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बिल्डर को या तो पैसा दिखता है या जेल की सजा ही समझ में आती है : सुप्रीम काेर्ट - National Consumer Disputes Redressal Commission

उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को कहा कि बिल्डर को या तो पैसा दिखता है या फिर जेल की सजा ही समझ में आती है. न्यायालय ने एक रियल स्टेट कंपनी को उसके आदेश का जानबूझकर पालन ना करने के लिए अवमानना का दोषी करार देते हुये यह कहा और उसपर 15 लाख रुपये का जुर्माना लगाया है.

बिल्डर
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Published : Aug 20, 2021, 7:40 AM IST

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने रियल एस्टेट फर्म इरियो ग्रेस रियलटेक प्राइवेट लिमिटेड को राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण (नल्सा) के पास 15 लाख रुपये जमा करने और कानूनी खर्च के तौर पर घर खरीदारों को दो लाख रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया. कंपनी ने उच्चतम न्यायालय के आदेश पर खरीदारों को पैसा नहीं लौटाया.

न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एम आर शाह की पीठ ने गौर किया कि इस साल पांच जनवरी को उसने राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद समाधान आयोग के 28 अगस्त के पिछले साल के फैसले को बरकरार रखा था जिसमें कंपनी को घर खरीदारों को नौ प्रतिशत ब्याज के साथ रिफंड का निर्देश दिया गया था.

पीठ ने कहा कि हमने आपको पांच जनवरी को दो महीने के भीतर राशि लौटाने का निर्देश दिया था. फिर आपने (बिल्डर) आदेश में संशोधन की मांग करते हुए एक याचिका दायर की, जिसे हमने मार्च में खारिज कर दिया और आपको घर खरीदारों को दो महीने के भीतर पैसा लौटाने का निर्देश दिया. अब, फिर से घर खरीदार हमारे सामने अवमानना ​​​​याचिका के साथ आए हैं कि आपने पैसे का भुगतान नहीं किया है. हमें कोई ठोस कदम उठाना होगा जिसे याद किया जाये या फिर किसी को जेल भेजना होगा. बिल्डर्स को केवल पैसा दिखता या फिर जेल की सजा ही समझते हैं.

रियल्टी कंपनी के वकील ने कहा कि उन्होंने आज 58.20 लाख रुपये का आरटीजीएस भुगतान कर दिया है और घर खरीदारों को देने के लिये 50 लाख रुपये का डिमांड ड्राफ्ट भी तैयार है. इस पर पीठ ने कहा कि आपको मार्च में भुगतान करना था लेकिन अब अगस्त में आप कह रहे हो कि अब आप कर रहे हो. आपने जानबूझकर हमारे आदेश की अवहेलना की है, हम इसे हल्के में नहीं छोड़ सकते हैं.

कंपनी के वकली ने कहा कि वह देरी और असुविधा के लिये माफी मांगती है. इस पर पीठ ने कहा कि हमें यह माफी स्वीकार्य योग्य नहीं लगती. बिल्डर ने आदेश का पालन नहीं करने के लिये हर तरह की रणनीति अपनाई है.

उच्चतम न्यायालय ने कहा कि न्यायालय के आदेश की जानबूझकर और साफ-साफ अवहेलना की गयी. इसलिए प्रतिवादी (बिल्डर)को अवमानना का दोषी करार दिया जाता है. भुगतान में देरी का कोई उचित कारण नहीं दिया गया. हम याचिकाकर्ता (घर खरीदार) को पूरी राशि का भुगतान करने का निर्देश देते हैं और यह दिन के कामकाम के घंटों के दौरान हो जाना चाहिए.

उच्चतम न्यायालय ने बिल्डर को घर खरीदार को कानूनी लड़ाई खर्च के लिए दो लाख रुपये और कानूनी सेवा प्राधिकरण के पास 15 लाख रुपये जुर्माना के तौर पर जमा कराने को कहा.

इसे भी : बिल्डरों के खिलाफ नोएडा प्राधिकरण की कार्रवाई, बिना अनुमति होर्डिंग लगाने पर करोड़ों का चालान

हरियाणा के गुड़गांव सैक्टर 67 स्थित ग्रुप हाउसिंग परियोजना दि कोरीडोर्स के घर खरीदारों ने फ्लैट मिलने में देरी होने पर बिल्डर को दिये गये पैसे वापस किये जाने को लेकर उपभोक्ता अदालत का रुख किया था. खरीदारों का कहना है कि उन्होंने बिल्डर को 62,31,906 रुपये का भुगतान कर दिया था. इसके लिये 24 मार्च 2014 को समझौते पर हस्ताक्षर किये गये. उन्हें फ्लैट जनवरी 2017 में दिये जाने थे. लेकिन इसमें देरी होती चली गई.

(पीटीआई-भाषा)

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने रियल एस्टेट फर्म इरियो ग्रेस रियलटेक प्राइवेट लिमिटेड को राष्ट्रीय कानूनी सेवा प्राधिकरण (नल्सा) के पास 15 लाख रुपये जमा करने और कानूनी खर्च के तौर पर घर खरीदारों को दो लाख रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया. कंपनी ने उच्चतम न्यायालय के आदेश पर खरीदारों को पैसा नहीं लौटाया.

न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एम आर शाह की पीठ ने गौर किया कि इस साल पांच जनवरी को उसने राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद समाधान आयोग के 28 अगस्त के पिछले साल के फैसले को बरकरार रखा था जिसमें कंपनी को घर खरीदारों को नौ प्रतिशत ब्याज के साथ रिफंड का निर्देश दिया गया था.

पीठ ने कहा कि हमने आपको पांच जनवरी को दो महीने के भीतर राशि लौटाने का निर्देश दिया था. फिर आपने (बिल्डर) आदेश में संशोधन की मांग करते हुए एक याचिका दायर की, जिसे हमने मार्च में खारिज कर दिया और आपको घर खरीदारों को दो महीने के भीतर पैसा लौटाने का निर्देश दिया. अब, फिर से घर खरीदार हमारे सामने अवमानना ​​​​याचिका के साथ आए हैं कि आपने पैसे का भुगतान नहीं किया है. हमें कोई ठोस कदम उठाना होगा जिसे याद किया जाये या फिर किसी को जेल भेजना होगा. बिल्डर्स को केवल पैसा दिखता या फिर जेल की सजा ही समझते हैं.

रियल्टी कंपनी के वकील ने कहा कि उन्होंने आज 58.20 लाख रुपये का आरटीजीएस भुगतान कर दिया है और घर खरीदारों को देने के लिये 50 लाख रुपये का डिमांड ड्राफ्ट भी तैयार है. इस पर पीठ ने कहा कि आपको मार्च में भुगतान करना था लेकिन अब अगस्त में आप कह रहे हो कि अब आप कर रहे हो. आपने जानबूझकर हमारे आदेश की अवहेलना की है, हम इसे हल्के में नहीं छोड़ सकते हैं.

कंपनी के वकली ने कहा कि वह देरी और असुविधा के लिये माफी मांगती है. इस पर पीठ ने कहा कि हमें यह माफी स्वीकार्य योग्य नहीं लगती. बिल्डर ने आदेश का पालन नहीं करने के लिये हर तरह की रणनीति अपनाई है.

उच्चतम न्यायालय ने कहा कि न्यायालय के आदेश की जानबूझकर और साफ-साफ अवहेलना की गयी. इसलिए प्रतिवादी (बिल्डर)को अवमानना का दोषी करार दिया जाता है. भुगतान में देरी का कोई उचित कारण नहीं दिया गया. हम याचिकाकर्ता (घर खरीदार) को पूरी राशि का भुगतान करने का निर्देश देते हैं और यह दिन के कामकाम के घंटों के दौरान हो जाना चाहिए.

उच्चतम न्यायालय ने बिल्डर को घर खरीदार को कानूनी लड़ाई खर्च के लिए दो लाख रुपये और कानूनी सेवा प्राधिकरण के पास 15 लाख रुपये जुर्माना के तौर पर जमा कराने को कहा.

इसे भी : बिल्डरों के खिलाफ नोएडा प्राधिकरण की कार्रवाई, बिना अनुमति होर्डिंग लगाने पर करोड़ों का चालान

हरियाणा के गुड़गांव सैक्टर 67 स्थित ग्रुप हाउसिंग परियोजना दि कोरीडोर्स के घर खरीदारों ने फ्लैट मिलने में देरी होने पर बिल्डर को दिये गये पैसे वापस किये जाने को लेकर उपभोक्ता अदालत का रुख किया था. खरीदारों का कहना है कि उन्होंने बिल्डर को 62,31,906 रुपये का भुगतान कर दिया था. इसके लिये 24 मार्च 2014 को समझौते पर हस्ताक्षर किये गये. उन्हें फ्लैट जनवरी 2017 में दिये जाने थे. लेकिन इसमें देरी होती चली गई.

(पीटीआई-भाषा)

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