाड़ियां नेपाल भी भेजी जाती थीं, जिस पर हमने काफी हद तक रोक लगाई है. एडीजी ने कहा कि यदि इसमें इंश्योरेंस कंपनियों आदि की कोई संलिप्तता मिली, तो उन पर भी कार्रवाई की जाएगी.

क्या कहते हैं 'इसला' (ISLA) के पदाधिकारी
इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ इंश्योरेंस सर्वेयर्स एंड लॉस एसेसर्स (ISLA) के नेशनल ट्रेजरर विपिन कुमार शुक्ला कहते हैं कि टोटल लॉस और वाहनों की चोरी का गहरा रिश्ता है. विगत वर्षों में तमाम मामले पुलिस ने उजागर किए. सभी मामलों में टोटल लॉस की गाड़ियों के रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट का दुरुपयोग हुआ है. टोटल लॉस हुई गाड़ी की चेचिस काटकर चोरी की गाड़ियों में टेंपर की गई और बेच दिया गया.

बीमा कंपनियों के रसूख के आगे बौनी साबित हुई पुलिसिया कार्रवाई
टोटल लॉस के खेल में लिप्त निजी बीमा कंपनियों के रसूख के आगे पुलिस जांच हर बार बौनी साबित हुई है. 2018 में लखनऊ में एसपी नार्थ रहे अनुराग वत्स ने एक बड़ा खुलासा किया था. उनकी जांच सही दिशा में चल ही रही थी कि उनका तबादला कर दिया गया. बीमा कंपनियों के जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई न किए जाने को लेकर पुलिस के अपने तर्क भी हैं. पुलिस का कहना है कि यदि बीमा कंपनियां नियमों की अनदेखी कर रही हैं, तो इसके खिलाफ नियामक संस्था को कार्रवाई करनी चाहिए. यह काम पुलिस का नहीं है.

क्या होता 'टोटल लॉस'
बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण यानी Insurance Regulatory and Development Authority (IRDA) के नियमानुसार जब किसी वाहन को दुर्घटना में उसके बीमित मूल्य के 75% से अधिक क्षति होती है, तो उस वाहन को 'totalloss' मान लिया जाता है. किसी भी दुर्घटना के बाद वाहन स्वामी बीमा कंपनी को हादसे की सूचना देता है. इसके बाद कंपनी किसी सर्वेयर को हादसे में वाहन को हुई क्षति का आकलन कर रिपोर्ट देने के लिए कहती है. यदि सर्वेयर अपनी रिपोर्ट में वाहन की 75% से ज्यादा क्षति की रिपोर्ट देता है, तो बीमा कंपनी बीमा राशि से दुर्घटनाग्रस्त वाहन, जिसे कबाड़ मान लिया जाता है, की कीमत काटकर शेष धन का भुगतान वाहन स्वामी को करती है.

लखनऊ: राजधानी लखनऊ में 22 जुलाई 2020 को बीएमडब्लू जैसी 62 लग्जरी गाड़ियों सहित 112 चोरी की कारें बरामद की गईं, लेकिन इस मामले में भी पुलिस की जांच मुकाम तक नहीं पहुंची. नतीजतन यह कारोबार एक बार फिर पुराने ढर्रे पर चल पड़ा है.

कैसे चलता है फर्जीवाड़े का यह गोरखधंधा
कई निजी बीमा कंपनियां 'टोटल लॉस' (दुर्घटना में 75% से ज्यादा नुकसान) हो चुकी गाड़ी (कबाड़) का रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट निरस्त नहीं कराती. वह ग्राहक को बीमा राशि देने से पहले सर्वेयर पर दबाव बनाकर या खुद ऑनलाइन नीलामी के माध्यम से कबाड़ की कीमत लगवाती हैं. बाद में कबाड़ी के हाथों गाड़ी की वास्तविक कीमत से कई गुना ज्यादा कीमत पर बेच देती हैं. इस दौरान वाहन मालिक को कुछ भी बताया नहीं जाता. उसे यह भी मालूम नहीं होता कि उसकी गाड़ी कौन खरीद रहा है. चूंकि वाहन स्वामी को अपनी गाड़ी का क्लेम लेना होता है, तो उसे कंपनियों की बात माननी ही पड़ती है.

निजी बीमा कंपनियों के आगे नतमस्तक पुलिस प्रशासन

बीमा कंपनियां और कंपनियों के दबाव में सर्वेयर सादे सेल लेटर पर वाहन स्वामी के हस्ताक्षर ले लेते हैं. गाड़ी उठाने के बाद कबाड़ी दुर्घटनाग्रस्त वाहन के रंग और मॉडल की नई गाड़ी चोरी कराता है और कबाड़ हो चुकी गाड़ी से चेचिस नंबर काटकर चोरी की गाड़ी में बहुत ही सफाई से टेंपर कर देता है. इसके साथ ही चोरी की गई गाड़ी पर कबाड़ हो चुकी गाड़ी की नंबर प्लेट लगाकर, उसी रजिस्ट्रेशन सार्टिफेकट पर बाजार में बेंच दी जाती है. लखनऊ में बरामद 112 गाड़ियों में ज्यादातर ऐसी गाड़ियां शामिल हैं.

पढ़ें : बेंगलुरु : ड्रग्स के धंधे में 'भगवान गणेश', तस्करी का फंडाफोड़

क्या कहते हैं पुलिस अधिकारी
इस संबंध में जब लखनऊ जोन के अपर पुलिस महानिदेशक एसएन साबत से बातचीत की गई तो उन्होंने कहा कि ऐसे कई गिरोहों का पर्दाफाश हो चुका है. ऐसे मामलों में जांच अधिकारियों को तह तक पहुंचने के लिए कहा गया है. उन्होंने कहा कि वाहन चोरी में कई तरह के गिरोह पकड़े गए हैं, जिनमें चेचिस नंबर में हेरफेर के तमाम मामले भी हैं. गाड़ियां नेपाल भी भेजी जाती थीं, जिस पर हमने काफी हद तक रोक लगाई है. एडीजी ने कहा कि यदि इसमें इंश्योरेंस कंपनियों आदि की कोई संलिप्तता मिली, तो उन पर भी कार्रवाई की जाएगी.

क्या कहते हैं 'इसला' (ISLA) के पदाधिकारी
इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ इंश्योरेंस सर्वेयर्स एंड लॉस एसेसर्स (ISLA) के नेशनल ट्रेजरर विपिन कुमार शुक्ला कहते हैं कि टोटल लॉस और वाहनों की चोरी का गहरा रिश्ता है. विगत वर्षों में तमाम मामले पुलिस ने उजागर किए. सभी मामलों में टोटल लॉस की गाड़ियों के रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट का दुरुपयोग हुआ है. टोटल लॉस हुई गाड़ी की चेचिस काटकर चोरी की गाड़ियों में टेंपर की गई और बेच दिया गया.

बीमा कंपनियों के रसूख के आगे बौनी साबित हुई पुलिसिया कार्रवाई
टोटल लॉस के खेल में लिप्त निजी बीमा कंपनियों के रसूख के आगे पुलिस जांच हर बार बौनी साबित हुई है. 2018 में लखनऊ में एसपी नार्थ रहे अनुराग वत्स ने एक बड़ा खुलासा किया था. उनकी जांच सही दिशा में चल ही रही थी कि उनका तबादला कर दिया गया. बीमा कंपनियों के जिम्मेदार अधिकारियों पर कार्रवाई न किए जाने को लेकर पुलिस के अपने तर्क भी हैं. पुलिस का कहना है कि यदि बीमा कंपनियां नियमों की अनदेखी कर रही हैं, तो इसके खिलाफ नियामक संस्था को कार्रवाई करनी चाहिए. यह काम पुलिस का नहीं है.

क्या होता 'टोटल लॉस'
बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण यानी Insurance Regulatory and Development Authority (IRDA) के नियमानुसार जब किसी वाहन को दुर्घटना में उसके बीमित मूल्य के 75% से अधिक क्षति होती है, तो उस वाहन को 'totalloss' मान लिया जाता है. किसी भी दुर्घटना के बाद वाहन स्वामी बीमा कंपनी को हादसे की सूचना देता है. इसके बाद कंपनी किसी सर्वेयर को हादसे में वाहन को हुई क्षति का आकलन कर रिपोर्ट देने के लिए कहती है. यदि सर्वेयर अपनी रिपोर्ट में वाहन की 75% से ज्यादा क्षति की रिपोर्ट देता है, तो बीमा कंपनी बीमा राशि से दुर्घटनाग्रस्त वाहन, जिसे कबाड़ मान लिया जाता है, की कीमत काटकर शेष धन का भुगतान वाहन स्वामी को करती है.

Last Updated : Jan 12, 2021, 6:39 PM IST
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