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The Savoy : क्वीन मैरी से लेकर इंदिरा गांधी तक रह चुकी हैं विजिटर्स - क्वीन मैरी से लेकर इंदिरा गांधी विजिटर्स

मसूरी का मशहूर द सेवॉय होटल. यह वह जगह है जहां 1906 में ब्रिटिश क्वीन मैरी भी ठहर चुकी हैं. नेहरू और इंदिरा गांधी भी यहां के विजिटर्स में शामिल रह चुके हैं. इस जगह का अपना एक इतिहास है, खासकर शिक्षा के क्षेत्र में. इस जगह से जुड़े अनेकों ऐसे पहलू हैं, जिनके बारे में आपको भी शायद पहली बार जानकारी मिलेगी. और यह जानकारी दे रहे हैं मशहूर लेखक गणेश सैली.

the savoy hotel Mussoorie
होटल सेवॉय मसूरी
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Published : Sep 23, 2022, 7:33 PM IST

मसूरी : मसूरी शहर कब बसा और क्या है इसके पीछे का इतिहास. अगर आप इसके इतिहास को खंगालेंगे तो पाएंगे कि 1815 में गोरखा युद्ध के अंत के समय इसकी शुरुआत होती है. कैप्टन यंग (आइरिश मैन) नाम के एक कमांडर ने पहली सिरमुर बटालियन की कमान संभाली थी. उन्होंने हिल स्टेशन की दूसरी छोर पर लैंडॉर में एक शूटिंग लॉज बनाया था. इसका नाम मंसूर झाड़ी कोरियनका नेपालेंसिस के नाम पर रखा गया.

1834 की शुरुआत में जॉन मैकिनन (स्कॉटिश सेवानिवृत्त सेना स्कूल मास्टर) ने अपने निजी स्कूल को मेरठ से हिल स्टेशन पर स्थानांतरित किया. मसूरी सेमिनरी यहां का पहला अंग्रेजी माध्यम स्कूल था. बेशक अन्य शैक्षणिक संस्थान बाद में सामने आए और बाद में इस जगह की पहचान ही बदल गई. इसे शिक्षा के एक विशाल केंद्र के रूप में पहचान मिली. इसे 'भारत का एडिनबर्ग' कहा जाने लगा.

1849 में, मैकिनॉन ने यहां पर शराब की भठ्ठी शुरू की थी. बाद में 26 एकड़ का ग्रांट लॉज मैडॉक स्कूल बन गया, जब क्राइस्ट चर्च के पादरी ने अपने भाई को इसे चलाने के लिए इंग्लैंड से आमंत्रित किया था. हालांकि, 1866 तक, इसकी स्थिति खराब हो गई. इसे 12000-पाउंड में चर्च ऑफ इंग्लैंड को बेच दिया गया. तीन साल बाद रेव आर्थर स्टोक्स के नेतृत्व में इसने स्टोक्स स्कूल के रूप में ख्याति प्राप्त की. शुरुआती दिनों में, यहां से पढ़ाई कर निकलने वाले लड़कों को सिविल सेवा, पुलिस, सर्वेक्षण और अन्य जगहों पर नौकरी मिल जाती थी. अन्य छात्रों को रूड़की में सिविल इंजीनियरिंग के थॉमसन कॉलेज में प्रवेश मिलता था.

सर विलियम विलकॉक्स यहीं से पास हुए. उन्होंने असवान बांध का निर्माण किया. सीएम ग्रेगरी, जिन्होंने भारत के कई शुरुआती और सबसे बड़े रेलवे पुलों का निर्माण किया. कॉर्बेट परिवारों के लड़के यहीं से पास हुए थे. इसका असर ये हुआ कि कलकत्ता और लखनऊ में स्थापित स्कूलों ने सीनियर स्कूल विंग पर ध्यान देना कम कर दिया. इसकी जगह उन्होंने प्राइमरी विंग पर फोकस किया. स्कूलों के लिए इसका संदेश बहुत ही साफ था.

अब तक यह भी स्पष्ट हो गया कि अब यहां पर लग्जरी होटल की जरूरत है. लखनऊ के बैरिस्टर सेसिल डी लिंकन ने 1885 में मैडोक स्कूल का ग्राउंड खरीदा. उन्होंने पांच सालों में यहां पर एक बड़ा भवन बनाने का फैसला किया. उन्होंने इसका नाम फ्रांस में तेरहवीं शताब्दी के 'सेवॉय' के फेयरेस्ट मनोर के नाम पर रखा.

writers ganesh saili
लेखक गणेश सैली

एक जमाने में दिन में भी यहां पहुंचने का एकमात्र रास्ता राजपुर से ब्राइडल पाथ ही था. आदमी हो और सामान, घोड़े पर लदकर आते थे. महिलाओं और बच्चों को 'झाम्पनी' पर लाया जाता था. पहाड़ी पर यात्रा के लिए इसकी मदद ली जाती है. जाहिर है, जो चल सकते थे, वे झरीपानी और बरलोगंज होते हुए राजपुर से सात मील की दूरी तय करते थे. होटल के लिए जो भी जरूर आइटम थे, उन्होंने वहां पर लाया, जैसे- विशाल विक्टोरियन या एडवर्डियन फर्नीचर, भव्य पियानो, बिलियर्ड-टेबल, बियर के रॉटंड बैरल और शैंपेन के बक्से वगैरह. इसके बाद यह सिंगापुर के रैफल्स, जापान के इंपीरियल या हांगकांग प्रायद्वीप की तरह पूरे ब्रिटिश साम्राज्य में प्रसिद्ध हो गया.

एक स्थानीय लेखक ने टिप्पणी की, 'द सेवॉय' मसूरी स्कूल की विरासत पर चमक उठा. मार्च 1906 में, होटल 'हर रॉयल हाईनेस' वेल्स की राजकुमारी (बाद में क्वीन मैरी) की शाही यात्रा के स्वागत के लिए तैयार था. वह सेवॉय के मैदान में एक पार्टी में शामिल हुई थीं. सामने तीन सौ साल से अधिक पुराने दो देवदारों के पेड़ों से प्रभावित होकर, उन्होंने होटल के सामने क्राइस्ट चर्च में एक पेड़ भी लगाया.

अभी शाही मेहमान वहां से निकले ही होंगे कि मसूरी कांगड़ा में आए भूकंप से हिल गया. हिल स्टेशन पर स्थित कई बिल्डिंगें प्रभावित हुईं. होटल सेवॉय का भी बुर्ज टूट गया. मरम्मत करवाने के बाद ही इसे 1907 में फिर से खोला गया. 1907 में यहां पर बिजली आ गई थी. इससे पहले बॉलरूम और डाइनिंग रूम के झूमर मोमबत्तियों से जगमगाते थे, जबकि स्पिरिट-लैंप किचन को रोशन करते थे.

प्रथम विश्व युद्ध के बाद सेवॉय की लोकप्रियता और बढ़ी. बॉलरूम में, सेवॉय ऑर्केस्ट्रा हर रात बजाया जाता था. कपल फर्श पर डांस करते थे. डांस के ये रूप- जिटरबग्ड, रॉक एंड रोल्ड, स्वांग, वाल्ट्ज, फॉक्स-ट्रॉटेड और टैंगोड- वहां की शोभा बढ़ाया करते थे. मसूरी की इन्हीं अदाओं से जैज लिजेंड रूडी कॉटन को इस शहर से प्यार हो गया था. भारत के भी धनाढ़्य और संपन्न लोग यहां आकर पार्टी एंजॉय करने लगे थे. इनमें फिल्मी कलाकारों से लेकर बिजनेसमैन, डांसर, संगीतकार हर कोई शामिल था. यहां पर ब्यूटी कॉन्टेस्ट भी आयोजित होने लगे थे.

लेखक लोवेल थॉमस ने इस होटल पर कविता तक लिखी है. इसका आशय कुछ इस तरह है- 'मसूरी मे एक ऐसा होटेल (द सेवॉय) है जो हर शाम घंटी बजाता है ताकि पाक-साफ लोग अपनी प्रार्थना पूरी कर सकें, और अधार्मिक वापस अपने बिस्तर मे चले जाएँ.'

पहाड़ियों पर छुट्टियां मनाने आए कराची के राय बहादुर कृपा राम ने 1946 में इक्कीस एकड़ का एक कॉंप्लेक्स खरीदा था. सेवॉय आने वालों में मोती लाल नेहरू, जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी भी शामिल हैं. इनके नाम विजिटर्स लिस्ट में देखे जा सकते हैं. पंचम दलाई लामा, इथियोपिया के राजा हैली सेलासी, नेपाल के राजा, ईरान के शाह, लाओस के क्राउन प्रिंस और मशहूर लेखक पीएस बक भी शामिल हैं.

मसूरी पुस्तकालय (स्था.1843) की पहली मंजिल पर एक सेवॉय कैफे सालों तक मौजूद था. यहां पर इन उड़ते हुए देवदारों के नीचे कुछ देर खड़े रहिए और बहती हुई ठंडी हवा को महसूस कीजिए. ये पेड़ हिल स्टेशन के इतिहास के मूक गवाह के रूप में खड़े हैं. वे यहां लंबे समय से हैं. हिल स्टेशन का नाम होने से पहले भी. उनके नीचे की जमीन पर टेनिस कोर्ट थे जहां भारत के कुछ प्रमुख टेनिस सितारों ने एक बार इसके हार्ड कोर्ट पर हाथ आजमाया था. फिल्म शूटिंग के लिए सेवॉय हमेशा से एक पसंदीदा स्थल रहा है.

1946 में, राय बहादुर कैप्टन कृपा राम ने सेसिल डी लिंकन से होटल का अधिग्रहण किया, जो बाद में उनके बेटे आनंद के जौहर को सौंप दिया गया. हालांकि, 2004 में आरपी सिंह और केके काया (उद्योगपतियों) ने इसे अपने अधीन कर लिया. वर्तमान मालिक अतीत को संरक्षित करने के इच्छुक हैं, लेकिन वे भविष्य की ओर भी देख रहे हैं. आखिरकार, मेहमान इतिहास और माहौल से कहीं अधिक प्यार करते हैं. वे अपनी छुट्टी का आनंद लेना चाहते हैं, मसूरी में मस्ती और मस्ती की परंपरा रही है. वह परंपरा जारी है. कुछ पुरानी भावना और कुछ नए के साथ, सेवॉय जारी रहता है, क्योंकि यह शराब और गुलाब के उन दिनों को फिर से जीवित करता है.

ये भी पढ़ें : फेयरलॉन पैलेस : नेपाल के निर्वासित प्रधानमंत्री देव शमशेर राणा ने मसूरी को बनाया था अपना दूसरा घर

मसूरी : मसूरी शहर कब बसा और क्या है इसके पीछे का इतिहास. अगर आप इसके इतिहास को खंगालेंगे तो पाएंगे कि 1815 में गोरखा युद्ध के अंत के समय इसकी शुरुआत होती है. कैप्टन यंग (आइरिश मैन) नाम के एक कमांडर ने पहली सिरमुर बटालियन की कमान संभाली थी. उन्होंने हिल स्टेशन की दूसरी छोर पर लैंडॉर में एक शूटिंग लॉज बनाया था. इसका नाम मंसूर झाड़ी कोरियनका नेपालेंसिस के नाम पर रखा गया.

1834 की शुरुआत में जॉन मैकिनन (स्कॉटिश सेवानिवृत्त सेना स्कूल मास्टर) ने अपने निजी स्कूल को मेरठ से हिल स्टेशन पर स्थानांतरित किया. मसूरी सेमिनरी यहां का पहला अंग्रेजी माध्यम स्कूल था. बेशक अन्य शैक्षणिक संस्थान बाद में सामने आए और बाद में इस जगह की पहचान ही बदल गई. इसे शिक्षा के एक विशाल केंद्र के रूप में पहचान मिली. इसे 'भारत का एडिनबर्ग' कहा जाने लगा.

1849 में, मैकिनॉन ने यहां पर शराब की भठ्ठी शुरू की थी. बाद में 26 एकड़ का ग्रांट लॉज मैडॉक स्कूल बन गया, जब क्राइस्ट चर्च के पादरी ने अपने भाई को इसे चलाने के लिए इंग्लैंड से आमंत्रित किया था. हालांकि, 1866 तक, इसकी स्थिति खराब हो गई. इसे 12000-पाउंड में चर्च ऑफ इंग्लैंड को बेच दिया गया. तीन साल बाद रेव आर्थर स्टोक्स के नेतृत्व में इसने स्टोक्स स्कूल के रूप में ख्याति प्राप्त की. शुरुआती दिनों में, यहां से पढ़ाई कर निकलने वाले लड़कों को सिविल सेवा, पुलिस, सर्वेक्षण और अन्य जगहों पर नौकरी मिल जाती थी. अन्य छात्रों को रूड़की में सिविल इंजीनियरिंग के थॉमसन कॉलेज में प्रवेश मिलता था.

सर विलियम विलकॉक्स यहीं से पास हुए. उन्होंने असवान बांध का निर्माण किया. सीएम ग्रेगरी, जिन्होंने भारत के कई शुरुआती और सबसे बड़े रेलवे पुलों का निर्माण किया. कॉर्बेट परिवारों के लड़के यहीं से पास हुए थे. इसका असर ये हुआ कि कलकत्ता और लखनऊ में स्थापित स्कूलों ने सीनियर स्कूल विंग पर ध्यान देना कम कर दिया. इसकी जगह उन्होंने प्राइमरी विंग पर फोकस किया. स्कूलों के लिए इसका संदेश बहुत ही साफ था.

अब तक यह भी स्पष्ट हो गया कि अब यहां पर लग्जरी होटल की जरूरत है. लखनऊ के बैरिस्टर सेसिल डी लिंकन ने 1885 में मैडोक स्कूल का ग्राउंड खरीदा. उन्होंने पांच सालों में यहां पर एक बड़ा भवन बनाने का फैसला किया. उन्होंने इसका नाम फ्रांस में तेरहवीं शताब्दी के 'सेवॉय' के फेयरेस्ट मनोर के नाम पर रखा.

writers ganesh saili
लेखक गणेश सैली

एक जमाने में दिन में भी यहां पहुंचने का एकमात्र रास्ता राजपुर से ब्राइडल पाथ ही था. आदमी हो और सामान, घोड़े पर लदकर आते थे. महिलाओं और बच्चों को 'झाम्पनी' पर लाया जाता था. पहाड़ी पर यात्रा के लिए इसकी मदद ली जाती है. जाहिर है, जो चल सकते थे, वे झरीपानी और बरलोगंज होते हुए राजपुर से सात मील की दूरी तय करते थे. होटल के लिए जो भी जरूर आइटम थे, उन्होंने वहां पर लाया, जैसे- विशाल विक्टोरियन या एडवर्डियन फर्नीचर, भव्य पियानो, बिलियर्ड-टेबल, बियर के रॉटंड बैरल और शैंपेन के बक्से वगैरह. इसके बाद यह सिंगापुर के रैफल्स, जापान के इंपीरियल या हांगकांग प्रायद्वीप की तरह पूरे ब्रिटिश साम्राज्य में प्रसिद्ध हो गया.

एक स्थानीय लेखक ने टिप्पणी की, 'द सेवॉय' मसूरी स्कूल की विरासत पर चमक उठा. मार्च 1906 में, होटल 'हर रॉयल हाईनेस' वेल्स की राजकुमारी (बाद में क्वीन मैरी) की शाही यात्रा के स्वागत के लिए तैयार था. वह सेवॉय के मैदान में एक पार्टी में शामिल हुई थीं. सामने तीन सौ साल से अधिक पुराने दो देवदारों के पेड़ों से प्रभावित होकर, उन्होंने होटल के सामने क्राइस्ट चर्च में एक पेड़ भी लगाया.

अभी शाही मेहमान वहां से निकले ही होंगे कि मसूरी कांगड़ा में आए भूकंप से हिल गया. हिल स्टेशन पर स्थित कई बिल्डिंगें प्रभावित हुईं. होटल सेवॉय का भी बुर्ज टूट गया. मरम्मत करवाने के बाद ही इसे 1907 में फिर से खोला गया. 1907 में यहां पर बिजली आ गई थी. इससे पहले बॉलरूम और डाइनिंग रूम के झूमर मोमबत्तियों से जगमगाते थे, जबकि स्पिरिट-लैंप किचन को रोशन करते थे.

प्रथम विश्व युद्ध के बाद सेवॉय की लोकप्रियता और बढ़ी. बॉलरूम में, सेवॉय ऑर्केस्ट्रा हर रात बजाया जाता था. कपल फर्श पर डांस करते थे. डांस के ये रूप- जिटरबग्ड, रॉक एंड रोल्ड, स्वांग, वाल्ट्ज, फॉक्स-ट्रॉटेड और टैंगोड- वहां की शोभा बढ़ाया करते थे. मसूरी की इन्हीं अदाओं से जैज लिजेंड रूडी कॉटन को इस शहर से प्यार हो गया था. भारत के भी धनाढ़्य और संपन्न लोग यहां आकर पार्टी एंजॉय करने लगे थे. इनमें फिल्मी कलाकारों से लेकर बिजनेसमैन, डांसर, संगीतकार हर कोई शामिल था. यहां पर ब्यूटी कॉन्टेस्ट भी आयोजित होने लगे थे.

लेखक लोवेल थॉमस ने इस होटल पर कविता तक लिखी है. इसका आशय कुछ इस तरह है- 'मसूरी मे एक ऐसा होटेल (द सेवॉय) है जो हर शाम घंटी बजाता है ताकि पाक-साफ लोग अपनी प्रार्थना पूरी कर सकें, और अधार्मिक वापस अपने बिस्तर मे चले जाएँ.'

पहाड़ियों पर छुट्टियां मनाने आए कराची के राय बहादुर कृपा राम ने 1946 में इक्कीस एकड़ का एक कॉंप्लेक्स खरीदा था. सेवॉय आने वालों में मोती लाल नेहरू, जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी भी शामिल हैं. इनके नाम विजिटर्स लिस्ट में देखे जा सकते हैं. पंचम दलाई लामा, इथियोपिया के राजा हैली सेलासी, नेपाल के राजा, ईरान के शाह, लाओस के क्राउन प्रिंस और मशहूर लेखक पीएस बक भी शामिल हैं.

मसूरी पुस्तकालय (स्था.1843) की पहली मंजिल पर एक सेवॉय कैफे सालों तक मौजूद था. यहां पर इन उड़ते हुए देवदारों के नीचे कुछ देर खड़े रहिए और बहती हुई ठंडी हवा को महसूस कीजिए. ये पेड़ हिल स्टेशन के इतिहास के मूक गवाह के रूप में खड़े हैं. वे यहां लंबे समय से हैं. हिल स्टेशन का नाम होने से पहले भी. उनके नीचे की जमीन पर टेनिस कोर्ट थे जहां भारत के कुछ प्रमुख टेनिस सितारों ने एक बार इसके हार्ड कोर्ट पर हाथ आजमाया था. फिल्म शूटिंग के लिए सेवॉय हमेशा से एक पसंदीदा स्थल रहा है.

1946 में, राय बहादुर कैप्टन कृपा राम ने सेसिल डी लिंकन से होटल का अधिग्रहण किया, जो बाद में उनके बेटे आनंद के जौहर को सौंप दिया गया. हालांकि, 2004 में आरपी सिंह और केके काया (उद्योगपतियों) ने इसे अपने अधीन कर लिया. वर्तमान मालिक अतीत को संरक्षित करने के इच्छुक हैं, लेकिन वे भविष्य की ओर भी देख रहे हैं. आखिरकार, मेहमान इतिहास और माहौल से कहीं अधिक प्यार करते हैं. वे अपनी छुट्टी का आनंद लेना चाहते हैं, मसूरी में मस्ती और मस्ती की परंपरा रही है. वह परंपरा जारी है. कुछ पुरानी भावना और कुछ नए के साथ, सेवॉय जारी रहता है, क्योंकि यह शराब और गुलाब के उन दिनों को फिर से जीवित करता है.

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